िव ाथ िवज्ञान मंथन – ब म वैज्ञािनक... िवज्ञान सार और िवज्ञान भारती ने संयु रूप...
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िव ाथ िवज्ञान मंथन – ब म वैज्ञािनक... िवज्ञान सार और िवज्ञान भारती ने संयु रूप...
िव ाथ िवज्ञान मंथन – ब म वैज्ञािनक मनोवृित की पहचान करने और ोत्सािहत करने का रा ीय कायर् म िवज्ञान सार और िवज्ञान भारती ने संयु रूप से स्कू ली छा के िलए वृहद िवज्ञान सार कायर् म िव ाथ िवज्ञान मंथन (वीवीएम)की घोषणा की है। वीवीएम एक रा ीय कायर् म है जो कक्षा 6 से 12 तक के स्कू ली ब लोकि य बनाने पर कि त है। इसका मुख्य उ ेश्य वैज्ञािनक मनोवृित की क्षमता रखने वाले ब उन्ह ोत्सािहत करना है। म िवज्ञान को की पहचान करने और िवज्ञान सार भारत सरकार के िवज्ञान और तकनीकी िवभाग के अधीन एक स्वायतशासी संगठन है। िवज्ञान भारती िवज्ञान और तकनीकी के क्षे म एक रा ीय अिभयान है जो पूरे देश म काम कर रहा है िजसके पास संगठन एवं ि य का सबसे बड़ा तं है। वीवीएम के अंतगर्त, आयोजक (1) तेजस्वी और सृजनशील छा आयोिजत करगे; (2) परीक्षा के ािलफायसर् के िलए िविभ की पहचान करने के िलए देशभर म ितयोगी परीक्षाएं स्तर के कायर्शाला म ेिनग दग; (3) िविभ और िवकास संस्थान म दौरा आयोिजत करगे तािक छा िवज्ञान के अलग-अलग क्षे (4) देशभर म सफल छा अनुसंधान से ज्यादा वािकफ हो सक; और की पहचान कर उन्ह पुरस्तार और स टिफके ट्स से ोत्सािहत करगे। सफल छा को उपयु रुप से मागर्दशर्न भी िदया जाएगा, िजससे उन्ह उ तर स्तर पर िवज्ञान म िशक्षा जारी रखने म मदद िमलेगी। ितयोगी परीक्षा के िलए वीवीएम पा म के ापक क्षे को नीचे सूचीब िकया गया है। 1. िवज्ञान और तकनीकी म भारत का योगदान (पारं पिरक से लेकर आधुिनक तक) 2. भारत के नोबेल पुरस्कार िवजेता 3. वैज्ञािनक के ेरणादायक जीवन और उनका योगदान 4. िदल्ली का लौह स्तंभ 5. आयुवद और भारत के िचिकत्सीय पौधे 6. भारत के पारं पिरक, गैर-पारं पिरक और स्वच्छ ऊजार् ोत 7. भारत म स्वास्थ्य और िचिकत्सा के क्षे म िवकास और योगदान 8. भारत म कृ िष, जैवतकनीकी और नैनोटे ॉलॉजी 9. भारत म अंतिरक्ष-िवज्ञान एवं खगोलशा 10. िवज्ञान और उसकी िविभ शाखाएं यहां दी गई पाठन साम ी परीक्षा म शािमल िवषय के संकेतक मा ह। नीचे दी गई साम ी वीवीएम पा म के मा पहले तीन अध्याय के िलए ह। बाकी का पा म अक्टू बर 2012 अंक म कािशत होगा। हालांिक आपको यह समझना होगा िक साम ी पा म के िसफर् 40% िहस्से को पूरा करे गी। इसिलए आयोजक आपसे अपील करते ह िक परीक्षा की बेहतर तैयारी के िलए आगे भी अन्वेषण जारी रख। ये साम ी िवज्ञान सार के वेबसाइट (www.vigyanprasar.gov.in) पर डाउनलोड के िलए उपलब्ध होगी। आयोजक आपकी सफलता की मनोकामना करते ह।. XXX िवज्ञान और तकनीकी म भारत का योगदान 1 िवज्ञान और तकनीकी म गित मानव सभ्यता के िवकास म एक मुख कारक रहा है। भारत म भी िवज्ञान और तकनीकी के क्षे म महत्वपूणर् सफलताएं दजर् की गई ह। स्वतं ता-पूवर् काल भारत म वैज्ञािनक खोज और िवकास की शुरुआत वैिदक काल म ही हो गई थी। िस गिणतज्ञ आयर्भ , जो सन 500 के आस-पास रहते थे, ने शून्य का आिवष्कार िकया। वगर्, चुभुर्ज, वृत और अंश ि कोण की संकल्पना, 10 की संख्या को 12 के घात तक अिभ करने की क्षमता, बीज गिणत के िस ांत और खगोलशा का उ म वैिदक सािहत्य से ही हुआ है; इनम से कु छ का उ म 1500 ईसा पूवर् के आस-पास हुआ। दश्मलव णाली का इस्तेमाल हरप्पा की सभ्यता के दौरान ही शुरू हो गया था। इसका सबूत वहां वजन और माप के इस्तेमाल म िमलते ह। इसके अलावा, खगोलशा और तत्व िममांसा की कई संकल्पनाएं वैिदक काल के पौरािणक िहन्दू ंथ ऋग्वेद म विणत ह। जिटल हरप्पन शहर से लेकर िदल्ली के लौह स्तंभ तक भारत की स्वदेशी तकनीकी बेहद पिरष्कृ त थी। इसम जल आपूित, यातायात वाह, ाकृ ितक वातानुकूलन, पत्थर पर जिटल न ाशी और िनमार्ण अिभयांि की का िडजाइन एवं िनयोजन शािमल ह। िसधु घाटी सभ्यता दुिनया की पहली ऐसी सभ्यता थी जहां िनयोिजत शहर बसाई गई थ िजनम भूिमगत जलिनकास, नागिरक सफाई वस्था, जलदाब अिभयांि की और वायु-शीतलन िशल्पिव ा का इस्तेमाल िकया गया था। जहां बाकी पौरािणक सभ्यता म एक बड़े क ीय भवन वाले छोटे शहर बसे होते थे, वह िसधु घाटी सभ्यता कई शहर म फै ला था जो कु ल िमलाकर यूरोप के आकार का लगभग आधा था। उस पूरे भौगोिलक क्षे म 3,000 ईसा पूवर् से 1500 ईसा पूवर् तक के हजार साल से ज्यादा की अविध म तौल और भाषाई िचन्ह मानकीकृ त िकये गए थे। जल बंधन िकसी भी सभ्यता स्थािपत करने म जल एक महत्वपूणर् कारक रहा है। भारतीय ने िसधु घाटी सभ्यता के पहले से जल बंधन तकनीक िवकिसत करते रहे ह। भारतीय इितहास के िकसी भी अविध या शासक वंश के अिधपत्य को देख तो उस दौरान की आधुिनकतम तकनीक के जिरए कु एं, तालाब, झील, बांध और नहर का िनमार्ण िकया जा रहा था। पानी का इस्तेमाल पीने, भंडारण और िसचाई के िलए िकया जाता रहा है। एक अनुमान के मुतािबक आज भी भारत म दस लाख से ज्यादा मानव-िनिमत तालाब एवं झील मौजूद ह। लौह एवं इस्पात लौह एवं इस्पात को वास्तव म आधुिनक सभ्यता के स्तंभ के रुप म देखे जा सकते ह। ाचीनकाल म भारत जंगरिहत लौह के उत्पादन के िलए तकनीक िवकिसत करने म अ णी रहा है। भारत म बने ऐसे धातु तत्कालीन यूरोप म तलवार बनाने के िलए ख्यात थे। िदल्ली का जाना-माना लौह स्तंभ, जो आज भी लगभग पूरी तरह जंग रिहत है, उस तकनीक का जीता जागता उदाहरण है। कृ िष तकनीक एवं ऊवर्रक भारतीय कृ िष तकनीक ज्यादातर स्व-िवकिसत थे और बाकी जगह से ज्यादा उ त थे। इसम िम ी परीक्षण तकनीक, फसल च , िसचाई योजना, पयार्वरण-अनुकूल कीटनाशक और उवर्रक, फसल का भंडारन, इत्यािद। भौितक शा : अणु की संकल्पना ाचीन भारत से जुड़ी हुई है। इस संकल्पना के मुतािबक भौितक संसार को पांच तत्व म बांटा जा सकता है – पृथ्वी, अि , वायु, जल और आकाश। परमाणु को सबसे छोटा कण माना जाता था िजसे बांटा नह जा सकता। 2 िचिकत्सा िवज्ञान एवं शल्य िचिकत्सा आयुवद (आयुर यािन जीवन, वेद यािन ज्ञान) शायद दुिनया का सबसे पुराना और सबसे संरिचत िचिकत्सा िवज्ञान है। िविभ ािधय , बीमािरय , लक्षण, रोग की पहचान एवं िनदान का ज्ञान की आयुवद का आधार है। चरक और सु ुत जैसे कई िव ान ने आयुवद के ज्ञान को और ज्यादा आगे बढ़ाया। पोत पिरवहन एवं पोतिनमार्ण उ ोग पोत िनमार्ण भारत का एक मुख िनयार्त उ ोग था िजसे अं ेज ने पहले खंिडत िकया और सन 1977 म पूणर् रुप से ितबंिधत कर िदया। मध्यकालीन युग के अरब नािवक भारत म अपने िलए नाव खरीदते थे। पुतर्गाली भी युरोप के बजाय भारत से अपने नाव खरीदते थे। दुिनया के सबसे बड़े और पिरष्कृ त जहाज भारत और चीन म बनाए गए थे। कं पास और नौसंचालन के अन्य यं युरोप से काफी पहले िहन्द महासागर म इस्तेमाल िकये जाते थे। समु ी या ा म अपनी िवशेषज्ञता के आधार पर भारतीय नािवक िव के ाचीनतम समु -आधािरत ापार णाली म शािमल थे। स्वतं ता- ाि के बाद की अविध स्वतं ता ाि के बाद भारत म िवज्ञान और तकनीकी के क्षे म काफी िवकास हुआ है। िवज्ञान और तकनीकी अधोसंरचना आजादी के समय 1947 म एक करोड़ रुपये से बढ़कर िफलहाल 30 अरब रुपये तक पहुंच गया है। परमाणु और खगोल िवज्ञान, इलैक् ॉिनकी और रक्षा क्षे म महत्वपूणर् उपलिब्धयां हािसल की गई ह। वैज्ञािनक और तकनीकी मानव म के मामले म भारत पूरे िव म तीसरे पायदान पर है। िमसाइल क्षेपण तकनीकी के मामले म भारत दुिनया के पांच मुख देश म है। मई 1971 म िवज्ञान और तकनीकी िवभाग की स्थापना के साथ ही ये क्षे आिथक िनयोजन की मुख्यधारा म शािमल हो गया। डीएसटी िवज्ञान और तकनीकी के नए क्षे को ोत्साहन देता है और देश म िवज्ञान और तकनीकी गितिविधय के आयोजन, समन्वय और ोत्साहन के िलए मुख्य िवभाग की भूिमका िनभाता है। भारत के संसाधन का इस्तेमाल कृ िष और औ ोिगक क्षे म अिधकतम उत्पादन के िलए िकया जाता है। भारतीय वैज्ञािनक कृ िष, िचिकत्सा िवज्ञान, जैवतकनीकी, शीत क्षे , संचान, पयार्वरण, उ ोग, खनन, परमाणु ऊजार्, अंतिरक्ष और पिरवहन के क्षे म महत्वपूणर् अनुसंधान कर रहे ह। भारत को खगोलशा और खगोल-भौितकी, तरल ि स्टल, संघिनत पदाथर् भौितकी, आणिवक जीव िवज्ञान, वायरोलॉजी और सॉफ्टवेयर तकनीक के मामले म भी िवशेषज्ञता हािसल है। आणिवक ऊजार् भारत के परमाणु ऊजार् कायर् म का मुख्य उ ेश्य है इसका इस्तेमाल ऊजार् उत्पादन के साथ साथ कृ िष, िचिकत्सा िवज्ञान, उ ोग, अनुसंधान और अन्य क्षे म करना है। परमाणु तकनीकी के क्षे म भारत दुिनया के सबसे अ णी देश म िगना जाता है। एक्ज़ेलेरेटसर् और परमाणु अनुसंधान और ऊजार् संयं अब देश म ही िडजाइन िकए जाते ह और बनाए जाते ह। वतर्मान म देश म आठ परमाणु संयं ह जो आठ अरब िकलोवाट िबजली पैदा करते ह। अंतिरक्ष भारतीय अंतिरक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) दुिनया का छठा सबसे बड़ा अंतिरक्ष अनुसंधान संगठन है। 1969 म स्थापना के बाद इसने कई मुकाम हािसल िकए ह। अंतिरक्ष िवभाग के तहत आने वाला इसरो उप ह संचार, िरमोट सिसग के जिरए संसाधन सवक्षण, पयार्वरण िनगरानी, मौसम िवज्ञान संबंधी सेवा के जिरए देश म अंतिरक्ष क्षे म अनुसंधान, 3 िवकास और ऑपरे शन के िलए िजम्मेदार है। भारत का पहला उप ह आयर्भ इसरो ने 1975 म बनाया था। इसके बाद कई और उप ह बनाए गए। 2008 म चं यान -1 भारत का चं मा के िलए पहला िमशन बना। इलैक् ॉिनकी एवं सूचना तकनीकी इलैक् ॉिनकी िवभाग, सामािजक-आिथक िवकास के िलए इलैक् ॉिनकी के िवकास और इस्तेमाल को बढ़ावा देता है। कृ िष, स्वास्थ्य और सेवा जैसे क्षे म इलैक् ॉिनकी के उपयोग पर भी िवशेष ध्यान िदया जा रहा है। देश म िविनिमत उत्पाद की गुणव ा सुधारने के िलए परीक्षण और िवकास क और क्षे ीय योगशाला की ृंखला स्थािपत की गई है। ये क छोटे एवं मझोले इलैक् ॉिनक इकाइय की मदद करते ह। सूचना तकनीकी देश के सबसे महत्वपूणर् उ ोग म से एक है। हाल के वष म आईटी क्षे ने बड़ी तेजी से िवकास िकया है। भारत का आईटी उ ोग वषर् 1990-91 म 15 करोड़ अमेिरकी डॉलर से बढ़कर वषर् 2006-07 म 50 अरब डॉलर तक पहुंच गया। िपछले दस साल म आईटी उ ोग औसत 30 ितशत सालाना के दर से वृि दजर् की है। समु िवज्ञान भारत के समु ी सीमा की लंबाई 7,600 िकलोमीटर से भी ज्यादा है िजसम 1,250 ीप भी शािमल ह। समु िवकास िवभाग की स्थापना वषर् 1981 म जीिवत संधान के सव म इस्तेमाल, हाइ ोकाबर्न और खिनज के बेहतर शोषण और समु ी ऊजार् उत्पादन के उ ेश्य से की गई। संसाधन क्षमता के आंकलन और मूल्यांकन के िलए दो अनुसंधान पोत ओआरवी सागर कन्या और एफओआरवी सागर संपदा का इस्तेमाल िकया गया है। सवक्षण एवं खोज के यास समु तल की स्थालाकृ ित, और खिनज गांठ की गुणव ा और एका ता का पता लगाने की िदशा म कि त िकया गया है। 1981 से भारत ने अंटा टका म 13 अनुसंधान दल भेजे ह। 1983 म भारत का पहला स्थाई अनुसंधान स्टेशन दिक्षण गंगो ी की स्थापना की गई। आठव अनुसंधान दल ने 1988-89 म दूसरा स्थाई स्टेशन मै ी की स्थापना पूरी की। इन स्टेशन का इस्तेमाल ओज़ोन परत और वायुमंडल के अन्य संघटको के साथ साथ ऑिप्टकल औरोरा, भू-चुंबकीय धड़कन और अन्य संबंिधत ि या के अध्ययन के िलए िकया गया है। समु संबंधी तकनीकी के िवकास के िलए एक रा ीय समु ी तकनीकी संस्थान की स्थापना की गई है। जैवतकनीकी बहुिवषयक जैवतकनीकी गितिविधय को बढ़ावा देने, और कृ िष एवं औ ोिगक उत्पादन बढ़ाने के साथ साथ मानव एवं जन्तु जीवन को बेहतर बनाने म जैवतकनीकी की लगभग असीिमत संभावना को पहचानने म भारत िवकासशील देश म सबसे अ णी रहा है। इस नए उदयीमान क्षे म स्वदेशी क्षमता को बढ़ावा देने और नए कायर् म के शुरूआत के िलए 1982 म रा ीय जैवतकनीकी बोडर् का गठन िकया गया। वषर् 1986 म जैवतकनीकी िवभाग की स्थापना की गई। िजन क्षे पर खास ध्यान िदया जा रहा है वो ह मवेशी सुधार के िलए ूण स्थानांतरण तकनीक, उं चे पैदावार के िलए रोग- ितरोधी पौधा िकस्म का इन िव ो सार और िविभ बीमािरय के िलए वैक्सीन का इस्तेमाल। वैज्ञािनक एवं औ ोिगक अनुसंधान पिरषद वैज्ञािनक एवं औ ोिगक अनुसंधान पिरषद की स्थापना वषर् 1942 म की गई थी और आज ये देश म वैज्ञािनक और औ ोिगक अनुसंधान का धान संस्थान है। पिरषद के पास चालीस योगशाला , दो सहकारी औ ोिगक अनुसंधान संस्थान और 100 से ज्यादा िवस्तारण और इलाकाई क ह। सरकार ारा तैयार तकनीकनी िमशन को पूरा करने म यह धान भूिमका िनभाता है। XXX भारत के नोबेल पुरस्कार िवजेता 4 सर रोनाल्ड रॉस रोनाल्ड रॉस का जन्म भारत म वषर् 1857 म अल्मोड़ा िजले म हुआ था जो अब उ राखंड म है। उनके िपता भारत म ि िटश सेना म जनरल थे। रॉस आठ साल की उ तक भारत म रहे िजसके बाद उन्ह इं ग्लड म एक बोिडग स्कू ल म भेज िदया गया। बाद म उन्ह ने लंदन के सट बाथ लोमे अस्पताल म डाक्टरी की पढ़ाई पूरी की। जब रॉस छोटी उ के थे तब उन्ह ने भारत म कई लोग को मलेिरया से बीमार होते देखा। जब वो भारत म थे तभी उनके िपता मलेिरया से गंभीर रुप से बीमार हो गए, लेिकन सौभाग्यवश वो ठीक हो गए। इस जानलेवा बीमारी ने उनके िदमाग पर गंभीर छाप छोड़ी। जब रॉस ि िटश-भारतीय िचिकत्सा सेवा का िहस्सा बनकर वापस भारत आए तो उन्ह म ास भेजा गया जहां उनके कायर् का अहम िहस्सा था सेना म मलेिरया के रोिगय का इलाज करना। रोनाल्ड रॉस ने 1897 म मलेिरया और मच्छर के बीच के संबंध को सािबत िकया िजसे काफी पहले से शक िकया जा रहा था। ऐसा करते हुए उन्ह ने दो वैज्ञािनक एलफोन्से लावेरन और सर पैि क मैनसन ारा स्वतं रुप से िदए गए अवधारणा को िस कर िदखाया। उस समय तक ये माना जा रहा था िक मलेिरया खराब हवा म सांस लेने और गमर्, नम एवं दलदली पिरवेश म रहने से होता है। रॉस ने 1882 और 1899 के बीच मलेिरया पर अध्ययन िकया। जब वो उटी म कायर्रत थे, वो खुद मलेिरया के चपेट म आ गए। इसके बाद उनका तबादला ओस्मािनया िव िव ालय, िसकं ाबाद के मेिडकल स्कू ल म कर िदया गया। उन्ह ने एनोिफिलस जीनस के एक खास जाित के मच्छर म मलेिरया परजीवी की उपिस्थित को खोज िनकाला। उन्ह ने शुरुआत म इन्ह डैपल-िवग्स कहा। रॉस ने यह अहम खोज मलेिरया के मरीज का खून पीने वाले मच्छर के पेट का िडसेक्सन करने के दौरान िकया। आगे और अध्ययन के जिरये उन्ह ने इस परजीवी के पूरे जीवन च को स्थािपत िकया। उन्ह ने मलेिरया के महामारीिवज्ञान म बहुत बड़ा योगदान िदया और सवक्षण और आंकलन के ढंग को सु विस्थत िकया। महत्वपूणर् रुप से उन्ह ने आगे के अध्ययन म इस्तेमाल हो सकने वाले गिणतीय मॉडल स्थािपत िकए। वषर् 1902 म मलेिरया पर उनके उत्कृ कायर् को देखने हुए उन्ह िचिकत्सा िवज्ञान का नोबल पुरस्कार िदया गया और िचिकत्सा िवज्ञान म उनकी महान उपलिब्धय के िलए उन्ह नाइटहुड से नवाजा गया। वषर् 1926 म वो लंदन के रॉस इं स्टी ूट एंड हॉिस्पटल फॉर ॉिपकल िडज़ीसेज़ के िनदेशक बने। ये संस्थान उन्ह के सम्मान म स्थािपत िकया गया था। रॉस पि म अ ीका, ीस, मॉिरशस, ीलंका, साइ स और थम िव यु से भािवत कई क्षे म सवक्षण और योजना के जिरये बीमारी की रोकथाम के िलए समिपत भावना से वकालत करते रहे। बारत म रॉस को प्यार और सम्मान से याद िकया जाता है। कई शहर म उनके नाम पर सड़क का नामकरण िकया गया है। हैदराबाद िस्थत क्षे ीय सं ामक रोग अस्पताल का नाम उनकी याद म सर रोनाल्ड रॉस इं स्टी ूट ऑफ ॉिपकल एंड कम्युिनके बल िडजीसेज़ कर िदया गया। िसकं दराबदा म पुराने बेगमपेट हवाई अ े के िनकट िजस भवन म वो काम करते थे और जहां उन्ह ने मलेिरया के परजीवी की खोज की, उसे एक धरोहर क घोिषत िकया गया है और वहां तक जाने वाली सड़क का नाम सर रोनाल्ड रॉस रोड खा गया है। सर सीवी रमन : चं शेखर वकट रमन का जन्म 7 नवंबर 1888 के िदन ितरुिचरापल्ली, तिमल नाडू म हुआ था। उनके िपता चं शेखर अय्यर स्थानीय कॉलेज म भौितकी के लेक्चरर थे। उनकी मां पावर्ती एक गृिहणी थ । उन्ह ने 12 वषर् की आयु म 5 मैि कु लेशन की परीक्षा पास की। उन्ह ने म ास (अब चे ई) के ेिसडसी कॉलेज म दािखला िलया।उन्ह ने बीए और एमए की परीक्षाएं उ िविश ता से पास की। उन्ह भौितकी म गहरी रुिच थी। जब वो एमए कर रहे थे, तभी उन्ह ने भौितकी पर एक लेख िलख कर िफलोसोिफकल मैगेजीन और ि िटश िवज्ञान जनर्ल नेचर को भेजा। उनका लेख पढ़ने पर लंदन के कई जानेमाने वैज्ञािनक ने इस नौजवान भारतीय की ितभा को पहचाना। रमन को भारतीय शासकीय सेवा (आईसीएम) परीक्षा म शािमल होना चाहते थे, लेिकन ऐसा करने के िलए उन्ह लंदन जाना पड़ता। चूंिक वो गरीब थे और वहां नह जा सकते थे, वो भारतीय िव ीय सेवा परीक्षा म बैठे जो म भारत म ही आयोिजत होता था। उन्ह चुना गया और रं गून, बमार्, (जो अब म्यानमार है) भेजा गया जो उस व ि िटश इं िडया का िहस्सा था। बाद म जब वो कोलकाता म कायर् कर रहे थे, तब वो इं िडयन एसोिसएसन फर द कल्टीवेशन ऑफ साइं स नाम की संस्था से जुड़ जो उन िदन म एकमा भारतीय अनुसंधान संस्थान था। वहां कायर् करने के दौरान उनके अनुसंधान काय पर कोलकाता िव िव ालय के उप-कु लपित सर आशुतोष मुखज की नजर पड़ी। उन्ह ने रमन को कोलकाता िव िव ालय म भौितकी के ोफे सर के रुप म िनयुि की। रमन िव ीय सेवा म अच्छे पद पर थे, लेिकन उसे छोड़कर उन्ह ने खुद को िशक्षा क्षे से जोड़ा। ोफे सर के रुप म कायर् करने के दौरान उन्ह 1921 म इं ग्लड म एक िवज्ञान संगो ी म िहस्सा लेने का न्यौता िमला। जब जहाज मेिडटेरेिनयन सागर से गुजर रहा था, तब रमन के मन म एक सवाल पैदा हुआ िक समु का पानी नीला क्य िदखाई पड़ता है। इस सवाल ने काश पर उनके अनुसंधान की शुरुआत कर दी। उन्ह ने योग के ारा पाया िक समु के जल ारा सूयर् के िकरण के िबखराव के कारण वो नीला िदखाई पड़ता है। इस खोज को रमन एफे क्ट कहा गया। 1921 म इं ग्लड के पहले दौरे के समय तक भौितकी म उनका नाम स्थािपत हो चुका था। तीन वषर् बाद उन्ह रॉयल सोसाइटी का फे लो चुना गया। यह सम्मान पाने वाले वे महज चौथे भारतीय थे। 1929 म उन्ह ि िटश सा ाज्य ारा नाइटहुड से सम्मािनत िकया गया। उनकी खोज के कारण उन्ह 1930 म भौितकी का नोबेलल पुरस्कार िदया गया। वो नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय बने। रमन ने रमन इफे क्ट की खोज 28 फरवरी 1928 के िदन की और इस िदन को भारत म रा ीय िवज्ञान िदवस के रुप म मनाया जाता है। 1933 म उन्ह ने भारतीय िवज्ञान संस्थान, बगलोर से िनदेशक बन कर जुड़े। बाद म उन्ह ने िनदेशक पद त्याग कर भौितकी िवभाग म कायर् करते रहे। कि ज िव िव ालय ने उन्ह ोफे सर बनाने का स्ताव िदया, िजसे उन्ह ने यह कहते हुए ठु करा िदया िक वो भारतीय ह और भारत की सेवा करना चाहते ह। डॉ होमी भाभा और डॉ िव म साराभाई रमन के छा थे। सर सीवी रमन का देहांत 21 नवंबर 1970 के िदन हुआ। सु ामण्यम चं शेखर सु मण्यम चं शेखर का जन्म 19 अक्टू बर 1910 के िदन लाहौर(अब पािकस्तान) म हुआ था. उनके िपता चं शेखर सु ामण्या अय्यर भारतीय परीक्षण और लेखा सेवा म अफसर थे। उनकी मां सीताल मी उ बौि कता वाली मिहला थां। सर सीवी रमन, जो नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय वैज्ञािनक थे, उनके चाचा थे। 12 वषर् की आयु तक चं शेखर ने घर म अपने माता-िपता और िनजी िशक्षक की देखरे ख म घर म पढ़ाई की। 1922 म 12 साल की आयु म उन्ह ने िहन्दू उ िव ालय म दािखला िलया। उन्ह ने 1925 म म ास ेिसडसी म दािखला िलया और बैचलसर् िड ी, भौितकी म बीएससी (ऑनसर्) जून 1930 म ा की। जुलाई 1930 म उन्ह कि ज, इं ग्लड म ैजुएट पढ़ाई के िलए भारत सरकार से स्कॉलरिशप िमला। 6 चं शेखर ने 1933 के ीष्मकाल म कि ज से पीएचडी िड ी हािसल की। अक्टू बर 1933 म उन्ह चार साल के िलए (1933-1937) ि िनटी कॉलेज म ाइज फे लेिशप के िलए चुना गया। 1936 म हावर्डर् िव िव ालय म छोटी अविध की या ा के दौरान उन्ह िशकागो िव िव ालय म िरसजर् एसोिसएट का पद स्तािवत िकया गया और उसके बाद वो वह रहे। िसतम्बर 1936 म चं शेखर ने लिलता दोराइस्वामी से शादी की जो ेिसडसी कॉलेज, म ास म उनकी जूिनयर थ । सु मण्यम चं शेखर अपनी खोज ‘चं शेखर िलिमट’ के िलए सबसे ज्यादा जाने जाते ह। उन्ह ने यह िदखाया िक पिरमाण की एक अिधकतम सीमा होती है िजसे गुरुत्वाकषर्ण बल के िखलाफ नािभकीय और इलैक् न्स के दबाव से सहारा िदया जा सकता है। इस िलिमट की मा ा है सूयर् के पिरमाण के लगभग 1.44 गुणा। चं शेखर िलिमट तारा िवकास म को समझने म अहम भूिमका िनभाता है। अगर िकसी तारा का पिरमाण इस सीमा से ज्यादा है तो वो व्हाइट ड्वाफर् नह बन सकता। वो गुरुत्वाकषर्ण बल के कारण िसकु ड़ता चला जाएगा। चं शेखर िलिमट के सू ीकरण से न्यू ॉन स्टासर् और ब्लैक होल्स की खोज का रास्ता साफ हुआ। तारा के पिरमाण के आधार पर उसके आिखरी रुप के तीन संभािवत स्वरुप हो सकते ह – व्हाइड ड्वाफर् , न्यू ॉन स्टार और ब्लैक होल। चं शेखर िलिमट के अलावा सु मण्यम चं शेखर के 1943); सूयर् की रोशनी से कािशत आकाश के मुख कायर् इस कार ह – काशमान होने और ाउिनयन गित का िस ांत (1938- ुवण का िस ांत (1943-1950);नॉमर्न आर लीबोिवट्ज के साथ आंिशक सहयोग से इि िलि यम एंड द स्टेिबिलटी ऑफ एिलपसॉइडल िफगसर् ऑफ इि िलि यम (1961-1968); सापेक्षता और सापेिक्षक खगोल-भौितकी का सामान्य िस ांत (1962-1971); और ब्लैक होल्स के गिणतीय िस ांत (1974- 1983). सु मण्यम चं शेखर को 1983 म नािभकीय खगोल-भौितकीतज्ञ डब्लू ए फावलर के साथ संयु नोबेल पुरस्कार िदया गया। 21 अगस्त 1995 को उन्ह ने आिखरी सांस ली। रुप से भौितकी का डॉ हर गोिवन्द खोराना हर गोिवन्द खोराना का जन्म 9 जनवरी 1922 को पंजाब ांत के छोटे से गांव रायपुर म हुआ था जो अब पािकस्तान म है। वो पांच भाई-बहन म सबसे छोटे थे। उनके िपता पटवारी थे, जो ि टेन-शािसत भारत म कृ िष कर से संबंिधत क्लकर् होते थे। खोराना की ारं िभक िशक्षा-दीक्षा घर पर हुई। बाद म उन्ह ने डीएवी हाई मुल्तान हाई स्कू ल म दािखला िलया। उन्ह ने पंजाब िव िव ालय, लाहौर से 1943 म िवज्ञान म ैजुएशन की और 1945 म िवज्ञान म मास्टसर् िड ी हािसल की। उन्ह ने अपने डॉक्टरे ट की पढ़ाई के िलए िलवरपुल िव िव ालय म दािखला िलया र 1948 म डॉक्टरे ट की उपािध हािसल की। डॉक्टरे ट के बाद के अनुसंधान के िलए िस्वट्ज़रलड के फे डेरल इं स्टी ूट ऑफ टे ॉलॉजी गए जहां उनकी मुलाकात उनकी िस्वस प ी इस्थर एिलजाबेथ िसबलर से हुई। बाद म उन्ह ने वकु वर के ि िटश कोलंिबया िरसचर् काउं िसल म पद हण कर ोटीन्स और न्यूिक्लट एिसड्स पर अपने अ णी खोज को जारी रखा। खोराना 1960 म िवसक िसन िव िव ालय और दस साल बाद मैशेच्युट्स इं स्टी ूट ऑफ टे ॉलॉजी से जुड़े। अनुवांिशकी कोड, उसके कायर् और ोटीन िसथेिसस की ाख्या के िलए खोराना को 1968 म एम डब्लू िनयनबगर् और आर डब्लू हॉली के साथ िचिकत्सा िवज्ञान के क्षे म नोबेल पुरस्कार िदया गया। अपने आिखरी व तक वो एमआईटी म एल े ड पी सोलन ोफे सर ऑफ बायोलोजी एंड के िमस् ी एमेिरटस थे। भारत सरकार ने उन्ह 1969 म प िवभूषण से सम्मािनत िकया। खोराना ने कई अन्य िति त पुरस्कार ा िकये, िजनमं िचिकत्सा अनुसंधान के िलए एलबल्ट लास्कर पुरस्कार, ने ल मेडल ऑफ साइं स, और एिलस आयलड मेडल ऑफ हॉनर शािमल है, लेिकन वो जीवनभर िवन बने रहे और चार की रोशनी से हमेशा दूर रहे। नोबेल पुरस्कार जीतने के बाद एक नोट म उन्ह ने िलखा: “गरीब होने के बावजूद मेरे िपता अपने ब ो को पढ़ाने के िलए समिपत रहे और 100 लोग के उस गांव म शायद हमारा पिरवार ही साक्षर था।” अपने िपता के पदिचन्ह पर चलते हुए खोराना ने हजार छा को 50 साल से ज्यादा व तक पढ़ाया। वो हमेशा िस ी पाने के बजाय अपने अगले पिरयोजना म ज्यादा िदलचस्पी लेते थे। वो पंजाब के एक छोटे से गांव म एक गरीब पिरवार म पैदा हुए थे, लेिकन िसफर् 7 अपनी ितभा और मेहनत के बल पर िवज्ञान के अमर ितभा म शुमार हुए। डॉ हर गोिवद खोराना ने कॉन्कॉडर्, मैशेच्युट्स के एक अस्पताल म 9 नवंबर 2011 को अंितम सांस ली। वकटरमन रामकृ ष्णन : वकटरमन रामकृ ष्णन का जन्म तिमलनाडु के कु डलॉर िजले के छोटे से शहर िचदाम्बरम म 1952 म हुआ था। उनके माता िपता सीवी रामकृ ष्णन और राजलक्षम्मी गुजरात म बड़ौदा के महाराज सायाजी िव िव ालय म जैवरसायन के ाध्यापक थे। वकी, जैसा िक उन्ह आम तौर पर कहा जाता है, ने बड़ौदा के कॉन्वट ऑफ जीसस एंड मैरी से पढ़ाई की। भौितकी म उ िशक्षा के िलए वो अमेिरका चले गए। लेिकन कै िलफोिनया िव िव ालय म उन्ह ने अपने अध्ययन के क्षे को बदलकर जीव िवज्ञान कर िलया। वकी इसके बाद कि ज म एमआरसी लैबोरे ी ऑफ मॉिलक्युलर बायोलोजी म चले गए। यह उन्ह ने राइबोज़ के जिटल कायर् णािलय और बनावट को समझने म सफलता पाई िजसके िलए उन्ह वषर् 2009 म थॉमस ई स्टीट्ज और एडा ई योनाथ के साथ रसायन िवज्ञान का नोबेल पुरस्कार िदया गया। वो सर सीवी रमन, हर गोिवन्द खोराना और सु मण्यम चं शेखर के बाद नोबेल पुरस्कार पाने वाले चौथे भारतीय वैज्ञािनक बने। वकटरमन रामाकृ ष्णन ने अपने अपने किरयर की शुरुआत येल िव िव ालय म पीटर मूर के साथ पोस्ट-डॉक्टरल फे लो के रुप म की, जहां उन्ह ने राइबोज़ोम्स पर काम िकया। अपना अनुसंधान पूरा करने के बाद उन्ह ने अमेिरका म लगभग 50 िव िव ालय म फै कल्टी के रुप म कायर् करने के िलए आवेदन िदया पर उन्ह कहां सफलता नह िमली। इस वजह से वो 1983 से 1995 तक ुकहावेन नै ल लैबोरे ी म राइबोज़ोम्स पर कायर् करते रहे। 1995 म उन्ह उटा िव िव ालय से जैवरासायिनक के ोफे सर म कायर् करने का स्ताव िमला। उन्ह ने वहां लगभग चार वषर् तक काम िकया और िफर वहां से इं ग्लड चले गए जहां उन्ह ने मेिडकल िरसचर् काउं िसल लैबोरे ी ऑफ मॉिलक्युलर बायोलोजी म काम शुरू िकया। यह उन्ह ने राइबोज़ोम्स पर िवस्तृत अनुसंधान की शुरुआत की। 1999 म अपने सािथय के साथ उन्ह ने 5.5-एंग्स ॉम की सू मता वाले राइबोज़ोम के 30s उप-इकाई का ढाचा कािशत िकया। इसके अलगे साल उन्ह ने 30s उप-ईकाई वाले राइबोज़ोम का पूणर् ढाचा स्तुत िकया िजससे ढ़ांचागत जीव िवज्ञान की दुिनया म खलबली मच गी। वकटरमन को ि िनटी कॉलेज, कि ज से फे लोिशप हािसल हुई और वो रॉयल सोसायटी के फे लो भी चुने गए। वो अमेिरकी रा ीय िवज्ञान अकादमी के मानद सदस्य भी बने। वषर् 2007 म िचिकत्सा िवज्ञान म उनके योगदान के िलए उन्ह लुई-िजनटेट पुरस्कार िदया गया। वषर् 2008 म उन्ह ि िटश बायोके िमस् ी सोसायटी की ओर से हीटले मेडल दान िकया गया। िवज्ञान म उनकी उपलिब्धय के िलए वषर् 2010 म भारत सरकार ने उन्ह देश के दूसरे सबसे बड़े नागिरक सम्मान प िवभूषण से सम्मािनत िकया। XXX ेरणादायक लोग और उनके योगदान 1. सु ुत सु ुत, जो िक 2,500 वषर् पहले ाचीन भारत म एक सजर्न थे, ने शल्य िचिकत्सा के क्षे म कई योगदान िकए। सु ुत को शल्य िचिकत्सा का िपतामह भी कहा जाता है। उन्ह ने एक िकताब िलखी सु ुत सिम्हता िजसम उन्ह ने 300 से ज्यादा शल्य िचिकत्सा प ितय और 120 शल्य िचिकत्सा के उपकरण का वणर्न िकया और मानव शल्य िचिकत्सा को आठ भाग म वग कृ त िकया। वो गंगा िकनारे रहते थे उस जगह पर जहां आज का आधुिनक वाराणसी शहर िस्थत है। यह वो अपने कौशल का दशर्न करते थे और िशक्षा भी देते थे। उनके कु छ महत्वपूणर् योगदान ह चीरा लगाने की तकनीक, जांच करना, शरीर म फं से बाहरी वस्तु को िनकालना, अल्किल और उष्मीय कॉटराइजेशन, दांत िनकालना, ऊतक या अंग को िनकालना, इत्यािद। इसके अलावा उन्होन 8 ोस्टेट िं थ को िनकालने, हिनया की सजर्री और ऑपरे शन के जिरये ब े के जन्म का वणर्न भी िकया है। उन्ह ने हि यां छटकने के छह कार और टू टने के 12 कार का वणर्न िकया है। साथ ही उन्ह ने हि य का वग करन चोट लगने पर उनकी िति या के िहसाब से िकया। उन्ह ने आंख की िविभ बीमािरय के 76 लक्षण, आंकलन, िचिकत्सीय या श्ल्य िचिकत्सीय हस्तक्षेप और मोितयािबद की सजर्री का भी वणर्न िकया है। उन्ह ने चीट के िसर से आंत की िसलाई का वणर्न भी िकया है। उन्ह ने शल्य िचिकत्सा के ददर् को कम करने के िलए शराब का भी इस्तेमाल िकया। अपने संिहता म सु ुत ने जन्तु, पौधा और खिनज ोत के लगभग 650 दवा का िज िकया है। संिहता के अन्य अध्याय म ब और मां बनने वाली औरत के स्वास्थ्य पर ध्यान देने का िज है। सु ुत ने िवष िदये जाने के लक्षण , थम िचिकत्सा उपाय, लंबी अविध की िचिकत्सा के साथ साथ िवष का वग करण और िवष िदये जाने के तरीक का िज भी िकया है। सु ुत संिहता का पहले अरबी म और िफर फारसी म अनुवाद िकया गया। इससे आयुवद का चार- सार भारत के बाहर भी दूर-दूर तक हुआ। 2. भास्कर-II भास्कर-II, िजन्ह भास्काराचायर् भी कहा जाता है, का जन्म सन 1114 म िव ादिवदा (आधुिनक बीजापुर) के िनकट हुआ था। िव ान के पिरवार म पैदा हुआ भास्कर ने गिणत की िशक्षा अपने ज्योितष िपता महे र से ा की। 12व शताब्दी के अ णी गिणतज्ञ भासकर ने अपनी पहली रचना दश्मलव संख्या णाली के सु विस्थत इस्तेमाल पर िलखी। वो ाचीन भारत के अ णी गिणत क उ ैन के खगोलीय वेधशाला के मुख भी थे। भास्कराचायर् की मुख रचना िस ांत िशरोमिण के चार अध्याय ह लीलावती, बीजगिणत, हगिणत और गोलाध्याय जो मशः अंक गिणत, बीज गिणत, ह के गिणत और गोला के बारे म है। भास्कराचायर् को खास तौर पर िभ क कलन (differential calculus) के िस ात की खोज और खगोलीय और गणना म उनके इस्तेमाल िक िलए भी याद िकया जाता है। हालांिक ये माना जाता है िक न्युटन और लीबनीज ने िभ क और पूणर् कलन के िस ांत की खोज की, लेिकन इसके भी मजबूत संकेत िमले ह िक भास्कर िभ क कलन के कु छ िस ांत के अ णी थे। वो िभ क गुणांक और िभ क कलन के बारे म अनुमान लगाने वाले पहले ि थे। उन्ह ने इस आधुिनक गिणतीय खोज की अवधारणा रखी िक िकसी संख्या को शून्य से भाग देने पर पिरणाम असीिमत संख्या के रुप म आएगा। उन्ह ने सातव शताब्दी के िव ान गु के मॉडल का इस्तेमाल करते हुए कई खगोलीय संख्या का अचूक वणर्न िकया। उदाहरण के तौर पर उन्ह ने गणना की िक पृथ्वी को सूयर् की एक पिर मा पूरी करने म 365.2588 िदन लगते ह। इसकी आधुिनक माप 365.2563 िदन की अविध से मा 3.5 िमनट ज्यादा है।. भास्कर ने करनाकु थुहल िलखी जो िक खगोलीय गणना पर क िकताब है, िजसे आज भी पिरशु कै लडर बनाने म इस्तेमाल िकया जाता है। भास्कर II एक जाने-माने ज्योितषी भी थे, और माना जाता है िक अपनी पहली रचना लीलावती का नाम उन्ह ने अपनी गिणतज्ञ बेटी के नाम पर रखा। 3. आयर्भ आयर्भ भारत के सबसे पहले ज्ञात गिणतज्ञ-खगोलज्ञ ह। आयर्भ सन 476-550 के बीच रहे थे, लेिकन उनके जन्मस्थान को लेकर आज भी रहस्य बना हुआ है। कई लोग मानते ह िक उनका जन्म मगध के पाटिलपु म हुआ था जो आधुिनक िबहार राज्य की राजधानी पटना है, लेिकन कु छ अन्य लोग मानते ह िक उनका जन्म के रल म हुआ था और वो गु ा शासक के शासनकाल म मगध म रहते थे। उनकी सबसे िस रचना, आयर्भािटया, गिणत और खगोल शा पर िवस्तृत लेख है। आयर्भािटया के गिणत अध्याय म अंक गिणत, बीज गिणत और ि कोणमीित का वणर्न है। इसम िनरं तर अंश, ि घात समीकरण,--- पावर सीरीज़ के जोड़ और साइन्स की तािलका भी है। माना जाता है िक आयर्भ ने कम से कम तीन खगोलशा ीय रचनाएं िलखी और कु छ 9 स्वतं छंद भी िलखे। आयर्भ अित ितभाशाली थे और उनके िस ांत आज के गिणतज्ञ को भी चिकत कर देते ह। यूनानी और अरबी गिणतज्ञ ने आयर्भ की रचना को िवकिसत कर अपने तत्कालीन जरूरत के अनुरूप बनाया। आयर्भ ने िलखा िक अगर 4 को 100 म जोड़ा जाए, िफर 8 से गुणा िकया जाए, िफर 62,000, म जोड़ा जाए और 20,000 से भाग िदया जाए तो उ र 20,000 ास के वृत की पिरिध के बराबर होगा। इस गणना से पाई का मान 3.1416 िनकलता है जो उसके वािस्तिवक मान 3.14159 के बेहद करीब है। आयर्भ ने ही (a + b)2 = a2 + b2+ 2ab का सू िदया। आयर्भ की दूसरी रचना आयर् िस ांत खगोलीय गणना से संबंिधत है जो उनके समकालीन वराहीमीर और बाद के गिणतज्ञ और समालोचक –िजनम गु और भास्कर – 1 भी शािमल ह - के लेख म भर कर आता है। इसम कई खगोलीय यं जैसे ोमोन यािन शंकु यं , छाया यं , संभवतः कोण मापने वाले यं , वृत और अधर् वृत यं यािन च यं , धनुर यं , एक बेलनाकार छड़ी यािन यािस्त यं , छाते के आकार का छ यं और धनुष और बेलन के आकार के दो जल-घड़ी शािमल ह। आयर्भ को यह ज्ञात था िक पृथ्वी अपनी धुरी पर नाचती है। उन्ह ने सौर मंडल का भूकि त मॉडल िदया िजसके तहत सूयर् और चं एिपसाइकल्स म घूमते ह जो पृथ्वी का च र लगाता है। आयर्भ ने सूयर् और चं हण का वैज्ञािनक ढंग से वणर्न िकया। उन्ह ने कहा िक चं और अन्य ह सूयर् के परावितत िकरण की वजह से चमकते ह। उन्ह ने पृथ्वी की पिरिध की गणना 24,835 मील की जबिक इसका आधुिनक माप 24,900 मील है। भारत के पहले उप ह को उनके सम्मान म आयर्भ नाम िदया गया। 4. जगदीश चं बोस जगदीश चं बोस का जन्म 30 नवंबर 1858 को माइमेनिसग म हुआ था जो अब बांग्लादेश म है। इनके िपता भगवान चं बोस एक िडप्टी मिजस् ेट थे। बोस ऩे अपनी ारं िभक िशक्षा गांव के स्कू ल म पाई। 11 साल की उ म अं ेजी िशक्षा के िलए उन्ह कोलकाता भेज िदया गया और उन्ह ने सट जेिवयर स्कू ल और कॉलेज म िशक्षा पाई। वो एक मेधावी छा थे। उन्ह ने भौितकी िवज्ञान म बीए 1879 म पास िकया। 1880 म बोस इं ग्लड चले गए। उन्ह ने लंदन िव िव ालय म एक साल तक िचिकत्सा िवज्ञान की पढ़ाई की, लेिकन खुद के अस्वस्थ रहने के कारण पढ़ाई छोड़ दी। एक साल के अंदर ही वो कि ज के ाइस्ट कॉलेज म नैचुरल साइं स पढ़ने के िलए छा वृित लेने कि ज आ गए। 1885 म वो िवदेश से बीएससी िड ी और नैचुरल साइं स ि पॉस (कि ज के एक िवशेष कोसर्) के साथ स्वदेश लौट आए। वापस लौटने के बाद उन्ह कोलकाता के ेिसडसी कॉलेज म लेक्चरर की नौकरी िमली, लेिकन अं ेज सािथय को िदये जा रहे वेतन की आधी तनख्वाह पर। बोस ने नौकरी तो कर ली लेिकन िवरोध म वो वेतन लेने से मना करते रहे। तीन वषर् बाद कॉलेज ने उनकी मांग मान ली और नौकरी के पहले िदन से लेकर उन्ह पूरी तनख्वाह दी गई। एक िशक्षक के रुप म जगदीश चं बोस बेहद लोकि य थे जो अपने छा की रुिच को वैज्ञािनक दशर्न के ारा जाि त रखते थे। ेिसडसी कॉलेज म उनके कई छा आगे चलकर खुद जाने-माने नाम बन गए। इनम सत्य नाथ बोस और मेघनाद साहा शािमल ह। 1894 म जगदीश चं बोस ने खुद को पूरी तरह से अनुसंधान म जुट जाने का फै सला िकया। उन्ह ने ेिसडसी कॉलेज के एक शौचघर से लगे छोटे कमरे को योगशाला म तब्दील कर िदया। उन्ह ने अपवतर्न, िववतर्न, और ुवीकरण से संबंिधत योग िकए। उन्ह तार-रिहत टेिल ाफी का आिवष्कारक भी माना जाता है। गुगिलएलमो मारकोिन ारा अपने आिवष्कार का पेटट कराने के एक साल पहले 1895 म उन्ह ने सावर्जिनक रुप से इसका दशर्न िकया था। जगदीश चं बोस बाद म भौितकी से हटकर धातु के अध्ययन और िफर पौध के अध्ययन म लग गए। उन्ह ने पहली बार ये िदखाया िक पौध म भी भावनाएं होती ह। उन्ह ने पौध म होने वाले छोटे से छोटे आहट को मापने के िलए एक यं बनाया। 10 हालांिक जगदीश चं बोस ने िवज्ञान के क्षे म अमूल्य योगदान िदया, लेिकन उनके काय को देश म तभी पहचान िमली जब पि मी देश ने उनकी पहचान की। उन्ह ने कोलकाता म बोस संस्थान की स्थापना की, जो मुख्य तौर पर पौध पर अनुसंधान करता था। आज ये संस्थान अन्य क्षे म भी अनुसंधान करता है। जगदीश चं बोस का िनधन 23 नवंबर 1937 को हुआ। 5. आचायर् फु ल्ल चं रे आचायर् फु ल्ल चं रे का जन्म 2 अगस्त 1861 को वतर्मान बांग्लादेश के Khulna िजले म हुआ। उनके िपता हरीश चं रे एक भूमी पित थे। नौ वषर् के आयु तक फु ल्ल चं ने गांव के स्कू ल म पढ़ाई की। 1870 म उनका पिरवार कोलकाता आ गया और रे और उनके बड़े भाई हेयर स्कू ल म दािखल िकए गए। जब वो चौथी कक्षा म थे तब उन्ह पेिचश के जबरदस्त आघात से गुजरना पड़ा िजसके कारण उन्ह कु छ साल तक पढ़ाई छोड़कर अपने पैतृक गांव लौट जाना पड़ा। हालांिक उन्ह ने इस समय का इस्तेमाल सािहत्य पढ़ने म लगाया। भारत म रासायिनक अनुसंधान म अ णी फु ल्ल चं रे ने ि टेन के एिडनबगर् िव िव ालय से उ तर िशक्षा ा करने के बाद 1889 म ेिडसडसी कॉलेज म लेक्चरर बने। जाने माने ांसीसी के िमस्ट बथलॉट की मदद से उन्ह ने आयुवद म सराहनीय अनुसंधान कायर् िकए। उनकी रचना िहस् ी ऑफ िहन्दू के िमस् ी 1902 म कािशत हुई। 1892 म उन्ह ने बगॉल के िमकल्स एंड फामार्स्युिटकल वक्सर् की स्थापना की जो भारत की पहली फामार् कं पनी बनी और उनके मागर्दशर्न म तेजी से आगे बढ़ी। उन्ह ने भारतीय िव िव ालय के ितिनिध के रुप म कई अंतररा ीय िवज्ञान संगोि य और सेिमनार म िहस्सा िलया। 1920 म उन्हे भारतीय िवज्ञान कां ेस का अध्यक्ष चुना गया। फु ल्ल चं रे की मूल इच्छा यही थी िक िवज्ञान के चमत्कार का इस्तेमाल जनसाधारण की बेहतरी के िलए िकया जाए। उन्ह ने िवज्ञान पर कई लेख िलखे जो उस समय के जाने माने पि का म कािशत हुए। वो एक उत्साही सामािजक कायर्कतार् भी थे और वो 1922 म बंगला म अकाल पड़ने के दौरान राहत कायर् म सि य रुप से शािमल हुए। उन्ह ने खादी के इस्तेमाल की वकालत की और कई कु टीर उ ोग लगाए। वो तकर् वाद म िव ास रखते थे और छु आछु त जैसी घृिणत सामािजक कु था की िनदा करते थे। वो 16 जून 1944 को अपनी मृत्यु तक अपने रचनात्मक सामािजक सुधार काय म लगे रहे। 6. बीरबल साहनी ख्यात पुरावनस्पित वैज्ञािनक बीरबल साहनी का जन्म 14 नवंबर 1891 को पंजाब के शाहपुर िजले (जो िक अब पािकस्तान म है) म हुआ था | वह इ री देवी और लाला रूिच राम साहनी के तीसरे पु थे | उनकी िशक्षा-दीक्षा लाहौर के गवनर्मट कालेज और पंजाब िव िव ालय म हुई थी | इम्मेनुयेल कालेज, कै िम् ज से 1914 म उन्ह ने ातक की परीक्षा पास की | अपनी िशक्षा पूरी करने के बाद, बीरबल साहनी भारत लौट आये और उन्ह ने करीब एक साल तक बनारस िहदू िव िव ालय, वाराणसी तथा पंजाब िव िव ालय म वनस्पित िवज्ञान के ोफ़े सर के रूप म काम िकया | 1920 म उनका िववाह सािव ी सूरी के साथ हुआ जो अपने पित के काम म रूिच रखती थ और आजीवन उनके काम म हाथ बंटाती रह | बीरबल साहनी ने भारतीय उपमहा ीप म पाए जाने वाले जीवाश्म का अध्ययन िकया | बीरबल सहनी पुरावनस्पित संस्थान, लखनऊ के वह संस्थापक थे | पुरावनस्पित ऐसा िवषय है िजसम वनस्पित िवज्ञान और मृदा िवज्ञान की जानकारी होना आवश्यक होता है | भारत के ग डवाना क्षे के पौध पर िवस्तृत अध्ययन करने वाले बीरबल साहनी पहले वनस्पित िवज्ञानी थे | साहनी ने िबहार के राज महल िहल्स क्षे का भी अध्ययन िकया जहां अतीत म पाए जाने वाले पौध के जीवाश्म बहुतायत म पाए जाते ह | यहाँ पर उन्ह ने पौध के कु छ नए वंश को खोजा | 11 बीरबल साहनी न के वल वनस्पित िवज्ञानी थे बिल्क वह एक मृदा िवज्ञानी भी थे | साधारण यं और ाचीन पौध के बारे म अपने िवशद ज्ञान से उन्ह ने कु छ पुराने पत्थर की आयु का अनुमान लगाया था | उन्ह ने लोग को िदखाया िक नमक की पहािडयां (जो िक अब पािकस्तान म ह) 40 से 60 िमिलयन साल पुरानी ह | उन्ह ने पाया था िक मध्य देश के द न क्षे करीब 62 िमिलयन साल पुराने ह | 1936 म रोहतक म उन्ह ने िस े के सांच को खोजा और यह उनकी एक महत्वपूणर् पड़ताल थी | ाचीन भारत म िस े ढलने िक तकनीक पर िकए गए अध्ययन के िलए उन्ह नुिमस्मेिटक सोसाइटी ऑफ इिण्डया का नेल्सन राइट मेडल से नवाजा गया था | एक िशक्षक होने के नाते, साहनी ने सवर् थम वनस्पित िवज्ञान िवभाग म िशक्षण के स्तर को ऊपर उठाया | पुरावनस्पित संस्थान िव म अपने तरह का पहला संस्थान था | 10 अ ैल 1949 की रात साहनी का िनधन हुआ - इसके बाद साहनी जी ने जो काम अधूरे छोड़े थे, उन्ह उनकी प ी ने पूरा िकया | आज यह संस्थान बीरबल साहनी पुरावनस्पित संस्थान के नाम से जाना जाता है| 7. पी.सी. महालनोिबस जाने-माने भारतीय सांिख्यकीिवद् और वैज्ञािनक शांत चन् महालनोिबस नमूना चयन की नई िविधय को पहचान कराने के िलए बहुत लोकि य ह | महालनोिबस भारतीय के मन म एक भारतीय वैज्ञािनक और अनु ायोिगक सांिख्यकीिवद् के रूप म याद िकए जाते ह | सांिख्यकी के क्षे म महालनोिबस का उल्लेखनीय योगदान महालनोिबस दुरी है | इनके अितिर उन्ह ने मानविमित के क्षे म भी पथ दशर्क अध्ययन िकए ह और कोलकाता म भारतीय सांिख्यकीय संस्थान की स्थापना िकया | महालनोिबस का पिरवार मूल रूप से िब मपुर (जो अब बांग्लादेश म है) से ताल्लुक रखता है | बचपन म महालनोिबस समाज सुधारक और भुि िजिवय से िघरे माहौल म पाले-बढ़े | कलक ा के ब्वायेज स्कू ल म उन्ह अपनी आरं िभक िशक्षा िमली थी | इसके उपरान्त उन्ह ने ेसीडसी कालेज म दािखला िलया और वहां से िवशेष िवषय भौितकी के साथ बी. एस-सी. की उपािध ा की | 1913 म आगे की िशक्षा के िलए महालनोिबस इं ग्लैण्ड चले गए और वहां पर वह िस भारतीय गिणतज्ञ एस. रामानुजन के संपकर् म आये | अपनी पढ़ाई पूरी करके वह भारत लौटे और उन्ह ेसीडसी कालेज के ाचायर् ारा भौितकी की कक्षा लेने के िलए बुलाया गया | जल्दी ही उन्ह सांिख्यकी के महत्व का ज्ञान हुआ और वह जन पाए िक मौसम िवज्ञान और मानव िवज्ञान से जुड़ी समस्या को सुलझाने म यह बहुत कारगर है | उनके कई साथी सांिख्यकी म रूिच लेने लगे और इसके फलस्वरूप ेसीडसी कालेज िस्थत उनके कमरे म एक छोटी सांिख्यकी योगशाला िवकिसत कर दी गयी जहाँ मथ नाथ बनज , िनिखल रं जन सेन और सर आर एन मुखज चचार् म सि यता से िहस्सा लेते थे | इन बैठक और चचार् ने आगे चलकर भारतीय सांिख्यकीय संस्थान की औपचािरक स्थापना का शक्ल अिख्तयार कर िलया और इस संस्थान का पंजीकरण 28 अ ैल 1932 को हुआ | शुरुआत म ेसीडसी कालेज के भौितकी िवभाग म यश संस्थान चलता रहा लेिकन समय के साथ जब संस्थान का िवस्तार हुआ तो यह कोलकाता के िनकट बैरकपुर ंक रोड पर चला गया जहाँ पर वतर्मान म िस्थत है | बड़े स्तर के नमूना सवक्षण महालनोिबस का सवार्िधक महत्वपूणर् योगदान है | पाईलट सवक्षण और नमूना चयन िविधय की संकल्पना पर उन्ह ने आरं िभक कायर् िकया था | फसल उत्पादन को मापने की एक िविध को भी उन्ह ने इजाद िकया | अपने जीवन के उ र अवस्था म, महालनोिबस भारत के योजना आयोग के सदस्य बनाए गए | योजना आयोग की सदस्यता के अपने कायर्काल के दौरान भारत की पंचवष य योजना म उन्ह ने उल्लेखनीय योगदान िदए | भारत की दूसरी पंचवष य योजना को म महालनोिबस माडल का उपयोग िकया गया था और इससे देश के ती औ ोगीकरण म सहयोग िमला | भारत म सूचकांक ि यािविध की कु छ ुिटय को भी महालनोिबस ने ठीक िकया था | उन्ह ने रिबन् नाथ टैगोर कके सिचव के रूप म कायर् िकया था खासकर जब यह महान किव अपने िवदेशी दौरे पर होते थे | इसके अितिर उन्ह ने िव भारती िव िव ालय म भी काम िकया था | िवज्ञान के क्षे म उनके अपूवर् योगदान के िलए महालनोिबस को देश का दूसरा े नागिरक सम्मान प िवभूषण से सम्मािनत िकया गया था | 28 जून 1972 को 78 वषर् की आयु म महालनोिबस का िनधन हुआ | इतनी उ म भी वह शोध कायर् म लगे रहे और सभी दाियत्व का भली-भांित िनवर्हन करते रहे | 2006 म, भारत सरकार ने महालनोिबस के जन्म िदवस 29 जून को रा ीय सांिख्यकीय िदवस के रूप म मनाये जाने की घोषणा िकया | 12 6 अक्टू बर 1893 को ढाका के िनकट एक गांव म (जो िक अब बांग्लादेश म है) मेघनाद साहा का जन्म हुआ था | उनके िपता गांव म एक िकराने की दुकान चलाते थे | उनके पिरवार की माली हालत बहुत खराब थी | उन्ह ने गांव की ाथिमक पाठशाला म पढ़ाई िकया और अपने खली समय म वह अपने िपता की दुकान पर भी बैठा करते थे | उन्ह गांव से सात मील (करीब 12 िकलोमीटर) दूर िस्थत एक िमडल स्कू ल म उन्ह दािखला िमला | स्कू ल के नजदीक एक डाक्टर के घर रहकर वह उनके घरे लू काम कर लेते थे तािक उनके वहां रहने का खचर् िनकल सके | ढाका िमडल स्कू ल की परीक्षा म उन्ह पहला स्थान िमला और इस आधार पर ढाका कालेिजएट स्कू ल म उन्ह दािखला हािसल हुआ | ेसीडसी कालेज, कोलकाता से मुख्य िवषय गिणत के साथ उन्ह ने ातक िकया और कलक ा िव िव ालय म उन्ह दूसरा स्थान िमला, पहला स्थान सत्येन् नाथ बोस को िमला था जो बाद म चलकर भारत के एक महान वैज्ञािनक बने | 1915 म, एस एन बोस और मेघनाद दोन ही एम्.एस-सी. म पहला स्थान िमला, मेघनाद को अनु ायोिगक गिणत और बोस को िवशु गिणत म | मेघनाद ने भौितकी और अनु ायोिगक गिणत म शोध करने का िनणर्य िलया | मगर कालेज के िदन म, वह स्वाधीनता के संघषर् म शािमल हो गए और सुभाष चं बोस व बाघा जितन जैसे अपने समय के महान नेता के संपकर् म आये | मेघनाद साहा ने खगोलभौितकी के क्षे म उल्लेखनीय योगदान िदया था | वह िवदेश गए और लंदन व जमर्नी म दो साल रहे | 1927 म मेघनाद साहा को लंदन के रायल सोसाइटी के एक फे लो रूप म चुना गया | साहा की रूिच नािभकीय भौितकी म हुई और 1947 म, उन्ह ने नािभकीय भौितकी संस्थान की स्थापना िकया िजसका नाम उनके नाम पर साहा नािभकीय भौितकी संस्थान रखा गया | एक वैज्ञािनक होने के आलावा, उन्ह संसद सदस्य के िलए भी चुना गया था | इसके अितिर , भारतीय पंचांग को सुधारने से जुड़े साहा के कायर् उल्लेखनीय थे | 1952 म, भारत सरकार ारा गिठत पंचांग पुनसरचना सिमित के वह अध्यक्ष िनयु िकए गए थे | साहा के यास की वजह से ही इस सिमित की रचना हो सकी थी | सिमित का काम एक ऐसे सटीक पंचांग को तैयार करना था जो वैज्ञािनक अध्ययन पर आधािरत हो और िजसे पूरे भारत म समवेत रूप से अपनाया जा सके | यह एक बहुत बड़ा काम था, मगर उन्ह ने इसे कामयाबी के साथ पूरा िकया | 9. सत्य नाथ बोस सत्येन् नाथ बोस का नाम अभी हाल म ‘िहग्स बोसान’, िजसे लोकि य रूप से ‘गाड पा टकल’ भी नाम िदया गया, से जुडी खबर म आया है | सत्य नाथ बोस एक उत्कृ भारतीय भौितकशा ी थे | ांटम भौितकी म िकए अपने कायर् के िलए उन्ह िसि िमली है | ‘बोस आइं स्टीन सांिख्यकी’ (इस सांिख्यकी का अनुगमन करने वाले मुलभुत कण का एक वगर् िजसे उनके नाम पर ‘बोसान’ कहते ह) के िलए वह िवख्यात ह | सत्य नाथ बोस का जन्म 1 जनवरी 1894 को कोलकाता म हुआ था | उनके िपता सुरेन् नाथ बोस उ र भारतीय रे ल के अिभयांि की िवभाग म कायर्रत थे और सत्येन् नाथ उनके सात ब म सबसे बड़े थे | सत्येन् नाथ बोस की स्कू ली िशक्षा िहदू हाई स्कू ल, कोलकाता म हुई थी | वह एक मेधावी छा थे और उन्ह ने मुख्य िवषय गिणत के साथ ेसीडसी कालेज, कोलकाता से कालेज की पढ़ाई पूरी की थी | बी.एस-सी. और एम.एस-सी. की परीक्षा म उन्ह ने िव िव ालय म सव स्थान हािसल िकया था | 1916 म कलक ा िव िव ालय ने आधुिनक गिणत और आधुिनक भौितकी म एम्.एस-सी. की कक्षाएं आरम्भ क | कलक ा िव िव ालय म भौितकी के व ा के रूप म 1916 म एस एन बोस ने अपने कै िरयर की शुरुआत की | यहां पर उन्ह ने 1916 से लेकर 1921 तक सेवा की | नए स्थािपत ढाका िव िव ालय म भाितकी िवभाग म रीडर के रूप म उन्ह ने 1921 म काम शुरू िकया | 1924 म सत्य नाथ बोस का एक लेख ‘मैक्स प्लाक’स ला एंड लाइट ांटम’ शीषर्क से कािशत हुआ | इस लेख को उन्ह ने अल्बटर् आइं स्टाइन को भेजा | यह लेख आइं स्टाइन को इतना पसंद आया िक इसे उन्ह ने स्वयं जमर्न भाषा म अनुवाद िकया और जमर्नी के एक िस जनर्ल िजित्स् फ्ट िफिजक म कशन के िलए भेज िदया | बोस की संकल्पना ने बहुत लोग का ध्यान अपनी तरफ ख चा और इसे बहुत सराहा गया | वैज्ञािनक के बीच इसे ‘बोस आइं स्टाइन सांिख्यकी’ के नाम से लोकि य हुआ | 1926 म, सत्येन् नाथ बोस ढाका िव िव ालय म ोफ़े सर बने | हालाँिक उस समय तक उन्ह ने अपना शोध कायर् पूरा नह िकया था, और आइं स्टाइन की संस्तुित पर उन्ह ोफ़े सर िनयु िकया गया था | 1929 म सत्येन् नाथ बोस भारतीय िवज्ञान कां ेस के भौितकी खंड के अध्यक्ष चुने गए और 1944 म वह िवज्ञान कांगेस के महासभापित चुने 13 गए | 1945 म, वह कलक ा िव िव ालय म भौितकी के खैरा ोफ़े सर के रूप म िनयु िकए गए | कलक ा िव िव ालय से वे 1956 म सेवािनवृ हुए | िव िव ालय ने सेवािनवृि के बाद, एमेिरटस ोफ़े सर बनाकर उन्ह सम्मान िदया | बाद म, िव -भारती िव िव ालय के कु लपित बनाए गए | 1958 म, वह रायल सोसाइटी, लंदन के फे लो चुने गए | सत्य नाथ बोस के उल्लेखनीय योगदान के िलए 1954 म भारत सरकार ारा उन्ह ‘पदम भूषण’ से सम्मािनत िकया गया | 1959 म, उन्ह नेशनल ोफ़े सर िनयु िकया गया, जो एक िव ान के िलए देश का सबसे बड़ा सम्मान था | वह इस पद पर 15 साल तक रहे | 4 फरवरी 1974 को कोलकाता म उनका िनधन हुआ | 10. डॉ. सािलम अली डॉ. सािलम मोईजु ीन बदुल अली पिक्षय के पयार्य माने जाते ह | इस िस पक्षी वैज्ञािनक- कृ ितिवद का जन्म मुंबई म 12 नवंबर 1896 को हुआ था | उन्ह ‘भारत का बडर्मैन’ भी कहते ह | भारत म पिक्षय पर कि त मब सवक्षण की शुरुआत उन्ह ने की थी | उनके शोध काय ने भारत म पक्षीिवज्ञान के पा म को विस्थत स्वरूप दान िकया | जैसा िक पहले लोग पक्षी अवलोकन को महज शौिकया तौर पर लेते थे, मगर इस महान ा के योगदान के बाद यह अध्ययन का एक गंभीर क्षे बन गया | सािलम अली बहुत छोटी उ म अनाथ हो गए थे, और िफर उनके मामा अमीरु ीन ितय्ब्जी ने उनकी परविरश की तथा कृ ित म उनकी रूिच जगाई | 10 साल की उ म सािलम ने एक बार अ उड़ाती िचिड़या को देखा और उसे मार िगराया | सहृदय स्वभाव के सािलम ने दौडकर उसे उठाया | यह घरे लू गौरै या के जैसी लग रही थी, मगर उसकी गदर्न पर िविच पीला रं ग था | इस िजज्ञासु बालक ने इस गौरै या को अपने मामा को िदखाया और वह उसके बारे म और भी कु छ जानना चाहता था | उसके मामा उसकी सभी िजज्ञासा को शांत नह कर सके और वह उसे बाम्बे नैचुरल िहस् ी सोसाइटी (बीएनएचएस) के मानद सिचव डब्ल्यू. एस. िमल्लाडर् के पास ले गए | उस ब े म िचिड़य के ित इस अनोखे आकषर्ण को देखकर वह अचंिभत हुए और वे उसे अनेक भूसा भर कर रखी हुई िचिड़य कू आलमारी को िदखाने ले गए | जब सािलम ने उस मरी हुई िचिड़या के जैसी एक िचिड़या उस सं ह म देखा तो वह बहुत उत्सािहत हुआ | इसके बाद, बालक सािलम उस म्यूिजयम म अक्सर आने लगा | िकसी िव िव ालय से ातक की उपािध के आभाव म अली जूलािजकल सव ऑफ इिण्डया म पक्षी वैज्ञािनक का पद हािसल करने से रह गए (उन्ह ने कालेज की पढ़ाई बीच म ही छोड़ दी थी) | मुम्बई म ि स ऑफ वेल्स म्यूिजयम के नए खुले कृ ित िवज्ञान अनुभाग म 1926 म गाइड लेक्चरर के रूप म रखे जाने के बाद उन्ह ने आगे अपनी पढ़ाई को जारी रखने का फै सला िलया | वह 1928 म अध्ययन अवकाश लेकर जमर्नी गए, जहां पर उन्ह बिलन िव िव ालय के जन्तुिवज्ञान सं हालय के ोफ़े सर इरिवन स् ेसमन के ारा िशक्षण ा हुआ | 1930 म भारत लौटने पर, उन्ह पता लगा िक अनुदान म कमी की वजह से गाइड लेक्चरर का पद समा कर िदया गया था | एक उपयु नौकरी के अभाव म, सािलम अली और उनकी प ी तहमीना मुम्बई के एक तटीय गांव िकहीम जा पहुंचे और वहां पर उन्ह ने बया या जुलाहा िचिड़या का पहला अवलोकन िकया | 1930 म इस िचिड़या पर उनके अवलोकन पर आधािरत काशन ने उन्ह पक्षीिवज्ञान के क्षे म ख्याित िदलाई | 200 साल पुराने संस्थान बीएनएचएस के अिस्तत्व को बचाने म सािलम अली ने बहुत भावी भूिमका िनभायी और इस संस्थान के िलए आिथक मदद हेतु उन्ह ने तत्कालीन धानमं ी पंिडत जवाहरलाल नेहरु को प िलखा था | भरतपुर पक्षी अभ्यारण्य, राजस्थान और के रल िस्थत सीलट वेली नेशनल पाकर् को बचाने म डॉ. अली का भाव काम आया | 1990 म, पयार्वरण एवं वन मं ालय, भारत सरकार के सहयोग से सािलम अली सटर फार आिनथोलोजी एंड नैचुरल िहस् ी (एसएसी ओएन) की अनाियकि , कोयम्बतूर म स्थापना की गयी | 1983 म, सािलम अली को पदम िवभूषण से सम्मािनत िकया गया | 20 जून 1987 को 90 साल की उ म उनका िनधन हुआ | 11. पंचानन माहे री 9 नवंबर 1904 म जयपुर, राजस्थान म जन्मे पंचानन माहे री एक िस अमेिरकी िमशनरी िशक्षक डॉ. डब्ल्यू डू डिजयोन से वह ेिरत हुए थे | पादप िवज्ञानी थे | अपने कालेज के िदन म, 14 माहे री ने आवृ बीिजय म परखनली िनषेचन तकनीक का आिवष्कार िकया था | उस समय तक िकसी ने भी यह नह सोचा था िक पुष्पी पादप परख नािलय म िनषेिचत िकया जा सकते ह | माहे री की तकनीक ने तुरंत ही पादप ूण िवज्ञान म नयी संभावनाएं खोल द और इसम आिथक और अनु ायोिगक वनस्पित िवज्ञान के क्षे म शोध के नए मागर् िनकले | अनेक पुष्पी पादप म िजनम िक ास ीिडग ाकृ ितक रूप से नह हो सकता था उनम इस तकनीक की वजह से ास ीिडग अब हो सकता है | प्लांट ीदार के िलए इस तकनीक ने असीम मदद पहुँचाया है | उनके िशक्षक ने एक बार कहा था िक यिद उनका िव ाथ उनसे आगे िनकल जाता है तो इससे उन्ह महान संतोष िमलेगा | इन शब्द ने पंचानन को अपने िशक्षक से यह पूछने के िलए ोत्सािहत िकया िक वह उनके िलए क्या कर सकते ह | डू डिजयोन ने जवाब िदया, “जैसा मने तुम्हारे िलए िकया, वैसा ही तुम अपने िव ािथय के िलए करो |” अपने िशक्षक की सलाह पर माहे री ने मेधावी िव ािथय के एक दल को उन्ह ने िशिक्षत िकया | वनस्पित िवज्ञान म अपनी परा ातक िव िव ालयी िशक्षा उन्ह ने इलाहाबाद िव िव ालय से हािसल की | िदल्ली िव िव ालय के वनस्पित िवज्ञान िवभाग को उन्ह ने ूण िवज्ञान और उ क संवधर्न म अनुसंधान के अ णी क के रूप म िवकिसत िकया | िव िव ालय अनुदान आयोग ारा वनस्पित िवज्ञान म आधुिनक अध्ययन क के रूप म इस िवभाग की पहचान थी | माहे री की प ी अपने घरे लू काम के अलावा अपने पित को स्लाइड बनाने म भी सहयोग करती थ | 1950 म, उन्ह ने ूण िवज्ञान, काियकी और आनुवंिशकी के बीच के संबंध पर चचार् िकया था | अल्पिवकिसत ूण के कृ ि म संवधर्न पर शोध की शुरुआत पर भी उन्ह ने बल िदया था | वतर्मान समय म, उ क संवधर्न िवज्ञान म मील का पत्थर बन गया है | परखनली िनषेचन और इं टर-ओवेिरयन परागण पर उनके काय को िव ख्याित िमली | उन्ह ने एक अंतरार् ीय शोध जनर्ल फाईटोमफ लाजी और 1950 म बाटेिनका नामक एक लोकि य पि का की स्थापना भी िकया | रायल सोसाइटी, लंदन, इिन्डयन नेशनल साइं स एके डमी और अन्य अनेक उत्कृ संस्थान से उन्ह फे लोिशप िमली थी | जीव िवज्ञान के िशक्षण का स्तर सुधारने के िलए उन्ह ने स्कू ल के िलए िकताब भी िलख | 1951 म, उन्ह ने इं टरनेशनल सोसाइटी ऑफ प्लांट माफ लािजस्ट्स की स्थापना िकया | 18 मई 1966 को अपनी मृत्यु के द तक, वह फाईटोमाफ लाजी के संपादक रहे | 12. डॉ. बी.पी. पाल िस कृ िष वैज्ञािनक डॉ. बी.पी. पाल का जन्म 26 मई 1906 को पंजाब म हुआ था | बाद म, उनका पिरवार बमार् (अब म्यांमार) के एक ि िटश कालोनी म जाकर बस गया और वहां िचिकत्सा अिधकारी का काम िकया | पाल ने मेयमो, बमार् िस्थत सट माईके ल स्कू ल म पढ़ाई की | एक मेधावी िव ाथ होने के अलावा, पाल को बागवानी और िच कारी का भी शौक था | 1929 म, पाल रं गून िव िव ालय से एम्.एस-सी. परीक्षा पास िकया और िव िव ालय के समस्त िवज्ञान की अध्ययन शाखा म सव अंक हािसल करने की वजह से उन्ह मैथ्यू हंटर पुरस्कार भी िमला | उन्ह एक छा वृि भी िमली िजससे उन्ह कै िम् ज, यूके म परा ातक का अध्ययन करने की अनुमित दी गयी | प्लांट ीिडग इं स्टीच्युट म गेहूं के संकरण पर पाल ने सर क एन्गलेदो के साथ काम िकया | गेहूं के संकर के ावसाियक उपयोग पर आधािरत हिरत ािन्त के स्वरूप को इसने आधार दान िकया | माचर् 1933 म, बमार् के कृ िष िवभाग के अंतगर्त डॉ. पाल को सहायक धान शोध अिधकारी के पद पर िनयुि दी गई | उसी साल अक्टू बर म, इम्पीिरयल ए ीकल्चरल िरसचर् इं स्टीच्युट (िजसका 1947 म नाम बदलकर इिन्डयन ए ीकल्चरल िरसचर् इं स्टीच्युट-आईएआरआई कर िदया गया) म ि तीय आिथक वनस्पितिवज्ञानी के पद पर उन्ह पूसा, िबहार भेजा गया | आईएआरआई पहले पूसा, िबहार म अविस्थत था, परं तु भूकंप के एक जोरदार झटके ने इसके मुख्य भवन को क्षित स्त कर िदया और 1936 म इस संस्थान को नई िदल्ली म स्थानांतिरत कर िदया गया | 1950 म, नई िदल्ली िस्थत इस नए कै म्पस का नाम पूसा रखे जाने के बाद डॉ. पाल आईएआरआई के पहले भारतीय िनदेशक बने | वह इस पद पर मई 1965 तक बने रहे, जब उन्ह इिन्डयन काउिन्सल ऑफ ए ीकल्चरल िरसचर् (आईसीएआर) का पहला महािनदेशक बनािदया गया | वह इस पद पर मई 1965 से जनवरी 1972 तक रहे, और इस अविध के दौरान हिरत ािन्त को अपार सफलता के साथ चलाया गया था | 15 हिरत ािन्त के वैज्ञािनक पहलु की दृि से डॉ. पाल का मुख योगदान गेहूं की आनुवांिशकी और ीिडग म उनका काम था | उन्ह ने पाया िक गेहूं की कम उपज के िलए उनम रस्ट रोग िजम्मेदार होता है, इसिलए उन्ह ने इस रस्ट बीमारी से लड़ने के िलए मब ीिडग िविध ारा गेहूं की ितरोधी नस्ल का िवकास िकया | उस समय भारत खा संकट के दौर से गुजर रहा था और इसे भूख से मरने वाले लोग का देश कहा जाने लगा था | डॉ. पाल, भारत की वैि क छिव को बदलने के कारक बने और शी ही हमारा देश खा िनयार्तक बन गया | डॉ. पाल गुलाब के उत्कृ ीडर थे और उन्ह ने इसकी अनेक नस्ल िवकिसत की थ | रोज सोसाइटी और बोगिविलया सोसाइटी के वे संस्थापक अध्यक्ष थे | इिन्डयन सोसाइटी ऑफ जेनेिटक्स एंड प्लांट ीिडग की भी उन्ह ने स्थापना िकया और 25 साल तक इिन्डयन जनर्ल ऑफ जेनेिटक्स एंड प्लांट ीिडग का संपादन िकया | 1972 म, उन्ह रायल सोसाइटी का फे लो चुना गया और उन्ह पदम िवभूषण सिहत अनेक सम्मान हािसल हुए | 13. होमी जहांगीर भाभा (1909-1966) भारतीय परमाणु कायर् म के मुख्य िशल्पी होमी जहांगीर भाभा का जन्म मुंबई म एक समृ पारसी पिरवार म 30 अक्टू बर 1909 म हुआ था | उन्ह ने अपनी आरं िभक िशक्षा मुंबई के के थे ल ामर स्कू ल म ा की और उनके कालेज की पढ़ाई एलिफन्स्टन कालेज से हुई | अपने िपता और चाचा दोराबजी टाटा के दबाव म वह कै िम् ज िव िव ालय गए क्य िक वे चाहते थे िक वह यांि क अिभयांि की म उपािध ल तािक भारत लौटने पर जमशेदपुर िस्थत टाटा िमल्स म वह बतौर धातु-िवज्ञानी बन | भाभा की िति त पािरवािरक पृ भूिम म देश की सेवा और िशक्षा की दीघर् परम्परा थी | उनके िपता और माता दोन पक्ष का टाटा घराने से ताल्लुकात था, िजनके पास बीसव सदी के आरं िभक काल म धातु-कमर्, िव ुत उत्पादन, िवज्ञान और अिभयांि की िशक्षा के क्षे म शुरूआती पिरयोजनाएं थ | महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरु पिरवार के भाव म, उनका पिरवार रा वादी भावना से ओत- ोत था | पिरवार की लिलत कला -िवशेषकर पा ात्य शा ीय संगीत और िच कला म अिजत िदलचस्पी थी, इस कारण भाभा म स दयर्बोध था और इनका भाव उनके जीवन के दौरान उनके सभी सृजनात्मक काय म पिरलिक्षत हुआ | इं जीिनय रग की अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद भाभा का रुझान भौितकी िक तरफ हो गया | 1930-1939 के दौरान, भाभा ने कािस्मक िकरण से जुड़े उल्लेखनीय मौिलक शोध कायर् िकए | इसके कारण, 1940 म महज 31 साल की उ म उन्ह रायल सोसाइटी की फे लोिशप मील गयी | भाभा 1939 म भारत लौट आये और दूसरे िव यु शुरू होने तक यह रुके रहे | उन्ह इिन्डयन इं स्टीच्युट ऑफ साइं स, बगलोर के िलए चुना गया, जहां िवज्ञान के क्षे म भारत को पहला नोबल िदलाने वाले वैज्ञािनक सर सी वी रमन भौितकी के िवभागाध्यक्ष थे | आरम्भ म उन्ह उपाचायर् (रीडर) के पद पर िनयु िकया गया, मगर शी ही उन्ह कािस्मक िकरण म शोध के क्षे म ोफ़े सर बनाया गया | भारतीय परमाणु ऊजार् कायर् म को 1944 से लेकर 1966 तक भाभा ने कु ल 22 साल तक नेतृत्व िदया | ‘के िनल्वाथर् िबिल्डग’, जो िक भाभा का पैि क घर था, उसम टाटा इं स्टीच्युट ऑफ फं डामटल िरसचर् का िदसंबर 1945 म उ ाटन िकया गया | इं टरनेशनल एटािमक एनज एजसी की िवयेना, आिस् या म होने वाली बैठक म शािमल होने के िलए जाते हुए भाभा की म ट ब्लक के िनकट 24 जनवरी 1966 म एक हवाई दुघर्टना म मौत हो गयी | 14. िव म अम्बालाल साराभाई ‘भारतीय अंतिरक्ष कायर् म के जनक’ के नाम से िवख्यात िवकरण साराभाई का जन्म 12 अगस्त 1919 म, अहमदाबाद म एक समृ पिरवार म हुआ था | एक िनजी स्कू ल म अपनी छोटी उ म, उनके मन म वैज्ञािनक झुकाव उत्प हुआ था | अपने गृह नगर िस्थत गुजरात कालेज म अध्ययन के बाद, वह सट जान’स कालेज, कै िम् ज म भौितकी के अध्ययन के िलए 1937 म इं ग्लैण्ड चले गए | वहां साराभाई ने पूवर् ातक ाईपाडस की उपािध अिजत की | यह 1940 का साल था और पूरी दुिनया दूसरे िव यु से जूझ रही थी | इस कारण, साराभाई भारत लौट आये और इं िडयन इं स्टीच्युट ऑफ साइं स, बगलोर म शोधाथ बन गए, जहां उन्ह ने कािस्मक िकरण के भाव का अध्ययन िकया | नोबेल िवजेता सर सी वी रमन िक सीधी देख-रे ख म, उन्ह ने बगलोर, पुणे और िहमालय म कािस्मक िकरण का अध्ययन आरम्भ िकया | 1955 म, वह कै िम् ज लौट गए | 1947 म, उन्ह पी.एचडी. उपािध िमली | 16 साराभाई का वास्तिवक योगदान 1947 म मौसंिवग्यानी के आर रामनाथन के साथ शुरू हुआ, िजन्ह ने अहमदाबाद म िफिजकल िरसचर् लेबोरे टरी की स्थापना म उनकी मदद की | शुरुआती समय म, अहमदाबाद एजुकेशन सोसाइटी के साइं स इं स्टीच्युट के कमर म इसे आरं िभक स्वरूप िदया गया | इसकी वैज्ञािनक गितिविधयां मुख्यतः दो कार की थ – पहला साराभाई ने कािस्मक िकरण के समय पिरवतर्न पर कायर् िकया तथा दूसरा आयानोिस्फयर व उ वायुमंडलीय भौितकी के क्षे म अनुभवी मौसम वैज्ञािनक के .आर. रामनाथन के साथ उनका कायर् | साराभाई की टीम ने यह पाया िक कािस्मक िकरण म पिरवतर्न को समझने के िलए मौसम का मूल्यांकन ही पयार् नह ; उन्ह इसे सौर गितिविधय म पिरवतर्न से जोड़ना था | इस अध्ययन ने उन्ह सौर भौितकी म आरं िभक शोध की तरफ आगे बढ़ाया | इस कार की महत्वपूणर् खोज की वजह से, साराभाई को शी ही वैज्ञािनक एवं औ ोिगक अनुसंधान पिरषद तथा परमाणु ऊजार् िवभाग की ओर से आिथक मदद िमल गई | और सहयोग यह पर खत्म नह हुआ | 1957 के अंतरार् ीय भूभौितकी वषर् के िलए होने वाले कायर् म के आयोजन हेतु उन्ह कहा गया | इसी अविध म, सोिवयत यूिनयन ने स्पुतिनक-1 लांच िकया | भारत इससे बहुत पीछे नह था, और साराभाई की अध्यक्षता म अंतिरक्ष अनुसंधान के िलए भारतीय रा ीय सिमित (INCOSPAR) का गठन िकया गया | इस स्व दश वैज्ञािनक ने परमाणु ऊजार् आयोग के होमी भाभा के सहयोग से 21 नवंबर 1963 म अरब सागर के तट पर थुम्बा म पहले राके ट क्षेपण के न् TERLS की स्थापना िकया | भाभा की एक हवाई दुघर्टना म असामियक मौत होने से उनके बाद 1966 म साराभाई को भारतीय परमाणु ऊजार् आयोग का अध्यक्ष बनाया गया | साराभाई की सबसे बड़ी उपलिब्ध भारतीय अंतिरक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) कीई स्थापना थी | 31 िदसंबर 1971 को 52 साल की उ म उनका सोते हुए िनधन हो गया | डॉ. िव म साराभाई ारा अंतिरक्ष िवज्ञान और अनुसंधान म आरं िभक कायर् करने के िलए उन्ह 1962 म शांित स्वरूप भटनागर पदक और 1966 म पदम भूषण से सम्मािनत िकया गया | 15. वग ज कु िरयन 'िमल्क मैन ऑफ इिण्डया' के नाम से िवख्यात वग ज कु िरयन का जन्म 26 नवंबर 1921 को कोिझकोडे, के रल म हुआ था | उनके िपटा कोचीन म एक िसिवल सजर्न थे | 1940 म उन्ह ने लोयोला कालेज, म ास से भौितकी म ातक िकया और उसके बाद म ास िव िव ालय से बीई (यांि की) िकया | इसके बाद, उन्ह ने टाटा स्टील टे ीकल इिन्स्टच्युट, जमशेदपुर म दािखला िलया और वहां से, 1946 म उन्ह ने ातक उ ीणर् िकया | वह िफर एक सरकारी छा वृि पर िमिशगन राज्य िव िव ालय से धातु-कमर् अिभयांि की म एम.एस-सी. करने के िलए अमेिरका चले गए | कु िरयन, आपरे शन फ्लड (दुिनया का सबसे बड़ा दूध उत्पादन कायर् म) के िशल्पी के नाम से जाने जाते ह | कोआपरे िटव डेयरी िवकास के आनंद माडल को आधुिनक बनाने म कु िरयन का बड़ा योगदान था और इस कार उन्ह ने भारत म ेत ािन्त की योजना को साकार िकया, फलस्वरूप भारत दुिनया का सबसे बड़ा दुग्ध-उत्पादक बना | वह गुजरात को-आपरे िटव िमल्क माक टग फे डरे शन (अमूल फ़ू ड ांड का बंधन करने वाल संगठन) के संस्थापक ह | अमूल, वैि क मानक वाला एक वास्तिवक भारतीय ांड है िजससे लाख भारतीय जुड़े हुए ह | कु िरयन और उनकी टीम ने िमल्क पाउडर की ासेिसग तथा गाय के बजाय भस के दूध से कं डस्ड िमल्क बनाने की तकनीक का आिवष्कार िकया था | गुणव ा से पिरपूणर् िडब्बाबंद दूध समूचे भारत के 1000 से भी अिधक शहर म आज उपलब्ध है | और यह दूध अलग हटकर है – यह पा युिरकृ त, िडब्बाबंद, ांडेड तथा िकसान के स्वािमत्व म है | 16. डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन 17 मान्कोम्बू सम्बािसवन स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त 1925 को कु म्बकोणम, तिमलनाडु म हुआ था | यह िस आनुवंिशिकिवद भारत म ‘हिरत ािन्त’ (एक कायर् म िजसम उ उपज वाली फसल के समावेश ारा भारतीय कृ िष के पिरदृश्य म ािन्त ला दी थी) के जनक के रूप म जाने जाते ह | टाइम पि का ने उन्ह बीसव सदी के एिशया के 20 सबसे भावशाली लोग म स्थान िदया था | चे ई म िस्थत एम एस स्वामीनाथन िरसचर् फ डेशन के वह संस्थापक और अध्यक्ष ह| उनके काय िचिकत्सक िपता गांधीजी के घोर समथर्क थे और इसिलए उनम भी देशभि की भावना आ गयी थी | कालेज म, उन्ह ने अच्छे वसाय को छोड़कर कृ िष का अध्ययन िकया | वह तो एक पुिलस अिधकारी बन गए थे मगर 1949 म नीदरलड म आनुवंिशकी पढ़ने के िलए िमली एक फे लोिशप ने उनके कै िरयर का रास्ता ही बदल िदया | 1952 म, कै िम् ज िव िव ालय से आनुवंिशकी म उन्ह ने पी.एच-दी. उपािध अिजत की और िफर अमेिरका के िवस्कांिसन िव िव ालय म आगे का अध्ययन िकया | वहां पर उन्ह ने आचायर् पद की एक सेवा को छोड़ िदया | भारत लौटकर यहां की खराब खा दशा को सुधारने का उनका उ ेश्य स्प था | भूख और गरीबी से मु एक दुिनया का स्व उनकी आँख म था और स्थायी िवकास की उन्ह ने वकालत की | जैविविवधता के संरक्षण पर भी उन्ह ने बल िदया | स्वामीनाथन अपने अमेिरकी कृ िष गुरु नामर्न बोरलाग ारा द और मेिक्सको म िवकिसत बीज भारत लाये और उनके स्थानीय जाितय से ास ीिडग कराने के बाद गेहूं की एक जाित का िवकास िकया जो परम्परागत नस्ल से बहुत अिधक दाने उत्प करता था | िफलीिपस िस्थत इं टरनेशनल राईस िरसचर् इं स्टीच्युट (आईआरआरआई) के वैज्ञािनक ने धान की फसल म भी इसी कार की उपलिब्ध हािसल की | खा से जुडी समस्या का अंत हुआ और एिशया म उम्मीद का एक नया युग आया, िजससे 1980 और 90 के दशक म एिशयाई अथर् वस्था म चमत्कार हो गया | आज, भारत ित वषर् करीब 70 िमिलयन टन गेहूं उत्प करता है और वही ँ 60 के दशक म वह महज 12 िमिलयन टन ही उत्प करता था | स्वामीनाथन ने भारतीय कृ िष अनुसंधान पिरषद के महािनदेशक के रूप म 1972से लेकर 1979 तक सेवा की और 1979 से लेकर 1980 तक वह के न् ीय कृ िष मं ी रहे | उन्ह ने आईआरआरआई के महािनदेशक के रूप म सेवा की और 1988 म वह इं टरनेशनल यूिनयन फार िद कं जवशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल िरसोसस के अध्यक्ष बनाये गए | सामुदाियक नेतृत्व के िलए उन्ह 1971 म रे मन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मािनत िकया गया | 17. एम के वेणु बाप्पू मनाली कल्लत वेणु बाप्पू का जन्म िनजिमयाह आब्जवटरी, हैदराबाद के विर खगोलिवज्ञानी मनाली कु कु झी बाप्पू के यहां 10 अगस्त 1927 को म ास (अब चे ई) म हुआ था | एम के वेणु बाप्पू इं िडयन इं स्टीच्युट ऑफ एस् ोिफिजक्स का सृजन करने वाले ि थे | भारत के महानतम खगोलिवज्ञािनय म से एक, एम के वेणु बाप्पू ने स्वाधीन भारत म काशीय खगोिलकी को पुनः आरम्भ करने म अपना बड़ा योगदान िदया था | म ास िव िव ालय से भौितकी म एम्.एस-सी की उपािध हािसल करने के बाद एक छा वृ पर वे हारवडर् िव िव ालय गए | अपना अध्ययन पूरा करने के कु छ ही महीन के बाद, उन्ह ने एक धूमके तु खोज िलया और िजसका नाम उनके तथा उनके सािथय बाटर् बोक व गोरडॉन न्युिककर् के नाम पर बाप्पू-बोक-न्युिककर् रखा गया | उन्ह ने 1952 म अपना शोध पूरा िकया और अमेिरका के पालोमर िव िव ालय म नौकरी शुरू कर दी | कु छ िवशेष कार के तार की दीि पर वह और कोिलन िवल्सन ने एक महत्वपूणर् अवलोकन िकया और इसे बाप्पू-िवल्सन भाव नाम िदया गया | 1953 म वह भारत लौटे और नैनीताल म उ र देश स्टेट ऑब्जवटरी के िनमार्ण म उन्ह ने महत्वपूणर् भूिमका िनभायी | 1960 म उन्ह कोडाईकोनाल ऑब्जवटरी का िनदेशक बनाया गया और इसके आधुिनकीकरण म उन्ह ने कई योगदान िदए | 1986 म, कवलुर, तिमलनाडु म एक शि शाली टेलीस्कोप लगाकर उन्ह ने भारत के सबसे िवशाल काशीय ऑब्जवटरी की स्थापना िकया | 1949 म, एस्टरोनािमकल सोसाइटी ऑफ िद पेिशिफक ारा िति त डोनहोय कामेट मेडल से सम्मािनत वेणु बाप्पू 1979 म, इं टरनेशनल एस्टरोनािमकल यूिनयन के अध्यक्ष चुने गए थे | उन्ह बेिल्जयम एके डमी ऑफ साइं सेज के होनोरे री फारे न फे लो और अमेिरकन एस्टरोनािमकल सोसाइटी के मानद सदस्य भी चुना गया था | आज, वेणु बाप्पू को आधुिनक भारतीय खगोिलकी का जनक माना जाता है | 18 18. डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम 15 अक्टू बर 1931 को तिमलनाडु के रामे रम म जन्मे डॉ. अवुल पिकर जैनुलाबदीन अब्दुल कलाम महान िविश ता वाले ि ह | पूरे िव म उन्ह िमसाइल मैन के नाम से जाना जाता है और वह भारत के 11व रा पित के रूप म भी बहुत लोकि य हुए थे | कलाम को उनके अिभभावक से आनुवंिशक तौर पर इमानदारी और अनुशासन िमला था िजनसे उन्ह अपने जीवन म बहुत मदद िमली | म ास इं स्टीच्युट ऑफ टे ोलाजी से उन्ह ने एरोनािटकल अिभयांि की की िवशेष िशक्षा हािसल की | भारत का रा पित बनने से पहले, उन्ह ने िडफस िरसचर् एंड डेवेलपमट आगर्नाईजेशन (डीआरडीओ) म एक एरोस्पेश इं िजिनयर के रूप म काम िकया था | बैिलिस्टक िमसाइल और स्पेश राके ट तकिनकी के िवकास म कलाम का योगदान उल्लेखनीय ह | 1998 म, भारत के पोखरण-II नािभकीय परीक्षण म भी कलाम ने महत्वपूणर् संगठनात्मक, तकनीकी और राजनैितक भूिमकाएं िनभाई थ | भारत के थम स्वदेशी सैटेलाईट लांच वेिहकल (SLV-III) (जो िक जुलाई 1980 म रोिहणी उप ह के पृथ्वी के समीप वाली कक्षा से कामयाबी के साथ जुड़ गया था और इससे भारत स्पेश क्लब का एक िविश सदस्य बन गया था) को िवकिसत करने म पिरयोजना िनदेशक के तौर पर डॉ. कलाम ने सराहनीय बहुिनका अदा की थी | इसरो के लांच वेिहकल कायर् म, खासकर PSLV ृंखला के िवकास के िलए वह िजम्मेदार थे | डॉ. कलाम, अि और पृथ्वी िमसाइल के िवकास और संचलन के िलए िजम्मेदार थे | िवग्स ऑफ फायर, इिण्डया 2020 – ए िवजन फार िद न्यू िमलेिनयम, मई जन , और इ ाइटेड माइं ड्स: अनिलिजग िद पावर वीिथन इिण्डया जैसी डॉ. कलाम की पुस्तक आम भारतीय और िवदेश म रह रहे भारतीय के घर म अपनी जगह बना चुके ह | इन पुस्तक के अनेक भारतीय भाषा म अनुवाद िकए गए ह | डॉ. कलाम भारत के उन सवार्िधक िति त वैज्ञािनक म से एक ह िजन्ह 30 िव िव ालय और संस्थान के ारा मानद डाकटोरल की उपािध दान की गयी ह | उन्ह उ नागिरक सम्मान – पदम भूषण (1981), पदम िवभूषण (1990) और सव नागिरक सम्मान भारत र (1997) से सम्मािनत िकया गया है | वतर्मान म अन्य अनेक के अितिर , वह आईआईएम, अहमदाबाद, आईआईएम, इं दौर के िविज टग ोफ़े सर और इं िडयन इं स्टीच्युट ऑफ स्पेश साइं स, िथरुअनंतपुरम के चांसलर ह | 19. सैम िप ोदा सत्यनारायण गंगाराम िप ोदा जो सैम िप ोदा नाम से अिधक लोकि य ह, उनका जन्म 4 मई 1942 को िततलागढ़, उडीसा म हुआ था | उनके अिभभावक मूल रूप से गुजरात से थे और वे घोर गांधीवादी थे | इसीिलए गाँधी दशर्न आत्मसात करने के िलए िप ोदा को गुजरात भेजा गया | उन्ह ने वल्लभ िव ानगर, गुजरात से अपनी स्कू ली िशक्षा हािसल की और महाराज सयाजीराव िव िव ालय, वड़ोदरा से भौितकी तथा इलेक् ािनक्स से उन्ह ने एम्.एस-सी. की िशक्षा पूरी की | वह अमेिरका गए और इिलनोयस इं स्टीच्युट ऑफ टे ोलाजी, िशकागो से उन्ह ने इलेिक् कल अिभयांि की म परा ातक की उपािध ा की | िप ोदा एक नव मेषक, उ मी और नीित िनमार्ता ह | वतर्मान म वह जन सूचना अवसंरचना और नवोन्मेष पर भारत के धानमन् ी के सलाहकार ह | भारतीय दूरसंचार क्षे म हुई ांितकारी बदलाव के िलए भी उन्ह ही उ रदायी माना जाता है | 1984 म धानमन् ी राजीव गांधी के तकनीकी सलाहकार के रूप म, िप ोदा ने न के वल भारत म दूरसंचार ािन्त का आगाज िकया बिल्क दूरसंचार के िविभ िमशन के जिरये उन्ह ने समाज की बेहतरी, िशक्षा, डेयरी, जल, इम्म्युनैजेशन, तेल के बीज आिद क्षे म लाभ को बढ़ाया | वह रा ीय ज्ञान आयोग (भारत के धानमन् ी के िलए एक उ -शि ा सलाहकार सिमित, िजसकी स्थापना देश म ज्ञान-संबंधी संस्था और बुिनयादी जरूरत म सुधर हेतु नीितगत िसफािरश करना है) के अध्यक्ष (2005-2008) रहे | िप ोदा ने करीब 100 महत्वपूणर् तकनीक के पेटट कराये ह और वह िव भर म ापक रूप से अनेक क्षे म शुरुआत िकए और ाख्यान िदए | 1964 से वह अपनी प ी और दो ब के साथ मुख्यतः िशकागो, इिलनोयस, अमेिरका म रहते आये ह | 20. डॉ. अिनल काकोदकर 19 भारतीय नािभकीय वैज्ञािनक डॉ. अिनल काकोदकर का जन्म 11 नवंबर 1943 को मध्य देश के बरावनी गांव म हुआ था | उनके मां-बाप कमला काकोदकर और पी काकोदकर दोन ही गांधीवादी थे | उनकी स्कू ली िशक्षा मुंबई म हुई और रुपारे ल कालेज से उन्ह ने ातक िकया | इसके बाद काकोदकर ने 1963 म यांि क अिभयांि की म ातक हेतु बाम्बे िव िव ालय के वीजेटीआई म वेश िलया | 1964 म, काकोदकर ने भाभा एटािमक िरसचर् सटर (बीएआरसी) के िरएक्टर इं जीिनय रग िडिवजन म सेवा शुरू की और ुव िरएक्टर (पूणर्तः मौिलक परं तु उ तकनीक पिरयोजना) की िडजाइन और िनमार्ण म मुख्य भूिमका िनभायी | होमी भाभा के बाद 1996 म, काकोदकर बीएआरसी के सबसे कम उ के िनदेशक बने | उन्ह ने देश की ेसराियजड हेवी वाटर िरएक्टर टे ोलाजी के स्वदेशी माडल के िवकास का नेतृत्व िकया | 1974 और 1998 म, भारत के शांितपूणर् नािभकीय परीक्षण के योजनाकार की टीम के एक महत्वपूणर् सदस्य थे | काकोदकर परमाणु ऊजार् आयोग (एईसी) के अध्यक्ष और वषर् 2000 म परमाणु ऊजार् िवभाग, भारत सरकार के सिचव रहे | भारतीय नािभकीय परीक्षण म देश के बढते भुत्व को स्थािपत करने म काकोदकर की बड़ी भूिमका रही है | नािभकीय ऊजार् के रूप म थोिरयम के इस्तेमाल ारा भारत की आत्म-िनभर्रता की वह पुरजोर वकालत करते ह | 21. डॉ. जी. माधवन नायर डॉ. जी माधवन नायर का जन्म 31 अक्टू बर 1943 को िथरुअनंतपुरम, के रल म हुआ था | भारतीय अंतिरक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का इस पूवर् मुख ने भारत के पहले मानवरिहत चं िमशन चं यान के योजनाकार रहे ह | नायर ने 1966 म करक िव िव ालय से इलेिक् कल और संचार इं जीिनय रग म ातक िकया था | इसके बाद उन्ह ने भाभा एटािमक िरसचर् सटर (बीएआरसी), बाम्बे म िशक्षण ा िकया | 1967 म उन्ह ने थुम्बा इ े टोिरयल रॉके ट लांिचग स्टेशन (टीई आरएलएस) म सेवा आरम्भ की | इसरो म अपने छः वषर् के सेवा-काल के दौरान उन्ह ने लगभग 25 सफल िमशन पूरे िकए | समाज की ापक जरूरत को पूरा करने के िलए वे दूर-िशक्षा और दूर-िचिकत्सा जैसे कायर् म म गहरी रूिच लेते थे | इसके फलस्वरूप, एडु सेट नेटवकर् के अंतगर्त 31,000 से भी अिधक कक्षाएं जुड़ गय और 315 अस्पताल – सुदरू / ामीण/िजला के 269 अस्पताल म, 10 मोबाईल वैन तथा 46 सुपर स्पेिशयिलटी अस्पताल दूर-िचिकत्सा सुिवधा से जुड़ गए | उप ह की कनेिक्टिवटी के जिरये ामीण संसाधन के न् (वीआरसी) को जोड़ने की योजना को भी नायर ने शुरू िकया, िजसका उ ेश्य गांव म िनधर्न लोग के जीवन की गुणव ा को सुधारना है | 430 से भी अिधक वीआरसी की पहुँच आज भूिम-उपयोग/भूिम आवरण, िम ी और भूिमगत जल जैसे जरुरी पहलु से संबंिधत सूचना तक हो गयी ह और इस योजना ने िकसान को उनकी िजज्ञासा पर आधािरत महत्वपूणर् फै सले लेने म सक्षम बनाया है | अंतरार् ीय फलक पर अनेक अंतिरक्ष एजिसय और देश खासकर ांस, रूस, ाजील,, इजराइल आिद के साथ दोपक्षीय सहयोग तथा बातचीत के िलए भारतीय ितिनिधमंडल का माधवन नायर ने नेतृत्व िकया और पारस्पिरक लाभकारी अंतरार् ीय सहयोगात्मक घोषणा प पर भी उन्ह ने काम िकया है | वा अंतिरक्ष के शांितपूणर् उपयोग पर संयु रा सिमित (यूएन-सीओपीयूओएस) की िवज्ञान एवं ौ ोिगकी उप-सिमित के भारतीय ितिनिधमंडल का 1998 से माधवन नायर ने नेतृत्व िकया है | 2009 म, उन्ह भारत के दूसरे सव नागिरक सम्मान पदम िवभूषण से नवाजा गया | 22. डॉ. िवजय भाटकर डॉ. िवजय पांडुरंग भाटकर भारत के िति त वैज्ञािनक और भारत के आईटी के िवशेषज्ञ ह | भारत के पहले सुपर कं प्यूटर ‘परम’ के िशल्पी और सी-डैक (सुपरकम्प्यू टग म भारत का रा ीय अिभयान) के संस्थापक कायर्कारी िनदेशक के रूप म अच्छी तरह जाने जाते ह | उन्ह अनेक रा ीय संस्थान का सृजन करने का ी जाता है और उनम से उल्लेखनीय संस्थान ह सी-डैक, ईआर एंड डीसी), आईआईटीएम-के , ईटीएच िरसचर् लैब, एमके सीएल और इिण्डया इं टरनेशनल मल्टीविसटी | भारत के परम ृंखला के सुपरकम्प्यूटर के िशल्पी होने के तौर पर डॉ. भाटकर ने भारत को जीआईएसटी मल्टीिलगुअल तकनीकी और अन्य अनेक नयी पहल क | 11 अक्टू बर 1946 को मुराम्बा, अकोला, महारा म जन्मे 20 भाटकर ने 1965 म वी एनआईटी, नागपुर से इं जीिनयं रग ातक की उपािध हािसल की | इसके बाद उन्ह ने एमएस िव िव ालय, बड़ोदा से परा ातक िकया और 1972 म आईआईटी, िदल्ली से इं जीिनय रग म पीएचडी िकया | भाटकर कै िबनेट की वैज्ञािनक सलाहकार सिमित, भारत सरकार के सदस्य, सीएसआईआर की गविनग काउिन्सल के सदस्य और महारा व गोवा सरकार के ई-गवनस सिमित के अध्यक्ष रहे ह | आईईई, एसीएम, सीएसआई, आईएनएई और अ णी वैज्ञािनक, इं जीिनय रग तथा ावसाियक सोसाइटी के फे लो, भाटकर को पदम ी व महारा भूषण सम्मान से सम्मािनत िकया गया है | अन्य सम्मान म शािमल ह सट ध्याने र वल्डर् पीस पुरस्कार, लोकमान्य ितलक पुरस्कार, एचके िफरोिदया और डाटा े स्ट लाइफटाइम एचीवमट पुरस्कार तथा कई और | डॉ. भाटकर वतर्मान समय म इिण्डया इं टरनेशनल मल्टीविसटी के चांसलर, ईटीएच िरसचर् लैब के अध्यक्ष, I2IT के मुख्य सदस्य, आईआईटी-िदल्ली बोडर् के अध्यक्ष और िवज्ञान भारती के रा ीय अध्यक्ष ह | 23. कल्पना चावला कल्पना चावला का जन्म 1 जुलाई 1961 को हिरयाणा के करनाल िजले म हुआ था | भारत के पहले पायलट जे आर डी टाटा से वह ेिरत थ और आकाश म उड़ने की उन्ह हमेशा चाहत थी | करनाल के टैगोर स्कू ल से उन्ह ने अपनी स्कू ली िशक्षा अिजत की और बाद म पंजाब िव िव ालय से एयरोनािटकल इं जीिनय रग म ातक की पढ़ाई की | एयरोनािटकल के क्षे म अपने सपन को साकार करने के िलए वह अमेिरका चली गय | 1984 म, टेक्सास िव िव ालय से एयरोस्पेश इं जीिनय रग म एमएससी लेने के चार साल के बाद, कोलोराडो िव िव ालय से एयरोस्पेश इं जीिनय रग म शोध पूरा िकया | उसी साल, उन्ह ने नासा के एमेस िरसचर् सटर म काम करना शुरू कर िदया | जल्द ही चावला ने अमेिरकी नागिरकता हण कर ली और एक स्वतं लाइं ग इं स् क्टर ज -िपयरे हैिरसन से शादी कर िलया | लाइं ग, हाय कग, ग्लायिडग, मण और पढ़ना उनके खास शौक थे | अयरोबेिटक्स, तेल-व्हील एयरप्लेन उड़ाना उन्ह भाता था | वह पूरी तरह शाकाहारी थ आर उन्ह संगीत पसंद था | चावला 1994 म नासा के अंतिरक्ष कायर् म से जुड़ और स्पेश शटल कोलंिबया फ्लाईट STS-87 के 6 अंतिरक्षयाि य म से एक सदस्य के रूप म 19 नवंबर 1997 को उनका पहला अंतिरक्ष िमशन शुरू हुआ | वह अंतिरक्ष म 375 घंट से ज्यादा समय रह , जब वह अपनी पहली उड़ान के दौरान पृथ्वी की 252 कक्षा म करीब 10.4 िमिलयन िकलोमीटर की उन्ह ने या ा की | उड़ान के समय स्पतर्न उप ह की गडबड़ी के ेक्षण की वह भारी थ | मजेदार बात है िक अंतिरक्ष उड़ान भरने वाली वह न िसफर् पहली भारत मूल की बिल्क पहली भारतीय-अमेिरकी मिहला थ | िमशन िवशेषज्ञ और ाइमरी रोबोिटक आमर् आपरे टर चावला 2003 म हुई स्पेश शटल कोलंिबया दुघर्टना म सात चालक दल के साथ मौत के मुंह म चली गय | 24. सुनीता िविलयम्स कल्पना चावला के बाद नासा स्पेस्क िमशन म जाने वाली भारतीय मूल की दूसरी मिहला सुनीता िविलयम्स ह | 19 िसतम्बर 1965 म ओिहयो, अमेिरका म डॉ. दीपक और बोनी पं ा के घर जन्म सुनीता के पास मिहला अंतिरक्षया ी के रूप म तीन िरकाडर् ह – सबसे लंबी अंतिरक्ष उड़ान (195 िदन), सवार्िधक संख्या म अंतिरक्ष म चहलकदमी (चार बार) और अंतिरक्ष चहलकदमी म िबताया हुआ सबसे लंबा समय (29 घंटे और 17 िमनट) | सुनीता ने अपनी स्कू ली िशक्षा नीधम हाई स्कू ल, मेसाचुसेट्स से और ातक 1983 म िकया | 1987 म भौितकी िवज्ञान म उपािध लेने के िलए उन्ह ने यूनाइटेड स्टेट्स नेवल एके डमी म दािखला िलया और 1995 म फ्लोिरडा इं स्टीच्युट ऑफ टे ोलाजी से इं जीिनय रग मैनेजमट म एमएस की िड ी हािसल की | रूस के सोयुज ाफ्ट पर जुलाई 2012 म 46 वष या सुनीता अपने दूसरे स्पेश िमशन पर गयी ह | इं टरनेशनल स्पेश स्टेशन के अिभयान 33 की वह कमांडर ह | 25. सबीर भािटया सबीर भािटया का जन्म 30 िदसंबर 1968 को हुआ था | वह बगलोर म पले-बढ़े | िबशप’स स्कू ल, पुणे और उसके बाद सट जोसेफ’स ब्वोयज हाई स्कू ल, बगलोर से उन्ह ने अपनी आरं िभक िशक्षा हािसल की | िबट्स िपलानी, राजस्थान से 21 िवदेशी ानान्तरण के बाद कई के िलफोिनया इं स्टीच्युट ऑफ टे ोलाजी से ातक उपािध ा करने वे अमेिरका गए | उन्ह ने स्टैनफोडर् िव िव ालय से इलेिक् कल इं जीिनय रग म परा ातक की उपािध हािसल की | ातक के बाद सबीर ने एप्पल कम्प्यूटसर् म हाडर्वेयर इं जीिनयर के रूप म और फयापार्वर िसस्टम्स इं क म काम िकया | वहां कायर् करते हुए यह देखकर वे चिकत रह गए िक िकसी वेब ाउजर के जिरये इन्टरनेट पर वह िकसी भी साफ्टवेयर को एिक्सस कर सकते ह | 4 जुलाई 1996 को उन्ह ने अपने सहयोगी जैक िस्मथ के साथ हाटमेल की स्थापना िकया | 21व शताब्दी म, 369 पंजीकृ त यो ा के साथ हाटमेल दुिनया की सबसे बड़ी ई-मेल ोवाइडर म से एक बन गया | अध्यक्ष और सीईओ के रूप म, औ ोिगक नेतृत्व की ती उ ित और 1998 म माइ ो साफ्ट ारा आकिस्मक अिध हण का उन्ह ने मागर्दशर्न िकया | हाटमेल अिध हण के बाद करीब एक साल के िलए भािटया ने माइ ोसाफ्ट म कायर् िकया और अ ैल 1999 म उन्ह ने एक नई शुरुआत ई-कामसर् फमर् आरजू इं क को आरम्भ करने के िलए माइ ोसाफ्ट को छोड़ िदया | भािटया की सफलता ने उन्ह ापक ित ा दी है; कै िपटल फमर् ापर िफशर जुवस्तान ने उन्ह ‘एन्टर ेन्योर ऑफ िद इयर 1997’ नाम िदया था, एमआईटी ने उन्ह उन 100 नव मेशक म से एक चुना जो ौ ोिगकी पर अपना सवार्िधक भाव छोड़ने वाले ह और एमआईटी ने ही उन्ह ‘टीआर100’ से पुरस्कृ त िकया | ........................................................................................................................ िव ाथ िवज्ञान मंथन के बारे म और अिधक जानकारी के िलए कृ पया संपकर् कर: मुख्य समन्वयक 501, कग अपाटर्मट िरलायंस े श के पीछे नवलखा स् े यर, इं दौर (म ), भारत | दूरभाष: +91-9589832360 ई-मेल: [email protected] वेबसाईट: www.vvm.org 22 िदल्ली का लौह स्तंभ िदल्ली के कु तुब मीनार ांगन म िस्थत लौह स्तंभ ने दुिनयाभर के ाचीनिवद और धातुिवद का ध्यान आकिषत िकया है। कठोर मौसम की मार झेलने के बावजूद िपछले 1600 साल म इस स्तंभ म जंग नह लगा है। यह स्तंभ ाचीन भारत के लौहकार के लौह िनष्कषर्ण और संस्करण म उ कौशल का जीता जागता माण है। यह स्तंभ 98 ितशत शु िपटवां लोहा से बना है जो 23 फु ट 8 इं च(7.2 मीटर) ऊंची है और इसका ास 16 इं च (40.6 सटीमीटर) है। िदल्ली का लौह स्तंभ भारतीय तकनीकी संस्थान, कानपुर के िवशेषज्ञ ने वषर् 2002 म इस 1600 साल पुराने लौह स्तंभ के रहस्य पर से पदार् उठाया। आइआईटी कानपुर के धातुिवद ने पाया िक िमसावाइट – जो िक लोहा, ऑक्सीजॉन और हाइ ोजन से बना यौिगक है – की पतली परत ने इस लौह स्तंभ को जंग लगने से बचाये रखा है। यह परत लौह स्तंभ के िनमार्ण के तीन वषर् के अंदर बनने लगी और तब से अब तक बेहद धीमी गित से बढ़ रही है। 1600 साल म परत की मोटाई मा एक िमलीमीटर के बीसव भाग तक बढ़ी है। इस सुरक्षा परत का िनमार्ण उ मा ा म फॉसफोरस की मौजदूगी म हुआ िजसने उत् ेरक का काम िकया। यह ाचीन भारत के लौहकार के लौह िनमार्ण का अनोखा तरीका था िजसम वो लोहे को कोयला म िमलाकर िसफर् एक बार म स्टील तैयार कर लेते थे। जबिक आधुिनक ब्लास्ट फनस म कोयले की जगह चूना पत्थर का इस्तेमाल िकया जाता है िजसम क े लोहे के अलावा िपघला हुआ धातु-अवशेष (स्लैग) िनकलता है। क े लोहे को बाद म स्टील म तब्दील कर िलया जाता है लेिकन ज्यादातर फॉसफोरस धातु-अवशेष के साथ बह जता है। 23 छह टन से ज्यादा वजन के इस स्तंभ को चं गु ि तीय िव मािदत्य (सन 375-414) ने बनवाया। यह अनुमान गु ा सा ाज्य – िजन्ह ने उ र भारत म सन 320-540 तक शासन िकया – के स्वणर् िस के सावधानी पूणर् िव ेषण पर आधािरत है। XXX आयुवद और इसके उपचार के िविभ तरीके आयुवद, िजसका शािब्दक अथर् होता है ‘ज्ञान, िजससे लंबी आयु िमले’ वैकिल्पक औषिध का एक कार है जो भारत म लगभग 5000 वषर् पहले उत्प हुआ। यह भारतीय मूल का जांचा-परखा स्वास्थ्य िवज्ञान है। सु ुत संिहता और चरक संिहता औषिध के ंथ माने जाते ह िजन्ह आयुवद का आधार भी समझा जाता है। बाद की शतािब्दय म आयुविदक िचिकत्सक ने िविभ बीमािरय के इलाज के िलए अनेक औषधीय उत्पाद एवं शल्यिचिकत्सा प ित तैयार िकए। भारत का दिक्षणी राज्य के रल अपने आयुवर्िदक िचिकत्सा क के िलए दुिनयाभर म िस है। के रल म आयुवद को वैकिल्पक से ज्यादा मुख्यधारा की िचिकत्सा प ित माना जाता है। आयुवद भोजन, जीवनशैली और ायाम के जिरये शरीर म वा , िप और कफ के संतुलन को पुनस्थार्िपत करने पर जोर देता है। इसका असर शरीर, मिष्तष्क और आत्मा पर पड़ता है। मोटापा, तनाव बंधन, स्पॉन्डीलायटीस, गिठया, सोिरएस, न द न आने, कब्ज, पा कन्सन्स रोग, ोजन शोल्डर, टेिनस एल्बो जैसी बीमािरय के इलाज मे आयुवद बेहद लोकि य है। आयुवद के कु छ जाने-माने उपचार िविधय को नीचे दशार्या गया है। अभयंगम: अभयंगम एक िवशेष िकस्म की तेल मािलश है जो मोटापा और डायबीिटक गगरीन (शरीर के कु छ िहस्स म र संचार की कमी से होने वाली बीमारी) के इलाज म कारगर होता है। इसम आयुविदक जड़ी0-बूटी से िवशेष रुप से तैयार तेल के िम ण से की जाती है। पूरे शरीर पर तेल लगाकर महत्वपूणर् िबन्दु को उत् ेिरत िकया जाता है। ये उपचार त्वचा के सामान्य स्वास्थ्य के िलए बिढया होता है साथ ही मांश-पेिशय म ददर् को ठीक करता है और जल्दी उ बढ़ने के लक्षण को रोकता है। इससे ेत र कोिशका और एंटीबोडीज़ के िनमार्ण को भी बढ़ावा िमलता है िजससे वायरस और अन्य सं मण और बीमारी के िखलाफ शरीर की ितरोधी क्षमता बढ़ती है। धारा: धारा उपचार िविध म जड़ी-बूिटय से तैयार तेल, औषिधयु दूध या म ा को माथे पर एक िवशेष लय म बहने िदया जाता है। ऐसा हर रोज लगभग 45 िमनट के िलए 7 से 21 िदन तक िकया जाता है। ये िविध न द न आने, मनोिवकार , न्यूरेिस्थिनया, स्मृित हािन और त्वचा की कु छ बीमािरय के िलए आदशर् होता है। ठ धारा: इस िविध म िसर की मािलश के बाद औषिधयु म ा को उपर टंगे एक बतर्न से एक धार से माथे एवं िसर पर िगराया जाता है। इससे रुसी की समस्या, सोिरयेिसस, उ र चाप, डायबीटीज, बाल झरने और त्वचा की अन्य बीमािरय के इलाज म मदद िमलती है। िसरोधारा म िसर की अच्छी मािलश के बाद जड़ी-बुटी से बने तेल को उपर टंगे बतर्न से िसर और माथे पर िगराया जाता है। इसे तनाव घटाने और न द न आने की समस्या से िनजात पाने म मदद िमलती है। 24 िसरोवस्थी: िसरोवस्थी प ित म मरीज के िसर पर टोपी बांधकर उसम औषिधयु गुनगुना तेल डाला जाता है। ये ि या लगभग आधा घंटा चलती है। इससे न द न आने की बीमारी, चेहरे के पक्षाघात, माथे का सु और गले म सूखेपन और िसरददर् का इलाज भावपूणर् ढंग से होता है। िपिज़िचल: िपिज़िचल िविध म जड़ी-बुटी के गुनगुने तेल से पुरे शरीर की लयब हो जाना, नथुन तरीके से लगभग एक घंटे तक मािलश की जाती है। इससे काफी पसीना बहता है िजससे गिठया, अधाग, लकवा मारने, यौन रोग और तंि का तं की अन्य बीमािरय का इलाज होता है। िवरे च्छणम: शोथक (पेट साफ करने वाली) औषिधय के इस्तेमाल से पेट और आंत को साफ करने की ि या को िवरे च्छणम कहते ह। इससे अंतिरय मे मौजूद अत्यिधक िप और िवषा पदाथ को बाहर िनकालने म मदद िमलती है। अपच की बीमारी के मरीज इस प ित का इस्तेमाल करते ह। जब पाचन णाली स्वच्छ और िवषा पदाथ से मु होती है तो पूरे शरीर को फायदा होता है। इससे भूख बढ़ती है और भोजन के पचने म मदद िमलती है। किटवस्थी: किटवस्थी प ित म शरीर का उपचार गुनगुने औषिधयु तेल से िकया जाता है। तेल को जड़ी-बुिटय से तैयार लेप के मध्य पीठ के िनचले िहस्से पर 30-45 िमनट के िलए रखा जाता है। इससे पीठ का ददर् और मेरुदण्ड के िनचले िहस्से की समस्या से िनजात िमलता है। औषधीय पौधे आयुवद और औषधीय पौध का सीधा संबंध है। भारत के ामीण इलाक म लगभग 70 ितशत आबादी पारं पिरक औषधीय यािन आयुवद पर िनभर्र है। कई औषधीय जड़ी-बुटी और मसाले जैसे िक प्याज, लहसुन, अदरक, ल ग, इलायची, दालचीनी, जीरा, धिनया, मेथी, स फ, अजवायन, तेज प ा, ह ग, काली िमचर् इत्यािद भारतीय पाक-कला म इस्तेमाल िकए जाते ह। आयुविदक िचिकत्सा म इन सभी का इस्तेमाल खान-पान म या औषिध के रुप म िकया जाता है। रा ीय औषधीय वनस्पित बोडर् के मुतािबक भारत म 15 कृ िष-जलवायु क्षे और पुिष्पत पौध की 17,000– 18,000 जाितयां ह। इनम से लगभग 6,000–7,000 जाितय का औषधीय इस्तेमाल होता है। औषधीय पौध की लगभग 960 जाितय की खरीद-िब ी होती है िजनम से 178 जाितय की वािषक खपत 100 टन से ज्यादा है। 25 कै प्शन: कु छ जड़ी-बुिटयां िजनका औषिध के रुप म योग होता है कै प्शन: तुलसी, एक सामान्य औषधीय पौधा औषधीय पौधे िसफर् पारं पिरक िचिकत्सा और जड़ी-बुटी आधािरत उ ोग के िलए संसाधन समूह नह ह, बिल्क ये बड़ी संख्या म लोग की आजीिवका का ोत होने के साथ साथ भारतीय आबादी के एक बड़े भाग के िलए स्वास्थ्य सुरक्षा भी मुहय ै ा कराते ह। अयुष (आयुवद, युनानी, होम्योपैथी) उ ोग का घरे लु कारोबार लगभग 80-90 अरब रुपये तक है. भारतीय औषधीय पौध और इसके उत्पाद का सालाना िनयार्त लगभग 10 अरब रुपये तक का है। पारं पिरक एवं वैकिल्पक िचिकत्सा प ितय म पूरे िव म रुिच बढ़ी है जड़ी-बुिटय के वैि क कारोबार मबढो री हुई है। जड़ी-बुटी का वैि क ापार मौजूदा 120 अरब अमेिरकी डॉलर से बढ़कर वषर् 2050 तक 70 खरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। हालांिक मौजूदा वैि क कारोबार म भारत की िहस्सेदारी काफी कम है। भारत के कु छ लोकि य औषधीय पौध की सूची इस कार है – गुगुलु एक झाड़ी है जो भारत के शुष्क और अधर्-शुष्क इलाक खासकर राजस्थान म पाया जाता है। इसका इस्तेमाल िविभ ेणी की बीमािरय जैसे तंि का संबंधी बीमािरय , कु रोग, त्वचा की बीमािरय , हृदयरोग, िदमागी एवं वास्कु लर बीमािरय और उ र चाप के इलाज के िलए होता है। ाि एक जड़ी-बुटी है िजसका गूदद े ार तना और पि यां जमीन पर फै ल जाते ह। ये लगभग पूरे भारत म नमी एवं गीले स्थान पर पाया जाता है। ाि मिष्तष्क की बीमािरय और याददाश्त बढ़ाने के िलए होता है। ाि -यु दवाइयां गिठया, िदमागी बीमािरय , कब्ज और फे फड़ की बीमािरय म इस्तेमाल की जाती ह। ये मू वधर्क भी है। आंवला एक मध्य आकार का पतझड़ी पेड़ है जो पूरे भारत म पाया जाता है। हल्के पीले रं ग का ये फल अपनी िविभ औषधीय गुण के िलए जाना जाता है। इसे पाचक, गैस की समस्या एवं कब्ज दूर करने वाला, बुखार कम करने वाला एवं स्वास्थ्यवधर्क गुण वाला माना जाता है। आंत की समस्या , पीिलया, आंतिरक र ाव, पेट म गैस होने की िस्थित म इसे लेने की सलाह दी जाती है। कै प्शन: आंवला 26 अ गंधा एक मध्य आकार का झाड़ीनुमा पौधा है जो भारत के शुष्क इलाक म पाया जाता है। इसे तंि का तं की समस्या के िलए िदया जाता है, साथ ही इसे पौरुष शि बढ़ाने वाला भी माना जाता है। सामान्य कमजोरी एवं गिठया के इलाज म भी इसका इस्तेमाल िकया जाता है। अजुर्न का पेड़ आयुविदक के साथ साथ युनानी िचिकत्सा प ित म भी ख्यात दजार् ा है। आयुवद के मुतािबक ये ह ी चटकने, अल्सर, हृदयरोग, िप दोष, पेशाब पर िनयं ण न होने, अस्थमा, ूमर, ल्यूकोडरमा, अनीिमया, अत्यिधक पसीना िनकलने की िस्थित म फायदेमंद होता है। घृतकु मारी (अलोवेरा) एक लोकि य औषधीय पौधा है। इसम लगभग 20 ऐसे खिनज होते ह जो मानव शरीर के िलए बेहद जरूरी माने जाते ह। मानव शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के िलए 22 एमीनो एिसड्स की जरूरत पड़ती है िजनम से 8 को "जरूरी" समझा जाता है क्य िक ये शरीर म नह बनते। अलोवेरा म ये सभी आठ जरूरी एिमनो एिसड्स होते ह, साथ ही इसम बाकी 14 म से 11 "अ ाथिमक" एिमनो एिसड्स भी िमलते ह। एलो वेरा म िवटामीन ए, बी1, बी2, बी6, बी12, सी एवं ई भी होते ह। त्वचा पर अच्छे भाव के कारण अलोवेरा को युवावस्था बनाए रखने म मददगार माना जाता है। नीम र को साफ करने के गुण के िलए जाना जाता ह। जड़ी-बुटी के ज्ञाता इसकी पि य को चबाने, सूखी पि य को कै प्सूल के रुप म लेने, या इसकी चाय बनाकर पीने की सलाह देते ह। ये पाचन णाली को दुरुस्त करता है, िजगर को ठीक रखता है और शरीर के रोग- ितरोध क्षमता को बढ़ाता है। ये बैक्टीिरया और फफूं द सं मण के साथ साथ बाकी परजीिवय का खात्म करने म बेहद कारगर है। इसकी वायरस- ितरोधी क्षमता से घाव और ठं ड म िनकलने वाली फुं िसय का इलाज होता है। आधुिनक भारत म आयुवद का विस्थत िवकास वैसे तो भारतीय लोग के िलए आयुवद का पिरचय देने की जरूरत नह पड़ती। हाल के वष तक आयुवद का इस्तेमाल लगभग सभी घर म िकया जाता था। लेिकन आधुिनक िचिकत्सा प ित (एलोपैथी)के आगमन के साथ 5,000 वषर् पुरानी, व की चुनौती पर खरा उतरने वाली, पारं पिरक औषिध णाली हािशये पर चली गई। आयुवद की िस्थित म बदलाव का मुख कारण ि िटश हुकू मत के आगमन को माना जा सकता है। हालांिक वषर् 1947 म अं ेज को हमने बाहर कर िदया, लेिकन औषिध णाली पर पि मी भाव अभी तक बना हुआ है। आजादी के बाद की नीितयां, कायर् म एवं िशक्षा णाली भी एलोपैथी के पक्ष म बनाई गईं, िजससे इसे आम लोग म – खासकर शहरी इलाक म – लोकि य बनाने म काफी मदद िमली। लेिकन महंगी होने के कारण एलोपैिथक प ित ामीण इलाक म, जहां ज्यादातर भारतीय रहते ह, अपनी ज्यादा पहुंच नह बना पाई। भारत सरकार ने देश के स्वास्थ्य सेवा म इस असंगित को पहचाना एवं इसे ठीक करने के उपाय की शुरुआत की। माचर् 1995 म भारतीय िचिकत्सा प ित एवं होम्योपैथी िवभाग की स्थापना हुई। बाद म नवंबर 2003 म िवभाग का नाम बदलकर अयुष िवभाग (AYUSH-यािन आयुवद, योग, युनानी, िस और होम्योपैथी) कर िदया गया। अयुष िवभाग का मुख्य उ ेश्य आयुवद, योग, ाकृ ितक िचिकत्सा, युनानी, िस और होम्योपैथी िचिकत्सा णािलय म िशक्षा एवं अनुसंधान पर ध्यान देना है। िवभाग अयुष के िशक्षा स्तर म उ यन, औषिधय का मानकीकरण एवं गुणव ा सुधार, औषधीय पौध की उपलब्धता सुधारना, अनुसंधान एवं िवकास और देश-िवदेश म इन णािलय की भावकािरता के बारे म जागरुकता पैदा करना है। 27 आज लगभग सभी राज्य सरकार म अयुष िवभाग ह जो पारं पिरक भारतीय औषिधय को मुख्यधारा म लाने के यास म लगे हुए ह। इससे भी ज्यादा अहम बात ये है िक देश म 252 आयुवद मेिडकल कॉलेज ह (िनजी एवं सरकारी) जो हजार छा को ातक एवं ात्को र स्तर की िशक्षा दान कर रहे ह। देश म आयुवद को मजबूती दान करने के िलए अयुष िवभाग ने जो कदम उठाए ह उनम क ीय आयुवद एवं िस अनुसंधान पिरषद (CCRAS) और रा ीय औषधीय वनस्पित बोडर् (NMPB) की स्थापना शािमल है। CCRAS की स्थापना आयुवद और िस प ितय म वैज्ञािनक आधार पर अनुसंधान के समन्वय एवं चार के िलए की गई है। NMPB की स्थापना नवंबर 2000 म की गई और इसे औषधीय वनस्पित से जुड़े सभी मु के समन्वय का अिधकार िदया गया है िजनम इनके संरक्षण एवं खेती से जुड़े नीित-िनधार्रण शािमल है। ापार, िनयार्त, रा ीय ामीण स्वास्थ्य िमशन (2005–2012) भारत सरकार का एक मुख कायर् म है। NRHM का उ ेश्य पूरे देश के ामीण इलाक म भावकारी स्वास्थ्य सेवा मुहय ै ा कराना है। इस िमशन के तहत उन 18 राज्य पर खास ध्यान िदया जाना है िजनम जन स्वास्थ्य से संबंिधत अधोसंरचना या जहां जन स्वास्थ्य संबंधी संकेतक कमजोर ह। िमशन के कई उ ेश्य म एक उ ेश्य जो आयुवद से जुड़ा हुआ है वो है पारं पिरक एवं अयुष औषिध णािलय को मजबूत कर इन्ह जन स्वास्थ्य णाली की मुख्यधारा म जोड़ना। सरकार एवं कई गैर-सरकार संगठन के यास से आयुवद धीरे -धीरे ही सही अपने पुवर्वत स्थान को हािसल करने की ओर अ सर है। आयुवद को लेकर जागरूकता फै लाने की एक गितिविध का यहां वणर्न करना जरूरी है। गैरसरकारी संस्था िवज्ञान भारती ारा आयोिजत िव आयुवद महासभा एवं आरोग्य दशर्नी – िजसे अयुष िवभाग का समथर्न हािसल है – आयुवद से जुड़ा एक बड़ा ोमो ल कायर् म है िजसम रा ीय और अंतररा ीय स्तर के सभी िहस्सेदार शािमल होते ह। इस महासम्मेलन की शुरुआत 2002 म हुई और इसे हर दूसरे साल आयोिजत िकया जाता है। इसका पांचवा संस्करण भोपाल, मध्य देश म 7-10 िदसम्बर 2012 को आयोिजत होगा। हर महासम्मेलन के दौरान आयोिजक आरोग्य दशर्नी – िजसम आयुविदक उत्पाद, िचिकत्सा िविध एवं िशक्षण संस्था का दशर्न िकया जाता है – लाख लोग म जागरूकता फै लाती है। आज भारत सरकार दूसरे देश म भी आयुवद का चार सि य रुप से करती है। XXX भारत के पारं पिरक, गैर-पारं पिरक एवं स्वच्छ ऊजार् ोत ऊजार् िवकास की अपिरहायर् जरूरत है। अनुसंधानकतार् आपको बताएंगे िक िजस समाज म ित ि ऊजार् की खपत ज्यादा होती है उसम जीवन की गुणव ा बेहतर होती है। मानव इितहास म जब भी हमने जीवनशैली म अ त्यािशत सुधार िकया है तब हमारी ऊजार् खपत म अच्छी खासी बढ़त दजर् की गई है – चाहे जब मानव ने गांव बसाकर रहना शुरू िकया या िफर औ ोिगक ांित के दौरान। एक िवकासशील देश के तौर पर भारत ऊजार् खपत के मामले म पिरवतर्न के दौर से गुजर रहा है, और अ सर िवकास के कारण हमारी ऊजार् जरूरत बढ़ती जा रही ह। ऊजार् की बढ़ती मांग और ऊजार् सुरक्षा की िचता ने हम ऊजार् के वैकिल्पक ोत तलाशने पर िववश िकया है। हमारे पास पयार् कोयला भंडार है इसिलए हमारी 50 ितशत ऊजार् जरूरत कोयला से पूरा होती ह। लेिकन हमारे पास पे ोिलयम भंडार की कमी है और हम अपनी जरूरत का 70 फीसदी पे ोिलयम आयात करना पड़ता है। गैर पारं पिरक ऊजार् ोत की तलाश की एक और वजह यह है िक हम िवदेशी तेल पर अपनी िनभर्रता कम करना चाहते ह। यही पर हमे अक्षय और गैर-पारं पिरक ऊजार् ोत की जरूरत महसूस होती है। हालंिक यह बता पाना मुिश्कल है िक िव की जीवाश्म ईंधन के भंडार कब खत्म ह गे, लेिकन इनका खत्म होना तो तय ही है। कु छ आंकलन के मुतािबक ये भंडार अगले दो दशक म कम पड़ने लगगे जबिक कु छ अन्य के मुतािबक हमारे पास अगले दो शतािब्दय के िलए 28 पयार् भंडार मौजूद ह। भिवष्य के भरोसेमंद ऊजार् ोत के िलए हम कोयला और पे ोिलयम को भूलकर ऊजार् के अन्य ोत की तलाश करनी होगी जो या तो िबलकु ल नए ोत ह गे या िफर ऐसे ोत ह गे जो पुराने ह लेिकन िजनके बार म हम भूल चुके ह। अक्सर, गलती से ‘अक्षय’ और ‘गैर-पारं पिरक’ शब्द को एक-दसरे के बदले इस्तेमाल िकया जाता है। अक्षय ऊजार् ोत वो है िजसकी समय-समय पर भराई की जा सके । ऊजार् के कई जांचे-परखे एवं िव सनीय ोत जैसे लकड़ी, लकड़ी का कोयला और जैव-कचरा अक्षय ह। पुराताित्वक खुदाई म पौरािणक िव के ऐसे कई धातु कारखान का पता चला है िजनकी भि यां जंगल के िहस्स का अक्षय रुप से इस्तामल कर हजार साल के िलए जली रहती थ । िकसी अक्षय ऊजार् ोत का न तो गैर-पारं पिरक होना जरूरी है और न ही स्वच्छ होना। गैर-पारं पिरक ऊजार् ोत वो ह िजनका पुराने जमाने म इस्तेमाल नह हुआ हो। इसिलए इनके इस्तेमाल की ौ ोिगकी का िवकास िकया जा रहा है और वैज्ञािनक इनके उपयोग ि या को और कु शल बनाने का सतत यास कर रहे ह। ऐसे ऊजार् ोत के उदाहरण ह पनिबजली, सौर फोटोवोिल्टक संयं और परमाणु ऊजार्। एक बात हम याद रखनी होगी िक कोयला और पे ोिलयम अचानक ही ऊजार् के सवर् ापक ोत नह बन गए। उ ीसव शताब्दी से शुरू हुए ापक अनुसंधान और वैज्ञािनक योगदान ने इन दोन ोत को िव सनीयता और बड़े पैमाने पर इस्तेमाल के इस मुकाम तक पहुंचाया। इसिलए इस बात म कोई आ यर् या हैरानी नही होनी चािहए िक गैर-पारं पिरक ऊजार् ोत के िवकास म भी इसी मा ा म अनुसंधान एवं धैयर् की जरूरत हो। िकसी गैर-पारं पिरक ऊजार् ोत का स्वच्छ या अक्षय होना जरूरी नह है – इसका सबसे सामान्य उदाहरण है परमाणु ऊजार्। भारत के पास अपना सुिवकिसत, स्वदेशी परमाणु ऊजार् कायर् म के साथ साथ थोिरयम के रुप म जनक िरएक्टर के िलए चूर मा ा म ईंधन भी है। हालांिक परमाणु ऊजार् संयं के उत्पदान च के दौरान कोई दूषक नह िनकलता, लेिकन समस्या की शुरूआत इस्तेमाल हो चुके परमाणु ईंधन रॉड्स से होती है। अब इनका इस्तेमाल ऊजार् उत्पादन के िलए नह हो सकता, लेिकन ये अभी भी बेहद रे िडयोएिक्टव होते ह िजससे उनके िनस्तारण म िद त आती ह। वतर्मान म इन रॉड्स को गहरे खदान या जमीन के काफी नीचे ग म कांि ट के अंदर दबा िदया जाता है जहां से इनका िविकरण िकसी जीव को भािवत नह कर सकता। लेिकन चूंिक कु छ रे िडयोएिक्टव पदाथर् हजार साल तक सि य बने रहते ह, इसिलए उम्मीद है िक इससे बेहतर तकनीक की खोज संभव होगी। िकसी परमाणु ऊजार् संयं म दुघर्टना का िनकटवत इलाक पर पड़ने वाले भाव के बारे सोच कर ही डर लगता है, लेिकन संयं के िडजाइनर इन खतर से भली-भाित अवगत ह इसिलए वो सामान्य ऊजार् संयं के मुकालबे िकसी परमाणु ऊजार् संयं को और ज्यादा सुरिक्षत और मजबूत बनाते ह। भारत म तीन ऊजार् स्वरुप – अक्षय, गैर-पारं पिरक एवं स्वच्छ – के िवकास की अपार क्षमता है। लेिकन ज्यादातर अनुसंधानकतार् का मानना है िक अक्षय ऊजार् ोत की ओर बढ़ने का अिभयान जीवाश्म ईंधन के खत्म होने से ज्यादा उसका पयार्वरण पर पड़ने वाले हािनकारक भाव के कारण होगा। इसिलए यहां हम अपनी चचार् स्वच्छ एवं अक्षय ोत तक सीिमत रखगे। भारत म पनिबजली के िवकास की सीिमत संभावनाएं ह और इसम से ज्यादातर का दोहन िकया जा चुका है। वतर्मान म अितसू म-पनिबजली पिरयोजना पर ज्यादा जोर िदया जा रहा है। मुख्यतौर पर ये छोटे हाइ ो-टबार्इन ह गे जो छोटी या बड़ी निदय पर लगे होग िजनके िलए िवशाल बांध बनाने की जरूरत नह होगी और ये नदी िकनारे िस्थत िकसी गांव की ऊजार् जरूरत को पूरा कर पाएंगे। ऐसे टबार्इन्स की एक ृंखला कई गांव की ऊजार् जरूरत को पूरा कर सकगे। भारत म अक्षय ऊजार् की ज्यादातर क्षमता पवन ऊजार् के िवकास म है। पवन ऊजार् के संदभर् म देश के बड़े िहस्से म सवक्षण अभी िकया जा रहा है। संभव है िक हमारे पास पहले के अनुमान से ज्यादा क्षमता हो। वषर् 2012 के मध्य तक देश म 17 िगगावाट (1 GW = 10,00,000 kW) पवन ऊजार् उत्पादन क्षमता स्थािपत हो चुकी है। 29 कै प्शन: पवन ऊजार् फामर् उष्ण किटबंध के िनकट होने के कारण भारत म धूप चूर मा ा म िमलता है। लेिकन मॉनसून की लागातार वषार् के कारण देश म ऐसे काफी कम इलाके ह – जैसे िक राजस्थान और गुजरात के कु छ िहस्से – जहां िनिव रुप से धूप िमलता हो िजससे िबजली पैदा की जा सके । वतर्मान म सभी सौर ऊजार् पिरयोजनाएं फोटोवोिल्टक आधार पर स्थािपत ह, जबिक िदल्ली चे ई और बगलुरु जैसे शहर म छोटे सौर उपकरण लगाए गए ह जो घर , अस्पताल और होटल म गमर् पानी देने, जल शु ीकरण और अन्य तापन जरूरत को पूरा करते ह। भिवष्य म राजस्थान के कु छ इलाक म बड़े पैमाने पर सौर-ताप िबजली पिरयोजनाएं स्थािपत करने की योजना है। ऐसे संयं सौर ऊजार् से जल को वाष्प म बदल दगे िजससे टबार्इन चलाकर िबजली पैदा की जा सके गी। हालांिक सौर ऊजार् के िवकास के अवरोधक – बड़ा शुरुआती िनवेश और एक बड़े क्षे की जरूरत – यहां भी आड़े आएंगे। ऊजार् उत्पादन एक और साध्य तरीका है जैिवक कचरे को ऊजार् म बदलना। इस संदभर् म हमने देश के कई गांव म ायौिगक आधार पर बायोगैस संयं लगाकर थोड़ी सफलता पाई है। जैिवक पदाथर् और कचरे से ऊजार् उत्पादन के नए तरीक के िवकास के िलए अनुसंधान चल रहा है। इसका एक तरीका है िसनगैस, िजसका इस्तेमाल आगे चलकर हाइ ोकाबर्न और कृ ि म पे ोिलयम बनाने के िलए िकया जा सकता है। ऊजार् के इस्तेमाल का िबजली उत्पदान के अलावा एक और महत्वपूणर् पहलू है पिरवहन। इस क्षे म भी नए इं धन का िवकास हुआ है िजससे आयाितत पे ोल पर हमारी िनभर्रता खत्म हो सके । वैकिल्पक ईंधन के तौर हम एलपीजी, कं ेस्ड नैचुरल गैस (सीएनजी), और सीएनजी एवं हाई ोजन के िम ण का इस्तेमाल करत ह। भिवष्य की योजना म पे ोल इं जनो म भी हाइ ोडजन का इस्तेमाल शािमल है। जैिवक डीज़ल –जो ज ोफा, करं जा और यहां तक शैवाल के तेल से ा िकया जाता है – का वतर्मान म सीिमत इस्तेमाल डीजल के साथ 20:80 के अनुपात म िकया जाता है। वैकिल्पक ईंधन का जीवाश्म ईंधन के मुकाबले वातावरण पर ितकू ल भाव नगन्य है। नए ऊजार् ोत के िवकास और खोज के समानांतर ही मौजूदा संसाधन के िकफायती इस्तेमाल की जरुरत है। जीवाश्म ईंधन का िवकल्प रात रात तो तैयार हो नह सकता। इसिलए व की जरूरत है िक ऊजार् का िकफायती इस्तेमाल हो और अनावश्यक इस्तेमाल बंद हो। हम और ज्यादा कु शल रे ि जेटर और एयर कं डी र की जरूरत है। हम ज्यादा दक्ष काश णािलय के साथ साथ ऐसे स् ीट लाइट की जरूरत है जो मौजूदा काश के आधार पर खुद चालू और बंद हो जाएं। हम ऐसे ऊजार् संयं की जरूरत है जो कोयले को पूरी तरह जलाए और कम से कम दूषण फै लाए। जैसे जैसे हम इन ल य की ओर बढ़ते जाएंगे, हम लंबी अविध की ऊजार् सुरक्षा जरूर हािसल कर पाएंगे। XXX भारत म स्वास्थ्य और औषिध भारत की एक अरब से भी अिधक आबादी के िलए सामथ्यर् के अनुकूल स्वास्थ्य देखभाल दान करना स्वास्थ्य समुदाय , िनवेशक और अन्य सेवा दाता के िलए ापक चुनौितय के समान है | भारतीय सरकार और िनजी कं पिनय ारा ोत्सािहत अिभनव ौ ोिगिकय , ि या तथा साझेदािरय ने स्वास्थ्य-देखभाल अंतराल को खत्म करना शुरू कर िदया है | गरीब के िलए स्वास्थ्य िनवेश कवरे ज और छोटे कस्ब म अस्पताल-िनमार्ण से लेकर सुरिक्षत पेय जल और उपचार म सुधार से जुडी ौ ोिगिकय के इस्तेमाल तक अनेक मोच पर यास चल रहे ह | वषर् 2015 तक भारत का स्वास्थ्य-देखभाल क्षे के ित वषर् 20% की दर से वतर्मान के 65 िबिलयन अमेिरकी डालर से बढ़कर 100 िबिलयन अमेिरकी डालर तक पहुँचने की संभावना है | इस क्षे म वृि को भािवत करने वाले 30 कारक म मुख ह बढ़ती हुई आबादी, जीवनशैली से जुड़े स्वास्थ्य मसले, उपचार की सस्ती लागत, मेिडकल टू िरज्म पर जोर, स्वास्थ्य बीमा पर बल देने म सुधार, िनस्तारणीय आय म वृि , सरकारी पहल, तथा सावर्जिनक-िनजी पाटर्नरिशप (पीपीपी) माडल पर ध्यान देना | 1911 म ि िटश हुकू मत की भारत सरकार ने देश म िचिकत्सा अनुसंधान के ायोजन तथा समन्वयन के िविश उ ेश्य के साथ इं िडयन िरसचर् फं ड एसोिसयेशन (आईआरएफए) की स्थापना िकया था | आजादी के बाद, आईआरएफए के संगठन और गितिविधय म अनेक महत्वपूणर् पिरवतर्न िकए गए | इसके काय की ापक संभावना को म ेनजर रखते हुए 1949 म इसका नाम बदलकर इं िडयन क िसल आफ मेिडकल िरसचर् (आईसीएमआर) कर िदया गया | नई िदल्ली िस्थत आईसीएमआर जो िक जैविचिकत्सा अनुसंधान म फामुर्लेशन, समन्वय और ोत्साहन हेतु भारत की शीषर् संस्था है, यह दुिनया की सबसे पुरानी िचिकत्सा अनुसन्धान संस्था म से एक है | आईसीएमआर को स्वास्थ्य और पिरवार कल्याण मं ालय के स्वास्थ्य अनुसंधान से अनुदान ा होता है | क िसल की अनुसंधान ाथिमकताएं िजन रा ीय स्वास्थ्य ाथिमकता से जुड़ी हुई ह उनम मुख ह संचारी रोग का िनयं ण और बंधन, जनन िनयं ण, मां और ब े का स्वास्थ्य, पोषण संबंधी गडबिडय का िनयं ण,स्वास्थ्यदेखभाल दान करने के िलए वैकिल्पक रणनीितय का िवकास, पयार्वरणीय और वसायगत स्वास्थ्य समस्या की सुरक्षा सीमा के अंदर समावेशन, कसर, हृदय-संवहनीय रोग, अंधापन, मधुमेह, तथा अन्य उपापचयी व िहमेटोलोिजकल िडसआडर्र जैसे मुख असंचारी रोग ; मानिसक स्वास्थ्य अनुसंधान तथा औषिध अनुसन्धान (परम्परागत उपचार सिहत) | ये सभी य बीमािरय के कु ल बोझ को घटाने तथा आम जन के स्वास्थ्य और कल्याण के ोत्साहन िकए जा रहे ह | आईसीएमआर के शासी िनकाय की अध्यक्षता के न् ीय स्वास्थ्य मं ी करते ह | वैज्ञािनक और तकनीकी मामल म उन्ह एक वैज्ञािनक सलाहकार बोडर् सहयोग करता है िजसम जैव िचिकत्सा के िविभ क्षे से ख्यात िवशेषज्ञ होते ह | क िसल के 32 अनुसंधान संस्थान /के न् /इकाईय के जिरये वतर्मान म अंतरं ग (इं ाम्यूरल) अनुसंधान संचािलत िकए जा रहे ह | संस्थान का सृजन करने के अलावा स्वास्थ्य-संबंधी कायर् म को संचािलत करना भी उतना ही महत्वपूणर् है | रा ीय ामीण स्वास्थ्य िमशन (2005-2012) भारत सरकार ारा चलाया गया एक ऐसा ही कायर् म जो देश के ामीण क्षे पर कि त है | यह िमशन ामीण भारत को बेहतर स्वास्थ्य दान करने के िलए एक समेिकत दृि कोण अपना रही है | अच्छे स्वास्थ्य के कु छ िचिह्नत िनधार्रक ह पोषण, स्वच्छता, स्वास्थ्य-िवज्ञान और सुरिक्षत पेय जल | स्वास्थ्य देखभाल हेतु भारतीय औषिध तं को मुख्य धारा म लाना भी इसका ल य है | एनआरएचएम का उ ेश्य आमजन खासकर जो ामीण इलाक म रहते ह, िनधर्न, मिहला और ब को गुणव ापरक स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध कराना है | भारत तेजी के साथ एक वैि क स्वास्थ्य ल य बन रहा है | अमेिरका, यूनाइटेड कगडम और अनेक एिशयाई देश से भी अब लोग िनजी स्वास्थ्य देखभाल के िलए भारत आ रहे ह | जबिक बांग्लादेश और पािकस्तान जैसे देश से मरीज मुख्यतः पीिडयाि क कािडयक सजर्री या लीवर ांसप्लांट जी ि या के िलए आते ह | िवकिसत देश से मरीज यहां पर ती , कु शल और सस्ती कोरोनरी बाइपास या आथ पेिडक उपचार के िलए आते ह | भारत िचिकत्सा उपचार और अनुसंधान की नवीनतम िविधय को सतत रूप से अपना रहा है | हालांिक, वैि क स्वास्थ्य मानक को छू ने म हम अभी और काम करने ह | यहां पर िनचे आधुिनक ौ ोिगिकय की एक सूची दी गयी है िजनके िवकास म भारत सतत गित कर रहा है | िसस्टम बायोलाजी: िसस्टम बायोलाजी आनुवंिशकी, जीव-रसायन, बायोइं फामिटक्स, कं प्यूटर माडिलग और डाटा िव ेषण से िमलकर बना हुआ एक अंतर-अनुशासन का क्षे है | हमारे शरीर की जैवीय जिटलता िकसी भी जिटल कृ ि म णाली से भी जिटल होती है | आणिवक स्तर पर इस जिटलता को समझने के िलए हम जीन, ोटीन, और इन्फाम ल पाथवे िरस्पांस की िनगरानी जैसी ि या के समेकन ारा जैवीय तं के अध्ययन; इन आंकड को समेिकत करना; और अंततः इन णािलय की संरचना की ाख्या वाले गिणतीय माडल का िनमार्ण तथा लोग म इनकी िति या जानने की आवश्यकता है | डाटा इं टी ेशन का यह सम दृि कोण दवा के िवषा ता िव ेषण, रोग पहचान, उपापचयी िफन्गाि िन्तग तथा मुलभुत जीव िवज्ञान के क्षे म हम बेहद अहम् जानकािरयां दे सकता है | भारत म यह क्षे नया है और अभी के वल कु छ संस्थाएं ही इस पर काम कर रही ह | 31 स्टेम सेल अनुसध ं ान: अिस्थ-म ा और अिम्बिलकल काडर् सिहत अनेक स्टेम सेल के ोत के सफल इस्तेमाल ारा 1988 से असंख्य जानलेवा बीमािरय का अच्छे पिरणाम के साथ स्टेम सेल िथरे पी का योग िकया जा रहा है | िवगत कु छ वष के दौरान, अनुसंधान और िवकास गितिविधय म वृि के साथ भारत म अनेक कामयाब स्टेम सेल इलाज िकए गए ह | स्टेम सेल उपचार िविध म अनेक जानलेवा रोग के सफल इलाज की क्षमता है | नवीन ग िडलीवरी तकनीक: गोली, आई ाप, मरहम और अन्तः िशरा िवलयन दवाएं देने के परम्परागत स्वरूप ह िजन पर हम भरोसा करते ह | इधर हाल म दवा योग की अनेक नई िविधयाँ िवकिसत कर ली गयी ह | इन िविधय म शािमल ह रासायिनक तरीक से दवा म बदलाव, छोटे पा म दवा को संिचत कर उन्ह र धारा म छोडना, पम्प या पिलमेिरक पदाथ म दवा को संिचत कर वांिछत शरीर के अंग (उदाहरण के िलए आंख या त्वचा के नीचे) म भेजना | ये तकनीक पहले से ही ऎसी िडलीवरी णाली पर कायर् कर रहे ह जो मानव स्वास्थ्य म सुधार लाते ह | इसके अलावा, इस क्षे म सतत अनुसंधान अनेक दवा की िडलीवरी णाली म ांितकारी बदलाव ला सकते ह | उ क अिभयांि की, पुनरुत्पादन और BIOMEMS, बाडी इमेिजग म अनुसंधान (T िकरण, पोटबल MRIs, आिद), जेनेिटक स् ीिनग और उपचार जैसे भी कु छ अन्य क्षे ह िजनम भारतीय िचिकत्सा संस्थान तथा अनुसंधानकतार् गहरी िदलचस्पी ले रहे ह | XXX भारत म कृ िष, जैव ौ ोिगकी, और नैनोटे ोलाजी कृ िष भारत एक कृ िष धान देश है | आज भी यह वाक्य उतना ही सच है िजतना िक यह आज से 60 साल पहले सच था जबिक आज हमारी अथर् वस्था का सबसे बड़ा िहस्सा कृ िष िनधार्िरत नह करता | आज की हमारी अथर् वस्था म रा ीय आय का एक बड़ा िहस्सा सेवा क्षे से आता तो है मगर हमारी ि याशील आबादी का सबसे बड़ा िहस्सा कृ िष तथा इससे संबंिधत गितिविधय म संल है | अिधकांश भारतीय अभी तक देश की भूिम म खेती करके अपनी जीिवका का िनवार्ह करते ह | दो पहलू ह जो कृ िष क्षे को हमारे देश के िलए महत्वपूणर् बनाते ह | इसम पहला पक्ष है खा आयात पर िनभर्र हुए िबना अपनी बढती आबादी का पेट भरने की आवश्यकता | दूसरा पहलू उस बात से संबंिधत है िजससे िकसी भी अथर् वस्था की मूलभूत शि जुड़ी होती है | वही,ँ महत्व संवधर्न (सेवा कर के समान) पर आधािरत आिथक गितिविधय के जिरये लघु-अविध वृि हािसल की जा सकती है, जबिक िकसी अथर् वस्था की दीघर्-अविध वाली सेहत के िलए उत्पाद (जैसे िक कृ िष) िनमार्ण वाले ाथिमक क्षे के सश िकए जाने की जरुरत है | जब भारत को आजादी िमली थी तब हमारा कृ िष क्षे िसचाई सुिवधा की कमी, भूिम के असमान िवतरण, उत्पादन म सुधार के िलए ौ ोिगकी का लगभग शून्य उपयोग जैसी अनेक समस्या और चुनौितय से जूझ रहा था | अपने देश की आबादी का पेट भरने के िलए हम अनाज के आयात पर बेहद िनभर्र थे | आबादी के बढ़ने के साथ-साथ यह दशा और भी िबगड़ती चली गयी क्य िक कृ िष उत्पादन ने आबादी बढ़ने की गित से तालमेल नह िबठा सकी | भुखमरी के कारण मौत आम बात हो गय | यह सभी जानते थे िक अपनी आबादी का पेट भरने के िलए हम हमेशा ही आयाितत अनाज पर िनभर्र नह रह सकते | सबसे पहले तो यह बात थी िक िजस कार अंतरार् ीय सम्बन्ध लगातार बदल रहे थे, उसम अनाज को आयात करने के िलए िकसी देश पर अनेक वष तक िनभर्र नह रहा जा सकता था | वही ँ दूसरी ओर, अनाज को आयात कर हम मूल्य म वृि के दर पर िनयं ण नह रख सकते थे | हालांिक, 1960 के दशक तक भारत म यह िस्थित अि तीय नह थी | तीसरी दुिनया के असंख्य देश ने हाल म ही आजादी पाई थी और वे सभी अपने लोग का पेट भरने के िलए संघषर् कर रहे थे | ऐसे समय म, गेहूं की बौनी जाितय के वेश से तथा हिरत ािन्त म रासायिनक उवर्रक के उपयोग ारा िसचाई सुिवधा के िवस्तार के माध्यम से ऐसा माना जाता है िक दुिनया की एक-ितहाई आबादी की िजदिगयां बचाई गय | इस ािन्त का ी िजस आदमी को िदया गया वह थे डॉ. नामर्न बोलार्ग | 32 हिरत ािन्त का एक ारूिपक नतीजा भारत म गहूँ की बौनी ाजितय का वेश हमारी कृ िष के क्षे म मील का पत्थर सािबत हुआ और हम वहां से आगे की ओर बढ़े | कृ िष उत्पादन म वृि के िलए उ -उपज वाली फसल िकस्म के उपयोग सिहत अनेक नयी तकनीक का सहारा िलया गया | इस मुहीम म वैज्ञािनक के समूह को डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन ने नेतृत्व िदया और उन्ह ने इस िदशा म महत्वपूणर् भूिमका िनभायी | दूसरे कदम जो इस दौरान उठाये गए उनम शािमल थे : िसचाई सुिवधा का िवकास, उवर्रक , कीटनाशक और पीडकनाशक का ापक इस्तेमाल, भूिम सुधार, चकबंदी के अंतगर्त भूिम कब्ज का समेकन, भूिम की जुताई म यांि क उपकरण का उपयोग, फसल और फसल के बाद की ि याएं, कृ िष ऋण की आसान और सुगम उपलब्धता, तथा खेती की मशीन के संचलन के िलए ामीण क्षे म िव ुतीकरण | इसके साथ ही सरकार कृ िष िव िव ालय और अनुसंधान योगशाला को खोलने के क्षे म िनवेश कर रही है तािक हमारे िवकास का अगला चरण हमारे अपने यास और िजज्ञासा से संप हो | इस फै सले ने गहूं और चावल की नस्ल के िवकास के माध्यम से ापक स्वीकृ ित पाई है और ये नस्ल हमारी जलवायु तथा बाढ़ या सुखा जैसी मानसून की उथल-पुथल के िलए बेहद उपयु ह | आरम्भ म जो फसल िवकिसत िकए गए थे, वे अन्य देश म और वहां की पिरिस्थितय म िवकिसत िकए गए थे परं तु हमारे अनुसंधानकतार् ने ऐसे पिरविधत बीज का िवकास िकया है जो स्थानीय फसल म सामथ्यर् और कीट ितरोधन क्षमता दान करते ह | इसके फलस्वरूप, बेहतर उपज िमलती है और िकसान के जोिखम म भी कमी दजर् होती है | दुभार्ग्य से, हिरत ांित के लंबे समय बाद कृ िष क्षे म हमारे दृि कोण म बहुत थोड़े से ही बदलाव आये और इसके फलस्वरूप हमारे देश की पैदावार बुरी तरह भािवत हुई | ऐसा उन उ -उपज वाली फसल के बावजूद था िजनके बारे म हमने पहले बात की | हमने िपछले कु छ दशक म यही महसूस िकया िक उत्पादन के अंतगर्त आने वाली कु ल भूिम म कमी आई है, हमारी आबादी इतनी तेजी से बढ़ी है िजतनी कभी नह बढ़ी थी और इसके बावजूद हमारी कृ िष उपज इस आबादी का पेट भर पाने म सक्षम है | दुभार्ग्यवश, ऐसा हमारे खेत म रसायन के लंबे इस्तेमाल के कारण संभव हो सका है | अपने खेत को पुनः कृ िष योग्य बनाने के िलए िकसान िकसी ाकृ ितक खाद या फसल च ण पर लंबे समय तक िनभर्र नह रहते | इसके फलस्वरूप, कृ ि म रसायन के लंबे इस्तेमाल से िम ी म क्षरण उत्प हुए तथा खर-पतवार, कीट-पतंग की ितरोधन-क्षमता म वृि हुई | अब दूसरी हिरत ािन्त के िलए एक आदशर् समय है | िपछले दशक के दौरान कृ िष वैज्ञािनक ने रासायिनक उवर्रक तथा कीटनाशक के जैिवक िवकल्प पर कि त शोध म जुटे रहे ह और उन्ह उिचत कामयाबी भी िमली है | िसचाई सुिवधा म भी अपेिक्षत सुधार हुए ह और भूिमगत जलस्तर को िस्थर रखने के ित भी लोग अब पहले से अिधक जागरूक हुए ह | हमारा ल य है िक हमारे खेत मानसून पर कम िनभर्र रह और इस तरह हम इस जोिखम भरे कारक के उन्मूलन ारा फसलोत्पादन को सुिनि त कर सकगे | िनभर्रतायोग्य िव ुत आपूित से ामीण िव ुतीकरण के कायर् को पूरा करने तथा रे न वाटर हाविस्टग जैसी तकनीक के इस्तेमाल ारा भूिमगत जल के रीचाजर् पर कि त पहल की जा रही है | देश के कृ िष अनुसंधान संस्थान और अकादिमक संस्थान िकसान के साथ िनकटता से जुडकर शोध कायर् करते रहे ह तथा उनके िलए ल य-िवशेष समाधान को ा करने की कोिशश करते रहे ह | हमारे पास अब बेहतर उवर्रक और कीटनाशक ह िजन्ह बेहद छोटी मा ा म इस्तेमाल िकया जाना है | कु छ खरपतवारनाशी होते ह जो िजनका सीिमत इस्तेमाल ही भावशाली होता है | कृ िष वैज्ञािनक के परामशर् म, िकसान अब बेहतर तरीके से यह तय करने म समथर् ह िक िकस कार के रसायन का कब और िकतना उपयोग करना है िजससे िक भूिम को अिधक दोहन िकए िबना अच्छीखासी उपज हम िमल सके | इसके फलस्वरूप हमारे खेत म रसायन का असंतुिलत इस्तेमाल कम हुआ है और इस कार 33 आस-पास के क्षे के जल संसाधन का सं मण भी घटा है | िम ी के परीक्षण और स्थानीय दशा के अनुकूल खेत के मूल्यांकन की वृि बढ़ रही है तथा इससे अनुसंधानकतार् िकसान को बेहतर मागर्दशर्न देने म सक्षम हुए ह | इसने खेती की ि या को और अिधक वैज्ञािनक बनाया है और इसके अलावा िकसान के ारा उवर्रक या कीटनाशक पर िकए जाने वाले िविश खच को भी कम िकया है | जैव ौ ोिगकी और नैनो ौ ोिगकी आज जैव ौ ोिगकी और नैनो ौ ोिगकी पर ापक तौर पर उम्मीद िटकी हुई है | मानवीय पहल को सुधारने म जीवधािरय का अनु योग जैव ौ ोिगकी ारा िकया जाता है | जब हम भारत म जैव ौ ोिगकी की बात करते ह तो ाथिमक तौर पर स्वास्थ्य और कृ िष क्षे म इसके उपयोग की हम बात करते ह | दवा के क्षे म इसका उपयोग बेहतर और सस्ती दवा , कसर, वैक्सीनेशन जैसी लंबे समय से चली आ रहे गंभीर रोग की िथरे पी और उनके पहचान करना होता है | कृ िष म, पौध के जीन म फे रबदल करके अिधक उपज वाले बीज का िवकास करना होता है और इसके अलावा जैव-कीटनाशक , जैव-उवर्रक का िवकास करना तथा खा संरक्षण व ोसेिसग की नई तकनीक इजाद करना है | खा संरक्षण बेहद जरूरी है क्य िक खराब भंडारण सुिवधा के चलते हम त्येक वषर् करीब 30 ितशत खा ा को न कर देते ह | जब डॉ. बोलार्ग ने गहूं की उ -पैदावार वाली नस्ल का िवकास िकया था तब वे फसल भी जेनेिटक तौर पर रूपांतिरत थ | मगर उन िदन ास- ीिडग और उत्पिरवतर्न के िलए बेहद किठन िविधय को इस्तेमाल म लाया जाता था | जैव ौ ोिगकी के वतर्मान ज्ञान के आधार पर वैज्ञािनक फसल को रूपांतिरत कर पाने म आज अिधक िविश तथा लिक्षत युि य के इस्तेमाल म सक्षम हो गए ह | इस कार की जाितयां जीएम (जेनेिटकली मोिडफाईड) या बायोटेक नस्ल कहलाती ह | जीएम कपास की नस्ल के इस्तेमाल म भारत को कु छ अच्छे अनुभव ह | इन नस्ल के उपयोग से पैदावार बढ़ी है और साथ ही साथ खेती म आने वाली लागत म भी कमी आई है | हालांिक िवशेषतः जीएम खा फसल के वेश से पहले बहुत अिधक शोध िकया जाना था | ये अपेक्षाकृ त नए िवचार ह और आम जन के स्वास्थ्य या पयार्वरण पर पड़ने वाले इसके दीघर् भाव की जांच अभी िकया जाना है | हालांिक भारत म इस कार की फसल की खेती तब तक नह होती है जब तक िक इस बात की अंितम रूप से पुि न हो जाए िक ये सुरिक्षत ह | दूसरी ओर, नैनो ौ ोिगकी अपेक्षाकृ त एक अनु ािटत क्षे है िजसम अब तक के वल सरकारी-अनुदान से अनुसंधान चल रहे ह | मगर इस क्षे से भी अपार संभावनाएं जुड़ी हुई ह | नैनो ौ ोिगकी एक बहुत सू म स्तर (मानव के एक बाल की मोटाई का एक हजारहवां गुना छोटा) की ौ ोिगकी होती है | इस स्तर पर, हालांिक पदाथर् की मौिलक संरचना सामान रहती है, पदाथ को एक साथ लाकर उनके असंख्य संरचनात्मक दोष दूर िकए जा सकते ह, इस ौ ोिगकी की मदद से उत् ेरक को और भी दक्ष बनाया जा सकता है और इससे दवा की सि यता को ती भी िकया जा सकता है | वतर्मान ल य आनुवंिशक सुधार, दूिषत जल संसाधन के उपचार म सहयोग, तथा िकट से पौध को पहले से अिधक ितरोधी बनाने म नैनो ौ ोिगकी को िनदिशत करना है | इन सबकी वजह से कृ िष उत्पादकता म अिभवृि होगी | भिवष्य म, हमारे पास नैनो कण पर आधािरत कीटनाशक ह गे िजनकी बहुत छोटी मा ा का िछडकाव े टेयर भूिम पर आसानी से िकया जा सके गा | हक् इन ल य को हािसल करने से पहले अनेक अडचन ह, िवशेषतः मानव स्वास्थ्य पर नैनो ौ ोिगकी और जैव ौ ोिगकी के दीघर्-अविध उपयोग का आंकलन | आज, भारत संभवतः सही रास्ते पर आगे बढ़ता हुआ तीत होता है और हमारा भिवष्य सुनहरा नजर आता है | XXX भारत म अंतिरक्ष एवं खगोल िवज्ञान वैिदक काल से लेकर वतर्मान समय तक भारत म खगोल िवज्ञान ने एक लंबा सफर तय िकया है | अब खगोिलकी म हमारे अंतिरक्ष अन्वेषण और अनुसंधान का नेतृत्व इसरो कर रहा है | जब भी कभी भारतीय खगोिलकी की बात होती है तो सबसे पहले जंतर मंतर की छिव मानस पटल पर उभर जाता है | सवाई जय िसह ारा अठारहव सदी म खगोलीय ेक्षण के िलए बनवाए गए ये िवशालकाय उपकरण भारत की ाचीन खगोिलकी सािहत्य पर आधािरत थे | कै लेण्डर को पिरविधत करने, मुख तार और ह की गित का 34 पूवार्नुमान लगाने के िलए एक बेहद सटीक सािरणी के िनमार्ण के िलए पांच जंतर मंतर िनिमत कराये गए थे | इनका इस्तेमाल समय के और अिधक मापन, हण के और सही पूवार्नुमान, तार की बेहतर ै कग तथा पृथ्वी के सापेक्ष ह की िस्थितय को समझना था | पुराने युग के खगोलशाि य ारा उपयोग िकए जाने वाले उपकरण के ाचीन िडजाइन पर ये उपकरण आधािरत थे – इन्ह इस िवशाल स्तर पर बनाए जाने का उ ेश्य इनकी सटीकता म वृि करना था | यहां पर कोई भी िव की सबसे बड़ी धूप-घड़ी देख सकता है और सूयर् की ित सेकेण्ड म होने वाली गित को भी देख सकता है | िदल्ली िस्थत जंतर मंतर राजा ने इन पाँच जंतर मंतर िनिमत कराये, यह एक महत्वपूणर् सबक हम िसखने को इनसे िमलता है | वह के वल एक का िनमार्ण करवाकर इनके पिरणाम से संतु हो सकता था | उन्ह ने पांच का िनमार्ण इसिलए करवाया तािक एक ेक्षणशाला (आब्जवटरी) के िनष्कष की पुि अन्य ेक्षणशाला से की जा सके | पुि की इस णाली की वजह से रीिडग लेते समय मानवीय भूल म कमी लायी गयी | ये पाँच ेक्षणशालाय पांच अलग-अलग शहर म िस्थत थ | इस कार पृथ्वी के अलग-अलग िहस्स से कोई भी ि अलग-अलग रीिडग लेकर उन पिरणाम की परस्पर जांच के ारा सावर्भौिमक िनष्कषर् तक पहुँच सकता था | इस कार की सोच हमारे अतीत के खगोलिवद म िनिहत वैज्ञािनक जांचपड़ताल की भावना की पुि करती है | जंतर मंतर की सोच के पीछे का आधार आयर्भ , वाराहिमिहर, भाष्कराचायर् आिद जैसे ाचीन भारतीय वैज्ञािनक के सािहत्य रहे ह | ाचीन भारतीय खगोिलकी का सबसे महत्वपूणर् सािहत्य 5व और 15व सदी के मध्य (भारतीय खगोिलकी का शा ीय युग) रचा िकया गया था | इन सािहत्य म पिरिचत नाम ह : आयर्भ ीय, आय्भार्ि स त ं , प -िस ािन्तका और लाघुभास्कयर्म | भारतीय खगोल वैज्ञािनक अनेक मामल म उल्लेखनीय थे | उन्ह ने कभी िकसी कार के दूरदश का इस्तेमाल नह िकया इसिलए उनकी उपलिब्धयां और भी रहस्यमयी हो जाती ह | उन्ह ने सौर मंडल के िलए सूयर्-क ीक िस ांत को लेकर अपने कायर् िकए | उन्ह ने वृ ाकार पथ के बजाय दीघर्वृ ाकार पथ का समथर्न िकया जो िक वषर् की लम्बाई और पृथ्वी के आयाम की सटीक गणना के िलए बेहद उपयु था | अपने आरम्भ के िदन म भारतीय खगोिलकी ीक और रोमन के िवचार से भािवत थे | बाद के समय म ापार और अन्य संपक के कारण हम चीन तथा इस्लाम के खगोिलकी से भािवत हुए | इस्लाम के जिरये भारतीय खगोिलकी के िवचार यूरोप म िव हुए थे | मध्यकालीन युग के दौरान खगोिलकी के क्षे म गित थीम सी गयी और उस समय खगोिलकी तथा ज्योितष शा का एक िमला-जुला रूप िवकिसत हुआ | ज्योितष के साथ इस संबंध ने भारतीय खगोिलकी को प ी से उतार िदया और ऐसे म समाज म अंध ा तथा अंधिव ास का बोलबाला हो गया | िदलचस्प बात है िक ऐसे समय और माहौल म भी इस िवधा म रूिच रखने वाले लोग राि -आकाश अवलोकन करते रहे और इस िवधा म सुधार लाते रहे | हालांिक उन्ह ने यह समझने की कोिशश छोड़ दी थी िक उनके अवलोकन का क्या अथर् है | उपिनवेशीकरण के साथ, यूरोपीय खगोिलकी ने हमारे देश की खगोिलकी का स्थान हण कर िलया | स्वाधीनता-पूवर् भारत का अंितम उल्लेखनीय खगोलिवद सामंता चं शेखर थे | उनकी पुस्तक िस ांत दपर्ण और सटीक अवलोकन करने वाले सरल उपकरण के उनके योग के कारण यहां तक िक ि िटश लोग ने भी उनकी सराहना की | वतर्मान युग म, भारतीय अंतिरक्ष कायर् म भौितकी के दो धुरंधर वैज्ञािनक होमी जहाँगीर भाभा और िव म साराभाई के योगदान के बल पर खड़ा है | यह उनके अनथक य का ितफल ही है िक परमाणु ऊजार् िवभाग के अंतगर्त महत्वपूणर् अनुसंधान कायर् आरम्भ हुए | खगोिलकी और अंतिरक्ष अन्वेषण के क्षे म त्यक्ष योगदान के िलए वेधशाला तथा और भी अनुसंधान योगशाला की स्थापना आरम्भ की गयी | इस दौरान भारत म कु छ अ णी खगोिलिकिवद और खगोल भौितक िवज्ञानी भी उभर कर सामने आये | मेघनाद साहा और सु मण्यम चं शेखर खगोल भौितक िवज्ञान के क्षे म दो िव -िवख्यात नाम ह | अवलोकन खगोिलकी के क्षे म डॉ. वेणु बप्पू का नाम आता है जो आज की तारीख तक एकमा भारतीय खगोलिवद ह िजनके नाम के साथ िकसी धूमके तु का नाम जुदा हुआ है | डॉ. बप्पू को 1979 से लेकर 1982 तक अंतरार् ीय खगोलीय संघ का अध्यक्ष चुना गया था | भारत म अवलोकन खगोिलकी को पुनस्थार्िपत करने के वह कारक रहे ह और इस िवधा को उन्ह ने बड़ी उं चाइयां दान क | वतर्मान म, पुणे के िनकट खोडाड िस्थत िजयांट मीटर-वेव रे िडयो टेलीस्कोप (जीएमआरटी) िव म 35 अपने तरह का सबसे बड़ा टेलीस्कोप है | कवलुर वेधशाला का नाम डॉ. बप्पू के नाम पर रखा गया है और पूव गोलाधर् म यह सवार्िधक सु विस्थत तथा सुसि त वेधशाला है | यहां पर 2.3 मीटर का एक एपचर्र आिप्टकल टेलीस्कोप है जो एिशया का सबसे िवशाल टेलीस्कोप है | वतर्मान समय म, भारतीय खगोल िवज्ञानी अपने पि मी सािथय के सहयोग से हमारी वेधशाला से अि तीय खगोलीय अवलोकन करते ह | भारतीय अंतिरक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) 1969 म एक पृथक संस्थान बन गया था | इसके बाद से इसका एक गौरवशाली सफर रहा है जो पहले भारतीय उप ह आयर्भ से लेकर हमारे चं िमशन चं यान-I तक पहुंचता है | इसरो के कायर् म समय के साथ और भी अिधक महत्वाकांक्षी होते चले गए ह | ठोस अनुसंधान और कठोर मेहनत से अबनी अपनी योजना के चलते उन्ह ने एक के बाद दूसरा मील का पत्थर हािसल िकया है | एक समय ऐसा भी था जब हम अपने उप ह को क्षेिपत करने के िलए दूसरे रा पैर िनभर्र रहते थे | पीएसएलवी सिहत जीएसएलवी, और जीएसएलवी एम III नामक लांच वेिहकल फ्लीट के अपने स्वदेशी सं ह की वजह से आज हम अन्य रा को सस्ती उप ह क्षेपण सुिवधा मुहय ै ा करवा रहे ह | इसके साथ ही साथ बेहतर उप ह भी क्षेिपत िकए गए ह िजनका संचार, िरमोट सिसग, इमेिजग, मौसम पूवार्नुमान और भौगोिलक अन्वेषण के क्षे म उपयोग िकया जा रहा है | इस कार के िवकास हमारे देश की गित म सतत रूप से शािमल ह | िव की छठव सबसे बड़ी अंतिरक्ष अन्वेषण एजसी के रूप म इसरो को अपार सम्मान और िव सनीयता हािसल है तथा अन्य देश के साथ इसने समधम एजिसय के साथ ि पक्षीय संबंध म भी सुधार लाये ह | मानव अंतिरक्ष िमशन, अगले चं अन्वेषण और मंगल पर एक ोब भेजने की योजना पर कायर् करना इसरो के भावी कदम ह | बहुत जल्द हम एक भारतीय को अपनी स्वदेशी ौ ोिगकी की मदद से अंतिरक्ष म भेजने म समथर् ह गे और इस कार हम वह कर सकगे जो कभी राके श शमार् ने सोिवयत िमशन का एक िहस्सा बनकर िकया था | िवज्ञान और इसकी अनेक शाखाएं मनुष्य पशु से अनेक मामल म अलग होते ह | मनुष्य अपनी सम् ेषण क्षमता और भाषा ज्ञान के कारण पशु से अलग होता है | इस क्षमता से हम एक से दूसरी पीढ़ी तक सूचना के आदान- दान का कौशल हािसल होता है | िविभ के सु विस्थत िव ेषण के िवकास हेतु यह क्षमता कमोबेश उ रदायी था | िकसी भी का सु विस्थत िव ेषण को िवज्ञान कहा जा सकता है | िकसी भी तरह से िवज्ञान को योगशाला या कक्षा तक समेटा नह जा सकता है | आपकी मां रसोई म िजस कार खाना पकाने के कौशल म िनरं तर िनपुण हो जाती ह वह कौशल उनम अनेक वष के योग और सजग अवलोकन से ा हुआ है और एक वैज्ञािनक भी योशाला म जो सतत योग करता है वह ि या इससे बहुत अलग नह होती है | एक बार कोई भी िजज्ञासा एक िवशेष तकर् संगत ि यािविध ारा िव ेिषत होती है और यह स्प है िक इस ि या म कु छ िवचार तथा जवाब इक े िकए जाते ह | इसके बाद िवज्ञान की दूसरी अि परीक्षा शुरू होती है : और यह है िक पिरणाम म बारं बारता तथा पुनारुत्पादकता के गुण होने चािहए | भारत की योशाला म एक वैज्ञािनक को समान पिरणाम असंख्य बार ा करने की क्षमता होनी चािहए | वही ँ उन्ह आधार संसाधन और उपकरण के इस्तेमाल के ारा जापान की योशाला म कायर्रत वैज्ञािनक को भी सामान पिरणाम िमलने चािहए | वैज्ञािनक सत्य सापेक्ष या िकसी के मत के अनुरूप नह हुआ करता | िवचार करते समय यह जानना आसान होता है िक वैज्ञािनक लेखन म जो बात िनकल कर आती ह वे लेखक के ि गत िवचार होते ह | हालांिक जब िकसी िति त वैज्ञािनक काशन म वैज्ञािनक ज्ञान के िकसी िहस्से को वास्तव म सािरत िकया जाता है तो इसका अनेक स्वतं अनुसंधानकतार् के ारा दोबारा सत्यापन होता है और िफर उन तथ्य को लेकर समस्त संबंिधत िव ान ता कक िवचार ि या के माध्यम से सहमत होते ह | इससे यह सुिनि त होता है िक ‘गलत िवज्ञान’ और ुिटपूणर् दाव को िकसी भी िनयत समय के िलए कायम नह रखा जा सकता है | वह ि िजसने पिहये का आिवष्कार िकया, िजसने आग को खोजा, वह समूह िजसने कृ िष की खोज की ये सभी वैज्ञािनक थे | आरं िभक ीकवािसय म गैलीिलयो और न्यूटन िजन्ह हम वैज्ञािनक कहते ह, उन्ह दाशर्िनक या कृ ितिवद कहा गया था | गैलीिलयो िक तरह आ किमडीज भी एक दाशर्िनक था जबिक डािवन एक कृ ितिवद था | वैज्ञािनक ज्ञान के िवकास के साथ-साथ िवज्ञान की और भी अिधक सुिनि त शाखाएं अस् व म आईं | भौितकी, रसायन िवज्ञान या जीव िवज्ञान जैसे िवभाग की परवाह िकए िबना आ किमडीज और अरस्तु जैसे ि य ने मानव ज्ञान की 36 समस्त शाखा म अपना योगदान िदया | गैलीिलयो, दा िवसी, के पलर और न्यूटन जैसे ि य के काल म भी इस वृि को देखा जा सकता है : इनके पास भी कोई िनि त क्षे या अध्ययन शाखा नह थे | उन्ह ने कृ ित को जैसा देखा उसका िव ेषण उसी अनुसार िकया और एक उपयु ाख्या के साथ अपनी बात सामने लाने की उन्ह ने कोिशश की | कभी जब उन्ह मां इिन् य के िवस्तार की जरुरत महसूस हुई तब उन्ह ने टेलीस्कोप या सू मदश जैसे उपकरण का आिवष्कार भी िकया | इसी काल म, आप बजािमन किलन जैसे ि को पा सकते ह जो िक एक राजनेता और राजनियक था परं तु वह कृ ित का एक दक्ष ेक्षक भी था | उन्ह ने यह मािणत िकया था िक िव ुत वाह का एक कटीकरण िबजली होती है और इसके अलावा उन्ह ने ि फोकसी (बाईफोकल) लस का भी आिवष्कार िकया था | िवज्ञान और गिणत हमेशा ही िनकट से जुड़े रहे ह | गिणत िवज्ञान की एक सावर्भौिमक भाषा के रूप म अपनी अिववािदत िस्थित को बनाये हुए है | इितहास म अनेक बार िकसी ि को वैज्ञािनक या गिणतज्ञ के रूप म वग कृ त करने म किठनाई का सामना करना पड़ा है | न्यूटन को भी इन दोन ही रूप म सामान ख्याित िमली थी | हालांिक उनकी पुस्तक ि िन्सिपया को ारं िभक समय म एक गिणतीय पुस्तक के रूप म समझा गया था | गाउस, यूलर, बरनौली और पास्कल जैसे लोग ने गिणत म उल्लेखनीय कायर् िकया और बाद म चलकर उन योगदान को ाकृ ितक िवज्ञान की शाखा म इस्तेमाल िकया | इससे ही आगे चलकर ाकृ ितक दुिनया के बारे म हमारी धारणा बनी | जैसे-जैसे वैज्ञािनक ज्ञान म वृि हुई और िवज्ञान का अध्ययन िव िव ालय के पा म का िहस्सा बना, तो यह पाया गया िक इतनी शाखा को आत्मसात करना और उन पर कायर् करना एक ि के िलए असंभव है | इसिलए लोग के ारा िकसी खास शाखा म िवशेषज्ञता हािसल करने की जरुरत महसूस हुई और भौितकी, जीव िवज्ञान, रसायन िवज्ञान आिद जैसी अध्ययन शाखा का िवकास हुआ | कु छ समय पर हमारे पास फै राडे जैसे वैज्ञािनक हुए िजन्ह ने भौितकी और रसायन िवज्ञान म उत्कृ योगदान िदए | उनके दो महत्वपूणर् योगदान थे िव ुतचुम्बकत्व और इलेक् ोिलिसस के िनयम | लुईस पा र जैसे वैज्ञािनक भी हुए िजन्ह ने भौितकी और गिणत िवषय म ातक िकया मगर उन्ह ने मुख्य रूप से रसायन िवज्ञान म कायर् िकया | इसके साथ-साथ उन्ह ने इस बात की भी खोज िकया िक अिधकांश बीमािरयाँ सू मजीव के कारण होती ह | बाद म चलकर जीव िवज्ञान वनस्पित िवज्ञान और जंतु िवज्ञान जैसी दो पृथक शाखा म बाँट गया | वनस्पित िवज्ञान के अंतगर्त पौध और जंतु िवज्ञान के अंतगर्त जंतु का अध्ययन िकया जाता है | आिखरकार, रसायन िवज्ञान को भी भौितकी से अलग होना पड़ा | िवषय साम ी के अनुसार ये िवज्ञान की तीन ापक शाखाएं थ , परं तु रसायन िवज्ञान इन तीन ही शाखा से जुदा हुआ रहता है | समय के साथ-साथ काबर्िनक रसायन, खगोलभौितकी और पुरावनस्पित िवज्ञान (िजवािश्मकृ त पौध की अध्ययन शाखा) जैसी और भी अिधक िवशेषीकृ त उपशाखा का उदय हुआ | समझदारी और ज्ञान म वृि के साथ, िवशेषज्ञता का स्तर भी िदन िदन बढ़ता गया | िवख्यात िवज्ञान कथाकार आइजक न्यूटन ने एक बार इसी संदभर् म एक बात कही थी िजसका भावानुवाद इस कार है: “हम िजस दुिनया म रहते ह, उसके बारे म जैसे-जैसे हमारा ज्ञान बढ़ेगा, ी अपने चुने हुए िवषय म और अिधक िवशेषज्ञता हािसल करगे तथा िवज्ञान की सभी शाखा के बारे म थोड़ा बहुत जानने वाला के वल एक ि होता है और वह िवज्ञान कथाकार होता है |” हाल के वष म, हालांिक जैसे-जैसे हमारी समझदारी गहन हुई है, वैसे-वैसे हम इस बात की जानकारी होने लगी है िक िवज्ञान की िविभ शाखा के बीच एक स्वाभािवक िरश्ता है | िवषय साम ी आज भी इतनी ापक है िक ज्ञान के दो अलग क्षे म एक ि काम नह कर सकता | लेिकन यह भावना बढ़ रही है िक कृ ित से जुड़े के बेहतर जवाब दे पाने म समथर् होना अभी तक हमारे िलए िनष्फलकारी है या हमारी जाित के ारा सामना की जा रही नई चुनौितय , बेहतर समन्वय और ज्ञान की साझेदारी िविभ क्षे के िवशेषज्ञ म अपेिक्षत है | उदाहरण के िलए, अस्पताल की एमआरआई मशीन को लीिजए | यह सुिनि त करना िक यह मशीन काम कर रही है, और रोग-पहचान म इसका इस्तेमाल िकया जा सकता है, इसके िलए गिणतज्ञ , भौितकशाि य , इं जीिनयर , साफ्टवेयर ो ामर तथा िचिकत्सक के समिन्वत य की जरुरत होती है | िवज्ञान की िविभ शाखा के काय के बीच अब पहले से और अिधक अंतसबंध होते जा रहे ह तथा कु छ सवर् े शोध अब अंतर-िशक्षण यास म िकए जा रहे ह | बायोइं फामिटक्स, बायोमेकैिनक्स, ांटम कम्प्यू टग, और आणिवक जीव िवज्ञान दो या अिधक शाखा के अंतवशन के कु छ रोचक उदाहरण ह | ग्लोबल वािमग, स्थायी िवकास, भूिम बंधन और आपदा राहत कु छ ऐसे क्षे होते ह िजनम बहु-अनुशासन शोध सिम्मिलत होते ह| 37 वैज्ञािनक अपने क्षे िवशेष म िकस कार कायर् करते ह, इस दृि कोण से एक अन्य महत्वपूणर् फकर् उनम िकया जा सकता है | कु छ सै ांितक अनुसंधानकतार् होते ह जो समस्या का अध्ययन करते ह, समाधान की अवधारणा बनाने का यास करते ह, और समस्या को माडल करने की कोिशश करते ह और साथ-साथ गिणत के इस्तेमाल ारा समाधान िनकालने की भी कोिशश करते ह | इनके अलावा योगवादी होते ह, जो एक संरचना का ारूप बनाते ह और या तो अपने योग के माध्यम से िस ांतवािदय ारा दी गयी अवधारणा की पुि करते ह या िफर अध्ययन िकए जा रहे तं के बारे म और अिधक अध्ययन करते ह | कम्यूटर के बहुतायत उपयोग के कारण एक नया दृि कोण उभर कर सामने आया है िजसे कम्प्यूटेशनल दृि कोण कहते ह | इसम कोई ि कं प्यूटर पर िकसी िसस्टम का अनुरूपण कर सकता है और इसके समीकरण का समाधान कर करने की कोिशश करता है या िसस्टम पर िकए जा रहे िनि त योग का अनुरूपण करता है और यह सब कु छ कं प्यूटर पर िकया जाता है | अनुशासन का एक रोचक अंतर उनके अध्ययन के पैमाने म स्वाभािवक रूप से िनिहत होता है | हमारे वैज्ञािनक आकाशगंगा जैसी बड़े िवषय से लेकर उप-परमािण्वक कण जैसे सू म िवषय का अध्ययन करते ह | इन दोन छोर के बीच आकार के पैमान की एक सम सूची की आप कल्पना कर सकते ह िजनम अलग-अलग वैज्ञािनक की रुची िनिहत होती है | आपके पास कु छ जीव वैज्ञािनक हो सकते ह जो सामान्य जीवधािरय (िजन्ह हम अपने दैिनक जीवन म देखते ह) पर कायर् करते ह | इसके अलावा आपके पास सू मजीव वैज्ञािनक हो सकते ह जो सू मजीव का अध्ययन करते ह अथवा एक आिण्वक जीव वैज्ञािनक जो जीवन को आरम्भ करने वाले मूल कण का अध्ययन करते ह | िविवधता म सदैव वृि होती रहती है | XXXX िव ाथ िवज्ञान मंथन के बारे म अिधक जानकारी के िलए कृ पया संपकर् कर: मुख्य समन्वयक 501, कग अपाटर्मट, िरलायंस े श के पीछे, नवलखा स् े यर, इं दौर (मध्य देश), भारत | 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