...

  ये मेरा घर वो तेरा घर (

by user

on
Category: Documents
130

views

Report

Comments

Transcript

  ये मेरा घर वो तेरा घर (
ये मेरा घर वो तेरा घर वी के जोशी (आ दमानव क गफ
ु ा और आज के एपाटमट म एक ह समानता थी. दोन म मनु य का वास था. मानव या,
प ी तक नीड़ बसाते ह, आंधी से उजड़ जाता है तो फर बसाते ह. हष और ईशा अपने एपाटमट क १९वीं
मंिजल क बालकनी म बैठे कुछ इसी
नाना जी:
कार क बात कर रहे ह क नाना जी वहाँ आ जाते ह.) या बात हो रह ह ब च ? हष: कुछ नह ं नाना जी, हम लोग सोच रहे थे क हमारे पव
ू ज कस
भी
ट व सीमट के होते थे! कार के घर म रहते थे,
या उनके घर
नाना जी: नह ं बेटा हमारे पव
ू ज
ट और सीमट से बने घर म नह ं रहते थे.
ईशा: (ज द , ज द बोलते हुए)- नाना जी, नाना जी आप एक दन कह रहे थे क बहुत पहले लोग गुफाओं म
रहा करते थे? नाना जी: हाँ बेटा, हजार वष पूव
ागै तहा सक काल म आ दमानव गफ
ु ाओं म रहा करते थे. हष: कैसे पता नाना जी क वे गुफा म रहा करते थे? नाना जी: आज भी अनेक गफ
ु ाओं म आ दमानव के बनाए हुए च पाए जाते ह. म य दे श क राजधानी
भोपाल के नकट एक जगह है भीमबेटका, वहाँ क गुफाएं 30000 वष परु ानी ह और उनमे ऐसे च बहुत
मलते ह. ईशा: पर वो गफ
ु ा म
य रहते थे,
या उनके पास घर नह ं थे रहने के लए? नाना जी: बेटे उनका घर गुफा म ह था, घर बनाना तो मनु य ने बहुत बाद म सीखा. (दरवाजे क घंट बजती है .) नाना जी: हष बेटा दे खो कौन है , लगता है तु हारे ममी-पापा आ गए ह. ( सटकनी खल
ु ने क आवाज़) हष: ममी आप अकेल आई, पापा कहाँ गए? राधा: वो थोड़ी दे र बाद आयगे बेटे. (कुस म बैठते हुए)-आह थक गए. पापा- एपाटमट तो दे ख आये ब ढ़या है ,
फश भी लकड़ी क टाई स का है . पैसे कुछ
यादा मांग रहा है , ये उसी क बात करने गए ह. नाना जी: म तो सोचता हूँ कसी तरह य द बात बन जाये तो उस एपाटमट को खर द ह लेना,
लोकेशन बहुत अ छ है . राधा: हाँ पापा, इसी लए तो बात करने गए ह ये. य क उसक
ईशा: ममी आप कह रह हो टाइ स लगी ह! वो घर है या बाथ म? टाइ स तो बाथ म म लगी होती ह! राधा: नह ं बेटा आजकल ऐसी चीज फश म लगाते ह िजनसे घर क खूबसूरती बढ़ जाती है और स ती भी
होती ह. हष: नाना जी घर बनाने म
ट के अलावा और
या- या लगता है ? नाना जी: बेटा घर तो अनेक चीज़ से बनाए जाते ह. यह नभर करता है क द ु नया के कस
रहा है . जैसे तम
ु ने भूगोल म पढ़ा होगा क टुं ा म बफ के घर यानी इ लू होते ह. े
म घर बन
ईशा: बफ के घर! वाह उन लोग के तो मजे रहते ह गे-कोई गे ट आ गया तो थोड़ा सा एक कोना तोड़ा और
को ड
क
ं म डाल दया.
ज क ज रत ह नह ं. नाना जी: (हं सते हुए)-नह ं बेटा वहाँ इतनी ठं ड होती है क वहाँ ना
पडती है . ज क और ना को ड
क
ं क ह ज रत
हष: और कन चीज़ से घर बनाए जाते ह नाना जी? नाना जी: बेटा घर बनाने के लए द ु नया म अनेक
के घर भी बनते ह और बांस के भी. कार क चीज़ लोग
योग करते ह. हमारे दे श म ह
म ी
ईशा: (जोर से)- म ी के घर! जरा सा पानी पड़ता होगा तो घर बह जाता होगा! नाना जी: नह ं बेटा उन घर को इस तरह बनाया जाता है क पानी से उनको नक
ु सान नह ं होता. दस
ू रे ऐसे घर
उन
े
म अ धक पाए जाते ह जहां पानी कम बरसता है . हष: पर नाना जी: बांस के घर तो बहुत ह कमजोर होते ह गे! नाना जी: उलटे बांस के घर तो हमारे इन बहुमंिजले घर से बहुत मजबत
ू और सुर
त होते ह. हष: मतलब उनमे चोर नह ं घुस पाते? नाना जी: नह ं ऐसा नह ं; बांस के घर भक
ू ं प से टूटते नह ं इस लए सरु
त होते ह. ईशा: हमार
द ल म भी तो रोज ह भूकंप आते ह, यहाँ भी बांस के घर होने चा हए. नाना जी: ठ क कह रहे हो बेटे, पर इतनी घनी आबाद के लए तो बांस कम पड़ जाएगा. यहाँ पर अ य तर क
से भक
ू ं प रोधी मकान बनाए जाते है . पर हाँ हमारे पूव तर रा य म बांस के घर बनाने का चलन है ,
वहाँ बहुत भूकंप आते ह. य क
हष: नाना जी वो जो दे खये एक
सा लगा है , यह सब
या है ? क म स रया है और वो एक और बड़ी सी
क है िजसमे एक बहुत बड़ा
म
नाना जी: बेटा वह सामने जो नया एपाटमट लॉक बन रहा है यह उसी का सामान है . वो जो
क म वह गोल गोल घम
ू ता है और उसमे बजर और सीमट और पानी डाला जाता है . म सा लगा है
हष: इस सबसे
या होगा नाना जी? ईशा: (जोर से)-अरे इतना भी नह ं समझते! जैसे म सी म केला और दध
ू डाल कर ममी चलाती ह तो वह
म स हो जाता है क नह ं! नाना जी: ठ क कहा ईशा, आजकल जो घर बनाते ह उनमे स रया और सीमट कं
और यह
मनम
ु ा मशीन कं
ट म सर है . ट का
योग बहुत होता है .
ईशा: नाना जी जब सीमट कं
ट नह ं था तब घर कैसे बनते थे? राधा: (पक
ु ारते हुए) ईशा- सुबह से यह दध
ू तु हारे लए रखा है बेटा इसे फ नश करो ना. ईशा: ममी मझ
ु े नह ं पीना दध
ू , मुझे तो नाना जी से घर क कहानी सुननी है . राधा: नह ं बेटा पहले दध
ू पयो नह ं तो नाना जी कोई कहानी नह ं सुनायगे. नाना जी: चलो बेटा दध
ू फ नश करो तभी कहानी शु
( गलास से दध
ू पीने क आवाज,
होगी. ट ल का लास मेज पर रखने क आवाज़) ईशा: (हथेल से मंह
ु पोछते हुए.)-लो पी लया. नाना जी अब तो बताइए घर क बात. नाना जी: ठ क है बेटा बताता हूँ. असल म इंसान का घर बनाने का शौक बहुत पुराना है . समय के साथ और
ि थ त के अनस
ु ार घर बनाने के सामान और तर क म फक आता गया. हष: नाना जी कुछ दन पहले मने दे खा था क सामने जो घर बन रहा है उसक छत पर एक स रया का जाल
बछाया गया और नीचे से लकड़ी के पटर और बि लय से उसे सहारा दया गया फर उसमे सीमट और बजर
भर गई. और कुछ रोज बाद नीचे लगी बि लयाँ और पटरे हटा दए गए और छत तैयार हो गई. नाना जी: हाँ बेटा आजकल इस तर के से बनाने म समय और पैसे दोन क बचत होती है . पहले छत के लए
नीचे एक परत
ट क होती थी. उसके ऊपर म ी क एक परत दबा दबा कर लगाई जाती थी और उसके
ऊपर फर स रया लंबी लंबी डाल कर फर ऊपर
समय लगता था. ट क परत िजसमे सीमट के साथ लगाते थे. उसमे काफ
हष: मतलब उसमे
ट क दोहर परत होती थी. तब तो गम म वह छत अंदर कम तपती ह गी! नाना जी: बलकुल सह कहा. और उस से भी पव
ू जब नवाब लोग का रा य था तब पतल , पतल लखौर
ट
से छत बनती थी और दो परत के बीच म उलटे घड़े रख दए जाते थे. बाक जगह को चूने, गुड़ और सुख के
मसाले से भर दे ते थे. ईशा: (आ चय से) गड़
ु ! अरे नाना जी चीं टय से भर जाता होगा वह घर! नाना जी: नह ं बेटा ऐसा कुछ नह ं होता था. उलटे घड़ के कारण वह घर गम म ठं डे और जाड़ म गम रहते
थे. लखनऊ के इमामबाड़े क छत इसी
उसके कमरे कतने ठं डे रहते ह! कार बनी है . हम लोग कल लखनऊ म जायगे इमामबाड़े तब दे खना
(दरवाजे क घंट बजती है ) ईशा: (दरवाजे क ओर दौड़ते हुए)-अब कौन आया! (जोर से)-कौन है ? कबीर: (बाहर से)-ईशा, ल ज खोलो म हूँ कबीर. हष: इस मोटे को भी अभी आना था! नाना जी: कोई बात नह ं हष अपने दो त को भी बैठा लो अपने साथ. आओ कबीर यहाँ पर तो हवाई महल
बनाए जा रहे ह. कबीर: हे लो नाना जी. म तो यह पूछने आया था क
ममी ने पुछवाया है ता क वैसी ह तै यार क जाए. या कल हम लोग वीकड के लए लखनऊ जाने वाले ह?
नाना जी: हाँ बेटे कल का काय म प का है . हम लोग तीन बजे क
क
लाईट से लौट आयगे. लाईट से जाएंगे और इतवार क शाम
कबीर: अरे वाह तब तो म बड़े सह समय पर आया. दस
ू रे नाना जी क बात को सुनकर मेरा भी
जाएगा. ान बढ़
ईशा: हाँ और पेट भी-(हं सते हुए)- य क वैसे भी बना खाना खाए तो तू जायेगा नह ं. राधा: ईशा तम
ु बहुत
नह ं बोलते. यादा बोलने लगी हो. वो बड़े भाई का दो त है और बड़े भाई जैसा है , इस लए इस तरह
ईशा: अ छा बाबा सौर . नाना जी अब बताओ आगे क बात. नाना जी: याद है हम लोग पछल छु ी म आगरा गए थे? हष: हां नाना जी अ छ तरह याद है . हमने वहाँ ताजमहल और फतेहपुर सीकर भी दे खा था. कबीर: नाना जी म भी अपने म मी-पापा के साथ कुछ दन पहले वहाँ गया था. नाना जी: तो तम
ु सबने गौर कया होगा क वहाँ ताजमहल, फतेहपरु सीकर सब प थर के बने ह! ईशा; नह ं नाना जी ताजमहल तो संगमरमर का बना है . नाना जी: हाँ बेटा पर संगमरमर भी तो प थर ह होता है . उस यग
ु म संगमरमर या सड टोन को तराश कर
उनके घर बनाए जाते थे. अब हम लोग कल लखनऊ चल कर अपनी आँख से दे खगे क वहाँ के ऐ तहा सक
भवन कस चीज के बने ह. ईशा: म तो खश
ु ी से पागल हो रह हूँ,
सुनूंगी. य क वहाँ तो हमको नानी मलगी और म उनसे ढे र सी कहा नयाँ
हष: म और कबीर भी सन
ु गे कहा नयाँ. ईशा: (लगभग च लाते हुए)- बलकुल नह ं. नानी क कहा नयाँ सफ मेरे लए होती ह. हष: (और जोर से च ला कर)-नह ं मेरे लए होती ह. नाना जी: शांत हो जाओ. एकदम शांत. यह च ला- च ल नह ं चलेगा. चलो अभी सामान ठ क करते ह
लखनऊ जाने के लए. फर म एक च कर बाजार का लगा कर आऊँगा तु हार नानी के लए कुछ सर ाईज
लाने के लए. हष: चल कबीर तब तक अपन
केट खेलते ह नीचे जाकर. ईशा: ठ क है जाओ सब, म शां त से अपनी पै कं ग क ं गी. (दरवाजा बंद होने क आवाज हष और कबीर बैट को जमीन म टकराते हुए बाहर जाते ह.) (दस
ू रे दन सब
ु ह से हलचल थी. ब चे नाना जी के साथ जाने वाले थे. राधा बार बार दे ख रह थी क सब चीज
ठ क से रख ल ह या नह .) राधा: ब च १५ म म खाने क मेज पर आजाओ. आज
नकलना है . ंच करना होगा
य क थोड़ी दे र म एयरपोट को
ईशा: ओके ममी, म नाना जी को भी बोल कर आती हूँ. नाना जी: म तो पहले से ह रे डी हूँ. ये आलू के पराठे क खश
ु बू ने मझ
ु े बहुत पहले ह बता दया था क आज
या बना है . (तभी फोन क घंट बजती है) नाना जी: हे लो. अरे कबीर बेटे. तुम रे डी हो
को दे दे ना. और हाँ
ंच यह ं करना. या? ठ क है तुम इधर ह आजाओ, रा ते म अपना बैग
ाईवर
ईशा: नाना जी उस पेटू को
य बुला लया? राधा: तुमको आ ख़र बार समझा रह हूँ बेटे, कबीर बड़े भाई समान है इस लए इस
करो. कार क बात मत कया
ईशा: ठ क है ममी अबसे नह ं बोलूंगी उसके लए ऐसा. सॉर . आज जाने के दन गु सा मत करो ल ज. (दरवाजे क घंट बजती है ) राधा: हष बेटे दे खो कौन आया है ? (हष अपने आप से बोलता हुआ-‘कबीर आया होगा!’ दरवाजा खोलने क आवाज) हष: म पहले ह समझ गया था क तू आया होगा! अरे आंट भी आई ह! नम ते आंट , आइये. नाना जी: नम कार, आइये. हम लोग
च
ं करने ह जा रहे थे. आप भी आइये ना! आंट : नम कार. नह ं अंकल म तो सफ यह बताने आई थी क कबीर को रा ते म सब चीज खाने न
द िजयेगा. नाना जी: अरे आप बलकुल चंता मत क िजये. यहाँ से कुल ५५ म नट क तो
भी नह ं मलता कुछ. बस अभी यहाँ
ंच होगा तो उसके बाद लखनऊ म घर जाकर ह कुछ खा पायगे सब
लोग. आंट : तब तो ठ क है . मझ
ु े बे फ
लाईट है , और इसम खाने को
हो गई. (थोड़ा जोर से)-राधा म जा रह हूँ अभी, फर आऊँगी. राधा: ओके. ( कचन से-थोड़ा जोर से)- अभी मेरा भी हाथ खाल नह ं है , वरना म कॉफ के लए तुमको रोकती. (पर तब तक ऑट जा चक
ु ती ह)
(दरवाजा बंद होने क आवाज) कबीर: आंट मजा आ गया, आपके बनाए पराठे तो गजब के होते ह. राधा: थक यू बेटे. और लो. कबीर: नह ं आंट , बस अब हो गया. नाना जी: चलो भई अब सबक टं क फुल हो चुक है . अब चलना चा हए. चलो अपने अपने बै स संभालो. ईशा
अपना बैग मझ
ु े दे दो. ईशा: म उठा लूंगी नाना जी. नाना जी: नह ं बेटे अभी इतनी बड़ी नह ं हुई हो क अपना बैग खुद उठा सको. चलो ममी से बाई करो और
ल ट म आ जाओ. (सामान कार म लगा दया
आवाज) ाइवर ने. नाना जी आगे बैठ गए और तीन ब चे पीछे -दरवाजे बंद होने क
(कार के चलते ह ईशा और हष ऊपर दे खते ह और बालकनी म खड़ी ममी को हाथ हलाते ह-बाई ममी) हष: (हं सते हुए)-नाना जी ईशा ने बाई तो ऐसे बोला जैसे ममी ने ऊपर सन
ु ह
लया होगा! नाना जी: दे खो भई कोई भी ऐसी बात नह ं छे ड़ी जायेगी िजससे बहस या झगड़ा होने का अंदेशा हो. अरे ममी
ने आवाज नह ं भी सुनी होगी तो
या हुआ, अनम
ु ान तो लगा ह
लया होगा! (कार
ै फक के बीच से रगती हुई जा रह है. शीशे बंद ह इस लए बाहर क आवाजे कार के हॉन आ द ह के
सन
ु ाई दे ते ह) ईशा: नाना जी वो दे खये लेन कतने नीचे उड़ रहा है , लगता है हमार कार को छू लेगा! नाना जी: हाँ बेटे अब हम एअरपोट के कर ब आ गए ह इस लए लेन नीचे दखने लगे ह. वो दे खो हमारा
ट मनल आ गया. (कार
कती है , दरवाजे खल
ु ते ह, ाईवर ड क से सामान नकालता है . हष और कबीर सामने से
आते ह.) ॉल ल
हष: लाइए नाना जी बैग इसम र खये. नाना जी: थक यू बेटे. अब दोन बेटे बड़े हो गए ह-दे खो कैसे फटाफट
ह. ॉल ले आये! चलो अब चेक इन करते
(अंदर हॉल म या य के लए उ घोषणाएं हो रह थी. चेक इन के बाद तरु ं त ह
लोग लेन क ओर चल दए) स यु रट से होते हुए सब
ईशा: नाना जी इस बार वाला लेन बहुत बड़ा है . कतनी दे र म उड़ेगा? नाना जी: बस उड़ने ह वाला है बेटे, तुम अपनी सीट बे ट लगा लो-ऐसे. (बे ट के ि लप के लगने क आवाज) (तभी उ घोषणा होती है ‘इस उड़ान म आपका
वागत है . अब आपको उड़ान के दौरान कुछ सरु ा संबंधी बात
बताई जायगी’) (और लेन जमीन पर तेज़ी से दौड़ने लगता है और ण भर घड़घड़ाहट क आवाज़ के साथ
आकाश क ओर उड़ जाता है ) ईशा: नाना जी वो दे खये कैसी खलौने वाल कार दौड़ रह ह सड़क म! नाना जी: वह खलौने वाल कार नह ं ह बेटे बि क असल कार ह. हम अब बहुत ऊंचाई पर आ चुके ह
इस लए छोट दख रह ह. अभी कुछ ण म वह नजर से भी ओझल हो जायगी. (कुछ दे र बाद उ घोषणा होती है ‘कुछ ह दे र म हमारा जहाज लखनऊ म उतरने वाला है , आपलोग अपनी सीट
बे ट बाँध ल) कबीर: इतनी ज द लखनऊ पहुँच जायगे मैने सोचा ह नह ं था नाना जी! नाना जी: चलो अब तो पहुँच ह गए ह और अभी अगले १५ म म घर भी पहुँच जायगे. (कार
चलने क आवाज) टाट होकर
ईशा: नाना जी
या हमको रा ते म इमामबाड़ा भी दखेगा? नाना जी: नह ं बेटा वो तो नह ं दखेगा
इमामबाड़ा दे खने. य क हमारा रा ता फक है . पर हम लोग लंच के बाद जायगे ज र
हष: नाना जी बस अगले मोड़ से जैसे ह दा हने मड़
ु गे आपका घर दख जाएगा. नाना जी: बलकुल सह कहा, तुमको बहुत ज द याद हो जाते ह रा ते. वह दे खो सामने घर दख रहा है . कबीर: वाह नाना जी आपका घर तो बहुत बड़ा है , द ल म हम लोग के एपाटमट तो इसके सामने बहुत हे
छोटे ह. नाना जी: हाँ बेटे, यह घर सौ वष से भी अ धक परु ाना है पर है काफ मजबत
ू . इसे मेरे दादा जी ने बनवाया
था और इसक १४” मोट द वारे म ी क ह, पर पुराने कार गर का कमाल है क अभी तक सह हालत म ह. हष: कमाल है नाना जी. मुझे तो मालूम ह नह ं था क आपका घर ऐसा है ! नाना जी वो छत के ऊपर एक
छोट ढलान वाल छत दख रह है , वो
या है ? नाना जी: बेटा वो पाट घर के बीच के कमर का ह सा है . उसके नीचे बैठक और सोने के कमरे ह. छत का
ढलान वाला ह सा खपरै ल का बना है . गौर से दे खो तो खपरै ल वाले भाग क जो द वाल है उसमे रोशनदान भी
दख रहे ह. इनसे कमर को रोशनी और हवा दोन
मलती है . ईशा: हाँ वो दख रहा है . मेर
टोर बक
ु म एक ऐसी ह त वीर है िजसका नाम है ‘ काई लाईट’. नाना जी: हाँ ईशा इस
कार के रोशनदान को ह कहते ह
काई लाईट. कबीर: पर नाना जी यह खपरै ल
या चीज होती है ? नाना जी: म ी क टाईल जैसी होती ह खपरै ल, िजनको बांस के जाल के ऊपर टका दया जाता है . इनका
वजन ह का होता है इस लए इस
म तपती नह ं थी. कार क छत बनाने क लागत कम आती थी और साथ ह ऐसी छत गम
कबीर: तब तो आपका घर गम म ठं डा और जाड़ म गम रहता होगा, नाना जी? नाना जी: हाँ बेटे, लगभग ऐसा ह रहता है . (कार गेट के अंदर घस
ु ती है और पोच म जाकर
कती है . दरवाजे खल
ु ने क आवाज) ईशा: (जोर से आवाज दे ते हुए)- नानी ओ नानी दे खो हम आ गए. नानी: (जाल के ि
लगा. ंग वाले दरवाजे को खोलते हुए)-अरे वाह ईशा, हष, कबीर तुम सब आ गए-बहुत अ छा
नाना जी: ( ाईवर से)-बेटा सामान अंदर कर दे ना. हम लोग लंच के बाद चलगे इमामबाड़े वगैरह दे खने. ाईवर: जी सर. (कार क
डक और दरवाजे खल
ु ने और बंद होने क आवाज). (अंदर तीन ब चे नाने के साथ ब तयाने म लगे ह. कबीर घर क छत को दे खे जा रहा है . तभी नाना जी
करते ह.) नाना जी:
वेश
या दे ख रह हो कबीर? कबीर: नाना जी आपक छत तो बहुत ऊंची है फर वो
बार दे ख रहा हूँ इस तरह का घर. काई लाईट वाला भाग तो और भी ऊंचा है . म पहल
नाना जी: हाँ बेटा पहले जमाने म ऐसे ह घर बनते थे. उस
काई लाईट को खोलने बंद करने के लए भी
र सी लगी है . चलो ब च सब लोग वाश कर लो फर खाना खाते ह और उसके बाद जायगे इमामबाड़े. नानी: अरे अभी तो आये हो सब लोग थोड़ी दे र आराम कर लेने दो सबको. नाना जी: आराम क ज रत नह ं है . लेन म थकान नह ं होती बलकुल. पर हाँ भूख लगी है सबको जोर क .
इस लए बस गरमागम खाना खला दो. नानी: खाना तो तैयार है , बस सब लोग वॉश करके आ जाओ टे बल पर. नाना जी: अब तो जाना ह पडेगा,
कबीर तुम भी हाथ धो लो. य क भूख सबको लगी है (बाथ म का दरवाजा खोलते हुए)- आओ बेटे
कबीर: जी नाना जी. अरे वाह नाना जी, आपके बाथ म म यह वॉश बे सन से
लश क टं क म पाईप कैसा
जुड़ा हुआ है ? और आपका यह का दरवाजा कस चीज का बना है ? म तो इसे लकड़ी का समझ रहा था! नाना जी: बेटा पानी बेशक मती है इस लए मने वॉशबे सन को
लश क टं क से जुड़वा दया है ता क पानी क
बचत हो. और यह दरवाजा लास फाईबर का है िजसे पॉ लमर और लकड़ी क छ लन से मजबूत बनाया गया
है . इसक खूबी यह है क लकड़ी से आधे दाम का है और पानी से खराब भी नह होता. दस
ू रे मजबत
ू ी म
लकड़ी से कम नह ं है . कबीर: नाना जी आपने तो कमाल कर दया है . म तो ऐसी तरक ब सोच भी नह ं सकता था! नानी: (जोर से पक
ु ारत हुए) आइये सब लोग, खाना ठं डा हो रहा है . नाना जी: (हाथ पोछते हुए)-आ गए हुज़ूर. (कुस सरकाने क आवाज)-लाओ भाई आज
या बनाया है दे ख! ईशा: आज तो आपके पसंद क पनीर क स जी बनी है नाना जी. और को ते भी. नाना जी: वाह! तब तो मजा आ गया आज. हष: (मंह
ु म
ास भरे हुए)-नाना जी आप कबीर को
या दखा रहे थे? नाना जी: बेटा खाते समय बोलते नह ं और बोलते समय खाते नह ं. इस लए पहले खाना ख म करो फर बाक
बात ह गी. (सब लोग खाना खाने लगते ह-च मच और लेट क आवाज) ईशा: हम फ ट आ गए, तम
ु सब फ सडी रह गए खाने के मामले म. नानी: ईशा यहाँ पर सब लोग तम
ु से बड़े ह, इस लए तम
ु नह ं ‘आप’ कहना चा हए. ईशा: ठ क है-कबीर जी आप फ सडी रह गए! (हं सती है) नाना जी: यहाँ पर लगता है क ईशा कुछ यु
लोग
टडी म चलते ह. क तै यार कर रह है , इस लए चलो खाना खा चुके ह हम
(कुस सरकाने क आवाज) नानी: हष, ईशा तम
ु दोन मझ
ु े टे बल साफ़ करने म मेर मदद करो. ईशा: ओके नानी. चल मोटे (कबीर को) तू भी हाथ लगा थोड़ा. नानी: बुर बात, ईशा. अभी समझाया क सब तुमसे बड़े ह, ऐसे नह ं बोलते, दस
ू रे कबीर तो मेहमान है मेहमान
से यह सब काम थोड़ी करवाते ह. उसको नाना जी के साथ जाने दो. तम
ु लोग दो म नट बाद चले जाना. हष: ठ क है नानी हम आपक मदद करते ह. कबीर: (नाना जी क
टडी म कुस
खसकाता है बैठने के लए)-नाना जी अभी तक तो मने गौर नह ं कया
था, पर आज दे ख रहा हूँ क आपका घर कुछ फक है ! नाना जी: हाँ बेटे इस घर मैने छोटे छोटे बहुत से योग कये, िजनसे घर म तापमान का असर कम हो जाता
है और बनाने का खचा भी कम. दस
ू रे परु ानी लकड़ी म द मक लग गई थी, इस लए मर मत कराते समय
दरवाज म लकड़ी का
योग कम से कम कया है . कबीर: वो कैसे नाना जी? नाना जी: इस घर क द वार तो म ी क ह, पर अंदर जो नए कमरे बनाए ह उनक द वार ‘हौलो
ह-इनक वजह से हमको वहाँ पर भी ए सी क ज रत नह ं पडती. स’ क
कबीर: वाह! आपने तो इस घर को
ीन बि डंग बना दया है लगता है ? नाना जी: हाँ काफ हद तक बनाने क को शश क है . छत पर सोलर वॉटरह टर और सोलर पैनल लगाया है
तथा वषा जल संचयन का बंदोब त भी कया है . सोलर पैनल से गेट से यहाँ पोच तक सड़क म लाईट सूय
ऊजा से जलती है रात म. कबीर: तब तो आपका बजल का खच भी काफ कम आता होगा? नाना जी: हाँ बेटे इन सब चीज से बजल और पानी क काफ बचत होती है . (हष और ईशा भागते हुए आते ह और एक साथ अंदर घस
ु ने के
ईशा: (गु से से)-हष तम
ु एकदम जंग लय क तरह भागते हो. यास म गर पड़ते ह) हष: (ईशा को ध का दे ते हुए)-तुम तो जैसे इंसान
क तरह भागती हो? नाना जी: (थोड़ा ऊंची आवाज म)- या हो रहा है ये? चलो इधर आओ और अ छे ब च क तरह मेरे पास बैठो. हष: नाना जी म बड़ी दे र से आपसे एक बात पछ
ू ना चाह रहा था. नाना जी: तो पूछो ना. उसमे सोचना
या? हष: यह बताइए क
या आपका घर ‘ ीन बि डंग’ है ? नाना जी: है तो, पर तुमको कसने बताया? हष: अरे एक दन एक मै जीन म दे खा था क िजस
कार का यह घर है उनको कहते ह ‘ ीन बि डंग’. नाना जी: तुमने ठ क सोचा बेटे. घर बनाने और उसके बाद भी उसको ठं डा करने, पानी गम करने आ द सब
काम म काफ काबनडाईऑ साइड पैदा होती है -जो हमारे पयावरण को नु सान पहुंचाती है . यह घर तो जब
बना था तभी लगभग ीन बि डंग था. आजकल िजन घर म काबनडाईऑ साइड उ सजन म कमी कर ल
गयी है उनको कहते ह
ीन बि डंग. ईशा: नाना जी वो लेख दे खा तो मैने भी था, पर मने सोचा क बि डंग पर हरा रं ग लगा दया जाता होगा! नाना जी: (हं सते हुए) तुम सोचती बहुत हो बेटे, इतना मत सोचा करो. कबीर: नाना जी मेरे घर के सामने
कांच क बनी ह? ऐसा कस लए? लब हाउस वाल
बि डंग आपने दे खी है ना? उसक दो द वार तो लगता ह
नाना जी: आजकल बि डंग बनाने म खच कम करने के लए तरह तरह के उपाय कये जाते ह. कांच क
द वार
ट क द वार से स ती पडती है , सुंदर दखती है और उस पर ला टर भी नह ं करना पड़ता. हष: (सोचते हुए)-पर गम तो अंदर आती होगी नाना जी? नाना जी:
ट क द वार और कांच म गम का वशेष अंतर नह ं होता पर तु रोशनी खूब आती है . कबीर: नाना जी कांच के इन बड़े बड़े ह स को रोकते कैसे ह? नाना जी: इसके लए एलु म नयम के
खड़ कय म कांच जड़े जाते ह. े म बनाते ह, िजन पर कांच के ह से जड़ दए जाते ह, जैसे हमार
ईशा: और कोई प थर मार दे तो? नाना जी: जाओ एक बार मार कर दे खो. पहले तो उस कांच को आसानी से तोड़ नह ं सकते
य क उसे तु हारे
जैसी सोच वाले ब च से बचाने के लए वशेष मजबूती द जाती है , दस
ू रे स यो रट वाले पहले ह पकड़ लगे
ऐसे इंसान को. कबीर: नाना जी एक बार मॉल क कार पा कग म मने दे खा लाि टक के मोटे मोटे पाईप लगे हुए थे.
बि डंग बनाने म लाि टक भी इ तेमाल करते ह? या
नाना जी: हाँ बेटे. लाि टक का
योग अब काफ होने लगा है -ए सी क ड ट, पानी के पाईप आ द सब पी वी
सी के बने होते ह. कुछ मायनो म यह लोहे से अ छे रहते ह
य क इनमे जंग नह ं लगता. कबीर: वाह! नाना जी, आप तो पूर इ सा य लोपी डया हो इन बात क . नाना जी: ऐसा तो कुछ नह ं है , पर हाँ म इन चीज को गौर से दे खता हूँ और उनके बारे म पढ़ता भी रहता हूँ.
जैसे अभी हाल म मने पढ़ा था क अब जो नगर व तार हो रहा है उसमे अ सर कुछ े ऐसे होते ह जहाँ
नगर य कचरा भरा जाता था. इनम से समयोपरांत मीथेन गैस नकलने लगती है जो बेहद
वलनशील होती है . कबीर: यह तो खतरनाक बात है नाना जी. हमारे
गंद बदबू आती है , शायद वह भी ऐसे ह
इसका कोई उपाय होता है
या? कूल के पीछे जो इमारत बनी ह उस इलाके से हर समय
लॉट रहे ह गे! तब तो उन बि डंग म खतरा होगा नाना जी?
नाना जी: हाँ बेटा इसके लए वक सत दे श म पी वी सी के पाईप बि डंग बनाते समय जमीन के नीचे डाल
दते ह और उनका खुला भाग बि डंग से दरू खाल
थान पर रखते ह. ईशा: तब तो बदबू वहाँ पर आने लगती होगी! नाना जी: हाँ, पर वहाँ से मीथेन को इ क ा कर लया जाता है और उसे जलाने के काम लाया जाता है . (नाना
जी कुछ सोचते हुए)-अ छा चलो अब समय हो गया है इमामबाड़ा जाने का. दे र हो जायेगी तो वहाँ एं
जायेगी. ईशा नानी को बता दो क हम लोग जा रहे ह और लौट कर आकर खूब गप मारगे. ईशा: ठ क है आप लोग चलो म बता कर आती हूँ. बंद हो
(नाना जी, हष और कबीर बाहर नकलते ह और कार म बैठते ह. दरवाजे बंद होने क आवाजे.) ईशा: (दरू से दौड़ते हुए आवाज दे ते हुए)-अरे नाना जी कए म भी तो आ रह हूँ. (तेजी से दरवाजा खोल कर
कार म बैठती है और लगभग हाँफते हुए)-आप लोग तो मझ
ु े छोड़े जा रहे थे! नाना जी: नह ं बेटे तुमको छोड़ कर कैसे जा सकते थे! हष: नाना जी इमामबाड़ा
या
ट का बना है ?
बनी ह इस लए पूछ रहा हूँ, ऐसा
य ? य क आगरे और द ल क सब ऐ तहा सक इमारत प थर क
नाना जी:
य क बेटा सभी यग
ु म को शश यह रह है क
थानीय और आसानी से उपल ध चीज़ से घर या
महल बनाए जाएँ. य द लखनऊ म सड टोन या संगमरमर क इमारत बनाते तो लागत बहुत बढ़ जाती! फर
उस युग म दरू से लाने के लए साधन भी नह ं थे. (कार छोटे इमामबाड़े के सामने पा कग म
कती है ) ाईवर: साहे ब आप लोग यह ं
कए म टकट लेकर आता हूँ. नाना जी: ठ क है -ले आओ. तब तक हम लोग कार म बैठे ह. ईशा: नाना जी ये इमामबाड़े म सामने द वार पर सफेद-सफेद प थर चमक रहे ह
या वह संगमरमर नह ं है ? नाना जी: नह ं बेटा, लखनऊ के कार गर बड़े उ ताद थे, उ ह ने
थानीय म ी से लखौर
ट बनाई और चूने
के ला टर से चनाई क . फर ऊपर से संगमरमर जैसा दखने के लए सीपी क मदद से ऐसा ब ढ़या
पैदा कर दया जो दरू से लगता है संगमरमर जैसा. म
हष: प थर के अलावा और
या
या चीज़ से घर बनाए जाते थे? नाना जी: लकड़ी के घर बनाना फर च ान को आयताकार काटकर उनक
चनाई के बीच लकड़ी के मोटे और
लंबे टुकड़े रख कर घर को भक
ू ं परोधी बनाने क कला भी बहुत पहले वक सत हो चुक थी. कबीर: नाना जी एक साल पहले हम लोग कुलू गए थे. वहाँ पर हमने कुछ बहुत बड़े बड़े तीन-चार मंिजल के
घर दे खे िजनको वहाँ के लोग काठ क कु नी कह रहे थे. वो या होता है ? नाना जी: वाह बेटा बड़ी बार क से सन
ु ते हो सब चीज! कुलू म ऐसे घर 5-600 वष से बनाए जाते रहे ह.
इनमे चनाई के बीच कोने म लगी लकड़ी क ‘बीम’ भक
ू ं प के झटक को सोख लेती ह. हष: ऐसे मकान सब पहाड़ म बनते थे नाना जी? नाना जी: मने बताया था ना क हर जगह के घर
थान वशेष क ज रत के हसाब से बनाए जाते थे. आज
से लगभग 1000 वष पूव उ तरकाशी के राजगढ़ इलाके के कुछ गाव म प थर क द वार म लकड़ी क ‘बीम’
डाल कर बहुमंिजले मकान बने िजनका बड़े बड़े भूकंप तक कुछ ना बगाड़ सके. ईशा: सच नाना जी! नाना जी: हाँ बेटा और उन मकान का अ ययन कर वशेष
तज पर बने ह, सफ उनमे
कोठ बनाल आ कटे चर. ने पाया क वह घर आज के भूकंपरोधी घर क
योग कया गया सामान फक ह. उस टाइप के आ कटे चर को नाम दया गया है
ईशा: कोठ बनाल! यह कैसा नाम है नाना जी? नाना जी: बेटा यह उस गाँव का नाम है जहाँ इस
कार के हजार वष पुराने घर ह. हष: नाना जी िजन घर क द वार म ी क बनती ह उनमे मजबूती कैसे आती है ? नाना जी: बेटे उस म ी म धान का पैरा या व ृ
क पतल पतल सूखी शाखाएं गूंथ द जाती थी. फर उस
म ी को खूब दबा दबा कर द वार बनाते थे. यह द वार काफ मजबत
ू होती थी. गाँव म ऐसे घर क छत घास
फूस क होती है . इस लए यह घर गम म बना ए सी के भी ठं डे रहते ह. साथ ह जाड़ म गम. कबीर: तब ऐसे घर को अ धक सं या म
य नह ं बनाते नाना जी? नाना जी: इन घर को बेटे बहुमंिजला नह ं बनाया जा सकता. दस
ू रे जरा सी चंगार लगने से इनक छत फुक
सकती है . तीसरे लोग बड़े बड़े घर बनाने म अपनी शान भी समझते ह. म ी के इन झोपड़ को गर ब का
नवास ह मानते ह. ईशा: नाना जी म ी के घर म तो चोर भी आराम से घुस सकता होगा! नाना जी: चोर तो सब जगह घुस जाते ह पर हाँ म ी के घर म इस
े
कार का खतरा तो होता ह है . िजन
म ऐसे घर बनते ह वहाँ पर चोर क घटनाएँ भी यदा कदा ह होती ह. कबीर: ऐसे घर क छत कस चीज से बनाई जाती होगी, नाना जी? नाना जी: ऐसे घर म या तो फूस क अथात घास क या फर खपरै ल क छत बनाई जाती थी. हष: नाना जी कह ं ऐसे भी घर होते ह गे जो पूरे लकड़ी के बने ह ? नाना जी: हाँ बेटा क मीर म ऐसे घर बहुत ह. वहाँ पर ठं ड बहुत होती है और यह लकड़ी के घर गम रहते ह.
इसके अ त र त सभी पवतीय रा य म प थर क द वार और लकड़ी के फश बनाए जाते थे-िजसने घर जाड़ म
गम रहते थे. (तब तक
इमामबाड़ को. ाईवर टकट ले आता है .)-चलो ब च
टकट आ गए अब हम लोग अंदर चल कर दे ख
हष: नाना जी पहले च लए बड़ा इमामबाड़ा दे खते ह. नाना जी: चलो ठ क है वह ं चलो पहले. तम
ु लोग को बता दँ ू क बड़े इमामबाड़े को नवाब आसफु ौला ने
1783 म बनाया था. कहते ह तब जबद त अकाल पड़ा था और लोगो को काम के बदले रोट दे ने के लए यह
बनाया गया था. ईशा: नाना जी यह पतल पतल
ट कतनी मजेदार ह. नाना जी: यह तो ह लखौर
स रया नह ं पड़ा है . ट. यह यहाँ क खा सयत ह. अब यह हॉल दे खो कतना भ य है . इसक छत म
हष: और नाना जी अंदर से कतना ठं डा है ! नाना जी: हाँ बेटे उस समय गम -सद से बचाव का बहुत
(कुछ दे र इमामबाड़े के भीतर घम
ू ने के बाद) यान रखा जाता था. ईशा: नाना जी बाहर बगीचा कतना सद
ुं र है . ल ज एक बार च लए वहाँ लॉन म बैठते ह. नाना जी: चलो भई अब इनके आगे कसका बस चल सकता है . पहले बाहर ह चलो. हष: नाना जी, आप तो बता रहे थे क जब आप
आज तो हमको एक भी पेड़ नह ं दखा रा ते म? कूल जाते थे तो सड़क के दोन ओर घने पेड़ होते थे. पर
नाना जी: बेटा हष पहले आबाद कम थी, सड़क पर इतना
काट कर सड़क चौड़ी क गयी है . ईशा: वो दे खये नाना जी
गम . क (दरू जाते
ै फक नह ं होता था. अब भीड़ बहुत है इस लए पेड़
क क आवाज) कैसा धुंआ छोडता जा रहा है-इसी से तो बढती है
नाना जी: हाँ बेटा गम इन सब चीज़ से बढती है . तुमको पता है क बि डंग से और आजकल इन बि डंग
के बनाने म जो सामान लगता है उसको बनाने के दौरान भी पयावरण को बहुत नक
ु सान पहुंचता है . हष: वो कैसे नाना जी? नाना जी: बेटा
ट बनाने के लए चा हए होती है चकनी म ी अथात
ले क . हमारे दे श के मैदानी भाग म
पहले से बहुत सी झील होती थी. काला तर म वो सूख गयी. झील या तालाब
पर चकनी म ी होती है , य क उसम पानी रोकने क
मता होती है . कृ त म बनते ह वह ं ह जहां
कबीर: पानी रोकने से
या मतलब नाना जी? नाना जी: बेटे एक गलास म कुछ कंचे भरो दस
ू रे म बालू और तीसरे म चकनी म ी. फर तीन म बराबर
मा ा म पानी भरो. तो बताओ कसमे पानी सबसे पहले अंदर चला जाएगा? ईशा: (एकदम खश
ु ी से लगभग च लाते हुए)-कंचे वाले गलास म. अरे कबीर इ ती सी बात नह समझ पा रहे !
कंच के बीच म जगह
जाएगा. यादा होती है और बालू म कम-तो अपने आप ह कंच के बीच पानी ज द अंदर
हष: और चकनी म ी म बहुत दे र म जाएगा,
य क उसके कण के बीच जगह और कम होती है . नाना जी: खैर छोड़ो इस बात को.
सांचो म उसे भर कर
ट बनाने के लए चकनी म ी को खोद कर नकालते ह, फर लकड़ी के
ट क श ल दे ते ह और फर उसे सुखा कर भ ी म पकाते ह तब बनती है
सब म पयावरण का बहुत नक
ु सान होता है . ट. पर इस
ईशा: ऐसा
य नाना जी? नाना जी: पहल बात तो यह जान लो ब च
क जब हम जंगल काटते ह तो वहाँ पर दोबारा वैसा ह जंगल
बनने म सौ वष लगते ह और जब कह ं से म ी खोद नकालते ह तो दोबारा वहाँ पर म ी तैयार होने म एक
हजार वष लगते ह. ईशा: इसका मतलब यह हुआ नाना जी क िजन जगह से यह
हजार साल तक म ी नह ं रहे गी? ट से भरे
क आ रह ह उन जगह पर एक
नाना जी: बलकुल सह सोचा तुमने. और सन
ु ो एक बात. जब
डाईऑ साइड 38 टन
त एक लाख
ट को भ ी म पकाते ह तो वायुमंडल म काबन
ट क दर से बढ़ जाती है . हष: हमार ट चर बता रह थी क वायम
ु ंडल म बढ़ती काबन डाईऑ साइड के कारण ह हमारे मौसम म
बदलाव आ रहा है . नाना जी: तु हार ट चर ठ क बता रह थी हष. काबनडाईऑ साईड के अलावा कुछ अ य गैस िजनको कहते ह
‘ ीन हॉउस’ गैस होती ह जो हमार प ृ वी के चार ओर ऐसा खोल बना रह ह िजनसे सय
ू क करणे प ृ वी
तक तो आ जाती ह पर उसके बाद पराव तत होकर वापस नह ं जा पाती. िजसके कारण प ृ वी तपती जाती है
और मौसम गड़बड़ाता है . ईशा: (बैग का िज़प खोलते हुए) लो भाई म सबके लए
से या भला होगा! ू ट जूस लेकर आई हूँ. पर इस कबीर का इतने से जस
ू
कबीर: ऐसा
य ईशा?
या म और से फक हूँ? ईशा: हो तो, पर ऐसा बोलने को ममी ने मना कया है . नाना जी: (आँख दखाते हुए थोड़ा गु से से)-ईशा तुमसे ममी ने
या कहा था? ईशा: सौर नाना जी, गलती हो गयी. ल ज नाना जी यह
होता है ? ीन हाउस
या होता है ?
या कोई हरे रं ग का घर
नाना जी: नह ं यहाँ पर हम िजस
ीन हाउस क बात कर रहे ह उसे समझने के लए तम
ु को क पना करनी
पड़ेगी क ठं ड का मौसम हो और तुम धूप म कार म बैठ हो, िजसके सब शीशे चढ़े ह . कुछ दे र तक तो धूप
अ छ लगेगी पर उसके बाद चुभने लगेगी. हष: हाँ नाना जी, ऐसा तो दन म जब ममी मझ
ु े लेने
म खड़ी होती है . पर ऐसा होता
य है ? कूल आती ह तो अ सर होता है - य क वहाँ कार धूप
नाना जी: ऐसा इस लए होता है क सूरज क करण कार के अंदर आ जाती ह, पर शीशे बंद होने क वजह से
पराव तत होकर पूर तरह वापस नह ं जा पाती. बस कार के भीतर गम बढ़ती जाती है . ईशा: म समझ गयी नाना जी. मान ल िजए के हमार प ृ वी य द एक कार हो तो
क तरह काम करती ह गी! ीन हाउस गैस उसके शीशे
नाना जी: अरे वाह यह लड़क तो बड़ी समझदार हो गयी है ! हाँ बेटे तुमने एकदम ठ क कहा. कबीर: इसका मतलब यह हुआ नाना जी, क घर बनाने के लए
सबको बनाने म भी या ीन हाउस गैस पैदा होती होगी? योग होने वाले स रया, सीमट आ द. उन
हष: अरे वाह मोटे तुझे बड़ी बात मालूम ह! कबीर: मोटा हूँ इसी लए दमाग भी बड़ा है ना. नाना जी: कबीर बेटा तम
ु तो सबसे बु मान हो, मोटापा तो कुछ वष म घट जाएगा पर बु
होती जायेगी. इस लए इन लोग क बात को
बनाने म कतना
तो और तेज
यान मत दो. बि डंग बनाने म लगने वाले सभी सामान को
दष
ू ण होता है यह तो अभी मैने तम
ु लोग को बताया था. ईशा: हाँ नाना जी पर वोह दे खो एक के पीछे एक पांच
और धुंआ उड़ा रहे ह! (दरू जाते
क क आवाज) क जा रहे ह
ट और स रया से भरे और कतनी धुल
नाना जी: हाँ बेटा अभी जो मैने स रया, सीमट और
इन
ट के बनाने म पयावरण
दष
ू ण क बात बताई थी उसमे
क का धुंआ नह ं जोड़ा था. इस काम के लए यह लोग ये पुराने ख ताहाल
क ह
योग करते ह. (दरू कह ं व फोट क सी आवाज होती है ) कबीर: नाना जी वो दे खये दरू म शायद कोई बि डंग गराई जा रह है तभी तो धमाका हुआ था! दे खये कैसा
धूल का बादल उठ रहा है ! नाना जी: हाँ बेटे यह सब बि डंग बनाते समय होने वाले
दष
ू ण का एक अ य
कबीर: तो
या इसके अ त र त बि डंग बनने से कुछ और
दष
ू ण भी होता है ? ोत है . नाना जी: बि डंग तोड़ने, बनाने और इस
है . कार के बहुमंिजले घर बन जाने के बाद भी पयावरण
भा वत होता
कबीर: वो कैसे? नाना जी: याद है पछले जाड़ म हम लोग जबलपुर गए थे तब भेड़ाघाट के रा ते म टायर पंचर हो गया था? हष-कबीर: (एक साथ)-हाँ नाना जी हमको सब याद है . ईशा: फर आप लोग पानी लाने काफ दरू पैदल गए थे. नाना जी: कबीर उस समय तम
ु कह रहे थे क दसंबर म भी यह च ाने कैसे तप रह ह, इन पर तो रोट सेक
जा सकती है ! याद है ? कबीर: हाँ नाना जी याद है , मेर ममी बोल रह थी, ‘यह ं बै ठये अभी रोट बनाते ह.’ नाना जी: (हं सते हुए)-हाँ. जैसे च ाने धूप म तप कर वातावरण तक को गरमा दे ती ह वैसे ह ये कं
ट से बने
घर भी च ान क भाँती गम हो जाते ह. जब इन ईमारत के बीच से नकलो तो दोन ओर से गम हवा महसूस
होती है . ईशा: हाँ नाना जी इसी लये तो हम लोग खेलने दरू पाक म बरगद के पेड़ के नजद क जाते ह. नाना जी: ठ क करते हो बेटे. आजकल के शहर कं
ट के जंगल बनते जा रहे ह. जब क हमको साथ म
आव यकता है सचमच
ु के पेड़ क भी. पर पेड़ के झुरमुट म कम गम लगती है और कं
पास अ धक, यह बात ईशा लोग तो समझ चुके ह. पता नह ं बड़े लोग कब समझगे! ट के मकान के
कबीर: नाना जी परु ाने जमाने क इमारत म तो आज भी गम नह ं लगती जब क तब व ान इतना वक सत
नह ं था.
या आज ऐसे घर बनाना संभव है जो गम म ठं डे और जाड़ म गम रह सक? नाना जी: बेटे तुमने बहुत ब ढ़या बात पछ
है . आज इस
ू
से हट कर बनाना पडता है . कार क इमारत बनाना संभव है , पर थोड़ा सा ल क
हष: वो कैसे नाना जी? नाना जी: आजकल अनेक तकनीक आ गयी ह ऐसी इमारत बनाने क . जैसे एक के ऊपर एक
ह तो उनको खड़ा करके लगाते ह. और एक के बजाय दो पंि तयाँ
र त
थान होता है . ट जब चनते
ट क लगाते ह िजनके बीच चार इंच का
कबीर: इस से
या फायदा होता है ? नाना जी: बीच म जो चार इंच खाल जगह बचती है उसमे हवा भर जाती है . ऐसी द वार से न तो गम अंदर
आ पाती है और ना ह सद . दस
ू रे , खड़ी
ट लगाते ह तो
ट कम सं या म लगती ह, तीसरे , दोन ओर क
सतह सपाट होती है िजसे ला टर क भी आव यकता नह ं होती. कबीर: यह तो आसान तर का है इसे तो अ धक से अ धक लोग ने इ तेमाल करना चा हए. नाना जी: हाँ आसान के अलावा काफ बचत कराता है यह तर का. कुल खच म 26% बचत हो जाती है ऐसी
द वार बनाने से. हष: कौन इंजी नयर रहा होगा नाना जी िजसने इस तकनीक को बनाया होगा! नाना जी: यह तकनीक 20वीं शता द के अंत तक इं लै ड म बहुत च लत थी. वहाँ से एक आ कटे ट लौर
बेकर बंगलौर आया एक मशनर के प म. उसने इस तकनीक को यहाँ च लत कया. हष: उसक बनाई इमारत कहाँ ह? नाना जी: बंगलौर म बेकर ने बहुत से घर बनाए. जो अभी चाल स साल से तो मजबत
ू ी से खड़े ह. तुमने
से दे खा नह ं हमने जो तीन नए कमरे यहाँ अपने घर म बनाए ह वह भी बेकर क तकनीक से बने ह. यान
हष: नाना जी, अभी इमामबाड़े म हमने दे खा था क दरवाज के ऊपर गोल मेहराब बनी थी. उनसे
होता है ? या फायदा
नाना जी: द वार के ऊपर छत बनाने के पूव लंटल डाला जाता है . जब इमामबाड़े बने थे तब लंटल बनाने क
तकनीक नह ं वक सत हो पायी थी, इस लए मेहराब बनाई जाती थी. पर अब फर से मेहराब बनाने का चलन
ारं भ हो गया है
य क इसम भी आर सी सी के लंटल के मुकाबले 30-40% पैसे क बचत हो जाती है . ईशा: चलो भाई अब काफ सीमट स रया वगैरह हो चुका है इस लए अब घर चलो वैसे भी अब नाना जी का
दोपहर के सोने का समय हो चुका है -चलो हम लोग घर चल कर नानी से गपशप करते ह. हष: हाँ चलो चलो. कबीर: नाना जी चलते चलते एक जोक सुना दँ ू आपको? नाना जी: बलकुल सुनाओ. तु हारे जोक तो एक दम
फू त भर दे ते ह शर र म. कबीर: थक यू नाना जी. तो हुआ ये क संता संह एक जगह रे टोरट समझ कर घुस गया और बैठते ह
च लाने लगा ‘ओए एक ल सी ला ज द से’. बगल क टे बल वाले ने फुसफुसाते हुए कहा ‘श श श....ये लाई ेर है धीमे बोलो’. संता संह फुसफुसाते हुए बोला- एक ल सी ले आ ज द से. नाना जी-ईशा और हष: (तीन एक साथ हं सते ह) 
Fly UP