केंद्रीय विद्यालय-संगठन KENDRIYA VIDYALAYA SANGATHAN देहरादून-संभाग
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केंद्रीय विद्यालय-संगठन KENDRIYA VIDYALAYA SANGATHAN देहरादून-संभाग
केंद्रीय विद्यालय-संगठन KENDRIYA VIDYALAYA SANGATHAN दे हरादन ू -संभाग DEHRADUN REGION अध्ययन-सामग्री STUDY MATERIAL कक्षा: 12 CLASS: 12 हहंदी(केंहद्रक) HINDI (CORE) 2012-13 1 केंद्रीय विद्यालय-संगठन दे हरादन ू -संभाग अध्ययन-सामग्री कक्षा-12, हहंदी(केंहद्रक) 2012-13 मुख्य संरक्षक: श्री अविनाश दीक्षक्षत, आयुक्त, केंद्रीय विद्यालय-संगठन, नई हदल्ली संरक्षक : श्री नरे न्द्द्र ससंह राणा, उपायुक्त, केंद्रीय विद्यालय-संगठन,दे हरादन ू -संभाग सलाहकार ननदे शक : श्री सरदार ससंह चौहान,सहायक आयुक्त, केंद्रीय विद्यालय-संगठन, दे हरादन ू -संभाग : श्री दे िी प्रसाद ममगाईं,प्राचायय, केंद्रीय विद्यालय, क्रमांक-२ भा.स.वि. हाथीबडकला, दे हरादन ू सह ननदे शक :श्रीमती भारती दे िी राणा, प्राचायय, केंद्रीय विद्यालय, आइ.एम ्.ए.,दे हरादन ू 2 केंद्रीय विद्यालय-संगठन, दे हरादन ू -संभाग अध्ययन-सामग्री: कक्षा-12, हहंदी(केंहद्रक) 2012-13 संरक्षक श्री नरे न्द्द्र ससंह राणा, उपायक् ु त, केंद्रीय विद्यालय-संगठन, दे हरादन ू -संभाग सलाहकार श्री सरदार ससंह चौहान, सहायक आयक् ु त, केंद्रीय विद्यालय-संगठन, दे हरादन ू -संभाग श्री दे िी प्रसाद ममगाईं, निर्दे शक प्राचायय, केंद्रीय विद्यालय, क्रमांक-२ भा.स.वि., हाथीबडकला, दे हरादन ू सह निर्दे शक श्रीमती भारती दे िी राणा, प्राचायय, केंद्रीय विद्यालय, आइ.एम ्.ए.,दे हरादन ू समन्द्ियक श्री अशोक कुमार िार्ष्णेय, उप प्राचायय, केंद्रीय विद्यालय, आइ.एम ्.ए.,दे हरादन ू सामग्री-विन्द्यास डॉ. नीलम सरीन, स्नातकोत्तर सशक्षक्षका,केंद्रीय विद्यालय, आयुध-ननमायणी, रायपुर, दे हरादन ू डॉ. विजय राम पाण्डेय, स्नातकोत्तर सशक्षक,केंद्रीय विद्यालय, अपरकैंप, दे हरादन ू डॉ. सुरेन्द्द्र कुमार शमाय,स्नातकोत्तर सशक्षक,केंद्रीय विद्यालय, क्रमांक-२, भा.स.वि., हाथीबडकला, दे हरादन ू श्रीमती रजनी ससंह,स्नातकोत्तर सशक्षक्षका, केंद्रीयविद्यालय, आइ.एम ्.ए.,दे हरादन ू श्रीमती कमला ननखप ु ाय,स्नातकोत्तर सशक्षक्षका, केंद्रीय विद्यालय, एफ.आर.आई.,दे हरादन ू 3 हहन्द्दी (केन्द्न्द्द्रक) - पाठ्यक्रम कोड सं. 302 कक्षा XII (बारहिीं ) अपहठत बोध (गद्यांश और कावयांश-बोध) रचनात्मक-लेखन एिं जनसंचार माध्यम, असभवयन्द्क्त और माध्यम (वप्रंट माध्यम, सम्पादकीय, ररपोटय , 15+5=20 आलेख, फीचर-लेखन) पाठ्यपस् ु तक – आरोह भाग-२ (कावयांश-20 5+5+5+5+5= 25 गद्यांश-20) 40 परू क-पस् ु तक वितान भाग-२ 15 कुल अंक 100 (क) अपठित बोध 20 प्रश्न 1-कावयांश बोध पर आधाररत पााँच लघूत्तरात्मक प्रश्न 1*5= 5 प्रश्न 2-गद्यांश बोध पर आधाररत बोध, प्रयोग, रचनान्द्तरण, शीर्यक आहद पर लघत्त ू रात्मक प्रश्न 15 (ख) रचिात्मक-लेखि एवं जिसंचार माध्यम 25 प्रश्न 3- ननबंध (ककसी एक विर्य पर) 5 प्रश्न 4- कायायलय पत्र (विकल्प सहहत) 5 प्रश्ि 5-(अ) प्प्रंट माध्यम, सम्पार्दकीय, ररपोटट , आलेख आठर्द पर पााँच अनत लघूत्तरात्मक प्रश्ि 1*5=5 (आ) आलेख (ककसी एक विर्य पर) 5 प्रश्न 6- फीचर लेखन (जीिन-सन्द्दभों से जुडी घटनाओं और न्द्स्थनतयों पर फीचर लेखन विकल्प सहहत) 5 (ग) आरोह भाग-२ (काव्य भाग और गद्य भाग) (20+20) =40 प्रश्न 7- दो कावयांशों में से ककसी एक पर अथय ग्रहण के ४ प्रश्न 8 प्रश्न 8- कावयांश के सौंदयय-बोध पर दो कावयांशों में विकल्प हदया जाएगा तथा ककसी एक कावयांश के तीनों प्रश्नों के उत्तर दे ने होंगे | 6 प्रश्न 9- कविताओं की विर्यिस्तु से संबंधधत तीन में से दो लघूत्तरात्मक प्रश्न (3+3)= 6 प्रश्न 10- दो में से ककसी एक गद्यांश पर आधाररत अथय-ग्रहण के चार प्रश्न (2+2+2+2) =8 प्रश्न 11- पाठों की विर्यिस्तु पर आधाररत पााँच में चार बोधात्मक प्रश्न (3+3+3+3)=12 पूरक पुस्तक प्वताि भाग -२ 15 प्रश्न 12-पाठों की विर्यिस्तु पर आधाररत तीन में से दो बोधात्मक प्रश्न प्रश्न 13-विचार/संदेश पर आधाररत तीन में से दो लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 14- विर्यिस्तु पर आधाररत दो में से एक ननबंधात्मक प्रश्न निधाटररत पस् ु तकें (i) आरोह भाग-२ (एन.सी.ई.आर.टी. द्िारा प्रकासशत) (ii) वितान भाग-२ (एन.सी.ई.आर.टी. द्िारा प्रकासशत) (ii) असभवयन्द्क्त और माध्यम (एन.सी.ई.आर.टी. द्िारा प्रकासशत) 4 (3+3)=6 (2+2)=4 5 अध्ययि-सामग्री ठहंर्दी (केंठिक) २०१२-१३ अपठित:निधाटररत अंक: २० (गद्य के ललए १५ तथा पद्य के ललए ५ अंक अपठित अंश को हल करिे के ललए निधाटररत हैं) आवश्यक निर्दे श : अपठित अंश में २० अंकों के प्रश्ि पछ ू े जाएाँगे, जो गद्य और पद्य र्दो रूपों में होंगे| ये प्रश्ि एक या र्दो अंकों के होते हैं | उत्तर र्दे ते समय निम्ि बातों को ध्याि में रख कर उत्तर र्दीजजए – १. ठर्दए गए गद्यांश अथवा पद्यांश कोपछ ट र्दो बार पठिए | ू े गए प्रश्िों के साथ ध्याि पव ू क २. प्रश्िों के उत्तर र्दे िे के ललए सबसे पहले सरलतम प्रश्ि का उत्तर र्दीजजए और लमलिे पर उसको रे खांककत कर प्रश्ि संख्या ललख र्दीजजए, किर सरलतम से सरलतर को क्रम से छााँट कर रे खांककत कर प्रश्ि संख्या ललखते जाएाँ | ३. उत्तर की भाषा आपकी अपिी भाषा होिी चाठहए | ४. गद्यांश में व्याकरण से तथा काव्यांश में सौंर्दयट-बोध से संबंधधत प्रश्िों को भी पूछा जाता है , इसललए व्याकरण और काव्यांग की सामान्य जािकारी को अद्यति रखें | ५. उत्तर को अधधक प्वस्तार ि र्दे कर संक्षेप में ललखें| ६. पूछे गए अंश के कथ्य में जजस तथ्य को बार-बार उिाया गया है , उसी के आधार पर शीषटक ललखें | शीषटक एक या र्दो शब्र्दों का होिा चाठहए | १. अपठित गद्यांश का िमूिा- निधाटररत अंक: १५ मैं न्द्जस समाज की कल्पना करता हूाँ, उसमें गह ृ स्थ संन्द्यासी और संन्द्यासी गह ृ स्थ होंगे अथायत संन्द्यास और गह ृ स्थ के बीच िह दरू ी नहीं रहे गी जो परं परा से चलती आ रही है | संन्द्यासी उत्तम कोहट का मनुर्ष्य होता है , क्योंकक उसमें संचय की िवृ त्त नहीं होती, लोभ और स्िाथय नहीं होता | यही गुण गह ृ स्थ में भी होना चाहहए | संन्द्यासी भी िही श्रेर्ष्ठ है जो समाज के सलए कुछ काम करे | ज्ञान और कमय को सभन्द्न करोगे तो समाज में विर्मता उत्पन्द्न होगी ही |मुख में कविता और करघे पर हाथ, यह आदशय मुझे पसंद था |इसी की सशक्षा मैं दस ू रों को भी दे ता हूाँ और तुमने सुना है या नहीं की नानक ने एक अमीर लडके के हाथ से पानी पीना अस्िीकार कर हदया था | लोगों ने कहा –“गुरु जी यह लड़का तो अत्यंत संभ्ांत कुल का है , इसके हाथ का पानी पीने में क्या दोर् है ?” नानक बोले-“तलहत्थी में मेहनत के ननशाननहीं हैं | न्द्जसके हाथ में मेहनत के ठे ले पड़े नहीं होते उसके हाथ का पानी पीने में मैं दोर् मानता हूाँ |” नानक ठीक थे | श्रेर्ष्ठ समाज िह है , न्द्जसके सदस्य जी खोलकर मेहनत करते हैं और तब भी जरूरत से ज्यादा धन पर अधधकार जमाने की उनकी इच्छा नहीं होती | प्रश्िों का िमि ू ा- (क) ‘गह ृ स्थ संन्द्यासी और संन्द्यासी गह ृ स्थ होंगे’ से लेखक का क्या आशय है ? (ख) संन्द्यासी को उत्तम कोहट का मनर्ष्ु य कहा गया है , क्यों ? १ 1 २ (ग) श्रेर्ष्ठ समाज के क्या लक्षण बताए गए हैं? १ (घ) नानक ने अमीर लड़के के हाथ से पानी पीना क्यों अस्िीकार ककया ? २ (ङ) ‘मुख में कविता और करघे पर हाथ’- यह उन्द्क्त ककसके सलए प्रयोग की गई है और क्यों ? २ (च) श्रेर्ष्ठ संन्द्यासी के क्या गुण बताए गए हैं ?१ (छ) समाज में विर्मता से आप क्या समझते हैं और यह कब उत्पन्द्न होती है ? २ (ज) संन्द्यासी शब्द का संधध-विच्छे द कीन्द्जए | १ (झ) विर्मता शब्द का विलोम सलख कर उसमें प्रयक् ु त प्रत्यय अलग कीन्द्जए | २ (ञ) गद्यांश का उपयक् ु त शीर्यक दीन्द्जए | १ उत्तर – (क) गह ु त रहें तथा संन्द्यासी जन ृ स्थ जन संन्द्याससयों की भााँनत धन-संग्रह और मोह से मक् (ख) (ग) गह ृ स्थों की भााँनत सामान्द्जक कमों में सहयोग करें , ननठल्ले न रहें | संन्द्यासी लोभ, स्िाथय और संचय से अलग रहता है | श्रेर्ष्ठ समाज के सदस्य भरपूर पररश्रम करते हैं तथा आिश्यकता से अधधक धन पर अपना अधधकार नहीं जमाते | (घ) अमीर लड़के के हाथों में मेहनतकश के हाथों की तरह मेहनत करने के ननशान थे और नानक मेहनत करना अननिायय मानते थे | (ङ) ”मुख में कविता और करघे में हाथ’ कबीर के सलए कहा गया है | क्योंकक उसके घर में जुलाहे का कायय होता था और कविता करना उनका स्िभाि था | (च) श्रेर्ष्ठ संन्द्यासी समाज के सलए भी कायय करता है | (छ) समाज में जब ज्ञान और कमय को सभन्द्न समाज में मानकर आचरण ककए जाते हैं तब उस विर्मता मान ली जाती है |ज्ञान और कमय को अलग करने पर ही समाज में विर्मता फैलती है | (ज) (झ) (ञ) नहीं सम ् + न्द्यासी विर्मता – समता, ‘ता’ प्रत्यय संन्द्यास-गह ृ स्थ २. अपठित काव्यांश का िमि ू ा- निधाटररत अंक: ५ तुम भारत, हम भारतीय हैं, तुम माता, हम बेटे, ककसकी हहम्मत है कक तुम्हें दर्ष्ु टता-दृन्द्र्ष्ट से दे खे | ओ माता, तम ु एक अरब से अधधक भज ु ाओं िाली, सबकी रक्षा में तम ु सक्षम, हो अदम्य बलशाली | 2 भार्ा, िेश, प्रदे श सभन्द्न हैं, कफर भी भाई-भाई, भारत की साझी संस्कृनत में पलते भारतिासी | सुहदनों में हम एक साथ हाँ सते, गाते, सोते हैं, दहु दय न में भी साथ-साथ जागते, पौरुर् धोते हैं | तुम हो शस्य-श्यामला, खेतों में तुम लहराती हो, प्रकृनत प्राणमयी, साम-गानमयी, तुम न ककसे भाती हो | तम ु न अगर होती तो धरती िसध ु ा क्यों कहलाती ? गंगा कहााँ बहा करती, गीता क्यों गाई जाती ? प्रश्ि िमि ू ा: (क) साझी संस्कृनत का क्या भाि है ? १ (ख) भारत को अदम्य (ग) बलशाली क्यों कहा गया है ? १ सख ु -दुःु ख के हदनों में भारतीयों का परस्पर सहयोग कैसा होता है ? १ (घ) साम-गानमयी का क्या तात्पयय है ? (ङ) १ ‘ओ माता, तुम एक अरब से अधधक भुजाओं िाली’ में कौन-सा अलंकार है ?१ उत्तर – (क) (ख) भार्ा, िेश, प्रदे श सभन्द्न होते हुए भी सभी के सुख-दुःु ख एक हैं | भारत की एक अरब से अधधक जनता अपनी मजबूत भुजाओं से सबकी सुरक्षा करने में समथय है | (ग) (घ) (ङ) भारतीयों का वयिहार आपसी सहयोग और अपनेपन से भरा है सब संग-संग हाँ सते- गाते हैं और संग-संग कहठनाइयों से जूझते हैं | सुमधरु संगीत से युक्त | रूपक | ३. निबंध-लेखि - निधाटररत अंक: ५ ननबंध-लेखन करते समय छात्रोंको ननम्न बातें ध्यान में रखनी चाहहए – हदए गए विर्य की एक रूपरे खा बना लें | रूपरे खा-लेखन के समय पूिायपर संबंध के ननयम का ननिायह ककया जाए | पूिायपर संबंध के ननिायह का अथय है कक ऊपर की बात उसके ठीक नीचे की बात से जुड़ी होनी चाहहए, न्द्जससे विर्य का क्रम बना रहे | पन ु रािवृ त्त दोर् न आए | भार्ा सरल, सहज और बोधगम्य हो | ननबंध का प्रारम्भ ककसी कहाित, उन्द्क्त, सन्द्ू क्त आहद से ककया जाए | 3 विर्य को प्रामाणणक बनाने के उद्दे श्य से हहन्द्दी, संस्कृत, अंग्रेजी,उदय ू की सून्द्क्तयााँएिं उद्धरण भी बीच-बीच में दे ते रहना चाहहए | भूसमका/प्रस्तािना में विर्य का सामान्द्य पररचय तथा उपसंहार में विर्य का ननर्ष्कर्य होना चाहहए | निबंध हे तु िमि ू ा रूपरे खा : प्वज्ञाि ; वरर्दाि या अलभशाप १. भसू मका/ प्रस्तािना २. विज्ञान का अथय ३. विज्ञान िरदान है – सशक्षा के क्षेत्र में धचककत्सा के क्षेत्र में मनोरं जन के क्षेत्र में कृवर् के क्षेत्र में यातायात के क्षेत्र में ४. विज्ञान असभशाप है – सशक्षा के क्षेत्र में धचककत्सा के क्षेत्र में मनोरं जन के क्षेत्र में कृवर् के क्षेत्र में यातायात के क्षेत्र में ५. विज्ञान के प्रनत हमारे उत्तरदानयत्ि ६. उपसंहार प्वशेष: उक्त रूपरे खा को आवश्यकता के अिुरूप प्वलभन्ि क्षेत्रों को जोड़कर बिाया जा सकता है | अभ्यास हे तु निबंध- १. महानगरीय जीिन: असभशाप या िरदान २. आधनु नक सशक्षा-पद्धनत: गुण ि दोर् ३. विज्ञान ि कला ४. बदलते जीिन मल् ू य ५. नई सदी: नया समाज ६. कामकाजी महहलाओं की समस्याएाँ/ दे श की प्रगनत में महहलाओं का योगदान 4 ७.रार्ष्र-ननमायण में युिा पीढ़ी का योगदान ८. इंटरनेट की दनु नयााँ ९. पराधीन सपनेहुाँ सुख नाहीं १०. लोकतंत्र में मीडडया की भसू मका ११. प्रगनत के पथ पर भारत १२. जि आंर्दोलि और सरकार १३. भ्रष्टाचार: समस्या और समाधाि १४. महाँ गाई की मार १५. खेल-कूर्द में उतरता भारत/ ऑलंप्पक २०१२ ४. पत्र-लेखि-निधाटररत अंक: ५ विचारों, भािों, संदेशों एिं सच ू नाओं के संप्रेर्ण के सलए पत्र सहज, सरल तथा पारं पररक माध्यम है । पत्र अनेक प्रकार के हो सकते हैं, पर प्राय: परीक्षाओं में सशकायती-पत्र, आिेदनपत्र तथा संपादक के नाम पत्र पूछे जाते हैं। इन पत्रों को सलखते समय ननम्न बातों का ध्यान रखा जाना चाहहए: पत्र-लेखि के अंग:- १. पता और ठर्दिांक- पत्र के ऊपर बाईं ओर प्रेर्क का पता ि हदनांक सलखा जाता है (छात्र पते के सलए परीक्षा-भिन ही सलखें) २. संबोधि और पता– न्द्जसको पत्र सलखा जारहा है उसको यथानुरूप संबोधधत ककया जाता है , औपचाररक पत्रों में पद-नाम और कायायलयी पता रहता है | ३. प्वषय – केिल औपचाररक पत्रों में प्रयोग करें (पत्र के कथ्य का संक्षक्षप्त रूप, न्द्जसे पढ़ कर पत्र की सामग्री का संकेत समल जाता है ) ४. पत्र की सामग्री – यह पत्र का मूल विर्य है , इसे संक्षेप में सारगसभयत और विर्य के स्पर्ष्टीकरण के साथ सलखा जाए | ५. पत्र की समाजतत – इसमें धन्द्यिाद, आभार सहहत अथिा साभार जैसे शब्द सलख कर लेखक अपने हस्ताक्षर और नाम सलखता है | ध्याि र्दें , छात्र पत्र में कहीं अपना असभज्ञान (नाम-पता) न दें | औपचाररक पत्रों में विर्यानुरूप ही अपनी बात कहें | द्वि-अथयक और बोणझल शब्दािली से बचें | ६. भार्ा शुद्ध, सरल, स्पर्ष्ट, विर्यानुरूप तथा प्रभािकारी होनी चाहहए। पत्र का िमि ू ा : अस्पताल के प्रबंधन पर संतोर् वयक्त करते हुए धचककत्सा-अधीक्षक को पत्र सलणखए | परीक्षा-भवि, 5 ठर्दिांक: ----मािाथट धचककत्सा-अधीक्षक, कोरोिेशि अस्पताल, र्दे हरार्दि ू | प्वषय : अस्पताल के प्रबंधि पर संतोष व्यक्त करिे के संर्दभट में मान्यवर, इस पत्र के माध्यम से मैं आपके धचककत्सालय के सप्र ु बंधि से प्रभाप्वत हो कर आपको धन्यवार्द र्दे रहा हूाँ | गत सतताह मेरे प्पता जी हृर्दय-आघात से पीड़ड़त होकर आपके यहााँ र्दाखखल हुए थे | आपके धचककत्सकों और सहयोगी स्टाि िे जजस तत्परता, कतटव्यनिष्िा और ईमािर्दारी से उिकी र्दे खभाल तथा धचककत्सा की उससे हम सभी पररवारी जि संतष्ु ट हैं | हमारा प्वश्वास बिा है | आपके धचककत्सालय का अिुशासि प्रशंसिीय है | आशा है जब हम पुिपटरीक्षण हे तु आएाँगे, तब भी वैसी ही सुव्यवस्था लमलेगी | साभार ! भवर्दीय क ख ग अभ्यासाथट प्रश्ि:- १. ककसी दै ननक समाचार-पत्र के संपादक के नाम पत्र सलणखए न्द्जसमें िक्ष ृ ों की कटाई को रोकने के सलए सरकार का ध्यान आकवर्यत ककया गया हो। २. हहंसा-प्रधान किल्मों को दे ख कर बालिगय पर पड़ने िाले दर्ष्ु प्रभाि का िणयन करते हुए ककसी दै ननक पत्र के संपादक के नाम पत्र सलणखए। ३. अननयसमत डाक-वितरण की सशकायत करते हुए पोस्टमास्टर को पत्र सलणखए। ४. सलवपक पद हे तु विद्यालय के प्राचायय को आिेदन-पत्र सलणखए। ५. अपने क्षेत्र में बबजली-संकट से उत्पन्द्न कहठनाइयों का िणयन करते हुए अधधशासी असभयन्द्ता विद्युत-बोडय को पत्र सलणखए। ७. दै ननक पत्र के संपादक को पत्र सलणखए, न्द्जसमें हहंदी भार्ा की द्वि-रूपता को समाप्त करने के सुझाि हदए गए हों | ५. (क) अलभव्यजक्तऔरमाध्यम: (एक-एक अंक के ५ प्रश्ि पछ ू े जाएाँगे तथा उत्तर संक्षेप में ठर्दए जाएाँगे ) उत्तम अंक प्रातत करिे के ललए ध्याि र्दे िे योग्य बातें १. अलभव्यजक्त और माध्यम से संबंधधत प्रश्ि प्वशेष रूप से तथ्यपरक होते हैं अत: उत्तर 6 ललखते समय सही तथ्यों को ध्याि में रखें। २. उत्तर बबंर्दव ु ार ललखें, मुख्य बबंर्द ु को सबसे पहले ललख र्दें । ३. शुद्ध वतटिी का ध्याि रखें । ४. लेख साफ़-सुथरा एवम पििीय हो । ५. उत्तर में अिावश्यक बातें ि ललखें । ६. निबंधात्मक प्रश्िों में क्रमबद्धता तथा प्वषय के पव ू ाटपर संबंध का ध्याि रखें, तथ्यों तथा प्वचारों की पि ु रावप्ृ त्त ि करें । जिसंचारमाध्यम १. संचार ककसे कहते हैं ? ‘संचार’ शब्द चर् धातु के साथ सम ् उपसगय जोड़ने से बना है - इसका अथय है चलना या एक स्थान से दस ू रे स्थान तक पहुाँचना |संचार संदेशों का आदान-प्रदान है | सूचिाओं, प्वचारों और भाविाओं का ललखखत, मौखखक या दृश्य-श्रव्य माध्यमों के जररये सफ़लता पूवक ट आर्दाि-प्रर्दाि करिा या एक जगह से र्दस ू री जगह पहुाँचािा संचार है । २. “संचार अिुभवों की साझेर्दारी है ”- ककसिे कहा है ? प्रससद्ध संचार शास्त्री विल्बर श्रेम ने | ३. संचार माध्यम से आप क्या समझते हैं ? संचार-प्रकक्रया को संपन्द्न करने में सहयोगी तरीके तथा उपकरण संचार के माध्यम कहलाते हैं। ४. संचार के मूल तत्त्व ललखखए | संचारक या स्रोत एन्द्कोडडंग (कूटीकरण ) संदेश ( न्द्जसे संचारक प्राप्तकताय तक पहुाँचाना चाहता है ) माध्यम (संदेश को प्राप्तकताय तक पहुाँचाने िाला माध्यम होता है जैसे- ध्िननतरं गें, िाय-ु तरं गें, टे लीफोन, समाचारपत्र, रे डडयो, टी िी आहद) प्राप्तकत्ताय (डीकोडडंग कर संदेश को प्राप्त करने िाला) फीडबैक (संचार प्रकक्रया में प्राप्तकत्ताय की प्रनतकक्रया) शोर (संचार प्रकक्रया में आने िाली बाधा) ५. संचारकेप्रमुखप्रकारोंकाउल्लेखकीजजए ? सांकेनतकसंचार मौणखकसंचार अमौणखक संचार अंत:िैयन्द्क्तकसंचार अंतरिैयन्द्क्तकसंचार समह ू संचार 7 जनसंचार ६. जिसंचारसेआपक्यासमझतेहैं ? प्रत्यक्ष संिाद के बजाय ककसी तकनीकी या यांबत्रक माध्यम के द्िारा समाज के एकविशाल िगयसे संिाद कायम करना जनसंचार कहलाता है । ७. जिसंचार के प्रमख ु माध्यमों का उल्लेख कीजजए अखबार, रे डडयो, टीिी, इंटरनेट, ससनेमा आहद. | ८. जिसंचार की प्रमख ु प्वशेषताएाँ ललखखए | इसमें िीडबैक तरु ं त प्राप्त नहीं होता। इसके संदेशों की प्रकृनत साियजननक होती है । संचारक और प्राप्तकत्ताय के बीच कोई सीधा संबंध नहीं होता। जनसंचार के सलए एक औपचाररक संगठन की आिश्यकता होती है। इसमें ढेर सारे द्िारपाल काम करते हैं। ९. जिसंचार के प्रमुख कायट कौि-कौिसेहैं ? सूचना दे ना सशक्षक्षत करना मनोरं जन करना ननगरानी करना एजेंडा तय करना विचार-विमशय के सलए मंच उपलब्ध कराना १०. लाइव से क्या अलभप्राय है ? ककसी घटना का घटना-स्थल से सीधा प्रसारण लाइि कहलाता है | ११. भारत का पहला समाचार वाचक ककसे मािा जाता है ? दे िवर्य नारद १२. जि संचार का सबसे पहला महत्त्वपूणट तथा सवाटधधक प्वस्तत ृ माध्यम कौि सा था ? समाचार-पत्र और पबत्रका १३. प्प्रंट मीड़िया के प्रमुख तीि पहलू कौि-कौि से समाचारों को संकसलत करना संपादन करना मुद्रण तथा प्रसारण हैं ? १४. समाचारों को संकललत करिे का कायट कौि करता है ? संिाददाता १५. भारत में पत्रकाररता की शरु ु आत कब और ककससे हुई ? भारत में पत्रकाररता की शरु ु आत सि १७८० में जेम्स आगस्ट ठहकी के बंगाल गजट से हुई जो कलकत्ता से ननकला था | 8 १६. ठहंर्दी का पहला सातताठहक पत्र ककसे मािा जाता है ? हहंदी का पहला साप्ताहहक पत्र ‘उदं त मातंड’ को माना जाता है जो कलकत्ता से पंडडत जुगल ककशोर शुक्ल के संपादन में ननकला था | १७. आजार्दी से पूवट कौि-कौि प्रमुख पत्रकार हुए? महात्मा गांधी , लोकमान्द्य नतलक, मदन मोहन मालिीय, गणेश शंकर विद्याथी , माखनलाल चतुिेदी, महािीर प्रसाद द्वििेदी , प्रताप नारायण समश्र, बाल मुकंु द गुप्त आहद हुए | १८. आजार्दी से पव ू ट के प्रमख ु समाचार-पत्रों और पबत्रकाओं के िाम ललखखए | केसरी, हहन्द्दस् ु तान, सरस्िती, हं स, कमयिीर, आज, प्रताप, प्रदीप, विशाल भारत आहद | १९. आजार्दी के बार्द की प्रमुख पत्र-पबत्रकाओं तथा पत्रकारों के िाम ललखए | प्रमख पत्र ---- नि भारत टाइम्स, जनसत्ता, नई दनु नया, हहन्द्दस् ु ु तान, अमर उजाला, दै ननक भास्कर, दै ननक जागरण आहद | प्रमुख पबत्रकाएाँ – धमययुग, साप्ताहहक हहन्द्दस् ु तान, हदनमान , रवििार , इंडडया टुडे, आउट लुक आहद | प्रमुख पत्रकार- अज्ञेय, रघुिीर सहाय, धमयिीर भारती, मनोहरश्याम जोशी, राजेन्द्द्र माथरु , प्रभार् जोशी आहद । अन्य महत्त्वपूणट प्रश्ि: १. जनसंचार और समूह संचार का अंतर स्पर्ष्ट कीन्द्जए ? २. कूटिाचन से आप क्या समझते हैं ? ३. कूटीकरण ककसे कहते हैं? ४. संचारक की भूसमका पर प्रकाश डासलए । ५. फीडबैक से आप क्या समझते हैं ? ६. शोर से क्या तात्पयय है ? ७. औपचाररक संगठन से आप क्या समझते हैं ? ८. सनसनीखेज समाचारों से सम्बंधधत पत्रकाररता को क्या कहते हैं? ९. कोई घटना समाचार कैसे बनती है ? १०. संपादकीय पर्ष्ृ ठ से आप क्या समझते हैं ? ११. मीडडया की भार्ा में द्िारपाल ककसे कहते हैं ? पत्रकाररता के प्वप्वध आयाम १. पत्रकाररताक्याहै ? ऐसी सूचनाओं का संकलन एिं संपादन कर आम पाठकों तक पहुाँचाना, न्द्जनमें अधधक से अधधक लोगों की रुधच हो तथा जो अधधक से अधधक लोगों को प्रभावित करती हों, पत्रकाररताकहलाता है ।(र्दे श-प्वर्दे श में घटिे वाली घटिाओं की सच ू िाओं को संकललत एवं संपाठर्दत कर समाचार के रूप में पािकों तक पहुाँचािे की कक्रया/प्वधा को पत्रकाररता कहते 9 हैं) २. पत्रकारीय लेखि तथा साठहजत्यक सज ृ िात्मक लेखि में क्या अंतर है ? पत्रकारीय लेखन का प्रमुख उद्दे श्य सूचना प्रदान करना होता है , इसमें तथ्यों की प्रधानता होती है , जबकक साहहन्द्त्यक सज ृ नात्मक लेखन भाि, कल्पना एिं सौंदयय-प्रधान होता है । ३. पत्रकाररता के प्रमख ु आयाम कौि-कौि से हैं ? संपादकीय, िोटो पत्रकाररता, काटूयन कोना , रे खांकन और काटोग्राि | ४. समाचारककसेकहतेहैं ? समाचार ककसी भी ऐसी ताजा घटना, विचार या समस्या की ररपोटय है ,न्द्जसमें अधधक से अधधक लोगों की रुधच हो और न्द्जसका अधधक से अधधक लोगों पर प्रभाि पड़ता हो । ५. समाचारके तत्त्वों को ललखखए | पत्रकाररता की दृन्द्र्ष्ट से ककसी भी घटना, समस्या ि विचार को समाचार का रूप धारण करने के सलए उसमें ननम्न तत्त्िों में से अधधकांश या सभी का होना आिश्यक होता है िवीिता, निकटता, प्रभाव, जिरुधच, संघषट, महत्त्वपूणट लोग, उपयोगी जािकाररयााँ, अिोखापि आहद । ६. िेिलाइिसेआपक्यासमझतेहैं ? समाचार माध्यमों के सलए समाचारों को किर करने के सलए ननधायररत समय-सीमा कोडेडलाइनकहते हैं। ७. संपार्दि से क्या अलभप्राय है ? प्रकाशन के सलए प्राप्त समाचार-सामग्री से उसकी अशुद्धधयों को दरू करके पठनीय प्रकाशन योग्य बनाना संपादन कहलाता तथा है । ८. संपार्दकीयक्याहै ? संपादक द्िारा ककसी प्रमुख घटना या समस्या पर सलखे गए विचारात्मक लेख को, न्द्जसे संबंधधत समाचारपत्र की राय भी कहा जाता है , संपादकीय कहते हैं।संपादकीय ककसी एक वयन्द्क्त का विचार या राय न होकर समग्र पत्र-समूह की राय होता है , इससलए संपादकीय में संपादक अथिा लेखक का नाम नहीं सलखा जाता । ९. पत्रकाररता के प्रमुखप्रकारललखखए खोजी पत्रकाररता विशेर्ीकृत पत्रकाररता िॉचडॉग पत्रकाररता एडिोकेसी पत्रकाररता- पीतपत्रकाररता पेज थ्री पत्रकाररता | १०. खोजी पत्रकाररता क्याहै ? 10 न्द्जसमें आम तौर पर साियजननक महत्त्ि के मामलों,जैस-े भ्र्ष्टाचार, अननयसमतताओं और गड़बडड़यों की गहराई से छानबीन कर सामने लाने की कोसशश की जाती है । न्द्स्टं ग ऑपरे शन खोजी पत्रकाररता का ही एक नया रूप है । ११. वॉचिॉगपत्रकाररता से आप क्या समझते हैं ? लोकतंत्र में पत्रकाररता और समाचार मीडडया का मुख्य उत्तरदानयत्ि सरकार के कामकाज पर ननगाह रखना है और कोई गड़बड़ी होने पर उसका परदािाश करना होता है , परं परागत रूप से इसे िॉचडॉग पत्रकाररता कहते हैं। १२. एिवोकेसी पत्रकाररता ककसेकहतेहैं ? इसे पक्षधर पत्रकाररता भी कहते हैं। ककसी खास मद् ु दे या विचारधारा के पक्ष में जनमत बनाने केसलए लगातार असभयान चलाने िाली पत्रकाररता को एडिोकेसी पत्रकाररता कहते हैं। १३. पीतपत्रकाररतासेआपक्यासमझतेहैं ? पाठकों को लुभाने के सलए झूठी अििाहों, आरोपों-प्रत्यारोपों, प्रेमसंबंधों आहद से संबंधधत सनसनीखेज समाचारों से संबंधधत पत्रकाररता को पीतपत्रकाररता कहते हैं। १४. पेज थ्री पत्रकाररता ककसेकहतेहैं ? ऐसी पत्रकाररता न्द्जसमें िैशन, अमीरों की पाहटय यों , महकिलों और जानेमाने लोगों के ननजी जीिन के बारे में बताया जाता है । १५. पत्रकाररता के प्वकास में कौि-सा मूल भाव सकक्रय रहता है ? न्द्जज्ञासा का १६. प्वशेषीकृत पत्रकाररता क्या है ? ककसी विशेर् क्षेत्र की विशेर् जानकारी दे ते हुए उसका विश्लेर्ण करना विशेर्ीकृत पत्रकाररता है | १७. वैकजल्पक पत्रकाररता ककसे कहते हैं ? मुख्य धारा के मीडडया के विपरीत जो मीडडया स्थावपत वयिस्था के विकल्प को सामने लाकर उसके अनुकूल सोच को असभवयक्त करता है उसे िैकन्द्ल्पक पत्रकाररता कहा जाता है ।आम तौर पर इस तरह के मीडडया को सरकार और बड़ीपाँज ू ी का समथयन प्राप्त नहीं होता और न ही उसे बड़ी कंपननयों के विज्ञापन समलते हैं । १८. विशेर्ीकृत पत्रकाररता के प्रमुख क्षेत्रों का उल्लेख कीन्द्जए | संसदीय पत्रकाररता न्द्यायालय पत्रकाररता आधथयक पत्रकाररता खेल पत्रकाररता 11 विज्ञान और विकास पत्रकाररता अपराध पत्रकाररता फैशन और कफल्म पत्रकाररता अन्य महत्त्वपूणट प्रश्ि : १. पत्रकाररता के विकास में कौन-सा मूल भाि सकक्रय रहता है ? २. कोई घटना समाचार कैसे बनती है ? ३. सच ू नाओं का संकलन, संपादन कर पाठकों तक पहुाँचाने की कक्रया को क्या कहते हैं ? ४. सम्पादकीय में सम्पादक का नाम क्यों नहीं सलखा जाता ? ५. ननम्न के बारे में सलणखए – (क) डेड लाइन (ख) फ्लैश/ब्रेककंग न्द्यज ू (ग) गाइड लाइन (घ) लीड 12 प्वलभन्ि माध्यमों के ललए लेखि प्प्रंट माध्यम (मुठित माध्यम)- १. प्प्रंट मीड़िया से क्या आशय है ? छपाई िाले संचार माध्यम को वप्रंट मीडडया कहते हैं | इसे मुिण-माध्यम भी कहा जाता है | समाचार-पत्र ,पबत्रकाएाँ, पुस्तकें आहद इसके प्रमुख रूप हैं | २. जिसंचार के आधनु िक माध्यमों में सबसे परु ािा माध्यम कौि-सा है ? जनसंचार के आधनु नक माध्यमों में सबसे परु ाना माध्यम वप्रंट माध्यम है | ३. आधनु िक छापाखािे का आप्वष्कार ककसिे ककया ? आधनु नक छापाखाने का आविर्ष्कार जमयनी के गुटेनबगय ने ककया। ४. भारत में पहला छापाखािा कब और कहााँ पर खल ु ा था ? भारत में पहला छापाखाना सन १५५६ में गोिा में खल ु ा, इसे ईसाई समशनररयों ने धमय-प्रचार की पस् ु तकें छापने के सलए खोला था | ५. जिसंचार के मुठित माध्यम कौि-कौि से हैं ? मुहद्रत माध्यमों के अन्द्तगयत अखबार, पबत्रकाएाँ, पुस्तकें आहद आती हैं । ६. मुठित माध्यम की प्वशेषताएाँ ललखखए | छपे हुए शब्दों में स्थानयत्ि होता है , इन्द्हें सुविधानुसार ककसी भी प्रकार से पढा ा़ जा सकता है । यह माध्यम सलणखत भार्ा का विस्तार है । यह धचंतन, विचार- विश्लेर्ण का माध्यम है । ७. मुठित माध्यम की सीमाएाँ (र्दोष) ललखखए | ननरक्षरों के सलए मुहद्रत माध्यम ककसी काम के नहीं होते। ये तुरंत घटी घटनाओं को संचासलत नहीं कर सकते। इसमें स्पेस तथा शब्द सीमा का ध्यान रखना पड़ता है । इसमें एक बार समाचार छप जाने के बाद अशुद्धध-सुधार नहीं ककया जा सकता। ८. मुठित माध्यमों के लेखि के ललए ललखते समय ककि-ककि बातों का जािा चाठहए | भार्ागत शुद्धता का ध्यान रखा जाना चाहहए। प्रचसलत भार्ा का प्रयोग ककया जाए। समय, शब्द ि स्थान की सीमा का ध्यान रखा जाना चाहहए। लेखन में तारतम्यता एिं सहज प्रिाह होना चाहहए। 13 ध्याि रखा रे ड़ियो (आकाशवाणी) १. इलैक्रानिक माध्यम से क्या तात्पयट है ? न्द्जस जन संचार में इलैक्राननक उपकरणों का सहारा सलया जाता है इलैक्राननक माध्यम कहते हैं। रे डडयो, दरू दशयन , इंटरनेट प्रमुख इलैक्राननक माध्यम हैं। २. आल इंड़िया रे ड़ियो की प्वधधवत स्थापिा कब हुई ? सन १९३६ में ३. एफ़.एम. रे ड़ियो की शरु ु आत कब से हुई ? एि.एम. (किक्िें सी माड्यल ु ेशन) रे डडयो की शरू ु आत सन १९९३ से हुई । ४. रे ड़ियो ककस प्रकार का माध्यम है ? रे डडयो एक इलैक्रोननक श्रवय माध्यम है । इसमें शब्द एिं आिाज का महत्त्ि होता है । यह एक एक रे खीय माध्यम है । ५. रे ड़ियो समाचार ककस शैली पर आधाररत होते हैं ? रे डडयो समाचार की संरचना उल्टावपरासमड शैली पर आधाररत होती है । ६. उल्टा प्परालमि शैली क्या है ? यह ककतिे भागों में बाँटी होती है ? न्द्जसमें तथ्यों को महत्त्ि के क्रम से प्रस्तुत ककया जाता है , सियप्रथम सबसे ज्यादा महत्त्िपूणय तथ्य को तथा उसके उपरांत महत्त्ि की दृन्द्र्ष्ट से घटते जाता है उसे उल्टा वपरासमड शैली कहते हैं । भागों में बााँटा जाता है -इंरो, बााँडी और समापन। क्रम में तथ्यों को रखा उल्टावपरासमड शैली में समाचार को तीन ७. रे ड़ियो समाचार-लेखि के ललए ककि-ककि बुनियार्दी बातों पर ध्याि ठर्दया जािा चाठहए? समाचार िाचन के सलए तैयार की गई कापी साि-सुथरी ओ टाइप्ड कॉपी कॉपी को हरपल स्पेस में टाइप ककया जाना चाहहए। पयायप्त हासशया छोडा ा़ जाना चाहहए। अंकों को सलखने में सािधानी रखनी चाहहए। संक्षक्षप्ताक्षरों के प्रयोग से बचा जाना चाहहए। हो। टे लीप्वजि(र्दरू र्दशटि) : १. र्दरू र्दशटि जि संचार का ककस प्रकार का माध्यम है ? र्दरू र्दशटि जनसंचार का सबसे लोकवप्रय साथ दृश्यों का भी ि सशक्त माध्यम है । इसमें ध्िननयों के साथ- समािेश होता है । इसके सलए समाचार सलखते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कक शब्द ि पदे पर हदखने िाले दृश्य में समानता हो। २. भारत में टे लीप्वजि का आरं भ और प्वकास ककस प्रकार हुआ ? भारत में टे लीविजन का प्रारं भ १५ ससतंबर १९५९ को हुआ । यूनेस्को की एक शैक्षक्षक पररयोजना के अन्द्तगयत हदल्ली के आसपास के एक गााँि में दो टी.िी. सैट लगाए गए, न्द्जन्द्हें २०० लोगों ने दे खा । १९६५ के बाद विधधित टीिी दरू दशयन नामक ननकाय की स्थापना हुई। 14 सेिा आरं भ हुई । १९७६ में ३. टी०वी० खबरों के प्वलभन्ि चरणों को ललखखए । दरू दशयन मे कोई भी सूचना ननम्न चरणों या सोपानों को पार कर दशयकों तक पहुाँचती है । (१) फ़्लैश या ब्रेककंग न्द्यूज (समाचार को कम-से-कम शब्दों में दशयकों पहुाँचाना) (२)ड्राई एंकर (एंकर द्िारा शब्दों तक तत्काल में खबर के विर्य में बताया जाता है ) (३) िोन इन (एंकर ररपोटय र से िोन पर बात कर दशयकों तक सच ू नाएाँ पहुाँचाता है ) (४) एंकर-विजअ ु ल(समाचार के साथ-साथ संबंधधत दृश्यों को हदखाया जाना) (५) एंकर-बाइट(एंकर का प्रत्यक्षदशी या संबंधधत वयन्द्क्त के कथन या बातचीत द्िारा प्रामाणणक खबर प्रस्तत ु करना) (६) लाइि(घटनास्थल से खबर का सीधा प्रसारण) (७) एंकर-पैकेज (इसमें एंकर द्िारा प्रस्तत ु सच ू नाएाँ; संबंधधत घटना के दृश्य, बाइट, ग्राकिक्स आहद द्िारा वयिन्द्स्थत ढं ग से हदखाई जाती हैं) इंटरिेट १. इंटर िेट क्या है ? इसके गुण-र्दोषों पर प्रकाश िाललए । इंटरनेट विश्िवयापी अंतजायल है , यह जनसंचार का सबसे निीन ि लोकवप्रय माध्यम है । इसमें जनसंचार के सभी माध्यमों के गुण समाहहत हैं। यह जहााँ सूचना, मनोरं जन, ज्ञान और वयन्द्क्तगत एिं साियजननक संिादों के आदान-प्रदान के सलए है । श्रेर्ष्ठ माध्यम है , िहीं अश्लीलता, दर्ष्ु प्रचारि गंदगी िैलाने का भी जररया २. इंटरिेट पत्रकाररताक्या है ? इंटरनेट(विश्ववयापी अंतजायल) पर समाचारों का प्रकाशन या आदान-प्रदान इंटरनेट पत्रकाररता कहलाता है । इंटरनेट पत्रकाररता दो रूपों में होती है । प्रथम- समाचार संप्रेर्ण के सलए नेट का प्रयोग करना । दस ू रा- ररपोटय र अपने समाचार को ई-मेल द्िारा अन्द्यत्र भेजने ि समाचार को संकसलत करने सत्यता,विश्िसनीयता ससद्ध करने के सलए करता है । ३. इंटरिेट पत्रकाररता को और ककि-ककि िामों से जािा जाता है ? ऑनलाइन पत्रकाररता, साइबरपत्रकाररता,िेब पत्रकाररता आहद नामों से । ४. प्वश्व-स्तर पर इंटरिेट पत्रकाररता का प्वकास ककि-ककि चरणों में हुआ ? विश्ि-स्तर पर इंटरनेट पत्रकाररता का विकास ननम्नसलणखत चरणों में हुआ प्रथम चरण------- १९८२ से १९९२ द्वितीय चरण------- १९९३ से २००१ तत ृ ीय चरण------- २००२ से अब तक 15 तथा उसकी ५. भारत में इंटरिेट पत्रकाररता का प्रारम्भ कब से हुआ ? पहला चरण १९९३ से तथा दस ू रा चरण २००३ से शुरू माना जाता है । भारत में सच्चे अथों में िेब पत्रकाररता करने िाली साइटें ’रीडडि डॉट कॉम’, इंडडयाइंिोलाइन’ि’सीिी’हैं । रीडडि को भारत की पहली साइट कहा जाता है । ६. वेब साइट पर प्वशद् ु ध पत्रकाररता शरू ु करिे का श्रेय ’तहलका डॉट्कॉम’ ककसको जाता है ? ७. भारत में सच्चे अथों में वेब पत्रकाररता करिे वाली साइटों के िाम ललखखए | ’रीडडि डॉट कॉम’,इंडडयाइंिोलाइन’ि’सीिी’ ८. भारत में कौि-कौि से समाचार-पत्र इंटरिेट पर उपलब्ध हैं ? टाइम्स आि इंडडया , हहंदस् ु तान टाइम्स, इंडडयन एक्सप्रैस , हहंद,ू हरब्यन ू आहद । ९. भारत की कौि-सी िेट-साइट भुगताि र्दे कर र्दे खी जा सकती है ? ’इंडडया टुडे’ १०. भारत की पहली साइट कौि-सी है , जो इंटरिेट पर पत्रकाररता कर रही है ? रीडडि ११. लसफ़ट िेट पर उपलब्ध अखबार का िाम ललखखए। ”प्रभा साक्षी’ नाम का अखबार वप्रंट रूप में न होकर ससिय नेट पर उपलब्ध है । १२. पत्रकाररता के ललहाज से ठहंर्दी की सवटश्रेष्ि साइट कौि-सी है ? पत्रकाररता के सलहाज से हहन्द्दी की सियश्रेर्ष्ठ साइट बीबीसी की है , जो इंटरनेट के मानदं डों के अनुसार चल रही है । १३. ठहंर्दी वेब जगत में कौि-कौिसी साठहजत्यक पबत्रकाएाँ चल रही हैं ? हहंदी िेब जगत में ’अनुभूनत’, असभवयन्द्क्त, हहंदी नेस्ट, सराय आहद साहहन्द्त्यक पबत्रकाएाँ चल रही हैं। १४. ठहंर्दी वेब जगत की सबसे बड़ी समस्या क्या है ? हहन्द्दी िेब जगत की सबसे बडी ा़ समस्या मानक की-बोडय तथा िोंट की है । िोंट के अभाि के कारण हहन्द्दी की ज्यादातर साइटें खल ु ती ही नहीं हैं । अभ्यासाथट प्रश्ि: १. भारत में पहला छापाखान ककस उद्दे श्य से खोला गया ? २. गुटेनबगय को ककस क्षेत्र में योगदान के सलए याद ककया जाता है ? ३. रे डडयो समाचर ककस शैली में सलखे जाते हैं? ४. रे डडयो तथा टे लीविजन माध्यमों में मुख्य अंतर क्या है ? ५. एंकर बाईट क्या है ? ६. समाचार को संकसलत करने िाला वयन्द्क्त क्या कहलाता है ? ७. नेट साउं ड ककसे कहते हैं? 16 डायनसमक ८. ब्रेककंग न्द्यूज से आप क्या समझते हैं ? पत्रकारीय लेखि के प्वलभन्ि रूप और लेखि प्रकक्रया १. पत्रकारीय लेखि क्या है ? समाचार माध्यमों मे काम करने िाले पत्रकार अपने पाठकों तथा श्रोताओं तक सूचनाएाँ पहुाँचाने के सलए लेखन के विसभन्द्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं, इसे ही पत्रकारीय लेखन कहते हैं। पत्रकारीय लेखन का संबंध समसामनयक विर्यों, विचारों ि घटनाओं से है । पत्रकार को सलखते समय यह ध्यान रखना चाहहए िह सामान्द्य जनता के सलए सलख रहा है , इससलए उसकी भार्ा सरल ि रोचक होनी चाहहए। िाक्य छोटे ि सहज हों। कहठन भार्ा का प्रयोग नहीं ककया जाना चाहहए। भार्ा को प्रभािी बनाने के सलए अनािश्यक विशेर्णों,जागटन्स(अप्रचललत शब्र्दावली) और क्लीशे (प्पष्टोजक्त, र्दोहराव) का प्रयोग नहीं होना चहहए। २. पत्रकारीय लेखि के अंतगटत क्या-क्या आता है ? पत्रकररता या पत्रकारीय लेखन के अन्द्तगयत सम्पादकीय, समाचार, आलेख, ररपोटय , िीचर, स्तम्भ तथा काटूयन आहद आते हैं ३. पत्रकारीय लेखि का मुख्य उद्र्दे श्य क्या होता है ? पत्रकारीय लेखन का प्रमुख उद्दे श्य है - सूचना दे ना, सशक्षक्षत करना तथा मनोरं जन आ करना आहद होता है | ४. पत्रकारीय लेखि के प्रकार ललखए | पत्रकारीय लेखन के कईप्रकार हैं यथा- खोजपरक पत्रकाररता’, िॉचडॉग पत्रकाररता और एड्िोकैसी पत्रकाररता आहद। ५. पत्रकारककतिे प्रकार के होते हैं ? पत्रकार तीन प्रकार के होते हैं ६. समाचार पूणय कासलक अंशकासलक (न्द्स्रं गर) िीलांसर या स्ितंत्र पत्रकार ककस शैली में ललखे जाते हैं ? समाचार उलटा वपरासमड शैली में सलखे जाते हैं , यह समाचार लेखन की सबसे उपयोगी और लोकवप्रय शैली है । इस शैली का विकास अमेररका में गह ृ युद्ध इसमें महत्त्िपूणय घटना के दौरान हुआ। का िणयन पहले प्रस्तुत ककया जाता है , उसके बाद महत्त्ि की दृन्द्र्ष्ट से घटते क्रम में घटनाओं को प्रस्तुत कर समाचार का अंत ककया जाता है । समाचार में इंरो, बॉडी और समापन के क्रम में घटनाएाँ ७. समाचार के छह ककार कौि-कौि से हैं ? प्रस्तुत की जाती हैं। समाचार सलखते समय मख् ु य रूप से छह प्रश्नों- क्या, कौि, कहााँ, कब, क्यों और कैसे का उत्तर दे ने की कोसशश की जाती है । इन्द्हें समाचार के छह ककार कहा जाता है । प्रथम 17 चार प्रश्नों के उत्तर इंरो में तथा अन्द्य दो के उत्तर समापन से पूिय बॉडी िाले भाग में हदए जाते हैं । ८. फ़ीचर क्या है ? िीचर एक प्रकार का सुवयिन्द्स्थत, सज ृ नात्मक और आत्मननर्ष्ठ लेखन है । ९. फ़ीचर लेखि का क्या उद्र्दे श्य होता है ? िीचर का उद्दे श्य मुख्य रूप से पाठकों को सूचना दे ना, सशक्षक्षत करना तथा उनका मनोरं जन करना होता है । १०. फ़ीचर और समचार में क्या अंतर है ? समाचार में ररपोटय र को अपने विचारों को डालने की स्ितंत्रता नहीं होती, जबकक िीचर में लेखक को अपनी राय , दृन्द्र्ष्टकोण और भािनाओं को जाहहर करने का अिसर होता है । समाचार उल्टा वपरासमड शैली में सलखे जाते हैं, जबकक िीचर लेखन की कोई सनु नन्द्श्चत शैली नहीं होती । िीचर में समाचारों की तरह शब्दों की सीमा नहीं होती। आमतौर पर िीचर, समाचार ररपोटय से बड़े होते हैं । पत्र-पबत्रकाओं में प्राय: २५० से २००० शब्दों तक के िीचर छपते हैं । ११. प्वशेष ररपोटट से आप क्या समझते हैं ? सामान्द्य समाचारों से अलग िे विशेर् समाचार जो गहरी छान-बीन, विश्लेर्ण और वयाख्या के आधार पर प्रकासशत ककए जाते हैं, विशेर् ररपोटय कहलाते हैं । १२. प्वशेष ररपोटट के प्वलभन्ि प्रकारों को स्पष्ट कीजजए । खोजी ररपोटट : इसमें अनुपल्ब्ध तथ्यों को गहरी छान-बीन कर साियजननक ककया जाता है । (२)इन्िेतथ ररपोटट : साियजाननक रूप से प्राप्त तथ्यों की गहरी छान-बीन कर उसके महत्त्िपूणय पक्षों को पाठकों के सामने लाया जाता है । (३) प्वश्लेषणात्मक ररपोटट : इसमें ककसी घटना या समस्या का वििरण सूक्ष्मता के साथ विस्तार से हदया जाता है । ररपोटय अधधक विस्तत ृ होने पर कई हदनों तक ककस्तों में प्रकासशत की जाती है । (४)प्ववरणात्मक ररपोटट : इसमें ककसी घटना या समस्या को विस्तार एिं बारीकी के साथ प्रस्तुत ककया जाता है । १३. प्वचारपरक लेखि ककसे कहते हैं ? न्द्जस लेखन में विचार एिं धचंतन की प्रधानता होती है , उसे विचार परक लेखन कहा जाता है ।समाचार-पत्रों में समाचार एिं िीचर के अनतररक्त संपादकीय, लेख, पत्र, हटप्पणी, िररर्ष्ठपत्रकारों ि विशेर्ज्ञों के स्तंभ छपते हैं । ये सभी विचारपरक लेखन के अंतगयत आते हैं। 18 १४. संपार्दकीय से क्या अलभप्राय है ? संपादक द्िारा ककसी प्रमुख घटना या समस्या पर सलखे गए विचारात्मक न्द्जसेसंबंधधत समाचारपत्र की राय भी कहा जाता है , संपादकीय कहते हैं । लेख को, संपादकीय ककसी एक वयन्द्क्त का विचार या राय न होकर समग्र पत्र-समूह की राय होता है , इससलए संपादकीय में संपादक अथिा लेखक का नाम नहीं सलखा जाता । १५. स्तंभलेखि से क्या तात्पयट है ? यह एक प्रकार का विचारात्मक लेखन है । कुछ महत्त्िपण ू य लेखक अपने खास िैचाररक रुझान एिं लेखन शैली के सलए जाने जाते हैं । ऐसे लेखकों की लोकवप्रयता को दे खकर समाचरपत्र उन्द्हें अपने पत्र में ननयसमत स्तंभ-लेखन की न्द्जम्मेदारी प्रदान करते हैं। इस प्रकार ककसी समाचार-पत्र में ककसी ऐसे लेखक द्िारा ककया गया विसशर्ष्ट एिं ननयसमत लेखन जो अपनी विसशर्ष्ट शैली एिं िैचाररक रुझान के कारण समाज में ख्यानत-प्राप्त हो, स्तंभ लेखन कहा जाता है । १६. संपार्दक के िाम पत्र से आप क्या समझते हैं ? समाचार पत्रों में संपादकीय पर्ष्ृ ठ पर तथा पबत्रकाओं की शुरुआत में संपादक के नाम आए पत्र प्रकासशत ककए जाते हैं । यह प्रत्येक समाचारपत्र का ननयसमत स्तंभ होता है । इसके माध्यम से समाचार-पत्र अपने पाठकों को जनसमस्याओं तथा मुद्दों पर अपने विचार एिमराय वयक्त करने का अिसर प्रदान करता है । १७. साक्षात्कार/इंटरव्यू से क्या अलभप्राय है ? ककसी पत्रकार के द्िारा अपने समाचारपत्र में प्रकासशत करने के सलए, ककसी वयन्द्क्त विशेर् से उसके विर्य में अथिा ककसी विर्य या मुद्दे पर ककया गया प्रश्नोत्तरात्मक संिाद साक्षात्कार कहलाता है । अन्य महत्त्वपूणट प्रश्ि: १. सामान्द्य लेखन तथा पत्रकारीय लेखन में क्या अंतर है ? २. पत्रकारीय लेखन के उद्दे श्य सलणखए। ३. पत्रकार ककतने प्रकार के होते हैं? ४. उल्टा वपरासमड शैली का विकास कब और क्यों हुआ? ५. समाचार के ककारों के नाम सलणखए | ६. बाडी क्या है ? ७. िीचर ककस शैली में सलखा जाता है ? ८. िीचर ि समाचार में क्या अंतर है ? ९. विशेर् ररपोटय से आप क्या समझते हैं? १०. विशेर् ररपोटय के भेद सलणखए। ११. इन्द्डेप्थ ररपोटय ककसे कहते हैं? १२. विचारपरक लेखन क्या है तथा उसके अन्द्तगयत ककस प्रकार के लेख आते हैं? 19 १३. स्ितंत्र पत्रकार ककसे कहते है ? १४. पूणक य ासलक पत्रकार से क्या असभप्राय है ? १५. अंशकासलक पत्रकार क्या होता है ? प्वशेष लेखि: स्वरूप और प्रकार १. प्वशेष लेखि ककसे कहते हैं ? विशेर् लेखनककसी खास विर्य पर न्द्जसमें सामान्द्य लेखन से हट कर ककया गया लेखन है ; राजनीनतक, आधथयक, अपराध, खेल, किल्म,कृवर्, कानन ू , विज्ञान और अन्द्य ककसी भी महत्त्िपण ू य विर्य से संबंधधत विस्तत ू नाएाँ प्रदान की जाती हैं । ृ सच २. िेस्कक्या है ? समाचारपत्र, पबत्रकाओं, टीिी और रे डडयो चैनलों में अलग-अलग विर्यों पर विशेर् लेखन के सलए ननधायररत स्थल को िेस्क कहते हैं और उस विशेर् डेस्क पर काम करने िाले पत्रकारों का भी अलग समह ू होता है । यथा-वयापार तथा कारोबार के सलए अलग तथा खेल की खबरों के सलए अलग डेस्क ननधायररत होता है । ३. बीटसे क्या तात्पयट है ? विसभन्द्न विर्यों से जुड़े समाचारों के सलए संिाददाताओं के बीच काम का विभाजन आम तौर पर उनकी हदलचस्पी और ज्ञान को ध्यान में रख कर ककया जाता है । मीडडया की भार्ा में इसे बीट कहते हैं । ४. बीट ररपोठटिं ग तथा प्वशेषीकृत ररपोठटिं ग में क्या बीट ररपोहटं ग के सलए अन्तर है ? संिाददाता में उस क्षेत्र के बारे में होना पयायप्त है , साथ ही उसे जानकारी ि हदलचस्पी का आम तौर पर अपनी बीट से जुड़ीसामान्द्य खबरें ही सलखनी होती हैं । ककन्द्तु विशेर्ीकृत ररपोहटं ग में सामान्द्य समाचारों से आगे बढ़कर संबंधधत विशेर् क्षेत्र या विर्य से जुड़ी घटनाओं, समस्याओं और मुद्दों का बारीकी से विश्लेर्ण कर प्रस्तुतीकरण ककया जाता है । बीट किर करने िाले ररपोटय र को संिाददाता तथा विशेर्ीकृत ररपोहटं ग करने िाले ररपोटय र को विशेर् संिाददाता कहा जाता है । ५. प्वशेष लेखि की भाषा-शैली पर प्रकाश िाललए | विशेर् लेखन की भार्ा-शैली सामान्द्य लेखन से अलग होती है । इसमें संिाददाता को संबंधधत विर्य की तकनीकी शब्दािली का ज्ञान होना आिश्यक होता है , साथ ही यह भी आिश्यक होता है कक िह पाठकों को उस शब्दािली से पररधचत कराए न्द्जससे पाठक ररपोटय को समझ सकें। विशेर् लेखन की कोई ननन्द्श्चत शैली नहीं होती । ६. प्वशेष लेखि के क्षेत्र कौि-कौि से हो सकते हैं ? विशेर् लेखन के अनेक क्षेत्र होते हैं , यथा- अथय-वयापार, खेल, विज्ञान-प्रौद्योधगकी, कृवर्, विदे श, रक्षा, पयायिरण सशक्षा, स्िास्थ्य, किल्म-मनोरं जन, अपराध, कानन ू ि सामान्द्जक मद् ु दे आहद । अभ्यासाथट महत्त्वपण ू ट प्रश्ि : 20 १. ककसी खास विर्य पर ककए गए लेखन को क्या कहते हैं ? २. विशेर् लेखन के क्षेत्र सलणखए। ४.पत्रकारीय भार्ा में लेखन के सलए ननधायररत स्थल को क्या कहते है ? ५. बीट से आप क्या समझते हैं? ६. बीट ररपोहटं ग क्या है ? ७. बीट ररपोहटं ग तथा विशेर्ीकृत ररपोहटं ग में क्या अंतर है ? ८. विशेर् संिाददाता ककसे कहते हैं? बोिट परीक्षा में पछ ू े गए प्रश्ि एवं अन्य महत्त्वपण ू ट पष्ृ टव्य प्रश्िों का कोश : १. वप्रंट माध्यम ककसे कहते हैं? २. जनसंचार के प्रचसलत माध्यमों में सबसे परु ाना माध्यम क्या है ? ३. ककन्द्हीं दो मुहद्रत माध्यमों के नाम सलणखए | ४. छापाखाने के आविर्ष्कार का श्रेय ककसको जाता है ? ५. हहंदी का पहला समाचार-पत्र कब, कहााँ से ककसके द्िारा प्रकासशत ककया गया ? ६. हहंदी में प्रकासशत होने िाले दो दै ननक समाचार-पत्रों तथा पबत्रकाओं के नाम सलणखए | ७. रे डडयो की अपेक्षा टीिी समाचारों की लोकवप्रयता के दो कारण सलणखए | ८. पत्रकारीय लेखन तथा साहहन्द्त्यक सज ृ नात्मक लेखन का अंतर बताइए | ९. पत्रकाररता का मूलतत्ि क्या है ? १०. स्तंभलेखन से क्या तात्पयय है ? ११. पीत पत्रकाररता ककसे कहते हैं ? १२. खोजी पत्रकाररता का आशय स्पर्ष्ट कीन्द्जए | १३. समाचार शब्द को पररभावर्त कीन्द्जए | १४. उल्टा वपरासमड शैली क्या है ? १५. समाचार लेखन में छह ककारों का क्या महत्त्ि है ? १६. मुहद्रत माध्यमों की ककन्द्हीं दो विशेर्ताओं का उल्लेख कीन्द्जए | १७. डेड लाइन क्या है ? १८. रे डडयो नाटक से आप क्या समझते हैं ? १९. रे डडयो समाचार की भार्ा की दो विशेर्ताएाँ सलणखए २०. एंकर बाईट ककसे कहते हैं ? २१. टे लीविजन समाचारों में एंकर बाईट क्यों जरूरी है ? २२. महु द्रत माध्यम को स्थायी माध्यम क्यों कहा जाता है ? 21 २३. ककन्द्हीं दो समाचार चैनलों के नाम सलणखए | २४. इंटरनेट पत्रकाररता के लोकवप्रय होने के क्या कारण हैं ? २५. भारत के ककन्द्हीं चार समाचार-पत्रों के नाम सलणखए जो इंटरनेट पर उपलब्ध हैं ? २६. पत्रकाररता की भार्ा में बीट ककसे कहते हैं ? २७. विशेर् ररपोटय के दो प्रकारों का उल्लेख कीन्द्जए | २८. विशेर् लेखन के ककन्द्हीं दो प्रकारों का नामोल्लेख कीन्द्जए | २९. विशेर् ररपोटय के लेखन में ककन बातों पर अधधक बल हदया जाता है ? ३०. बीट ररपोटय र ककसे कहते हैं ? ३१. ररपोटय लेखन की भार्ा की दो विशेर्ताएाँ सलणखए | ३२. संपादकीय के साथ संपादन-लेखक का नाम क्यों नहीं हदया जाता ? ३३. संपादकीय लेखन क्या होता है ? अथिा संपादकीय से क्या तात्पयय है ? ३४. संपादक के दो प्रमख ु उत्तरदानयत्िों का उल्लेख कीन्द्जए | ३५. ऑप-एड पर्ष्ृ ठ ककसे कहते हैं? ३६. न्द्यूजपेग क्या है ? ३७. आडडएंस से आप क्या समझते हैं? ३८. इलेक्रोननक मीडडया क्या है ? ३९. काटूयन कोना क्या है ? ४०. भारत में ननयसमत अपडेट साइटों के नाम बताइए। ४१. कम्प्यूटर के लोकवप्रय होने का प्रमुख कारण बताइए। ४२. विज्ञापन ककसे कहते हैं ? ४३. फीडबैक से क्या असभप्राय है ? ४४. जनसंचार से आप क्या समझते हैं ? ४५. समाचार और फीचर में क्या अंतर है ? 22 (ख)आलेख/ररपोटट – निधाटररत अंक:५ आलेख आलेख-लेखन हे तु महत्त्िपण ू य बातें : १. ककसी विर्य पर सिांगपूणय जानकारी जो तथ्यात्मक, विश्लेर्णात्मक अथिा विचारात्मक हो आलेख कहलाती है | २. आलेख का आकार संक्षक्षप्त होता है | ३. इसमें विचारों और तथ्यों की स्पर्ष्टता रहती है , ये विचार क्रमबद्ध रूप में होने चाहहए| ४. विचार या तथ्य की पुनरािवृ त्त न हो | ५. आलेख की शैली वििेचन ,विश्लेर्ण अथिा विचार-प्रधान हो सकती है | ६. ज्िलंत मुद्दों, समस्याओं , अिसरों, चररत्र पर आलेख सलखे जा सकते हैं | ७. आलेख गंभीर अध्ययन पर आधाररत प्रामाणणक रचना होती है | िमूिा आलेख : शेर का घर जजमकाबेट िेशिल पाकट – जंगली जीिों की विसभन्द्न प्रजानतयों को सरं क्षण दे ने तथा उनकी संख्या को बढाने के उद्दे श्य से हहमालय की तराई से लगे उत्तराखंड के पौड़ी और नैनीताल न्द्जले में भारतीय महाद्िीप के पहले रार्ष्रीय अभयारण्य की स्थापना प्रससद्ध अंगरे जी लेखक न्द्जम काबेट के नाम पर की गई | न्द्जम काबेट नॅशनल पाकय नैनीताल से एक सौ पन्द्द्रह ककलोमीटर और हदल्ली से २९० ककलोमीटर दरू है । यह अभयारण्य पााँच सौ इक्कीस ककलोमीटर क्षेत्र में फैला है | निम्बर से जून के बीच यहााँ घूमने-कफरने का सिोत्तम समय है | यह अभयारण्य चार सौ से ग्यारह सौ मीटर की ऊाँचाई पर है | हढकाला इस पाकय का प्रमुख मैदानी स्थल है और कांडा सबसे ऊाँचा स्थान है | जंगल, जानिर, पहाड़ और हरी-भरी िाहदयों के िरदान से न्द्जमकाबेट पाकय दनु नया के अनूठे पाकों में है | रायल बंगाल टाइगर और एसशयाई हाथी पसंदीदा घर है | यह एसशया का सबसे पहला संरक्षक्षत जंगल है | राम गंगा नदी इसकी जीिन-धारा है | यहााँ एक सौ दस तरह के पेड़-पौधे, पचास तरह के स्तनधारी जीि, पच्चीस प्रजानतयों के सरीसप ृ और छह सौ तरह के रं ग-विरं गे पक्षी हैं | हहमालयन तें दआ ु , हहरन, भाल,ू जंगली कुत्ते, भेडड़ये, बंदर, लंगरू , जंगली भैंसे जैसे जानिरों से यह जंगल आबाद है | हर िर्य लाखों पययटक यहााँ आते हैं | शाल िक्ष ृ ों से नघरे मैदान इसके प्राकृनतक सौंदयय में चार चााँद लगा दे ते हैं | निम्िललखखत प्वषयों पर आलेख ललखखए बढ़ती आबादी : दे श की बरबादी सांप्रदानयकसद्भािना कजय में डूबा ककसान आतंकिाद की समस्या 23 लंबे-लंबे िन-पथ और हरे -भरे घास के डॉक्टर हड़ताल पर, मरीज परे शान ितयमान परीक्षा-प्रणाली बजट और बचत शन्द्क्त, संयम और साहस ररश्ित का रोग सपना सच हो अपना ररपोटट /प्रनतवेर्दि ररपोटट /प्रनतवेर्दि का सामान्य अथट: सूचनाओं के तथ्यपरक आदान-प्रदान को ररपोटय या ररपोहटं ग कहते हैं | प्रनतिेदन इसका हहंदी रूपांतरण है | ररपोटय ककसी संस्था, आयोजन या काययक्रम की तथ्यात्मक जानकारी है | बड़ी-बड़ी कंपननयां अपने अंशधारकों को िावर्यक/ अद्यधिावर्यक प्रगनत ररपोटय भेजा करती हैं| ररपोटट के गुण: तथ्यों की जानकारी स्पर्ष्ट, सटीक, प्रामाणणक हो | संस्था/ विभाग के अध्यक्ष आहद पदाधधकाररयों के नाम | गनतविधधयााँ चलानेिालों के नाम | काययक्रम का उद्दे श्य | नाम का उल्लेख हो | आयोजन-स्थल, हदनांक, हदन तथा समय | उपन्द्स्थत लोगों की जानकारी | हदए गए भार्णों के प्रमुख अंश | सलये गए ननणययों भार्ा आलंकाररक या साहहन्द्त्यक न हो कर सूचनात्मक होनी चाहहए | की जानकारी | सूचनाएाँ अन्द्यपुरुर् शैली में दी जाती हैं | मैं या हम का प्रयोग नहीं होता | संक्षक्षप्तता और क्रसमकता ररपोटय के गुण हैं | नई बात नए अनुच्छे द से सलखें | प्रनतिेदक या ररपोटय र के हस्ताक्षर | निम्िललखखत प्वषयों पर ररपोटट तैयार कीजजए- १. पूजा-स्थलों पर दशयनाधथययों की अननयंबत्रत भीड़ २. दे श की महाँगी होती वयािसानयक सशक्षा ३. मतदान केन्द्द्र का दृश्य ४. आए हदन होती सड़क दघ य नाएाँ ु ट ५. आकन्द्स्मक बाढ़ से हुई जनधन की क्षनत ६.िीचर लेखि- निधाटररत अंक:५ समकालीन घटना तथा ककसी भी क्षेत्र विशेर् की विसशर्ष्ट जानकारी 24 के सधचत्र तथा मोहक वििरण को फीचर कहते हैं |फीचर मनोरं जक ढं ग से तथ्यों को प्रस्तुत करने की कला है | िस्तुत: फीचर मनोरं जन की उं गली थाम कर जानकारी परोसता है | इस प्रकार मानिीय रूधच के विर्यों के साथ सीसमत समाचार जब चटपटा लेख बन जाता है तो िह फीचर कहा जाता है | अथायत- “ज्ञान + मनोरं जन = फीचर” | फीचर में अतीत, ितयमान और भविर्ष्य की प्रेरणा होती है | फीचर ले खक पाठक को ितयमान दशा से जोड़ता है , अतीत में ले जाता है और भविर्ष्य के सपने भी बुनता है | फीचर लेखन की शैली विसशर्ष्ट होती है | शैली की यह सभन्द्नता ही फीचर को समाचार, आलेख या ररपोटय से अलग श्रेणी में ला कर खडा करती है | फीचर लेखन को अधधक स्पर्ष्ट रूप से समझने के सलए ननम्न बातों का ध्यान रखें – १. समाचार साधारण जनभार्ा में प्रस्तत ु होता है और फीचर एक विशेर् िगय ि विचारधारा पर केंहद्रत रहते हुए विसशर्ष्ट शैली में सलखा जाता है | २. एक समाचार हर एक पत्र में एक ही स्िरुप में रहता है परन्द्तु एक ही विर्य पर फीचर अलग-अलग पत्रोंमें अलग-अलग प्रस्तुनत सलये होते हैं | फीचर के साथ लेखक का नाम रहता है | ३. फीचर में अनतररक्त साज-सज्जा, तथ्यों और कल्पना का रोचक समश्रण रहता है | ४. घटना के पररिेश, विविध प्रनतकक्रयाएाँ िउनके हैं | दरू गामी पररणाम भी फीचर में रहा करते ५. उद्दे श्य की दृन्द्र्ष्ट से फीचर तथ्यों की खोज के साथ मागयदशयन और मनोरं जन की दनु नया भी प्रस्तुत करता है | ६. फीचर िमूिा िीचर : फोटो-प्रस्तुनत से अधधक प्रभािशाली बन जाता है | प्पयक्कड़ तोता : संगत का असर आता है, कफर चाहे िह आदमी हो या तोता | बब्रटे न में एक तोते को अपने मासलक की संगत में शराब की ऐसी लत लगी कक उसने घर िालों और पड़ोससयों का जीना बेहाल कर हदया | जब तोते को सुधारने के सारे हथकंडे फेल हो गए तो मजबूरन मासलक को ही शराब छोड़नी पड़ी | माकय बेटोककयो ने अफ्रीकी प्रजानत का तोता मसलयन पाला| माकय यदा-कदा शराब पी लेते | धगलास में बची शराब मसलयन चट कर जाता | धीरे -धीरे मसलयन की तलब बढ़ने लगी| िह िक्त-बेिक्त शराब मााँगने लगा |------------------------------ 25 निम्िललखखत प्वषयों पर फ़ीचरललखखए: चन ु ािी िायदे महाँगाई के बोझतले मजदरू िाहनों की बढ़ती संख्या िररर्ष्ठ नागररकों के प्रनत हमारा नजररया ककसान का एक हदन क्रांनत के स्िप्न-द्रर्ष्टा अब्दल ु कलाम कक्रकेट का नया संस्करण ट्िेंटी-ट्िेंटी बेहतर संसाधन बन सकती है जनसंख्या 26 अध्ययि-सामग्री कक्षा द्वार्दश- ठहंर्दी (केंठिक) पद्य खंि इस खंि से तीि प्रकार के प्रश्ि पूछे जाएाँगे – प्रश्ि :-७ ठर्दए गए काव्यांश में से अथट ग्रहण संबंधी चार प्रश्ि- २*४ = ८ अंक प्रश्ि ८ :- ठर्दए गए काव्यांश में से सौंर्दयट-बोध संबंधी तीि प्रश्ि -२*३= ६ अंक प्रश्ि ९ :-प्वषय-वस्तु पर आधाररत तीि प्रश्िों में से र्दो प्रश्िों के उत्तर -३*२=६ अंक अधधक अंक-प्राजतत हे तु ध्याि र्दे िे योग्य बातें : कवि, कविता का नाम ,एक दो िाक्यों में सुगहठत प्रसंग या पंन्द्क्तयों का सार अननिायय रूप से याद होना चाहहए . ितयनी एिं िाक्य गठन की अशुद्धधयााँ ० ( जीरो) % रखने के सलए उत्तरों का सलणखत अभ्यास अननिायय है . तीन अंक के प्रश्न के उत्तर में अननिाययत: तीन विचार-बबंद,ु शीर्यक बना कर रे खांककत करते हुए, क्रमबद्ध रूप से उत्तर सलखा जाना चाहहए . अन्द्य प्रश्नों के उत्तरों में भी इसी प्रकार अंकों के अनुसार विचार-बबंदओ ु ं की संख्या होनी चाहहए . समय पर पूणय प्रश्न-पत्र हल करने के सलए उत्तरों के मुख्य बबंद ु क्रम से याद होने चाहहए . उत्तरों के विचार-बबन्द्दओ ु ं एिं िाक्यों का ननन्द्श्चत क्रम होना चाहहए जो पहले से उत्तर याद ककए बबना संभि नहीं होता . कावय-सोंदयय संबंधी प्रश्नों में अलंकार ,छं द आहद विशेर्ताएाँ कविता में से उदाहरण अंश सलख कर स्पर्ष्ट की जानी चाहहए . भाि-साम्य के रूप में अथय से समलती-जल ु ती अन्द्य कवियों की पंन्द्क्तयााँ सलखना उपयक् ु त है . 27 कवि एिं कविता की पर्ष्ृ ठ्भूसम सशक्षक की सहायता से अननिायय रूप से समझ लें | उपयुक्त स्थान पर इसे उत्तर में संकेनतत भी करें . 28 1 कप्वता :– आत्म पररचय हररवंश राय बच्चि ‘आत्मपररचय’- ‘निशा निमंत्रण’ गीत-संग्रह का एक गीत सार :१ स्ियं को जानना दनु नया को जानने से अधधक कहठन भी है और आिश्यक भी . २ वयन्द्क्त के सलए समाज से ननरपेक्ष एिं उदासीन रहना न तो संभि है न ही उधचत है .दनु नया अपने वयंग्य बाणों ,शासन –प्रशासन से चाहे ककतना कर्ष्ट दे ,पर दनु नया से कट कर वयन्द्क्त अपनी पहचान नहीं बना सकता .पररिेश ही वयन्द्क्त को बनाता है , ढालता है . ३ इस कविता में कवि ने समाज एिं पररिेश से प्रेम एिं संघर्य का संबंध ननभाते हुए जीिन में सामंजस्य स्थावपत करने की बात की है . ४ छायािादोत्तर गीनत कावय में प्रीनत-कलह का यह विरोधाभास हदखाई दे ता है . वयन्द्क्त और समाज का संबंध इसी प्रकार प्रेम और संघर्य का है न्द्जसमें कवि आलोचना की परिाह न करते हुए संतुलन स्थावपत करते हुए चलता है . ५ ‘नादान िहीं है हाय ,जहााँ पर दाना’ पंन्द्क्त के माध्यम से कवि सत्य की खोज के सलए ,अहं कार को त्याग कर नई सोच अपनाने पर जोर दे रहा है . काव्य-खंि पर आधाररत र्दो प्रकार के प्रश्ि पूछे जाएाँगे – अथटग्रहण-संबंधी एवं सौंर्दयट-बोध-संबंधी अथटग्रहण-संबंधी प्रश्ि 1‐“मैं जग-जीिन का भार सलए कफरता हूाँ, कफर भी जीिन में प्यार सलए कफरता हूाँ, कर हदया ककसी ने झंकृत न्द्जनको छूकर, मैं सााँसों के दो तार सलए कफरता हूाँ.“ प्रश्न १:-कवि अपने हृदय में क्या - क्या सलए कफरता है ? 29 उत्तर:- कवि अपने सांसाररक अनुभिों के सुख - दख ु हृदय में सलए कफरता है । प्रश्न २:- कवि का जग से कैसा ररश्ता है ? उत्तर:- कवि का जगजीवि से खट्टामीिा ररश्ता है । प्रश्न३:- पररिेश का वयन्द्क्त से क्या संबंध है ? मैं सााँसों के दो तार सलए कफरता हूाँ.“के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ? उत्तर:- संसार में रह कर संसार से निरपेक्षता संभव िहींहै क्योंकक पररवेश में रहकर ही व्यजक्त की पहचाि बनती है ।उसकी अन्द्स्मता सुरक्षक्षत रहती है । प्रश्न४:- विरोधों के बीच कवि का जीिन ककस प्रकार वयतीत होता है? उत्तर:-दनु नया के साथ संघर्यपण ू य संबंध के चलते कवि का जीवि-प्वरोधों के बीच सामंजस्य करते हुए वयतीत होता है । सौंर्दयट-बोध संबंधी प्रश्ि “ मैं स्नेह-सुरा का पान ककया करता हूाँ, मैं कभी न जग का ध्यान ककया करता हूाँ, जग पछ ू रहा उनको जो जग की गाते, मैं अपने मन का गान ककया करता हूाँ।” प्रश्न १:- कविता की इन पंन्द्क्तयों से अलंकार छााँट कर सलणखए| उत्तर :-स्नेह- सरु ा– रूपक अलंकार प्रश्न २:- कविता में प्रयुक्त मुहािरे सलणखए :उत्तर :-‘जग पूछ रहा’‚ ‘जग की गाते’‚ ‘मन का गान’ आहद मुहािरों का प्रयोग प्रश्न३:- कविता में प्रयुक्त शैली का नाम सलखें | उत्तर :- गीनत-शैली 30 कप्वता आत्म-पररचय प्वषय-वस्तु पर आधाररत प्रश्िोत्तर प्रश्न१:-कवि कौन-कौन-सी न्द्स्थनतयों में मस्त रहता है और क्यों? उत्तर:- कवि सांसाररक सुख-दख ु की दोनों पररन्द्स्थनतयों में मग्न रहता है । उसके पास प्रेम की सांत्िना दानयनी अमूल्य ननधध है । प्रश्न२:-कवि भि-सागर से तरने के सलए क्या उपाय अपना रहा है ? उत्तर:- संसार के कर्ष्टों को सहते हुए हमें यह ध्यान रखना चाहहए कक कर्ष्टों को सहना पड़ेगा। इसके सलए मनर्ष्ु य को हाँस कर कर्ष्ट सहना चाहहए। प्रश्न३:-’अपने मन का गान’ का क्या आशय है ? उत्तर:- संसार उन लोगों को आदर दे ता है जो उसकी बनाई लीक पर चलते हैं परं तु कवि केिल िही कायय करता है जो उसके मन, बुद्धध और वििेक को अच्छा लगता है । प्रश्न४:- ’नादान िहीं हैं हाय जहााँ पर दाना’ का क्या आशय है ? उत्तर:- जहााँ कहीं मनर्ष्ु य को विद्ित्ता का अहं कार है िास्ति में िही नादानी का सबसे बड़ा लक्षण है । प्रश्न५:- ’रोदन में राग’ कैसे संभि है ? उत्तर:- कवि की रचनाओं में वयक्त पीड़ा िास्ति में उसके हृदय में मानि मात्र के प्रनत वयाप्त प्रेम का ही सूचक है । प्रश्न६:- ”मैं फूट पड़ा तुम कहते छं द बनाना” का अथय स्पर्ष्ट कीन्द्जए। उत्तर:- कवि की श्रेर्ष्ठ रचनाएाँ िास्ति में उसके मन की पीड़ा की ही असभवयन्द्क्त है न्द्जनकी सराहना संसार श्रेर्ष्ठ साहहत्य कहकर ककया करता है । 31 कप्वता ठर्दि जल्र्र्दी जल्र्दी ढलता है । प्रस्तुत कविता में कवि बच्चन कहते हैं कक समय बीतते जाने का एहसास हमें लक्ष्य-प्रान्द्प्त के सलए प्रयास करने के सलए प्रेररत करता है । मागय पर चलने िाला राही यह सोचकर अपनी मंन्द्जल की ओर कदम बढ़ाता है कक कहीं रास्तें में ही रात न हो जाए। पक्षक्षयों को भी हदन बीतने के साथ यह एहसास होता है कक उनके बच्चे कुछ पाने की आशा में घोंसलों से झांक रहे होंगे। यह सोचकर उनके पंखो में गनत आ जाती है कक िे जल्दी से अपने बच्चों से समल सकें। कविता में आशावार्दी स्वर है ।गंतवय का स्मरण पधथक के कर्दमों में स्िूनतट भर दे ता है ।आशा की ककरण जीवि की जड़ता को समातत कर दे ती है । िैयन्द्क्तक अनभ ु नू त का कवि होने पर भी बच्चन जी की रचनाएाँ ककसी सकारात्मक सोच तक ले जाने का प्रयास हैं। अथटग्रहण-संबंधी प्रश्ि “बच्चे प्रत्याशा में होंगे नीड़ों से झांक रहे होंगे। यह ध्यान परों में धचडड़या के भरता ककतनी चंचलता है ।” प्रश्न १ :-पथ और रात से क्या तात्पयय है ? उत्तर :-जीिन रूपी पथ में मत्ृ यु रूपी रात से सचेत रहने के सलए कहा गया है । प्रश्न२ :-पधथक के पैरों की गनत ककस प्रकार बढ़ जाती है ? उत्तर :-मंन्द्जल के पास होने का अहसास‚ वयन्द्क्त के मन में स्फूनतय भर दे ता है । प्रश्न३ :-धचडड़या की चंचलता का क्या कारण है ? उत्तर :-धचडड़या के बच्चे उसकी प्रतीक्षा करते होंगे यह विचार धचडड़या के पंखों में गनत भर कर उसे चंचल बना दे ता है । प्रश्न४ :-प्रयासों में तेजी लाने के सलए मनुर्ष्य को क्या करना चाहहए? 32 उत्तर :- प्रयासों में तेजी लाने के सलए मनुर्ष्य को जीिन में एक ननन्द्श्चत मधरु लक्ष्य स्थावपत करना चाहहए। 2 पतंग आलोक धन्वा पतंग कविता में कवि आलोक धन्द्िा बच्चों की बाल सुलभ इच्छाओं और उमंगों तथा प्रकृनत के साथ उनके रागात्मक संबंधों का अत्यंत सुन्द्दर धचत्रण ककया है ।भादों मास गुजर जाने के बाद शरद ऋतु का आगमन होता है ।चारों ओर प्रकाश फैल जाता है ।सिेरे के सय ू य का प्रकाश लाल चमकीला हो जाता है ।शरद ऋतु के आगमन से उत्साह एिं उमंग का माहौल बन जाता है । शरद ऋतु का यह चमकीला इशारा बच्चों को पतंग उड़ाने के सलए बल ु ाता है , और पतंग उड़ाने के सलए मंद मंद िायु चलाकर आकाश को इस योग्य बनाता है कक दनु नया की सबसे हलके रं गीन कागज और बांस की सबसे पतली कमानी से बनी पतंगें आकाश की ऊाँचाइयों में उड़ सके‘।बच्चों के पााँिों की कोमलता से आकवर्यत हो कर मानो धरती उनके पास आती है अन्द्यथा उनके पााँि धरती पर पड़ते ही नहीं| ऐसा लगता है मानो िे हिा में उड़ते जा रहे हैं।पतंग उड़ाते समय बच्चे रोमांधचत होते हैं |एक संगीतमय ताल पर उनके शरीर हिा में लहराते हैं।िे ककसी भी खतरे से बबलकुल बेखबर होते हैं।बाल मनोविज्ञान. बाल कक्रया– कलापों एिं बाल सुलभ इच्छाओं का सुंर्दर बबंबों के माध्यम से अंकि ककया गया है । सौंर्दयट-बोध संबंधी प्रश्ि ‘जन्द्म से ही लाते हैं अपने साथ कपास’‘हदशाओं को मद ृ ं ग की बजाते हुए’ ‘और भी ननडर हो कर सुनहले सूरज के सामने आते हैं’। ‘छतों को और भी नरम बनाते हुए’। ‘जब िे पें ग भरते हुए चले आते हैं डाल की तरह लचीले िेग से अक्सर।‘ 33 प्रश्न १:- ‘जन्द्म से ही लाते हैं अपने साथ कपास’इस पंन्द्क्त की भार्ा संबंधी विशेर्ता सलणखए | उत्तर :- इस पंन्द्क्त की भार्ा संबंधी विशेर्ता ननम्नसलणखत हैं :- नए प्रतीकों का प्रयोग :-कपास-कोमलता प्रश्न२:- इस पंन्द्क्त में प्रयुक्त लाक्षणणक अथय को स्पर्ष्ट कीन्द्जए| उत्तर :- लाक्षणणकता -‘हदशाओं को मद ृ ं ग की बजाते हुए’-संगीतमय िातािरण की सन्द्ृ र्ष्ट प्रश्न३ :- सुनहला सूरज प्रतीक का अथय सलखें | उत्तर :- सुनहले सूरज के सामने: – ननडर ,उत्साह से भरे होना 3 कप्वता के बहािे काँु वर िारायण काँु िर नारायणकी रचनाओं में संयम‚ पररष्कार एवं साि सुथरापि है ।यथाथट का कलात्मक संवेर्दिापूणट धचत्रण उनकी रचनाओं की विशेर्ता है ।उनकी रचनाएाँ जीवि को समझिे की जजज्ञासा है यथाथय– प्रान्द्प्त की घोर्णा नहीं।वैयजक्तक एवं सामाजजक तिाव वयंजनापूणय ढ़ं ग से उनकी रचनाओं में स्थान में पाता है ।प्रस्तत ु कविता में कवित्ि शन्द्क्त का िणयन है । कविता धचडड़या की उड़ान की तरह कल्पना की उड़ान है लेककन धचडड़या के उड़ने की अपनी सीमा है जबकक कवि अपनी कल्पना के पंख पसारकर दे श और काल की सीमाओं से परे उड़ जाता है । फूल कविता सलखने की प्रेरणा तो बनता है लेककन कविता तो बबना मरु झाए हर यग ु में अपनी खश ु बू बबखेरती रहती है । कविता बच्चों के खेल के समान है और समय और काल की सीमाओं की परिाह ककए बबना अपनी कल्पना के पंख पसारकर उड़ने की कला बच्चे भी जानते है । मानिी बबंबों के माध्यम से कावय रचना– प्रकक्रया को प्रस्तत ु ककया गया है । कविता में धचडड़या फूल और बच्चे के प्रतीकों के माध्यम से बच्चे की रचिात्मक ऊजाट की तुलिा कप्वता-रचिा से की गई है । धचडड़या की उड़ान िूल का प्वकास अपिी सीमा में आबद्ध है परन्द्तु कवि की कल्पना शन्द्क्त एिं बालक के स्वति व ऊजाट असीम है । 34 साहहत्य का महत्ि‚ प्राकृनतक सौन्र्दयट की अपेक्षा मािव के भाव-सौन्र्दयट की श्रेष्िता का प्रनतपादन ककया गया है । “कविता की उड़ान है धचडड़या के बहाने कविता की उड़ान भला धचडड़या क्या जाने बाहर भीतर इस घर ,उस घर कविता के पंख लगा उड़ने के माने धचडड़या क्या जाने?” प्रश्न १:- इन पंन्द्क्तयों की भार्ा संबंधी उत्तर :- इन पंन्द्क्तयों की भार्ा संबंधी १ िए प्रतीक :-धचडड़या‚ विशेर्ताएं सलणखए | विशेर्ताएं ननम्नसलणखत हैं :- । २ मह ु ावरों का सटीक प्रयोग :–सब घर एक कर दे ना‚ कवि की कल्पना की उियर शन्द्क्त न्द्जसका प्रयोग करने में कवि जमीन-आसमान एक कर दे ता है | प्रश्न २ कविता की उड़ान –का लाक्षणणक अथय स्पर्ष्ट कीन्द्जए | उत्तर :-कावय की सूक्ष्म अथय ननरूपण शन्द्क्त ,कवि की कल्पना का विस्तार प्रश्न :- कविता के पंख ककसका प्रतीक हैं ? उत्तर :-कवि की कल्पना शन्द्क्त का | 35 3 कप्वता के बहािे काँु वर िारायण प्वषय-वस्तु पर आधाररत प्रश्िोत्तर प्रश्न१:-धचडड़या की उड़ान एिं कविता की उड़ान में क्या समानता है ? उत्तर :-उपकरणों की समािता :- धचडड़या एक घोंसले का सज ृ न नतनके एकत्र करके करती है | कवि भी उसी प्रकार अनेक भािों एिं विचारों का संग्रह करके कावय रचना करता है । क्षमता की समािता :- धचडड़या की उड़ान और कवि की कल्पना की उड़ान दोनों दरू तक जाती हैं| प्रश्न२ :- कविता की उड़ान धचडड़या की समझ से परे क्यों है ? उत्तर :- कविता की उड़ान धचडड़या की उड़ान से कहीं अधधक सूक्ष्म और महत्त्िपूणय होती है । प्रश्न३ :-“फूल मुरझा जाते हैं पर कविता नहीं” क्यों स्पर्ष्ट कीन्द्जए। उत्तर :- कविता कालजयी होती है उसका मल् ू य शाश्वत होता है जबकक फूल बहुत जल्र्दी कुम्हला जाते हैं। प्रश्न४ :-“बच्चे की उछल-कूद. सब घर एक कर दे ना’ एिं ‘कवि का कविता सलखना’ दोनों मे क्या समानता एिं विर्मता है ? उत्तर :-बच्चा खेल-खेल में घर का सारा सामाि अस्तव्यस्त कर दे ता है . सब कुछ टटोलता है एक स्थाि पर एकत्र कर लेता है काव्र्य रचना-प्रकक्रया में कवि भी परू ा मािव जीवि खंगाल लेता है . एक जगह प्परोता है पर कफर भी दोनों के प्रयासों में बाल-कक्रयाओं का आनंद कवि नहीं समझ सकता। कप्वता – बात सीधी थी पर प्रस्तत ु कविता में भाि के अनरू ु प भार्ा के महत्त्ि पर बल हदया गया है । कवि कहते हैं कक एक बार िह सरल सीधे कथ्य की असभवयन्द्क्त में भी भार्ा के चक्कर में ऐसा फाँस गया कक उसे कथ्य ही बदलार जोर बदला सा लगने लगा। कवि कहता है कक न्द्जस प्रका36 जबरदस्ती करने से कील की चड़ ू ी मर जाती है और तब चड़ ू ीदार कील को चड़ ू ीविहीन कील की तरह ठोंकना पड़ता है उसी प्रकार कथ्य के अनक ु ू ल भार्ा के अभाि में प्रभािहीन भार्ा में भाि को असभवयन्द्क्त ककया जाता है । अंत में भाि ने एक शरारती बच्चे के समान कवि से पूछा कक तूने क्या अभी तक भार्ा का स्िाभाविक प्रयोग नहीं सीखा। इस कविता में भार्ा की संप्रेर्ण-शन्द्क्त का महत्त्ि दशायया गया है । कृबत्रमता एिं भार्ा की अनािश्यक पच्चीकारी से भार्ा की पकड़ कमज़ोर हो जाती है । शब्द अपनी अथयित्ता खो बैठता है । “ उनकी कविता में वयथय का उलझाि, अखबारी सतहीपन और िैचाररक धध ंु के बजाय संयम ,पररर्ष्कार और साि-सुथरापन है “ “ आणखरकार िही हुआ न्द्जसका मुझे डर था ज़ोर ज़बरदस्ती से बात की चड़ ू ी मर गई और िह भार्ा में बेकार घूमने लगी ! हार कर मैंने उसे कील की तरह ठोंक हदया ! ऊपर से ठीकठाक पर अंदर से न तो उसमें कसाि था न ताकत ! बात ने ,जो एक शरारती बच्चे की तरह मुझसे खेल रही थी, मझ ु े पसीना पोंछते दे खकर पछ ू ा – क्या तुमने भार्ा को 37 सहूसलयत से बरतना कभी नहीं सीखा ? प्रश्न१:- इनपंन्द्क्तयों की भार्ा संबंधी विशेर्ताएं सलणखए | उत्तर :- इनपंन्द्क्तयों की भार्ा संबंधी विशेर्ताएं ननम्नसलणखतहैं :- १ बबंब /मुहावरों का प्रयोग २ नए उपमान प्रश्न २ कावयांश में आए मुहािरों का अथय स्पर्ष्ट कीन्द्जए| उत्तर : बबंब /मुहावरों का अथट :- बात की चड़ ू ी मर जाना –बात में कसािट न होना बात का शरारती बच्चे की तरह खेलना –बात का पकड़ में न आना पें च को कील की तरह ठोंक दे ना –बात का प्रभािहीन हो जाना प्रश्न ३ :- कावयांश में आएउपमानों को स्पर्ष्ट कीन्द्जए| उत्तर: नए उपमान – अमूतय उपमेय भार्ा के सलए मूतय उपमान कील का प्रयोग। बात के सलए शरारती बच्चे का उपमान 38 कप्वता– बात सीधी थी पर प्वषय-वस्तु पर आधाररत प्रश्िोत्तर प्रश्न १ :- भार्ा के चक्कर में बात कैसे फंस जाती है ? उत्तर :-आडंबरपूणय भार्ा का प्रयोग करने से बात का अथय समझना कहठन हो जाता है । प्रश्न२ :- भार्ा को अथय की पररणनत तक पहुाँचाने के सलए कवि क्या क्या प्रयास करते हैं? उत्तर :- भार्ा को अथय की पररणनत तक पहुाँचाने के सलए कवि उसे नाना प्रकार के अलंकरणों से सजाता है कई प्रकार के भार्ा और अलंकार संबंधी प्रयोग करता है । प्रश्न३:- भार्ा मे पें च कसना क्या है ? उत्तर :-भार्ा को चामत्काररक बनाने के सलए विसभन्द्न प्रयोग करना भार्ा मे पें च कसना है परं तु इससे भार्ा का पें च ज्यादा कस जाता है अथायत कथ्य एिं शब्दों में कोई तालमेल नहीं बैठता, बात समझ में ही नहीं आती। प्रश्न४:- कवि ककस चमत्कार के बल पर िाहिाही की उम्मीद करता है ? उत्तर :-कवि शब्दों के चामत्काररक प्रयोग के बल पर िाहिाही की उम्मीद करता है । प्रश्न५:-बात एिं शरारती बच्चे का बबंब स्पर्ष्ट कीन्द्जए। उत्तर :-न्द्जस प्रकार एक शरारती बच्चा ककसी की पकड़ में नहीं आता उसी प्रकार एक उलझा दी गई बात तमाम कोसशशों के बािजूद समझने के योग्य नहीं रह जाती चाहे उसके सलए ककतने प्रयास ककए जाएं,िह एक शरारती बच्चे की तरह हाथों से कफसल जाती है । ४: कैमरे में बंर्द अपाठहज रघुवीर सहाय 39 अथट-ग्रहण-संबंधी प्रश्ि हम दरू दशयन पर बोलें गे हम समथय शन्द्क्तिान हम एक दब य को लाएाँगे ु ल एक बंद कमरे में उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहहज हैं? तो आप क्यों अपाहहज हैं ? प्रश्न १:- ‘हम दरू दशयन पर बोलें गे हम समथय शन्द्क्तिान’-का ननहहत अथय स्पर्ष्ट कीन्द्जए | उत्तर :- इन पंन्द्क्तयों में अहं की ध्िननत असभवयन्द्क्त है ‚ पत्रकाररता का बढ़ता िचयस्ि दशायया गया है । प्रश्न२:- हम एक दब य को लाएाँगे– पंन्द्क्त का वयंग्याथय स्पर्ष्ट कीन्द्जए | ु ल उत्तर :- पत्रकाररता के क्षेत्र में करुणा का खोखला प्रदशयन एक पररपाटी बन गई है | प्रश्न३:- आप क्या अपाहहज हैं? तो आप क्यों अपाहहज हैं ?पंन्द्क्त द्िारा कवि ककस विसशर्ष्ट अथय की असभवयन्द्क्त करने में सफल हुआ है ? उत्तर :- पत्रकाररता में वयािसानयकता के चलते संिेदनहीनता बढ़ती जा रही है | यहााँ अपेक्षक्षत उत्तर प्राप्त करने का अधैयय वयक्त हुआ है । सौंर्दयट-बोध-ग्रहण संबंधी अन्य प्रश्ि प्रश्न १:- इन पंन्द्क्तयों का लाक्षणणक अथय स्पर्ष्ट कीन्द्जए | “कफर हम परदे पर हदखलाएाँगे फूली हुई ऑ ंख की एक बड़ी तस्िीर 40 बहुत बड़ी तस्िीर और उसके होंठों पर एक कसमसाहट भी” उत्तर:- - लाक्षणणक अथय :- दृश्य माध्यम का प्रयोग, कलात्मक, कावयात्मक, सांकेनतक प्रस्तुनत का मात्र हदखािा। “कैमरा बस करो नहीं हुआ रहने दो” लाक्षणणक अथय :- वयािसानयक उद्दे श्य पूरा न होने की खीझ “परदे पर िक्त की कीमत है ।“– लाक्षणणक अथय :-- सूत्र िाक्य ‚क्रूर वयािसानयक उद्दे श्य का उद्घाटन प्रश्न२ :- रघुिीर सहाय की कावय कला की विशेर्ताएाँ सलणखए | उत्तर :- रघुिीर सहाय की कावय कला की विशेर्ताएाँननम्नसलणखत हैं कहानीपन और नाटकीयता बोलचाल की भार्ा के शब्दुः– बनाने के िास्ते‚ संग रुलाने हैं। सांकेनतकता– बबंब :–फूली हुई आाँख की एक बड़ी तस्िीर परदे पर िक्त की कीमत है । कैमरे में बंर्द अपाठहज प्वषय-वस्तु पर आधाररत प्रश्िोत्तर प्रश्न१:- दरू दशयन पर एक अपाहहज का साक्षात्कार ककस उद्दे श्य से हदखाया जाता है ? उत्तर :-दरू दशयन पर एक अपाहहज का साक्षात्कार‚ व्यावसानयक उद्र्दे श्यों को परू ा करिे के ललए हदखाया जाता है । 41 प्रश्न२:- अंधे को अंधा कहना ककस मानससकता का पररचायक है ? उत्तर :-अंधे को अंधा कहना‚ क्रूर और संवेर्दिाशन् ू य मािलसकता का पररचायक है । प्रश्न३ :-कविता में यह मनोिनृ त ककस प्रकार उद्घाहटत हुई है ? उत्तर :- दरू दशयन पर एक अपाहहज वयन्द्क्त को प्रर्दशटि की वस्तु मान कर उसके मि की पीड़ा को कुरे र्दा जाता है ‚ साक्षात्कारकत्र्ता को उसके निजी सुखर्दख ु से कुछ लेिार्दे िा िहीं होता है । प्रश्न४ :-‘हम समथय शन्द्क्तिान एिं हम एक दब य को लाएंगे’ में ननहहताथय स्पर्ष्ट कीन्द्जए। ु ल उत्तर :-साक्षात्कारकताय स्वयं को पण ट समझिे का ू ट माि कर‚ एक अपाहहज वयन्द्क्त को र्दब ु ल अहं कार पाले हुए है । प्रश्न५:- अपाहहज की शब्दहीन पीड़ा को मीडडयाकमी ककस प्रकार असभवयक्त कराना चाहता है ? उत्तर :-मीडडयाकमी अपाहहज की लाल सूजी हुई ऑ ंखों को‚ पीड़ा की सांकेनतक अलभव्यजक्त के रूप में प्रस्तुत करना चाहता है । प्रश्न६:-क्यामीडडयाकमी सफल होता है ‚ यहद नहीं तो क्यों? उत्तर :-मीडडयाकमी सफल नहीं होता क्यों कक प्रसारण समय समाप्त हो जाता है और प्रसारण समय के बाद यहद अपाहहज वयन्द्क्त रो भी दे ता तो उससे मीडडयाकमी का वयािसानयक उद्दे श्य पूरा नहीं हो सकता था उससलए अब उसे अपाहहज वयन्द्क्त के आंसुओं में कोई हदलचस्पी नहीं थी। प्रश्न७:- नाटकीय कविता की अंनतम पररणनत ककस रूप में होती है ? उत्तर :-बार बार प्रयास करने पर भी मीडडयाकमी‚ अपाहहज वयन्द्क्त को रोता हुआ नहीं हदखा पाता।िह खीझ जाता है और खखलसयािी मुस्कुराहट के साथ कायटक्रम समातत कर दे ता है |’सामाजजक उद्र्दे श्य से युक्त कायटक्रम’शब्र्दों में व्यंग्य है क्योंकक मीडडया के छद्म व्यावसानयक उद्र्दे श्य की पनू तट िहीं हो पाती | प्रश्न८ :-‘परदे पर िक्त की कीमत है ’ में ननहहत संकेताथय को स्पर्ष्ट कीन्द्जए। उत्तर :-प्रसारण समय में रोचक सामग्री परोस पािा ही मीडडया कसमययों का एकमात्र उद्र्दे श्य होता है ।अन्द्यथा उनके सामाजजक सरोकार मात्र एक ठर्दखावा हैं। 42 5 सहषट स्वीकारा है गजािि माधव मजु क्तबोध सार कविता में जीिन के सुख– दख ु ‚ संघर्य– अिसाद‚ उठा– पटक को समान रूप से स्िीकार करने की बात कही गई है । स्नेह की प्रगाढ़ता अपनी चरम सीमा पर पहुाँच कर वियोग की कल्पना मात्र से त्रस्त हो उठती है । प्रेमालंबन अथायत वप्रयजन पर यह भािपण ू य ननभयरता‚ कवि के मन में विस्मनृ त की चाह उत्पन्द्न करती है ।िह अपने वप्रय को पूणत य या भूल जाना चाहता है | िस्तुतुः विस्मनृ त की चाह भी स्मनृ त का ही रूप है। यह विस्मनृ त भी स्मनृ तयों के धध ुं लके से अछूती नहीं है ।वप्रय की याद ककसी न ककसी रूप में बनी ही रहती है | परं तु कवि दोनों ही पररन्द्स्थनतयों को उस परम ् सत्ता की परछाईं मानता है ।इस पररन्द्स्थनत को खश ु ी –खश ु ी स्िीकार करता है |दुःु ख-सख ु ,संघर्य –अिसाद, उठा –पटक, समलन-बबछोह को समान भाि से स्िीकार करता है |वप्रय के सामने न होने पर भी उसके आस-पास होने का अहसास बना रहता है | भािना की स्मनृ त विचार बनकर विश्ि की गुन्द्त्थयां सुलझाने में मदद करती है | स्नेह में थोड़ी ननस्संगता भी जरूरी है |अनत ककसी चीज की अच्छी नहीं |’िह’ यहााँ कोई भी हो सकता है हदिंगत मााँ वप्रय या अन्द्य |कबीर के राम की तरह ,िड्यसिथय की मातम ृ ना प्रकृनत की तरह यह प्रेम सियवयापी होना चाहता है | “मुस्काता चााँद ज्यों धरती पर रात भर मुझ पर त्यों तुम्हारा ही णखलता िह चेहरा है !” छायािाद के प्रितयक प्रसाद की लेखनी से यह स्िर इस प्रकार ध्िननत हुआ है – “दख ु की वपछली रजनी बीच विकसता सख ु का निल प्रभात। एक परदा यह झीना नील नछपाए है न्द्जसमें सुख गात।“ यह कविता ‘नई कविता’ में वयक्त रागात्मकता को आध्यान्द्त्मकता के स्तर पर प्रस्तुत करती है । 43 अथटग्रहण-संबंधी प्रश्ि “न्द्ज़ंदगी में जो कुछ भी है सहर्य स्िीकारा है ; इससलए कक जो कुछ भी मेरा है िह तुम्हें प्यारा है | गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभि सबयह िैभि विचार सब दृढ़ता यह,भीतर की सररता यह असभनि सब मौसलक है , मौसलक है इससलए कक पल-पल में जो कुछ भी जाग्रत है अपलक है संिेदन तुम्हारा है !” प्रश्न १:- कवि और कविता का नाम सलणखए| उत्तर:- कवि- गजानन माधि मुन्द्क्तबोध कविता– सहर्य स्िीकारा है प्रश्न२:- गरबीली गरीबी,भीतर की सररता आहद प्रयोगों का अथय स्पर्ष्ट कीन्द्जए | उत्तर :-गरबीली गरीबी– ननधयनता का स्िासभमानी रूप ।कवि के विचारों की मौसलकता ,अनुभिों की गहराई ,दृढ़ता , हृदय का प्रेम उसके गिय करने का कारण है | प्रश्न३ :- कवि अपने वप्रय को ककस बात का श्रेय दे रहा है ? उत्तर:- ननजी जीिन के प्रेम का संबंल कवि को विश्ि वयापी प्रेम से जड़ ु ने की प्रेरणा दे ता है |अत: कवि इसका श्रेय अपने वप्रय को दे ता है | 44 सौंर्दयट-बोध-ग्रहण संबंधी प्रश्ि “जाने क्या ररश्ता है , जाने क्या नाता है न्द्जतना भी उं डेलता हूाँ ,भर –भर कफर आता है हदल में क्या झरना है ? मीठे पानी का सोता है भीतर िह ,ऊपर तुम मुस्काता चााँद ज्यों धरती पर रात- भर मुझ पर त्यों तुम्हारा ही णखलता िह चेहरा है |” प्रश्न१:- कविता की भार्ा संबंधी दो विशेर्ताएाँ सलणखए | उत्तर:- १-सटीक प्रतीकों, २- नये उपमानों का प्रयोग प्रश्न२ :- “हदल में क्या झरना है ? मीठे पानी का सोता है ?”- -के लाक्षणणक अथय को स्पर्ष्ट कीन्द्जए | उत्तर :- “हदल में क्या झरना है ?-हृदय के अथाह प्रेम का पररचायक मीठे पानी का सोता है ?” -अविरल, कभी समाप्त होने िाला प्रेम प्रश्न३:- कविता में प्रयक् ु त बबंब का उदाहरण सलणखए | दृश्य बबंब– “मुस्काता चााँद ज्यों धरती पर रात भर। मुझ पर तुम्हारा ही णखलता िह चेहरा।“ 45 5 सहषट स्वीकारा है गजािि माधव मजु क्तबोध प्वषय-वस्तु पर आधाररत प्रश्िोत्तर प्रश्न१:-कवि ने ककसे सहर्य स्िीकारा है ? उत्तर: कविता में जीिन के सुख– दख ु ‚ संघर्य– अिसाद‚ उठा– पटक को समान रूप से स्िीकार करने की बात कही गई है । वप्रय से बबछुड़ कर भी उसकी स्मनृ तयों को वयापक स्तर पर ले जाकर विश्ि चेतना में समला दे ने की बात कही गई है | प्रश्न२:- कवि को अपने अनुभि विसशर्ष्ट एिं मौसलक क्यों लगते हैं? उत्तर:- कवि को अपनी स्िासभमानयुक्त गरीबी, जीिन के गम्भीर अनुभि विचारों का िैभि, वयन्द्क्तत्ि की दृढ़ता, मन की भािनाओं की नदी, यह सब नए रूप में मौसलक लगते हैं क्यों कक उसके जीिन में जो कुछ भी घटता है िह और जाग्रत है , प्वश्व उपयोगी है अत: उसकी उपलन्द्ब्ध है िह उसकी प्प्रया की प्रेरणा से ही संभव हुआ है । उसके जीिन का प्रत्येक अभाि ऊजाय बनकर जीवि में िई ठर्दशा ही दे ता रहा है | प्रश्न३:- “हदल का झरना” का सांकेनतक अथय स्पर्ष्ट कीन्द्जए। उत्तर:-न्द्जस प्रकार झरने में चारों ओर की पहाडड़यों से पानी इकट्टठा हो जाता है उसे एक कभी खत्म ि होिे वाले स्रोत के रूप में प्रयोग ककया जा सकता है उसी प्रकार कवि के हदल में न्द्स्थत प्रेम उमड़ता है , कभी समाप्त नहीं होता। जीवि का लसंचि करता है | व्यजक्तगत स्वाथट से र्दरू पूरे समाज के ललए जीविर्दायी हो जाता है | प्रश्न४:- ‘न्द्जतना भी उाँ ड़ेलता हूाँ भर-भर कफर आता है “ का विरोधाभास स्पर्ष्ट कीन्द्जए। उत्तर:-हृदय में न्द्स्थत प्रेम की विशेर्ता यह है कक न्द्जतना अधधक वयक्त ककया जाए उतना ही बढ़ता जाता है । प्रश्न५:- िह रमणीय उजाला क्या है न्द्जसे कवि सहन नहीं कर पाता ? 46 उत्तर:-कवि ने वप्रयतमा की आभा से,प्रेम के सुखद भािों से सदै ि नघरे रहने की न्द्स्थनत को उजाले के रूप में धचबत्रत ककया है । इन स्मनृ तयों से नघरे रहना आनंददायी होते हुए भी कवि के सलए असहनीय हो गया है क्योंकक इस आनंद से िंधचत हो जाने का भय भी उसे सदै ि सताता रहता है । 6. उषा शमशेर बहार्दरु लसंह सार उर्ा कविता में सूयोदय के समय आकाश मंडल में रं गों के जाद ू का सुन्द्दर िणयन ककया गया है । सय ू ोदय के पि ू य प्रातुःकालीन आकाश नीले शंख की तरह बहुत नीला होता है । भोरकालीन नभ की तुलना काली ससल से की गयी है न्द्जसे अभी-अभी केसर पीसकर धो हदया गया है । कभी कवि को िह राख से लीपे चौके के समान लगता है , जो अभी गीला पड़ा है । नीले गगन में सय ू य की पहली ककरण ऐसी हदखाई दे ती है मानो कोई सुंदरी नीले जल में नहा रही हो और उसका गोरा शरीर जल की लहरों के साथ णझलसमला रहा हों। प्रात:कालीन, पररवतटिशील सौंर्दयट का दृश्य बबंब ,प्राकृनतक पररितयनों को मािवीय कक्रयाकलापों के माध्यम से वयक्त ककया गया है। यथाथट जीवि से चि ु े गए उपमािों जैसे:- राख से लीपा चौका ,काली ससल,नीला शंख, स्लेट,लाल खडड़या चाक आहद का प्रयोग प्वभावरी जाग री से तल ु िा की जा सकती है । कप्वता– उषा अथट-ग्रहण-संबंधी प्रश्ि “प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे भोर का नभ राख से लीपा चौका (अभी गीला पड़ा है ) बहुत काली ससल ज़रा से लाल केसर से कक जैसे धल ु गई हो स्लेट पर या लाल खडड़या चाक मल दी हो ककसी ने 47 । प्रसाद की कृनत –बीती नील जल में या ककसी की गौर णझलसमल दे ह जैसे हहल रही हो | और ..... जाद ू टूटता है इस उर्ा का अब सूयोदय हो रहा है |” प्रश्न१ :-उर्ा कविता में सूयोदय के ककस रूप को धचबत्रत ककया गया है ? उत्तर :-कवि ने प्रातुःकालीन, पररितयनशील सौंदयय का दृश्य बबंब मानिीय कक्रयाकलापों के माध्यम से वयक्त ककया है । प्रश्न२ :-भोर के नभ और उत्तर :-भोर के नभ और राख से लीपे गए राख से लीपे गए चौके में क्या समानता है ? चौके में यह समानता है कक दोनों ही गहरे सलेटी रं ग के हैं,पवित्र हैं। नमी से युक्त हैं। प्रश्न३ :- स्लेट पर लाल ....पंन्द्क्त का अथय स्पर्ष्ट कीन्द्जए| उत्तर :- भोर का नभ लासलमा से युक्त स्याही सलए हुए होता है | अत: लाल खडड़या चाक से मली गई स्लेट जैसा प्रतीत होता है | प्रश्न४:- उर्ा का जाद ू ककसे कहा गया है ? उत्तर विविध रूप रं ग बदलती सुबह वयन्द्क्त पर जादईु प्रभाि डालते हुए उसे मंत्र मुग्ध कर दे ती है | सौंर्दयट-बोध-संबंधी प्वशेषताएाँ प्रश्न१:- ।कविता में प्रयुक्त उपमानों को स्पर्ष्ट कीन्द्जए। भोर का नभ राख से लीपा चौका दोनों ही गहरे सलेटी रं ग के हैं।पवित्र हैं।नमी से युक्त हैं। 48 काली ससल भोर का नभ और लालकेसर से धल ु ी काली ससल दोनों ही लासलमा से युक्त हैं। काली ससलेट जो लाल खडड़या चाक से मल दी गई हो और भोर का नभ लासलमा से दोनों ही यक् ु त हैं। प्रातुः काल के स्िच्छ ननमयल आकाश में सय ू य ऐसा प्रतीत होता है मानो नीलजल में कोई स्िणणयम दे ह नहा रही हो। प्रश्न२:- कविता की भार्ा एिं असभवयन्द्क्त संबंधी विशेर्ताएं सलणखए। उत्तर :-१ यथाथय जीिन से चन ु े गए उपमान –राख से लीपा चौका। २ दृश्यबबंब प्रश्न ३ उत्तर :- ं कविता में आए अलंकारों को छॉटकर सलणखए। उपमा अलंकार:- भोर का नभ राख से लीपा चौका उत्प्रेक्षा अलंकार:“ बहुत काली ससल जरा से लाल केसर से कक जैसे धल ु गई हो। नील जल में या ककसी की गौर णझलसमल दे ह जैसे हहल रही हो “ प्वषय-वस्तु पर आधाररत प्रश्िोत्तर प्रश्न१:- कविता के ककन उपमानों को दे ख कर कहा जा सकता है कक उर्ा गााँि की सुबह का गनतशील शब्द धचत्र है ? उत्तर :-कविता में नीले नभ को राख से सलपे गीले चौके के समान बताया गया है | दस ू रे बबंब में उसकी तुलना काली ससल से की गई है | तीसरे में स्लेट पर लाल खडड़या चाक का उपमान है |लीपा हुआ आाँगन ,काली ससल या स्लेट गााँि के पररिेश से ही सलए गए हैं |प्रात: कालीन सौंदयय क्रमश: विकससत होता है | सियप्रथम राख से लीपा चौका जो गीली राख के कारण गहरे स्लेटी रं ग का अहसास दे ता है और पौ फटने के समय आकाश के गहरे स्लेटी रं ग से मेल खाता 49 है |उसके पश्चात तननक लाललमा के लमश्रण से काली लसल का जरा से लाल केसर से धल ु िा सटीक उपमान है तथा सूयट की लाललमा के रात की काली स्याही में घुल जािे का सुंर्दर बबंब प्रस्तुत करता है | धीरे –धीरे लासलमा भी समाप्त हो जाती है और सुबह का िीला आकाश िील जल का आभास दे ता है ि सय ू ट की स्वखणटम आभा गौरवणी र्दे ह के िील जल में िहा कर निकलिे की उपमा को साथयक ससद्ध करती है | प्रश्न२ :भोर का नभ राख से लीपा चौका (अभी गीला पड़ा है ) नयी कविता में कोर्ष्ठक ,विराम धचह्नों और पंन्द्क्तयों के बीच का स्थान भी कविता को अथय दे ता है |उपयक् ुय त पंन्द्क्तयों में कोर्ष्ठक से कविता में क्या विशेर् अथय पैदा हुआ है ? समझाइए | उत्तर :- नई कविता प्रयोग धमी है |इसमें भार्ा- सशल्प के स्तर पर हर नए प्रयोग से अथय की असभवयन्द्क्त की जाती है |प्राय: कोर्ष्ठक अनतररक्त ज्ञान की सूचना दे ता है |यहााँ अभी गीला पड़ा है के माध्यम से कवि गीलेपन की ताजगी को स्पर्ष्ट कर रहा है |ताजा गीलापन स्लेटी रं ग को अधधक गहरा बना दे ता है जबकक सूखने के बाद राख हल्के स्लेटी रं ग की हो जाती है | 7. बार्दल राग सूयक ट ांत बत्रपािी निराला ननराला की यह कविता अनासमका में छह खंडों में प्रकासशत है ।यहां उसका छठा खंड सलया गया है |आम आदमी के दुःु ख से त्रस्त कवि पररितयन के सलए क्रांनत रुपी बादल का आह्िान करता है |इस कविता में बार्दल क्रांनत या प्वतलव का प्रतीक है । कवि विप्लि के बादल को संबोधधत करते हुए कहता है कक जि मि की आकांक्षाओं से भरी-तेरी नाि समीर रूपी सागर पर तैर रही है । अन्द्स्थर सुख पर दुःु ख की छाया तैरती हदखाई दे ती है । संसार के लोगों के हृर्दय र्दग्ध हैं(र्दुःु खी)। उन पर ननदय यी विप्लि अथायत ् क्रांनत की माया फैली हुई है । बार्दलों के गजटि से पथ् ृ वी के गभट में सोए अंकुर बाहर निकल आते हैं अथायत शोवर्त िगय सािधान हो जाता है और आशा भरी दृजष्ट से क्रांनत की ओर र्दे खिे लगता है । उनकी आशा क्रांनत पर ही हटकी है । बादलों की गजयना और मस ू लाधार िर्ाय में बड़े बड़े-पियत िक्ष ृ घबरा जाते हैं।उनको उखड़कर धगर जाने का भय होता है |क्रानत की हुंकार से पाँज ू ीपनत घबरा उिते हैं, िे हदल थाम कर रह जाते हैं। क्रांनत को तो छोटे - 50 छोटे लोग बुलाते हैं। न्द्जस प्रकार छोटे छोटे पौधे हाथ हहलाकर-बार्दलों के आगमि का स्वागत करते हैं िैसे ही शोवर्त िगय क्रांनत के आगमन का स्िागत करता है । छायावार्दी कप्व ननराला साम्यवार्दी प्रभाव से भी जुड़े हैं।मुक्त छं र्द हहन्द्दी को उन्द्हीं की दे न है ।शोप्षत वगट की समस्याओं को समातत करिे के सलए क्रांनत रूपी बार्दल का आह्वाि ककया गया है । अथट-ग्रहण-संबंधी प्रश्ि कप्वता– बार्दल राग “नतरती है समीर-सागर पर अन्द्स्थर सुख पर दुःु ख की छाया – जग के दग्ध हृदय पर ननदय य विप्लि की प्लावित मायायह तेरी रण-तरी भरी आकांक्षाओं से , घन भेरी –गजयन से सजग सुप्त अंकुर उर में पथ् ृ िी के, आशाओं से निजीिन की ,ऊंचा कर ससर, ताक रहे हैं ,ऐ विप्लि के बादल! कफर –कफर बार –बार गजयन िर्यण है मूसलधार , हृदय थाम लेता संसार , 51 सुन- सुन घोर िज्र हुंकार | अशनन पात से शानयत शत-शत िीर , क्षत –विक्षत हत अचल शरीर, गगन- स्पशी स्पद्यधा धीर |” प्रश्न१:- कविता में बादल ककस का प्रतीक है ?और क्यों? उत्तर :-बादलराग क्रांनत का प्रतीक है । इन दोनों के आगमन के उपरांत विश्ि हरा- भरा. समद् ृ ध और स्िस्थ हो जाता है । प्रश्न २ :-सुख को अन्द्स्थर क्यों कहा गया है ? उत्तर :-सुख सदै ि बना नहीं रहता अतुः उसे अन्द्स्थर कहा जाता है । प्रश्न३ :-विप्लिी बादल की युद्ध रूपी नौका की क्या- क्या विशेर्ताएं हैं? उत्तर :-बादलों के अंदर आम आदमी की इच्छाएाँ भरी हुई हैं।न्द्जस तरह से युद्र्ध नौका में युद्ध की सामग्री भरी होती है।यद् ु ध की तरह बादल के आगमन पर रणभेरी बजती है । सामान्द्यजन की आशाओं के अंकुर एक साथ फूट पड़ते हैं। प्रश्न४ :-बादल के बरसने का गरीब एिं धनी िगय से क्या संबंध जोड़ा गया है ? उत्तर:-बादल के बरसने से गरीब िगय आशा से भर जाता है आशंका से भयभीत हो उठता है । 52 एिं धनी िगय अपने विनाश की सौंर्दयट-बोध-संबंधी प्रश्ि “हाँसते हैं छोटे पौधे लघभ ु ारशस्य अपार , हहल हहल णखल णखल हाथ हहलाते तुझे बुलाते। विप्लि रि से छोटे ही हैं शोभा पाते|” प्रश्न १:- ननम्न सलणखत प्रतीकों को स्पर्ष्ट कीन्द्जए– छोटे पौधे, सप्ु त अंकुर उत्तर :- छोटे पौधे- शोवर्त िगय , सुप्त अंकुर- आशाएं , प्रश्न२:- ‘हाँसते हैं छोटे पौधे’-का प्रतीकाथय स्पर्ष्ट कीन्द्जए | उत्तर :-प्रसन्द्न धचत्त ननधयन िगय जो क्रांनत की संभािना मात्र से णखल उठता है । प्रश्न३:-‘छोटे ही हैं शोभा पाते’ में ननहहत लाक्षणणकता क्या है ? उत्तर:-बचपन में मनर्ष्ु य ननन्द्श्चंत होता है । ननधयन मनुर्ष्य उस बच्चे के समान है जो क्रांनत के समय भी ननभयय होता है और अंतत: लाभान्द्न्द्ित होता है । कप्वता– बार्दल राग प्वषय-वस्तु पर आधाररत प्रश्िोत्तर प्रश्न१:- पूंजीपनतयों की अट्टासलकाओं को आतंक भिन क्यों कहा गया है ? उत्तर :-बादलों की गजयना और मूसलाधार िर्ाय में बड़े बड़े-पियत िक्ष ृ घबरा जाते हैं।उनको उखड़कर धगर जािे का भय होता है |उसी प्रकार क्रानत की हुंकार से पाँज ू ीपनत घबरा उिते हैं, िे हदल थाम 53 कर रह जाते हैं।उन्द्हें अपनी संपप्त्त एवं सत्ता के नछि जािे का भय होता है | उनकी अट्टाललकाएाँ मजबूती का भ्रम उत्पन्द्न करती हैं पर िास्ति में िे अपने भविों में आतंककत होकर रहते हैं| प्रश्न२:- कवि ने ककसान का जो शब्द-धचत्र हदया है उसे अपने शब्दों में सलणखए | उत्तर :- ककसान के जीवि का रस शोषकों िे चस ू ललया है ,आशा और उत्साह की संजीविी समातत हो चक ु ी है |शरीर से भी िह र्दब ट एवं खोखला हो चक ु ल ु ा है | क्रांनत का बबगुल उसके हृर्दय में आशा का संचार करता है |िह खखलखखला कर बार्दल रूपी क्रांनत का स्वागत करता है | प्रश्न३:- अशनन पात क्या है ? उत्तर:- बादल की गजयना के साथ बबजली धगरने से बड़े –बड़े वक्ष ृ जल कर राख हो जाते हैं | उसी प्रकार क्रांनत की आंधी आने से शोषक, धिी वगट की सत्ता समातत हो जाती है और िे खत्म हो जाते हैं | प्रश्न४:- पथ् ृ िी में सोये अंकुर ककस आशा से ताक रहे हैं ? उत्तर :- बादल के बरसने से बीज अंकुररत हो लहलहािे लगते हैं | अत: बादल की गजयन उनमें आशाएाँ उत्पन्द्न करती है | िे ससर ऊाँचा कर बार्दल के आिे की राह निहारते हैं | ठीक उसी प्रकार ननधयन वयन्द्क्त शोषक के अत्याचार से मजु क्त पािे और अपने जीिन की खश ु हाली की आशा में क्रांनत रूपी बार्दल की प्रतीक्षा करते हैं | प्रश्न५:- रुद्ध कोर् है , क्षुब्द्ध तोर् –ककसके सलए कहा गया है और क्यों ? उत्तर :- क्रांनत होने पर पूंजीपनत िगय का धि नछि जाता है ,कोष ररक्त हो जाता है | उसके धि की आमर्द समातत हो जाती है | उसका संतोष भी अब ‘बीते ठर्दिों की बात’ हो जाता है | प्रश्न६:- अन्द्स्थर सुख पर दुःु ख की छाया का भाि स्पर्ष्ट कीन्द्जए | उत्तर :- मानि-जीिन में सुख सदा बना नहीं रहता है , उस पर दुःु ख की छाया सदा मंडराती रहती है | प्रश्न७:- बादल ककस का प्रतीक है ? 54 उत्तर :- बादल इस कविता में क्रांनत का प्रतीक है | न्द्जस प्रकार बादल प्रकृनत ,ककसाि और आम आर्दमी के जीवि में आिंर्द का उपहार ले कर आता है उसी प्रकार क्रांनत ननधयन िगय के जीिन में समािता का अधधकार व संपन्िता ले कर शोवर्त आता है प्रश्न८:- बादल को जीिन का पारािार क्यों कहा गया है ? उत्तर :- क्रांनत रूपी बादल का आगमन जीविर्दायी, सुखर्द होता है -पारािार अथायत सागर | िह जीवि में खलु शयों का खजािा लेकर आता |सुख समद् ृ धध का कारक बनकर है | निधटि वगट को समािता का अधधकार दे ता है अत्याचार की अजग्ि 55 से मुक्त करता है | 8 कप्वतावली तल ु सीर्दास सार श्रीरामजी को समवपयत ग्रन्द्थ श्रीरामचररतमानस उत्तर भारत मे बड़े भन्द्क्तभाि से पढ़ा जाता है । लक्ष्मण -मूच्छाट और राम का प्वलाप रािण पुत्र मेघनाद द्िारा शन्द्क्त बाण से मूनछय त हुए लक्ष्मण को दे खकर राम वयाकुल हो जाते हैं।सुर्ेण िैद्य ने संजीिनी बूटी लाने के सलए हनुमान को हहमालय पियत पर भेजा।आधी रात वयतीत होने पर जब हनम ु ान नहीं आए,तब राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को उठाकर हृदय से लगा सलया और साधारण मनर्ष्ु य की भााँनत विलाप करने लगे।राम बोले तम ु मझ ु े ! हे भाई...... कभी दख ु ी नहीं दे ख सकते थे।तुम्हारा स्िभाि सदा से ही कोमल था।तुमने मेरे सलए माता वपता को भी छोड़ हदया और मेरे साथ िन में सदक,गमी और विसभन्द्न प्रकार की विपरीत पररन्द्स्थनतयों को भी सहा|जैसे पंख बबना पक्षी,मणण बबना सपय और साँड ू बबना श्रेर्ष्ठ हाथी अत्यंत दीन हो जाते हैं,हे भाई!यहद मैं जीवित रहता हूाँ तो मेरी दशा भी िैसी ही हो जाएगी। मैं अपनी पत्नी के सलए अपने वप्रय भाई को खोकर कौन सा माँह ु लेकर अयोध्या जाऊाँगा।इस बदनामी को भले ही सह लेता कक राम कायर है और अपनी पत्नी को खो बैठा। स्त्री की हानन विशेर् क्षनत नहीं है ,परन्द्तु भाई को खोना अपरू णीय क्षनत है । ‘रामचररतमानस’ के ‘लंका कांड’ से गह ृ ी लक्ष्मण को शजक्त बाण लगिे का प्रसंग कवि की मासमयक स्थलों की पहचान का एक श्रेर्ष्ठ नमूना है । भाई के शोक में विगसलत राम का प्वलाप धीरे धीरे प्रलाप में बदल जाता है -, न्द्जसमें लक्ष्मण के प्रनत राम के अंतर में नछपे प्रेम के कई कोण सहसा अनाित ृ हो जाते हैं।यह प्रसंग ईश्वर राम में मािव सुलभ गुणों का समन्वय कर दे ता है | हनुमान का संजीिनी लेकर आ जाना करुण रस में वीर रस का उर्दय हो जाने के समान है | विनय पबत्रका एक अन्द्य महत्त्िपूणय तुलसीदासकृत कावय है । 56 कप्वत्त और सवैया सार इस शीर्यक के अंतगयत दो कवित्त और एक सिैया संकसलत हैं। ‘कवितािली’ से अितररत इन कवित्तों में कवि तल ु सी का प्वप्वध प्वषमताओं से ग्रस्त कललकालतल ु सी का यग ु ीि यथाथट है , न्द्जसमें िे कृपालु प्रभु राम व रामराज्य का स्वति रचते हैं। युग और उसमें अपने जीिन का न ससफय उन्द्हें गहरा बोध है , बन्द्ल्क उसकी असभवयन्द्क्त में भी िे अपने समकालीन कवियों से आगे हैं। यहााँ पाठ में प्रस्तत ु ‘कवितािली’ के छं द इसके प्रमाण स्िरूप हैं। पहले छं द-”ककसिी ककसान ....“ में उन्द्होंने हदखलाया है कक संसार के अच्छे बुरे समस्त-लीला प्रपंचों का आधार-‘पेट की आग’का गहन यथाथय है ; न्द्जसका समाधान िे राम की भन्द्क्त में दे खते हैं। दररद्रजन की वयथा दरू करने के सलए राम रूपी घनश्याम का आह्िान ककया गया है । पेट की आग बुझािे के ललए राम रूपी वषाट का जल अनिवायट है ।इसके सलए अिैनतक कायट करिे की आवश्यकता िहीं है ।‘ इस प्रकार, उनकी राम भन्द्क्त पेट की आग बुझाने िाली यानी जीवि के यथाथट संकटों का समाधाि करिे वाली है; न कक केिल आध्यान्द्त्मक मुन्द्क्त दे ने िाली| गरीबी की पीड़ा रावण के समाि र्दख ु र्दायी हो गई है । तीसरे छं द )”धत ू कहौ...“) में भन्द्क्त की गहनता और सघनता में उपजे भक्तहृर्दय के आत्मप्वश्वास का सजीव धचत्रणहै , न्द्जससे समाज में वयाप्त जातपााँत और नतरस्कार का साहस पैदा दरु ाग्रहों के - होता है । इस प्रकारभजक्त की रचिात्मक भलू मका का संकेत यहााँ है , जो आज के भेर्दभाव मूलक युग में अधधक प्रासंधगक है | अथट-ग्रहण-संबंधी प्रश्ि “उहााँ राम लनछमनहहं ननहारी। बोले बचन मनुज अनुसारी॥ अधय रानत गइ कवप नहहं आयउ। राम उठाइ अनुज उर लायउ॥ सकहु न दणु खत दे णख मोहह काऊ। बंधु सदा ति मद ु सभ ु ाऊ॥ ृ ल मम हहत लाधग तजेहु वपतु माता। सहे हु बबवपन हहम आतप बाता॥ सो अनुराग कहााँ अब भाई। उठहु न सुनन मम बच बबकलाई॥ जौं जनतेउाँ बन बंधु बबछोहू। वपता बचन मनतेउाँ नहहं ओहू॥ 57 सुत बबत नारर भिन पररिारा। होहहं जाहहं जग बारहहं बारा॥ अस बबचारर न्द्जयाँ जागहु ताता। समलइ न जगत सहोदर भ्ाता॥ जथा पंख बबनु खग अनत दीना। मनन बबनु फनन कररबर कर हीना॥ अस मम न्द्जिन बंधु बबनु तोही। जौं जड़ दै ि न्द्जआिै मोही॥ जैहउाँ अिध किन मुहु लाई। नारर हे तु वप्रय भाइ गाँिाई॥ बरु अपजस सहतेउाँ जग माहीं। नारर हानन बबसेर् छनत नाहीं॥ अब अपलोकु सोकु सुत तोरा। सहहहह ननठुर कठोर उर मोरा॥ ननज जननी के एक कुमारा। तात तासु तुम्ह प्रान अधारा॥ सौंपेसस मोहह तम् ु हहह गहह पानी। सब बबधध सख ु द परम हहत जानी॥ उतरु काह दै हउाँ तेहह जाई। उहठ ककन मोहह ससखािहु भाई॥“ प्रश्न१:-‘बोले बचन मनुज अनुसारी’- का तात्पयय क्या है ? उत्तर :- भाई के शोक में विगसलत राम का प्वलाप धीरे - धीरे प्रलाप में बदल जाता है -, न्द्जसमें लक्ष्मण के प्रनत राम के अंतर में नछपे प्रेम के कई कोण सहसा अनाित ृ हो जाते हैं। यह प्रसंग ईश्वर राम में मािव सुलभ गुणों का समन्वय कर दे ता है | िे मनुर्ष्य की भांनत विचसलत हो कर ऐसे िचन कहते हैं जो मानिीय प्रकृनत को ही शोभा दे ते हैं | प्रश्न२:- राम ने लक्ष्मण के ककन गुणों का िणयन ककया है ? उत्तर :-राम ने लक्ष्मण के इन गण ु ों का िणयन ककया है लक्ष्मण राम से बहुत स्नेह करते हैं | उन्द्होंने भाई के सलए अपने माता –वपता का भी त्याग कर हदया | िे िन में िर्ाय ,हहम, धप ू आहद कर्ष्टों को सहन कर रहे हैं | उनका स्िभाि बहुत मद ु है |िे भाई के दुःु ख को नहीं दे ख सकते | ृ ल प्रश्न३:- राम के अनुसार कौन सी िस्तुओं की हानन बड़ी हानन नहीं है और क्यों ? 58 उत्तर :-राम के अनुसार धन ,पुत्र एिं नारी की हानन बड़ी हानन नहीं है क्योंकक ये पर पुन: प्राप्त ककये जा सकते हैं पर एक बार सगे सब खो जाने भाई के खो जाने पर उसे पुन: प्राप्त नहीं ककया जा सकता | प्रश्न४:- पंख के बबना पक्षी और सूंड के बबना हाथी की क्या दशा होती है कावय प्रसंग में इनका उल्लेख क्यों ककया गया है ? उत्तर :- राम विलाप करते हुए अपनी भािी न्द्स्थनत का िणयन कर रहे हैं बबना पक्षी और सूंड कक जैसे पंख के के बबना हाथी पीडड़त हो जाता है ,उनका अन्द्स्तत्ि नगण्य हो जाता है िैसा ही असहनीय कर्ष्ट राम को लक्ष्मण के न होने से होगा | 59 सौंर्दयट-बोध-संबंधी प्रश्ि प्रश्न१:- कावयांश की भार्ा सौंदयय संबंधी दो विशेर्ताओं का उल्ल्लेख कीन्द्जए| उत्तर:- १रस -करुण रस २ अलंकार - उत्प्रेक्षा अलंकार– मनु करुणा मंह बीर रस। जागा ननससचर दे णखअ कैसा।मानहुाँ काल दे ह धरर बैसा। दृर्ष्टांत अलंकार - जथा पंख बबन खग अनत दीना।मनन बबनु फनन कररबर कर हीना। अस मन न्द्जिन बंधु बबन तोही।जो जड़ दै ि न्द्जआिै मोही। विरोधाभास अलंकार -बहुबबधध सोचत सोच बबमोचन। प्रश्न२:- कावयांश की भार्ा का नाम सलणखए | उत्तर :- अिधी भार्ा प्रश्न३:- कावयांश में प्रयक् ु त छं द कौन –सा है ? उत्तर:- १६,१६ मात्राओं का सम माबत्रक चौपाई छं द | सौंर्दयट-बोध-संबंधी प्रश्ि “ककसबी, ककसान-कुल ,बननक, सभखारी ,भाट, चाकर ,चपल नट ,चोर, चार ,चेटकी| पेटको पढ्त,गुन गढ़त, चढ़त धगरर, अटत गहन –गन अहन अखेट्की| ऊंचे –नीचे करम ,धरम –अधरम करर, पेट ही को पचत, बचत बेटा –बेटकी | ‘तुलसी’ बुझाई एक राम घनस्याम ही तें , आधग बड़िाधगतें बड़ी है आधग पेटकी|” 60 प्रश्न१:- कवितािली ककस भार्ा में सलखी गई है ? उत्तर :- ब्रज भार्ा प्रश्न२:- कवितािली में प्रयुक्त छं द एिं रस को स्पर्ष्ट कीन्द्जए | उत्तर :- इस पद में 31. 31 िणों का चार चरणों िाला समिणणयक कवित्त छं द है न्द्जसमें 16 एिं 15 िणों पर विराम होता है । प्रश्न३:- कवित्त में प्रयुक्त अलंकारों को छांट कर सलणखए १. अनप्र ु ास अंलकार– ककसबी, ककसान-कुल ,बननक, सभखारी ,भाट, चाकर ,चपल नट ,चोर, चार ,चेटकी| २. रूपक अलंकार– राम– घनश्याम ३. अनतशयोन्द्क्त अलंकार– आधग बड़िाधग तें बडड़ है आग पेट की। लक्ष्मण- मूच्छाट और राम का प्वलाप प्वषय-वस्तु पर आधाररत प्रश्िोत्तर प्रश्न १:-‘ति प्रताप उर राणख प्रभु में ककसके प्रताप का उल्लेख ककया गया है ?’और क्यों ? उत्तर :-इन पाँन्द्क्तयों में भरत के प्रताप का उल्लेख ककया गया है । हनुमानजी उनके प्रताप का स्मरण करते हुए अयोध्या के ऊपर से उड़ते हुए संजीिनी ले कर लंका की ओर चले जा रहे हैं। प्रश्न२:- राम विलाप में लक्ष्मण की कौन सी विशेर्ताएाँ उद्घहटत हुई हैं ? उत्तर :-लक्ष्मण का भ्ात ृ प्रेम. त्यागमय जीिन इन पाँन्द्क्तयों के माध्यम से उदघाहटत हुआ है । प्रश्न३:- बोले िचन मनज ु अनस ु ारी से कवि का क्या तात्पयय है ? उत्तर :-भगिान राम एक साधारण मनुर्ष्य की तरह विलाप कर रहे हैं ककसी अितारी मनुर्ष्य की तरह नहीं। भ्ात ृ प्रेम का धचत्रण ककया गया है ।तल ु सीदास की मानिीय भािों पर सशक्त पकड़ है ।दै िीय वयन्द्क्तत्ि का लीला रूप ईश्िर राम को मानिीय भािों से समन्द्न्द्ित कर दे ता है । 61 प्रश्न४:- भाई के प्रनत राम के प्रेम की प्रगाढ़ता उनके ककन विचारों से वयक्त हुई है ? उत्तर :- जथा पंख बबन खग अनत दीना। मनन बबनु फनन कररबर कर हीना। अस मम न्द्जिन बंधु बबनु तोही। जो जड़ दै ि न्द्जआिै मोही। प्रश्न५:- ‘बहुविधध सोचत सोचविमोचन’ का विरोधाभास स्पर्ष्ट कीन्द्जए। उत्तर :-दीनजन को शोक से मुक्त करने िाले भगिान राम स्ियं बहुत प्रकार से सोच में पड़कर दख ु ी हो रहे हैं। प्रश्न६:- हनुमान का आगमन करुणा में िीर रस का आना ककस प्रकार कहा जा सकता है ? उत्तर :-रुदन करते िानर समाज में हनुमान उत्साह का संचार करने िाले िीर रस के रूप में आ गए। करुणा की नदी हनुमान द्िारा संजीिनी ले आने पर मंगलमयी हो उठती है । कप्वत्त और सवैया प्वषय-वस्तु पर आधाररत प्रश्िोत्तर प्रश्न१:- पेट की भूख शांत करने के सलए लोग क्या क्या करते हैं? उत्तर :-पेट की आग बुझाने के सलए लोग अनैनतक कायय करते हैं। प्रश्न२:- तल ु सीदास की दृन्द्र्ष्ट में सांसाररक दख ु ों से ननिवृ त्त का सिोत्तम उपाय क्या है ? उत्तर :- पेट की आग बुझाने के सलए राम कृपा रूपी िर्ाय का जल अननिायय है ।इसके सलए अनैनतक कायय करने की आिश्यकता नहीं है। प्रश्न३:- तुलसी के युग की समस्याओं का धचत्रण कीन्द्जए। उत्तर :- तुलसी के युग में प्राकृनतक और प्रशासननक िैर्म्य के चलते उत्पन्द्न पीडा. दररद्रजन के सलए रािण के समान दख ु दायी हो गई है । प्रश्न४:- तल ु सीदास की भन्द्क्त का कौन सा स्िरूप प्रस्तत ु कवित्तों में असभवयक्त हुआ है ? 62 उत्तर :- तुलसीदास की भन्द्क्त का दास्य भाि स्िरूप प्रस्तुत कवित्तों में असभवयक्त हुआ है । 9 रूबाइयााँ कफ़राक गोरखपुरी मूल िाम– रघुपनत सहाय कफ़राक उदय ू शायरी की ररिायत के विपरीत कफराक गोरखपुरी के साहहत्य में लोक जीिन एिं प्रकृनत की झलक समलती है । सामान्द्जक संिेदना िैयन्द्क्तक अनुभूनत बन कर उनकी रचनाओं में वयक्त हुई है ।जीिन का कठोर यथाथय उनकी रचनाओं में स्थान पाता है ।उन्द्होंने लोक भार्ा के प्रतीकों का प्रयोग ककया है । लाक्षणणक प्रयोग उनकी भार्ा की विशेर्ता है ।किराक की रुबाईयों में घरे लू हहंदी का रूप हदखता है | रुबाई उदय ू और िारसी का एक छं द या लेखन शैली है न्द्जसमें चार पंन्द्क्तयााँ होती हैं |इसकी पहली ,दस ू री और चौथी पंन्द्क्त में तक ु (काकिया)समलाया जाता है तथा तीसरी पंन्द्क्त स्िच्छं द होती है | “िो रूपिती मुखड़े पे इक नमय दमक” “बच्चे के घरोंदे में जलाती है हदए।“ “रक्षाबंधन की सुबह रस की पुतली” “बबजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे ” “भाई के है बााँधती चमकती राखी।“- जैसे प्रयोग उनकी भार्ा की सशक्तता के नमूने के तौर पर दे खे जा सकते हैं | सार रूबाइयााँ रक्षाबंधन एक मीठा बंधन है । रक्षाबंधन के कच्चे धागों पर बबजली के लच्छे हैं। सािन में रक्षाबंधन आता है । सािन का जो संबंध झीनी घटा से है , घटा का जो संबंध बबजली से है िही संबंध भाई का बहन से होता है । 63 गज़ल पाठ में कफराक की एक गज़ल भी शासमल है । रूबाइयों की तरह ही कफराक की गजलों में भी हहंदी समाज और उदय ू शायरी की परं परा भरपूर है । इसका अद्भुत नमन ू ा है यह गज़ल। यह गज़ल कुछ इस तरह बोलती है कक न्द्जसमें ददय भी है , एक शायर की ठसक भी है और साथ ही है कावय-सशल्प की िह ऊाँचाई जो गज़ल की विशेर्ता मानी जाती है । अथट-ग्रहण-संबंधी प्रश्ि “आाँगन में सलए चााँद के टुकड़े को खड़ी हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी रह-रह के हिा में जो लोका दे ती है गाँज ू उठती है णखलणखलाते बच्चे की हाँ सी” प्रश्न१:- ‘चााँद के टुकड़े’का प्रयोग ककसके सलए हुआ है ? और क्यों ? उत्तर :-बच्चे को चााँद का टुकड़ा कहा गया है जो मााँ के सलए बहुत प्यारा होता है । प्रश्न२:- गोद-भरी प्रयोग की विशेर्ता को स्पर्ष्ट कीन्द्जए | उत्तर :- गोद-भरी शब्द-प्रयोग मााँ के वात्सल्यपण ू ,ट आिंठर्दत उत्साह को प्रकट करता है |यह अत्यंत सुंदर दृश्य बबंब है | सूनी गोद के विपरीत गोर्द का भरिा मााँ के ललए असीम सौभाग्य का सूचक है |इसी सौभाग्य का सूक्ष्म अहसास मााँ को तजृ तत दे रहा है | प्रश्न३:- लोका दे ना ककसे कहते हैं ? उत्तर :- जब मााँ बच्चे को बाहों में लेकर हिा में उछालती है इसे लोका दे ना कहते हैं|छोटे बच्चों को यह खेल बहुत अच्छा लगता है प्रश्न४:- बच्चा मााँ की गोद में कैसी प्रनतकक्रया करता है ? उत्तर :- हिा में उछालने ( लोका दे ने) से बच्चा मााँ का िात्सल्य पाकर प्रसन्द्न होता है और णखलणखला कर हाँस पड़ता है ।बच्चे की ककलकाररयााँ मााँ के आनंद को दग ु ना कर दे ती हैं| 64 सौंर्दयट-बोध-संबंधी प्रश्ि “नहला के छलके-छलके ननमयल जल से उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके ककस प्यार से दे खता है बच्चा माँह ु को जब घुटननयों में लेके है वपन्द्हाती कपड़े” प्रश्न१:- प्रस्तत ु पंन्द्क्तयों के भाि सौंदयय को स्पर्ष्ट कीन्द्जए | उत्तर :- मााँ ने अपने बच्चे को ननमयल जल से नहलाया उसके उलझे बालों में कंघी की |मााँ के स्पशय एिं नहाने के आनंद से बच्चा प्रसन्द्न हो कर बड़े प्रेम से मााँ को ननहारता है | प्रनतहदन की एक स्िाभाविक कक्रया से कैसे मााँ-बच्चे का प्रेम विकससत होता है और प्रगाढ़ होता चला जाता है इस भाि को इस रुबाई में बड़ी सूक्ष्मता के साथ प्रस्तुत ककया गया है | प्रश्न२:- कावयांश में आए बबंबों को स्पर्ष्ट कीन्द्जए | उत्तर :-१“िहला के छलके-छलके निमटल जल से”- इस प्रयोग द्िारा कवि ने बालक की ननमयलता एिं पवित्रता को जल की ननमयलता के माध्यम से अंककत ककया है | छलकना शब्द जल की ताजा बंद ू ों का बालक के शरीर पर छलछलाने का संद ु र दृश्य बबंब प्रस्तत ु करता है | २ ‘घुटनियों में लेके है प्पन्हाती कपड़े’- इस प्रयोग में मााँ की बच्चे के प्रनत सािधानी ,चंचल बच्चे को चोट पहुाँचाए बबना उसे कपड़े पहनाने से मााँ के मातत्ृ ि की कुशलता बबंबबतहोती है | ३ “ककस तयार से र्दे खता है बच्चा माँह ु को”- पंन्द्क्त में मााँ –बच्चे का िात्सल्य बबंबबत हुआ है | मााँ से प्यार –दल ु ार ,स्पशय –सुख, नहलाए जाने के आनंद को अनुभि करते हुए बच्चा मााँ को प्यार भरी नजरों से दे ख कर उस सख की असभवयन्द्क्त कर रहा है |यह सक्ष् ु ू म भाि अत्यंत मनोरम बन पड़ा है |संपण ू य रुबाई में दृश्य बबंब है | प्रश्न ३:-कावयांश के शब्द-प्रयोग पर हटप्पणी सलणखए | उत्तर :-गेसु –उदय ू शब्दों का प्रयोग घुटननयों ,वपन्द्हाती – दे शज शब्दों के माध्यम से कोमलता की असभवयन्द्क्त छलके –छलके –शब्द की पन ु रािवृ त्त से अभी –अभी 65 नहलाए गए बच्चे के गीले शरीर का बबंब आहद विलक्षण प्रयोग रुबाइयों को विसशर्ष्ट बना दे ते हैं | हहंदी,उदय ू और लोकभार्ा के अनूठे गठबंधन की झलक, न्द्जसे गांधीजी हहंदस् ु तानी के रूप में पल्लवित करना चाहते थे,दे खने को समलती है | प्वषय-वस्तु पर आधाररत प्रश्िोत्तर रूबाइयााँ प्रश्न १ :-कावय में प्रयुक्त बबंबों का िणयन अपने शब्दों में कीन्द्जए? उत्तर : दृश्य बबंब :-बच्चे को गोद में लेना , हिा में उछालना ,स्नान कराना ,घुटनों में लेकर कपड़े पहनाना| श्रवयबबंब :- बच्चे का णखलणखला कर हाँ स पड़ना। स्पशय बबंब :-बच्चे को स्नान कराते हुए स्पशय करना | प्रश्न २:-“आाँगन में ठुनक रहा है न्द्ज़दयाया है ,बालक तो हई चााँद पै ललचाया है ’- में बालक की कौन सी विशेर्ता असभवयक्त हुई है? उत्तर :- इन पंन्द्क्तयों में बालक की हि करिे की प्वशेषता असभवयक्त हुई है । बच्चे जब न्द्जद पर आ जाते हैं तो अपनी इच्छा पूरी करिाने के सलए िािा प्रकार की हरकतें ककया करते हैं| न्द्ज़दयाया शब्द लोक भाषा का प्वलक्षण प्रयोग है इसमें बच्चे का िुिकिा , तुिकिा ,पााँव पटकिा, रोिा आठर्द सभी कक्रयाएाँ शासमल हैं | प्रश्न ३ लच्छे ककसे कहा गया है इनका संबंध ककस त्यौहार से है ? उत्तर :- राखी के चमकीले तारों को लच्छे कहा गया है । रक्षाबंधन के कच्चे धागों पर बबजली के लच्छे हैं। सािन में रक्षाबंधन आता है । सािन का जो संबंध झीनी घटा से है , घटा का जो संबंध बबजली से है िही संबंध भाई का बहन से होता है |सािन में बबजली की चमक की तरह राखी के चमकीले धागों की सुंर्दरता दे खते ही बनती है | 66 अथट-ग्रहण-संबंधी प्रश्ि गज़ल कफ़राक गोरखपुरी “नौरस गुंचे पंखडड़यों की नाज़ुक धगरहें खोले हैं या उड़ जाने को रं गो- बू गुलशन में पर तौले हैं |” प्रश्न१:- ‘नौरस’ विशेर्ण द्िारा कवि ककस अथय की वयंजना करना चाहता है ? उत्तर :नौरस अथायत नया रस ! गुंचे अथायत कसलयों में नया –नया रस भर आया है | प्रश्न२:- पंखडड़यों की नाज़ुक धगरहें खोलने का क्या असभप्राय है ? उत्तर :- रस के भर जाने से कसलयााँ विकससत हो रही हैं |धीरे -धीरे उनकी पंखडु ड़यााँ अपनी बंद गााँठें खोल रही हैं | कवि के शब्दों में निरस ही उनकी बंद गााँठें खोल रहा है | प्रश्न३:- ‘रं गो- बू गुलशन में पर तौले हैं’ – का अथय स्पर्ष्ट कीन्द्जए| उत्तर :-रं ग और सुगंध दो पक्षी हैं जो कसलयों में बंद हैं तथा उड़ जाने के सलए अपने पंख फड़फड़ा रहे हैं |यह न्द्स्थनत कसलयों के फूल बन जाने से पूिय की है जो फूल बन जाने की प्रतीक्षा में हैं |’पर तौलना’ एक मह ु ािरा है जो उड़ान की क्षमता आाँकने के सलए प्रयोग ककया जाता है | प्रश्न४:- इस शेर का भाि-सौंदयय वयक्त कीन्द्जए| उत्तर :-कसलयों की नई-नई पंखडु ड़यााँ णखलने लगी हैं उनमें से रस मानो टपकना ही चाहता है | िय:संधध(ककशोरी)नानयका के प्रस्फुहटत होते सौंदयय का प्रतीकात्मक धचत्रण अत्यंत सुंदर बन पड़ा है | सौंर्दयट-बोध-संबंधी प्रश्ि हम हों या ककस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम समला ककस्मत हम को रो लेिे हैं हम ककस्मत को रो ले हैं| जो मुझको बदनाम करे हैं काश िे इतना सोच सकें मेरा पदाय खोले हैं या अपना पदाय खोले हैं | प्रश्न१:- इन शेरों की भार्ा संबंधी विशेर्ताएाँ स्पर्ष्ट कीन्द्जए | 67 उत्तर:- १. मुहािरों का प्रयोग –ककस्मत का रोना –ननराशा का प्रतीक २.सरल असभवयन्द्क्त ,भार्ा में प्रिाहमयता है ,ककस्मत और परदा शब्दों की पुनरािवृ त्तयााँ मोहक हैं| ३. हहंदी का घरे लू रूप प्रश्न२:- ‘मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं ‘- की भावर्क विशेर्ता सलणखए | उत्तर :-मह ु ािरे के प्रयोग द्िारा वयंजनात्मक असभवयन्द्क्त | परदा खोलना – भेद खोलना ,सच्चाई बयान करना| प्रश्न३:-‘हम हों या ककस्मत हो हमारी ‘ –प्रयोग की विशेर्ता बताइए | उत्तर :- हम और ककस्मत दोनों शब्द एक ही वयन्द्क्त अथायत किराक के सलए प्रयुक्त हैं | हम और ककस्मत में अभेद है यही विशेर्ता है | कफ़राक गोरखपुरी प्वषय-वस्तु पर आधाररत प्रश्िोत्तर प्रश्न१:- तारे आाँखें झपकािें हैं –का तात्पयय स्पर्ष्ट कीन्द्जए | उत्तर:- राबत्र का सन्द्नाटा भी कुछ कह रहा है ।इससलए तारे पलकें झपका रहे हैं। वियोग की न्द्स्थनत में प्रकृनत भी संिाद करती प्रतीत होती है | प्रश्न२:- ‘हम हों या ककस्मत हो हमारी’ में ककस भाि की असभवयन्द्क्त हुई है ? उत्तर:- जीिन की विडंबना, ककस्मत को रोना-मह ु ािरे के प्रयोग से, सटीक असभवयन्द्क्त प्राप्त करती है । कवि जीिन से संतुर्ष्ट नहीं है | भाग्य से सशकायत का भाि इन पंन्द्क्तयों में झलकता है | प्रश्न३:- प्रेम के ककस ननयम की असभवयन्द्क्त कवि ने की है ? उत्तर :-ईश्िर की प्रान्द्प्त सियस्ि लट ु ा दे ने पर होती है । प्रेम के संसार का भी यही ननयम है |कवि के शब्दों में ,” कितरत का कायम है तिाज़ुन आलमे- हुस्नो –इश्क में भी उसको उतना ही पाते हैं खद ु को न्द्जतना खो ले हैं |” 68 १ भाि –साम्य:- कबीर -‘सीस उतारे भुई धरे तब समसलहै करतार।‘-अथायत -स्ियं को खो कर ही प्रेम प्रान्द्प्त की जा सकती है । २ भाि साम्य- कबीर –न्द्जन ढूाँढा नतन पाइयााँ ,गहरे पानी पैहठ| मैं बपरु ा बड ू न डरा ,रहा ककनारे बैहठ | प्रश्न४:- शराब की महकफल में शराबी को दे र रात क्या बात याद आती है ? उत्तर :- शराब की महकफल में शराबी को दे र रात याद आती है कक आसमान में मनुर्ष्य के पापों का लेखा-जोखा होता है । जैसे आधी रात के समय फररश्ते लोगों के पापों के अध्याय खोलते हैं िैसे ही रात के समय शराब पीते हुए शायर को महबूबा की याद हो आती है मानो महबूबा फररश्तों की तरह पाप स्थल के आस पास ही है । प्रश्न५:- सदके किराक–––इन पंन्द्क्तयों का अथय स्पर्ष्ट कीन्द्जए | उत्तर :-सदके किराक–––इन पंन्द्क्तयों में किराक कहते हैं कक उनकी शायरी में मीर की शायरी की उत्कृर्ष्टता ध्िननत हो रही है । प्रश्न६:- पंखडु ड़यों की नाज़ुक धगरह खोलना क्या है ? उत्तर :-पाँखडु ड़यों की नाजक ु धगरह खोलना उनका धीरे -धीरे विकससत होना है । िय:संधध(ककशोरी)नानयका के प्रस्फुहटत होते सौंदयय की ओर संकेत है | प्रश्न७:-‘यों उड़ जाने को रं गो बू गुलशन में पर तौले है ’ भाि स्पर्ष्ट कीन्द्जए। उत्तर :-कसलयों की सि ु ास उड़ने के सलए मानो पर तौल रही हो।अथायत खश ु बू का झोंका रह–रह कर उठता है । प्रश्न८:- कवि द्िारा िणणयत राबत्र के दृश्य का िणयन अपने शब्दों में कीन्द्जए। उत्तर :- राबत्र का सन्द्नाटा भी कुछ कह रहा है ।इससलए तारे पलकें झपका रहे हैं।लगता है कक प्रकृनत का कण-कण कुछ कह रहा है | प्रश्न९:- कवि अपने िैयन्द्क्तक अनुभि ककन पाँन्द्क्तयों में वयक्त कर रहा है ैै? जीिन की विडंबना,-‘ककस्मत को रोना‘ मुहािरे के प्रयोग से, सटीक असभवयन्द्क्त प्राप्त करती है। 69 “हम हों या ककस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम समला ककस्मत हम को रो लेिे हैं हम ककस्मत को रो ले हैं|” प्रश्न१०:- शायर ने दनु नया के ककस दस्तूर का िणयन ककया है ? उत्तर :-शायर ने दनु नया के इस दस्तूर का िणयन ककया है कक लोग दस ू रों को बदनाम करते हैं परं तु िे नहीं जानते कक इस तरह िे अपनी दर्ष्ु ट प्रकृनत को ही उद्घाहटत करते हैं। प्रश्न११:- प्रेम की कितरत कवि ने ककन शब्दों में असभवयक्त की है ? स्ियं को खो कर ही प्रेम की प्रान्द्प्त की जा सकती है । ईश्िर की प्रान्द्प्त सियस्ि लट ु ा दे ने पर होती है । प्रेम के संसार का भी यही ननयम है । प्रश्न१२:- किराक गोरखपुरी ककस भार्ा के कवि हैंैै? उत्तर :- उदय ू भार्ा । 10 छोटा मेरा खेत उमाशंकर जोशी (गुजराती कप्व)। उमाशंकर जोशी बीसिीं सदी के गुजराती के मूधन्द् य य कवि संस्कृत िाङ्मय के विद्िान हैं।उन्द्होंने गुजराती कविता को प्रकृनत से जोड़ा।आम आदमी के जीिन की झलक उनकी रचनाओं में समलती है । छोटा मेरा खेत सार खेती के रूपक द्िारा काव्य रचिा– प्रकक्रया को स्पष्ट ककया गया हे ।कावय कृनत की रचिा बीज– वपि से लेकर पौधे के पजु ष्पत होिे के प्वलभन्ि चरणों से गज ु रती है।अंतर केिल इतना है कक कप्व कमट की िसल कालजयी, शाश्ित होती है।उसका रस-क्षरण अक्षय होता है।कागज का पन्द्ना, न्द्जस पर रचना शब्दबद्ध होती है , कवि को एक चौकोर खेत की तरह लगता है । इस खेत 70 में ककसी अाँधड़ (आशय भािनात्मक आाँधी से होगा) के प्रभाि से ककसी क्षण एक बीज बोया जाता है । यह बीज-रचना विचार और असभवयन्द्क्त का हो सकता है । यह मूल रूप कल्पना का सहारा लेकर विकससत होता है और प्रकक्रया में स्ियं विगसलत हो जाता है । उससे शब्दों के अंकुर ननकलते हैं और अंततुः कृनत एक पण ू य स्िरूप ग्रहण करती है , जो कृवर्-कमय के सलहाज से पल्लवित -पन्द्ु र्ष्पत होने की न्द्स्थनत है । साहहन्द्त्यक कृनत से जो अलौककक रस-धारा फूटती है , िह क्षण में होने िाली रोपाई का ही पररणाम है पर यह रस-धारा अनंत काल तक चलने िाली कटाई है | बगुलों के पंख सार बगुलों के पंख कविता एक चाक्षुर् बबंब की कविता है । सौंदयय का अपेक्षक्षत प्रभाि उत्पन्द्न करने के सलए कवियों ने कई युन्द्क्तयााँ अपनाई हैं, न्द्जसमें से सबसे प्रचसलत यन्द्ु क्त है -सौंदयय के वयौरों के धचत्रात्मक िणयन के साथ अपने मन पर पड़ने िाले उसके प्रभाि का िणयन और आत्मगत के संयोग की यह युन्द्क्त पाठक को उस मूल सौंदयय के काफी ननकट ले जाती है । जोशी जी की इस कविता में ऐसा ही है । कवि काले बादलों से भरे आकाश में पंन्द्क्त बनाकर उड़ते सफेद बगुलों को दे खता है । िे कजरारे बादलों में अटका-सा रह जाता है । िह इस माया से अपने को बचाने की गह ु ार लगाता हैं। क्या यह सौंदयय से बााँधने और विंधने की चरम न्द्स्थनत को वयक्त करने का एक तरीका है । प्रकृनत का स्ितंत्र (आलंबन गत ) धचत्रण आधनु नक कविता की विशेर्ता है ।धचत्रात्मक िणयन द्िारा कवि ने एक ओर काले बादलों पर उड़ती बगल ु ों की श्िेत पंन्द्क्त का धचत्र अंककत ककया है तो दस ू री ओर इस अप्रनतम दृश्य के हृदय पर पड़ने िाले प्रभाि को धचबत्रत ककया है ।मंत्र मुग्ध कवि इस दृश्य के प्रभाि से आत्म विस्मनृ त की न्द्स्थनत तक पहुाँच जाता है ।विर्य एिं विर्यीगत सौन्द्दयय के दोनों रूप कविता में उद्घाहटत हुए हैं। अथट-ग्रहण-संबंधी प्रश्ि “छोटा मेरा खेत चौकोना कागज़ का एक पन्द्ना ,कोई अंधड़ कहीं से आया क्षण का बीज िहााँ बोया गया| 71 कल्पना के रसायनों को पी बीज गल गया नन:शेर् ;शब्द के अंकुर फूटे , पल्लि –पुर्ष्पों से नसमत हुआ विशेर् |” प्रश्न १‘छोटा मेरा खेत’ ककसका प्रतीक है और क्यों? उत्तर :- प्रश्न२ ‘छोटा मेरा खेत’ काग़ज के उस पन्द्ने का प्रतीक है न्द्जस पर कवि अपनी कविता सलखता है । प्रश्न २ कवि खेत में कौन–सा बीज बोता है ? उत्तर :- कवि खेत में अपनी कल्पना का बीज बोता है ? प्रश्न ३ कवि की कल्पना से कौन से पल्लि अंकुररत होते हैं ? उत्तर :- कवि की कल्पना से शब्द के पल्लि अंकुररत होते हैं? प्रश्न ४ उपयक् ुय त पद का भाि-सौंदयय स्पर्ष्ट कीन्द्जए | उत्तर :- खेती के रूपक द्िारा काव्य-रचिा–प्रकक्रया को स्पष्ट ककया गया हे ।कावय कृनत की रचिा बीज– वपि से लेकर पौधे के पुजष्पत होिे के प्वलभन्ि चरणों से गुजरती है ।अंतर केिल इतना है कक कप्व कमट की िसल कालजयी, शाश्ित होती है ।उसका रस-क्षरण अक्षय होता है । सौंर्दयट-बोध-संबंधी प्रश्ि “झूमने लगे फल, रस अलौककक , अमत ृ धाराएाँ फूटतीं रोपाई क्षण की , कटाई अनंतता की लट ु ते रहने से जरा भी कम नहीं होती | 72 रस का अक्षय पात्र सदा का छोटा मेरा खेत चौकोना |” प्रश्न इस कविता की भार्ा संबंधी विशेर्ताओं पर प्रकाश डासलए – उत्तर ;- १ प्रतीकात्मकता २ लाक्षणणकता २रूपक अलंकार– रस का अक्षय पात्र सदा का छोटा मेरा खेत चौकोना। प्रश्न २ रस अलौककक, अमत ृ धाराएाँ, रोपाई – कटाई-प्रतीकों के अथय स्पर्ष्ट कीन्द्जए | उत्तर :- रस अलौककक – कावय रस ननर्ष्पवत्त अमत ृ धाराएाँ- कावयानंद रोपाई – अनभ ु नू त को शब्दबद्ध करना कटाई –रसास्िादन प्वषय-वस्तु पर आधाररत प्रश्िोत्तर कप्वता – छोटा मेरा खेत प्रश्न १ उमाशंकर जोशी ने ककस भार्ा में कविताएाँ सलखी हैं ? उत्तर :- गुजराती भार्ा प्रश्न२ कृवर्–कमय एिं कवि–कमय में क्या क्या समानताएाँ हैं? उत्तर :- कृवर्–कमय एिं कवि–कमय में ननम्नसलणखत समानताएाँ हैं- 73 कावय कृनत की रचिा बीज– वपि से लेकर पौधे के पुजष्पत होिे के प्वलभन्ि चरणों से गुजरती है । कृप्ष–कमट एवं कप्व–कमट में समािताएाँ : कागज का पन्द्ना, न्द्जस पर रचना शब्दबद्ध होती है , कवि को एक चौकोर खेतलगता है । इस खेत में ककसी अाँधड़ (आशय भािनात्मक आाँधी से होगा) के प्रभाि से ककसी क्षण एक बीज बोया जाता है । यह बीज-रचना विचार और असभवयन्द्क्त का हो सकता है । यह मूल रूप कल्पना का सहारा लेकर विकससत होता है और प्रकक्रया में स्ियं विगसलत हो जाता है । इसीप्रकार बीज भी खाद, पानी, सय ू य की रोशनी ,हिा आहद लेकर विकससत होता है | कावय –रचना से शब्दों के अंकुर ननकलते हैं और अंततुः कृनत एक पूणय स्िरूप ग्रहण करती है , जो कृवर्-कमय के सलहाज से पल्लवित –पुन्द्र्ष्पत और फसलत होने की न्द्स्थनत है । अथट-ग्रहण-संबंधी प्रश्ि कप्वता– बगुलों के पंख नभ में पााँती- बाँधे बगुलों के पंख , चरु ाए सलए जातीं िे मेरी आाँखें | कजरारे बादलों की छाई नभ छाया , हौले–हौले जाती मझ ु े बााँध ननज माया से | उसे कोई तननक रोक रक्खो | िह तो चरु ाए सलए जाती मेरी आाँखें नभ में पााँती- बाँधी बगुलों की पााँखें | तैरती सााँझ की सतेज श्िेत काया| प्रश्न१:- इस कविता में कवि ने ककसका धचत्रण ककया है ? उत्तर :- कवि ने काले बादलों पर उड़ती बगल ु ों की श्िेत पंन्द्क्त का धचत्रण ककया है | प्रश्न२:- आाँखें चरु ाने का क्या अथय है ? उत्तर :- आाँखें चरु ाने का आशय है –ध्यान पूरी तरह खींच लेना ,एकटक दे खना ,मंत्रमुग्ध कर दे ना 74 प्रश्न३:“कजरारे बादलों की छाई नभ छाया , हौले –हौले जाती मुझे बााँध ननज माया से |”- आशय स्पर्ष्ट कीन्द्जए | उत्तर:- काले बादलों के बीच सााँझ का सुरमई िातािरण बहुत सुंदर हदखता है | ऐसा अप्रनतम सौंदयय अपने आकर्यण में कवि को बााँध लेता है | प्रश्न ४ “उसे कोई तननक रोक रक्खो |’- से कवि का क्या असभप्राय है ? उत्तर :- बगल ु ों की पंन्द्क्त आकाश में दरू तक उड़ती जा रही है कवि की मंत्रमग्ु ध आाँखें उनका पीछा कर रही हैं | कवि उन बगुलों को रोक कर रखने की गुहार लगा रहा है कक कहीं िे उसकी आाँखें ही अपने साथ न ले जाएाँ | सौंर्दयट-बोध-संबंधी प्रश्ि प्रश्न १ कविता की भार्ा संबंधी दो विशेर्ताएाँ सलणखए| उत्तर :-१ धचत्रात्मक भार्ा २ बोलचाल के शब्दों का प्रयोग - हौले –हौले, पााँती, कजरारे ,सााँझ प्रश्न २ कविता में प्रयक् ु त अलंकार चन ु कर सलणखए | उत्तर :- अनुप्रास अलंकार - बाँधे बगुलों के पंख , मानिीकरण अलंकार - चुराए सलए जातीं िे मेरी आाँखें | प्रश्न ३ :-‘ ननज माया’ के लाक्षणणक अथय को स्पर्ष्ट कीन्द्जए | उत्तर :- प्रकृनत का अप्रनतम सौंदयय िह माया है जो कवि को आत्मविभोर कर दे ती है ।यह पंन्द्क्त भी प्रशंसात्मक उन्द्क्त है । प्वषय-वस्तु पर आधाररत प्रश्िोत्तर प्रश्न१:- ‘चरु ाए सलए जाती िे मेरी ऑ ंखें ’ से कवि का क्या तात्पयय है ? 75 उत्तर :-धचत्रात्मक िणयन द्िारा कवि ने एक ओर काले बादलों पर उड़ती बगुलों की श्िेत पंन्द्क्त का धचत्र अंककत ककया है तथा इस अप्रनतम दृश्य के हृदय पर पड़ने िाले प्रभाि को धचबत्रत ककया है । कवि के अनुसार यह दृश्य उनकी आाँखें चरु ाए सलए जा रहा है |मंत्र मुग्ध कवि इस दृश्य के प्रभाि से आत्म विस्मनृ त की न्द्स्थनत तक पहुाँच जाता है । प्रश्न२:-कवि ककस माया से बचने की बात कहता है ? उत्तर :- माया विश्ि को अपने आकर्यण में बााँध लेने के सलए प्रससद्ध है | कबीर ने भी ‘माया महा ठधगनी हम जानी’ कहकर माया की शन्द्क्त को प्रनतपाहदत ककया है | काले बादलों में बगुलों की सुंदरता अपना माया जाल फैला कर कवि को अपने िश में कर रही है | 76 आरोह भाग-२, गद्य-भाग प्रश्ि-संख्या १०- गद्य खंड में हदए गए पहठत गद्यांश से अथयग्रहण संबंधी चार प्रश्न पूछे जाएाँगे, न्द्जनके सलए ननधायररत अंक (२*४=८) हैं | प्रश्ि-संख्या ११- पाठों की विर्यिस्तु से संबंधधत पााँच में से चार प्रश्नों के उत्तर दे ने हैं, न्द्जनके सलए ननधायररत अंक (३*४=१२) हैं| परीक्षा में अच्छे अंक प्रातत करिे के ललए ध्याि र्दे िे योग्य बातें – 1. लेख एिं ितयनी की शुद्धता तथा िाक्य-गठन पर ध्यान दें | 2. हर पाठ का सार,पर्ष्ृ ठभूसम,विर्यिस्तु तथाकथानक को समझना आिश्यक है | अत:विद्याथी हर पाठ का सारांश भलीभााँनत याद कर लें | 3. प्रश्नों को ध्यान से पढ़ें तदनुसार अपेक्षक्षत उत्तर सलखें | 4. उत्तर सलखते समय संबंधधत मुख्य बबंदओ ु ं का शीर्यकबनाते हुए उत्तर सलखें , यथा-तीन अंक के प्रश्नों के उत्तर सलखते समय कम से कम तीन मुख्य उत्तर-बबंदओ ु ं का उल्लेख करते हुए उत्तर स्पर्ष्ट करें | 5. अंक-योजना के अनस ु ार ननधायररत शब्द-सीमा के अंतगयत उत्तर सलखें | परीक्षाथी कई बार एक अंक के प्रश्न का उत्तर बहुत लंबा, कई बार परू ा पर्ष्ृ ठ सलख दे ते हैं जो समय और ऊजाय की बबायदी है | 6. ध्यान रहे कक अधधक सलखने से अच्छे अंक नहीं आते बन्द्ल्क सरल-सुबोध भार्ा में सलखे गए सटीक उत्तर, सारगसभयत तथ्य तथा उदाहरण के द्िारा स्पर्ष्ट ककए गए उत्तर प्रभािशाली होते हैं | पाि 11 - भजक्ति लेखखका- महार्दे वी वमाट पाि का सारांश- भन्द्क्तन न्द्जसका िास्तविक नाम लक्ष्मी था,लेणखका ‘महादे िी िमाय’ की सेविका है | बचपन में ही भन्द्क्तन की मााँ की मत्ृ यु हो गयी| सौतेली मााँ ने पााँच िर्य की आयु में वििाह तथा नौ िर्य की आयु में गौना कर भन्द्क्तन को ससुराल भेज हदया| ससुराल में भन्द्क्तन ने तीन बेहटयों को जन्द्म हदया, न्द्जस कारण उसे सास और न्द्जठाननयों की उपेक्षा सहनी पड़ती थी| सास और न्द्जठाननयााँ आराम फरमाती थी और भन्द्क्तन तथा उसकी नन्द्हीं बेहटयों को घर और खेतों का सारा काम करना पडता था| भन्द्क्तन का पनत उसे बहुत चाहता था| अपने पनत के स्नेह के बल पर भन्द्क्तन ने ससरु ाल िालों से अलगौझा कर अपना अलग घर बसा सलया और सख ु से रहने लगी, पर भन्द्क्तन का दभ ु ायग्य, अल्पायु में ही उसके पनत की मत्ृ यु हो गई | ससुराल िाले 77 भन्द्क्तन की दस ू री शादी कर उसे घर से ननकालकर उसकी संपवत्त हड़पने की सान्द्जश करने लगे| ऐसी पररन्द्स्थनत में भन्द्क्तन ने अपने केश मड ुं ा सलए और संन्द्याससन बन गई | भन्द्क्तन स्िासभमानी, संघर्यशील, कमयठ और दृढ संकल्प िाली स्त्री है जो वपतस ृ त्तात्मक मान्द्यताओं और छ्ल-कपट से भरे समाज में अपने और अपनी बेहटयों के हक की लड़ाई लड़ती है ।घर गह ृ स्थी साँभालने के सलए अपनी बड़ी बेटी दामाद को बुला सलया पर दभ ु ायग्य ने यहााँ भी भन्द्क्तन का पीछा नहीं छोड़ा, अचानक उसके दामाद की भी मत्ृ यु हो गयी| भन्द्क्तन के जेठ-न्द्जठौत ने सान्द्जश रचकर भन्द्क्तन की विधिा बेटी का वििाह जबरदस्ती अपने तीतरबाज साले से कर हदया| पंचायत द्िारा कराया गया यह संबंध दख ु दायी रहा | दोनों मााँ-बेटी का मन घर-गह ृ स्थी से उचट गया, ननधयनता आ गयी, लगान न चक ु ा पाने के कारण जमींदार ने भन्द्क्तन को हदन भर धप ू में खड़ा रखा| अपमाननत भन्द्क्तन पैसा कमाने के सलए गााँि छोड़कर शहर आ जाती है और महादे िी की सेविका बन जाती है | भन्द्क्तन के मन में महादे िी के प्रनत बहुत आदर, समपयण और असभभािक के समान अधधकार भाि है | िह छाया के समान महादे िी के साथ रहती है | िह रातरात भर जागकर धचत्रकारी या लेखन जैसे कायय में वयस्त अपनी मालककन की सेिा का अिसर ढूाँढ लेती है | महादे िी, भन्द्क्तन को नहीं बदल पायी पर भन्द्क्तन ने महादे िी को बदल हदया| भन्द्क्तन के हाथ का मोटा-दे हाती खाना खाते-खाते महादे िी का स्िाद बदल गया, भन्द्क्तन ने महादे िी को दे हात के ककस्से-कहाननयााँ, ककंिदं नतयााँ कंठस्थ करा दी| स्िभाि से महाकंजूस होने पर भी भन्द्क्तन, पाई-पाई कर जोडी हुई १०५ रुपयों की रासश को सहर्य महादे िी को समवपयत कर दे ती है | जेल के नाम से थर-थर कााँपने िाली भन्द्क्तन अपनी मालककन के साथ जेल जाने के सलए बड़े लाट साहब तक से लड़ने को भी तैयार हो जाती है | भन्द्क्तन, महादे िी के जीिन पर छा जाने िाली एक ऐसी सेविका है न्द्जसे लेणखका नहीं खोना चाहती। पाि आधाररत प्रश्िोत्तर नोट- उत्तर में ननहहत रे खांककत िाक्य, मुख्य संकेत बबंद ु हैं | प्रश्ि 1-भजक्ति का वास्तप्वक िाम क्या था, वह अपिे िाम को क्यों छुपािा चाहती थी? उत्तर-भन्द्क्तन का िास्तविक नाम लक्ष्मी था, हहन्द्दओ ु ं के अनुसारलक्ष्मी धन की दे िीहै । चाँ कू क भन्द्क्तन गरीब थी| उसके िास्तविक नाम के अथय और उसके जीिन के यथाथय में विरोधाभास है , ननधयन भन्द्क्तन सबको अपना असली नाम लक्ष्मी बताकर उपहास का पात्र नहीं बनना चाहती थी इससलए िह अपना असली नाम छुपाती थी। प्रश्ि 2- लेखखका िे लक्ष्मी का िाम भजक्ति क्यों रखा? उत्तर-घुटा हुआ ससर, गले में कंठी माला और भक्तों की तरह सादगीपूणय िेशभूर्ा दे खकर महादे िी िमाय ने लक्ष्मी का नाम भन्द्क्तन रख हदया | यह नाम उसके वयन्द्क्तत्ि से पूणत य : मेल खाता था | 78 प्रश्ि 3-भजक्ति के जीवि को ककतिे पररच्छे र्दों में प्वभाजजत ककया गया है ? उत्तर- भन्द्क्तन के जीिन को चार भागों में बााँटा गया है पहला पररच्छे र्द-भन्द्क्तन का बचपन, मााँ की मत्ृ यु, विमाता के द्िारा भन्द्क्तन का बालवििाह करा दे ना । द्प्वतीय पररच्छे र्द-भन्द्क्तन का िैिाहहक जीिन, सास तथा न्द्जठाननयों का अन्द्यायपूणय वयिहार, पररिार से अलगौझा कर लेना । तत ृ ीय पररच्छे र्द- पनत की मत्ृ य,ु विधिा के रूप में संघर्यशील जीिन। चतथ ु ट पररच्छे र्द- महादे िी िमाय की सेविका के रूप में । प्रश्ि 4- भजक्ति पाि के आधार पर भारतीय ग्रामीण समाज में लड़के-लड़ककयों में ककये जािे वाले भेर्दभाव का उल्लेख कीजजए | भारतीय ग्रामीण समाज में लड़के-लड़ककयों में भेदभाि ककया जाता है | लड़ककयों को खोटा ससक्का या पराया धन माना जाता है | भन्द्क्तन ने तीन बेहटयों को जन्द्म हदया, न्द्जस कारण उसे सास और न्द्जठाननयों की उपेक्षा सहनी पड़ती थी| सास और न्द्जठाननयााँ आराम फरमाती थी क्योंकक उन्द्होंने लड़के पैदा ककए थे और भन्द्क्तन तथा उसकी नन्द्हीं बेहटयों को घर और खेतों का सारा काम करना पडता था| भन्द्क्तन और उसकी बेहटयों को रूखा-सूखा मोटा अनाज खाने को समलता था जबकक उसकी न्द्जठाननयााँ और उनके काले-कलूटे बेटे दध ू -मलाई राब-चािल की दाित उड़ाते थे प्रश्ि 5-भजक्ति पाि के आधार पर पंचायत के न्याय पर ठटतपणी कीजजए | भन्द्क्तन की बेटी के सन्द्दभय में पंचायत द्िारा ककया गया न्द्याय, तकयहीन और अंधे कानून पर आधाररतहै | भन्द्क्तन के न्द्जठौत ने संपवत्त के लालच में र्डयंत्र कर भोली बच्ची को धोखे से जाल में फंसाया| पंचायत ने ननदोर् लड़की की कोई बात नहीं सन ु ी और एक तरिा फैसला दे कर उसका वििाह जबरदस्ती न्द्जठौत के ननकम्मे तीतरबाज साले से कर हदया | पंचायत के अंधे कानन ू से दर्ष्ु टों को लाभ हुआ और ननदोर् को दं ड समला | प्रश्ि 6-भजक्ति की पाक-कला के बारे में ठटतपणी कीजजए | भन्द्क्तन को ठे ठ दे हाती, सादा भोजन पसंद था | रसोई में िह पाक छूत को बहुत महत्त्ि दे ती थी | सुबह-सिेरे नहा-धोकर चौके की सफाई करके िह द्िार पर कोयले की मोटी रे खा खींच दे ती थी| ककसी को रसोईघर में प्रिेश करने नहीं दे ती थी| उसे अपने बनाए भोजन पर बड़ा असभमान था| िह अपने बनाए भोजन का नतरस्कार नहीं सह सकती थी | 79 प्रश्ि 7- लसद्ध कीजजए कक भजक्ति तकट-प्वतकट करिे में माठहर थी | भन्द्क्तन तकयपटु थी | केश माँड ु ाने से मना ककए जाने पर िह शास्त्रों का हिाला दे ते हुए कहती है ‘तीरथ गए माँड ु ाए ससद्ध’ | घर में इधर-उधर रखे गए पैसों को िह चप ु चाप उठा कर छुपा लेती है , टोके जानेपर िह िह इसे चोरी नही मानती बन्द्ल्क िह इसे अपने घर में पड़े पैसों को साँभालकर रखना कहती है | मैं भी पढ़ने लगाँू पढाई-सलखाई से बचने के सलए भी िह अचक ू तकय दे ती है कक अगर तो घर का काम कौन दे खेगा? प्रश्ि 8-भजक्ति का र्दभ ु ाटग्य भी कम हिी िही था, लेखखका िे ऐसा क्यों कहा है ? उत्तर- भजक्ति का र्दभ ु ाटग्य उसका पीछा िहीं छोड़ता था1- बचपन में ही मााँ की 2- विमाता की उपेक्षा । मत्ृ यु । 3- भन्द्क्तन(लक्ष्मी) का बालवििाह । 4- वपता का ननधन । 5- तीन-तीन बेहटयों को जन्द्म दे ने के कारण सास और न्द्जठाननयों के द्िारा भन्द्क्तन की उपेक्षा । 6- पनत की असमय मत्ृ यु । 7- दामाद का ननधन और पंचायत के द्िारा ननकम्मे तीतरबाज युिक से भन्द्क्तन की विधिा बेटी का जबरन वििाह । 8- लगान न चक ु ा पाने पर जमींदार के द्िारा भन्द्क्तन का अपमान। प्रश्ि 9-भजक्ति िे महार्दे वी वमाट के जीवि पर कैसे प्रभाप्वत ककया? उत्तर- भन्द्क्तन के साथ रहकर महादे िी की जीिन-शैली सरल हो गयी, िे अपनी सुविधाओं की चाह को नछपाने लगीं और असुविधाओं को सहने लगीं। भन्द्क्तन ने उन्द्हें दे हाती भोजन णखलाकर उनका स्िाद बदल हदया। भन्द्क्तन मात्र एक सेविका न होकर महादे िी की असभभािक और आत्मीय बन गयी।भन्द्क्तन, महादे िी के जीिन पर छा जाने िाली एक ऐसी सेविका है न्द्जसे लेणखका नहीं खोना चाहती। प्रश्ि 10- भजक्ति के चररत्र की प्वशेषताओं का उल्लेख कीजजए। उत्तर- महादे िी िमाय की सेविका भन्द्क्तन के वयन्द्क्तत्ि की विशेर्ताएं ननम्नांककत हैं समवपयत सेविका स्िासभमानी 80 तकयशीला पररश्रमी संघर्यशील प्रश्ि 11-भजक्ति के र्दग ु ण ुट ों का उल्लेख करें । उत्तर- गुणों के साथ-साथ भन्द्क्तन के वयन्द्क्तत्ि में अनेक दग ु ण ुय भी ननहहत है 1. िह घर में इधर-उधर पड़े रुपये-पैसे को भंडार घर की मटकी में छुपा दे ती है और अपने इस कायय को चोरी नहीं मानती। 2. महादे िी के क्रोध से बचने के सलए भन्द्क्तन बात को इधर-उधर करके बताने को झठ ू नही मानती। अपनी बात को सही ससद्ध करने के सलए िह तकय-वितकय भी करती है । 3. िह दस ू रों को अपनी इच्छानस ु ार बदल दे ना चाहती है पर स्ियं बबलकुल नही बदलती। प्रश्ि 12 निम्िांककत भाषा-प्रयोगों का अथट स्पष्ट कीजजए पहली कन्या के र्दो और संस्करण कर िाले- भन्द्क्तन ने अपनी पहली कन्द्या के बाद उसके जैसी दो और कन्द्याएाँ पैदा कर दी अथायत भन्द्क्तन के एक के बाद एक तीन बेहटयााँ पैदा हो गयीं | खोटे लसक्कों की टकसाल जैसी पत्िी- आज भी असशक्षक्षत ग्रामीण समाज में बेहटयों को खोटा ससक्का कहा जाता है । भन्द्क्तन ने एक के बाद एक तीन बेहटयााँ पैदा कर दी इससलए उसे खोटे ससक्के को ढालने िाली मशीन कहा गया। प्रश्ि 13-भजक्ति पाि में लेखखका िे समाज की ककि समस्याओं का उल्लेख ककया है ? उत्तर- भन्द्क्तन पाठ के माध्यम से लेणखका ने भारतीय ग्रामीण समाज की अनेक समस्याओं का उल्लेख ककया है 1. लड़के-लड़ककयों में ककया जाने िाला भेदभाि 2. विधिाओं की समस्या 3. न्द्याय के नाम पर पंचायतों के द्िारा न्द्स्त्रयों के मानिाधधकार को कुचलना 4. असशक्षा और अंधविश्िास गद्यांश-आधाररत अथटग्रहण संबंधधत प्रश्िोत्तर पररिार और पररन्द्स्थनतयों के कारण स्िभाि में जो विर्मताएाँ उत्पन्द्न हो गई हैं , उनके भीतर से एक स्नेह और सहानुभूनत की आभा फूटती रहती है , इसी से उसके संपकय में आनेिाले वयन्द्क्त उसमें जीिन की सहज मासमयकता ही पाते हैं। छात्रािास की बासलकाओं में से कोई अपनी चाय 81 बनिाने के सलए दे हली पर बैठी रहती हैं, कोई बाहर खडी मेरे सलए नाश्ते को चखकर उसके स्िाद की वििेचना करती रहती है । मेरे बाहर ननकलते ही सब धचडड़यों के समान उड़ जाती हैं और भीतर आते ही यथास्थान विराजमान हो जाती है । इन्द्हें आने में रूकािट न हो, संभितुः इसी से भन्द्क्तन अपना दोनों जून का भोजन सिेरे ही बनाकर ऊपर के आले में रख दे ती है और खाते समय चौके का एक कोना धोकर पाक–छूत के सनातन ननयम से समझौता कर लेती है । मेरे पररधचतों और साहहन्द्त्यक बंधओ ु ं से भी भन्द्क्तन विशेर् पररधचत है , पर उनके प्रनत भन्द्क्तन के सम्मान की मात्रा, मेरे प्रनत उनके सम्मान की मात्रा पर ननभयर है और सद्भाि उनके प्रनत मेरे सद्भाि से ननन्द्श्चत होता है । इस संबंध में भन्द्क्तन की सहज बुद्धध विन्द्स्मत कर दे ने िाली है । (क) भजक्ति का स्वभाव पररवार में रहकर कैसा हो गया है ? उत्तर-विर्म पररन्द्स्थनतजन्द्य उसके उग्र, हठी और दरु ाग्रही स्िभाि के बािजूद भन्द्क्तन के भीतर स्नेह और सहानुभूनत की आभा फूटती रहती है । उसके संपकय में आने िाले वयन्द्क्त उसमें जीिन की सहज मासमयकता ही पाते हैं। (ख) भजक्ति के पास छात्रावास की छात्राएाँ क्यों आती हैं ? उत्तर- भन्द्क्तन के पास कोई छात्रा अपनी चाय बनिाने आती है और दे हली पर बैठी रहती है , कोई महादे िी जी के सलए बने नाश्ते को चखकर उसके स्िाद की वििेचना करती रहती है । महादे िी को दे खते ही सब छात्राएाँ भाग जाती हैं , उनके जाते ही कफर िापस आ जातीं हैं भन्द्क्तन का सहज-स्नेह पाकर धचडड़यों की तरह चहचहाने लगती हैं | (ग) छात्राओं के आिे में रुकावट ि िालिे के ललए भजक्ति िे क्या उपाय ककया ? उत्तर- छात्राओं के आने में रुकािट न डालने के सलए भन्द्क्तन ने अपने पाक-छूत के ननयम से समझौता कर सलया | भन्द्क्तन अपना दोनों िक्त का खाना बनाकर सब ु ह ही आले में रख दे ती और खाते समय चौके का एक कोना धोकर िहााँ बैठकर खा सलया करती थी ताकक छात्राएाँ बबना रोक-टोक के उसके पास आ सकें। (घ) साठहत्यकारों के प्रनत भजक्ति के सम्माि का क्या मापर्दं ि है ? उत्तर-भन्द्क्तन महादे िी के साहहन्द्त्यक समत्र के प्रनत सद्भाि रखती थी न्द्जसके प्रनत महादे िी स्ियं सद्भाि रखती थी | िह सभी से पररधचत है पर उनके प्रनत सम्मान की मात्रा महादे िी जी के सम्मान की मात्रा पर ननभयर करती है । िह एक अद्भुत ढं ग से जान लेती थी कक कौन ककतना सम्मान करता है । उसी अनुपात में उसका प्राप्य उसे दे ती थी। 82 12 बाजार-र्दशटि लेखक- जैिेंि कुमार पाि का सारांश बाजार-दशयन पाठ में बाजारिाद और उपभोक्तािाद के साथ-साथ अथयनीनत एिं दशयन से संबंधधत प्रश्नों को सुलझाने का प्रयास ककया गया है । बाजार का जाद ू तभी असर करता है जब मन खाली हो| बाजार के जाद ू को रोकने का उपाय यह है कक बाजार जाते समय मन खाली ना हो, मन में लक्ष्य भरा हो| बाजार की असली कृताथयता है जरूरत के िक्त काम आना| बाजार को िही मनर्ष्ु य लाभ दे सकता है जो िास्ति में अपनी आिश्यकता के अनस ु ार खरीदना चाहता है | जो लोग अपने पैसों के घमंड में अपनी पचेन्द्जंग पािर को हदखाने के सलए चीजें खरीदते हैं िे बाजार को शैतानी वयंग्य शन्द्क्त दे ते हैं| ऐसे लोग बाजारूपन और कपट बढाते हैं | पैसे की यह वयंग्य शन्द्क्त वयन्द्क्त को अपने सगे लोगों के प्रनत भी कृतघ्न बना सकती है | साधारण जन का हृदय लालसा, ईर्ष्याय और तर्ष्ृ णा से जलने लगता है | दस ू री ओर ऐसा वयन्द्क्त न्द्जसके मन में लेश मात्र भी लोभ और तर्ष्ृ णा नहीं है , संचय की इच्छा नहीं है िह इस वयंग्यशन्द्क्त से बचा रहता है | भगतजी ऐसे ही आत्मबल के धनी आदशय ग्राहक और बेचक हैं न्द्जन पर पैसे की वयंग्य-शन्द्क्त का कोई असर नहीं होता | अनेक उदाहरणों के द्िारा लेखक ने यह स्पर्ष्ट ककया है कक एक ओर बाजार, लालची, असंतोर्ी और खोखले मन िाले वयन्द्क्तयों को लूटने के सलए है िहीं दस ू री ओर संतोर्ी मन िालों के सलए बाजार की चमक-दमक, उसका आकर्यण कोई महत्त्ि नहीं रखता। प्रश्ि१ - पचेजजंग पावर ककसे कहा गया है , बाजार पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है ? उत्तर- पचेन्द्जंग पािर का अथय है खरीदने की शन्द्क्त। पचेन्द्जंग पािर के घमंड में वयन्द्क्त हदखािे के सलए आिश्यकता से अधधक खरीदारीकरता है और बाजार को शैतानी वयंग्य-शन्द्क्त दे ता है । ऐसे लोग बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं। प्रश्ि२ -लेखक िे बाजार का जार्द ू ककसे कहा है , इसका क्या प्रभाव पड़ता है ? उत्तर- बाजार की चमक-दमक के चब ुं कीय आकर्यण को बाजार का जाद ू कहा गया है , यह जाद ू आंखों की राह कायय करता है । बाजार के इसी आकर्यण के कारण ग्राहक सजी-धजी चीजों को आिश्यकता न होने पर भी खरीदने को वििश हो जाते हैं। प्रश्ि३ -आशय स्पष्ट करें । मन खाली होना मन भरा होना मन बंद होना 83 उत्तर-मि खाली होिा- मन में कोई ननन्द्श्चत िस्तु खरीदने का लक्ष्य न होना। ननरुद्दे श्य बाजार जाना और वयथय की चीजों को खरीदकर लाना। मि भरा होिा- मन लक्ष्य से भरा होना। न्द्जसका मन भरा हो िह भलीभााँनत जानता है कक उसे बाजार से कौन सी िस्तु खरीदनी है , अपनी आिश्यकता की चीज खरीदकर िह बाजार को साथयकता प्रदान करता है । मि बंर्द होिा-मन में ककसी भी प्रकार की इच्छा न होना अथायत अपने मन को शन्द् ू य कर दे ना। प्रश्ि४ - ‘जहााँ तष्ृ णा है , बटोर रखिे की स्पह ृ ा है , वहााँ उस बल का बीज िहीं है ।’ यहां ककस बल की चचाट की गयी है ? उत्तर- लेखक ने संतोर्ी स्िभाि के वयन्द्क्त के आत्मबलकी चचाय की है । दस ू रे शब्दों में यहद मन में संतोर् हो तो वयन्द्क्त हदखािे और ईर्ष्याय की भािना से दरू रहता है उसमें संचय करने की प्रिवृ त्त नहीं होती। प्रश्ि५ - अथटशास्त्र, अिीनतशास्त्र कब बि जाता है ? उत्तर- जब बाजार में कपट और शोर्ण बढ़ने लगे, खरीददार हदखािे अपनी पचेधचंग पािर के घमंड में के सलए खरीददारी करें | मनुर्ष्यों में परस्पर भाईचारा समाप्त हो जाए| खरीददार और दक ु ानदार एक दस ू रे को ठगने की घात में लगे रहें , एक की हानन में दस ू रे को अपना लाभ हदखाई दे तो बाजार का अथयशास्त्र, अनीनतशास्त्र बन जाता है । ऐसे बाजार मानिता के सलए विडंबना है । प्रश्ि६-भगतजी बाजार और समाज को ककस प्रकार साथटकता प्रर्दाि कर रहे हैं? उत्तर- भगतजी के मन में सांसाररक आकर्यणों के सलए कोई तर्ष्ृ णा नहीं है । िे संचय, लालच और हदखािे से दरू रहते हैं। बाजार और वयापार उनके सलए आिश्यकताओं की पूनतय का साधन मात्र है । भगतजी के मन का संतोर् और ननस्पह ृ भाि, उनको श्रेर्ष्ठ उपभोक्ता और विक्रेता बनाते हैं। प्रश्ि ७ _ भगत जी के व्यजक्तत्व के सशक्त पहलओ ु ं का उल्लेख कीजजए | उत्तर-ननम्नांककत बबंद ु उनके वयन्द्क्तत्ि के सशक्त पहलू को उजागर करते हैं। पंसारी की दक ु ान से केिल अपनी जरूरत का सामान (जीरा और नमक) खरीदना। ननन्द्श्चत समय पर चरू न बेचने के सलए ननकलना। छ्ह आने की कमाई होते ही चरू न बेचना बंद कर दे ना। बचे हुए चरू न को बच्चों को मुफ़्त बााँट दे ना। सभी काजय-जय राम कहकर स्िागत करना। 84 बाजार की चमक-दमक से आकवर्यत न होना। समाज को संतोर्ी जीिन की सशक्षा दे ना। प्रश्ि7-बाजार की साथटकता ककसमें है ? उत्तर- मनुर्ष्य की आिश्यकताओं की पूनतय करने में ही बाजार की साथयकता है । जो ग्राहक अपनी आिश्यकताओं की चीजें खरीदते हैं िे बाजार को साथयकता प्रदान करते हैं। जो विक्रेता, ग्राहकों का शोर्ण नहीं करते और छल-कपट से ग्राहकों को लभ ु ाने का प्रयास नही करते िे भी बाजार को साथयक बनाते हैं। गद्यांश-आधाररत अथटग्रहण-संबंधधत प्रश्िोत्तर बाजार मे एक जाद ू है । िह जाद ू आाँख की तरह काम करता है । िह रूप का जाद ू है पर जैसे चब ंु क का जाद ू लोहे पर ही चलता है , िैसे ही इस जाद ू की भी मयायदा है जेब भरी हो, और मन खाली हो, ऐसी हालत में जाद ू का असर खब ू होता है । जेब खाली पर मन भरा न हो तो भी जाद ू चल जाएगा। मन खाली है तो बाजार की अनेकानेक चीजों का ननमंत्रण उस तक पहुाँच जाएगा। कहीं हुई उस िक्त जेब भरी, तब तो कफर िह मन ककसकी मानने िाला है । मालूम होता है यह भी लाँ ू, िह भी लाँ ।ू सभी सामान जरूरी और आराम को बढ़ाने िाला मालूम होता है पर यह सब जाद ू का असर है । जाद ू की सिारी उतरी कक पता चलता है कक फैंसी-चीजों की बहुतायत आराम में मदद नहीं दे ती, बन्द्ल्क खलल ही डालती है । थोड़ी दे र को स्िासभमान को जरूर सेंक समल जाता है पर इससे असभमान को धगल्टी की खरु ाक ही समलती है । जकड़ रे शमी डोरी की हो तो रे शम के स्पशय के मुलायम के कारण क्या िह कम जकड़ दे गी ? पर उस जाद ू की जकड़ से बचने का एक सीधा उपाय है िह यह कक बाजार जाओ तो खाली मन न हो । मन खाली हो तब बाजार न जाओ कहते हैं, लू में जाना हो तो पानी पीकर जाना चाहहए पानी भीतर हो, लू का लप ू न वयथय हो जाता है । मन लक्ष्य से भरा हो तो बाजार फैला का फैला ही रह जाएगा। तब िह घाि बबलकुल नहीं दे सकेगा, बन्द्ल्क कुछ आनंद ही दे गा। तब बाजार तम ु से कृताथय होगा, क्योंकक तम ु कुछ न कुछ सच्चा लाभ उसे दोगे। बाजार की असली कृताथयता है आिश्यकता के समय काम आना। प्रश्ि-1 बाजार के जार्द ू को लेखक िे कैसे स्पष्ट ककया है ? उत्तर- बाजार के रूप का जाद ू आाँखों की राह से काम करता हुआ हमें आकवर्यत करता है । बाजार का जाद ू ऐसे चलता है जैसे लोहे के ऊपर चब ुं क का जाद ू चलता है । चमचमाती रोशनी में सजी फैंसी चींजें ग्राहक को अपनी ओर आकवर्यत करती हैं| इसी चम् ु बकीय शन्द्क्त के कारण वयन्द्क्त कफजूल सामान को भी खरीद लेता है | 85 प्रश्ि-2 जेब भरी हो और मि खाली तो हमारी क्या र्दशा होती है ? उत्तर- जेब भरी हो और मन खाली हो तो हमारे ऊपर बाजार का जाद ू खब ू असर करता है । मन, खाली है तो बाजार की अनेकानेक चीजों का ननमंत्रण मन तक पहुाँच जाता है और उस समय यहद जेब भरी हो तो मन हमारे ननयंत्रण में नहीं रहता। प्रश्ि-3 िैंसी चीजों की बहुतायत का क्या पररणाम होता है ? उत्तर- फैंसी चीजें आराम की जगह आराम में वयिधान ही डालती है । थोड़ी दे र को असभमान को जरूर सेंक समल जाती है पर हदखािे की प्रिवृ त्त में िद् ृ धध होती है । प्रश्ि-4 जार्द ू की जकड़ से बचिे का क्या उपाय है ? उत्तर- जाद ू की जकड़ से बचने के सलए एक ही उपाय है , िह यह है कक बाजार जाओ तो मन खाली न हो, मन खाली हो तो बाजार मत जाओ। 13 काले मेघा पािी र्दे लेखक-धमटवीर भारती पाि का सारांश -‘काले मेघा पानी दे ’ ननबंध, लोकजीिन के विश्िास और विज्ञान के तकय पर आधाररत है । जब भीर्ण गमी के कारण वयाकुल लोग िर्ाय कराने के सलए पूजा-पाठ और कथाविधान कर थक–हार जाते हैं तब िर्ाय कराने के सलए अंनतम उपाय के रूप में इन्द्दर सेना ननकलती है | इन्द्दर सेना, नंग-धड़ंग बच्चों की टोली है जो कीचड़ में लथपथ होकर गली-मोहल्ले में पानी मााँगने ननकलती है | लोग अपने घर की छतों-णखड़ककयों से इन्द्दर सेना पर पानी डालते हैं | लोगों की मान्द्यता है कक इन्द्द्र, बादलों के स्िामी और िर्ाय के दे िता हैं| इन्द्द्र की सेना पर पानी डालने से इन्द्द्र भगिान प्रसन्द्न होकर पानी बरसाएंगे | लेखक का तकय है कक जब पानी की इतनी कमी है तो लोग मुन्द्श्कल से जमा ककए पानी को बाल्टी भर-भरकर इन्द्दर सेना पर डालकर पानी को क्यों बबायद करते है ? आययसमाजी विचारधारा िाला लेखक इसे अंधविश्िास मानता है | इसके विपरीत लेखक की जीजी उसे समझाती है कक यह पानी की बबायदी नहीं बन्द्ल्क पानी की बुिाई है | कुछ पाने के सलए कुछ दे ना पड़ता है | त्याग के बबना दान नहीं होता| प्रस्तुत ननबंध में लेखक ने भ्र्ष्टाचार की समस्या को उठाते हुए कहा है कक जीिन में कुछ पाने के सलए त्याग आिश्यक है । जो लोग त्याग और दान की महत्ता को नहीं मानते, िे ही भ्र्ष्टाचार में सलप्त रहकर दे श और समाज को लूटते हैं| जीजी की आस्था, भािनात्मक सच्चाई को पुर्ष्ट करती है और तकय केिल िैज्ञाननक तथ्य को सत्य मानता है । जहााँ तकय, यथाथय के कठोर धरातल पर सच्चाई को परखता है तो िहीं आस्था, अनहोनी बात को भी स्िीकार कर मन को संस्काररत करती है । भारत की स्ितंत्रता के ५० साल बाद भी दे श में वयाप्त भर्ष्टाचार और स्िाथय की भािना को दे खकर लेखक दख ु ी है | सरकार द्िारा चलाई जा रही योजनाएाँ गरीबों तक क्यों नहीं 86 पहुाँच पा रहीं हैं? काले मेघा के दल उमड़ रहे हैं पर आज भी गरीब की गगरी फूटी हुई क्यों है ? लेखक ने यह प्रश्न पाठकों के सलए छोड़ हदया है | प्रश्ि1-इन्र्दर सेिा घर-घर जाकर पािी क्यों मााँगती थी? उत्तर- गााँि के लोग बाररश के सलए भगिान इंद्र से प्राथयना ककया करते थे। जब पूजा-पाठ,व्रत आहद उपाय असिल हो जाते थे तो भगिान इंद्र को प्रसन्द्न करने के सलए गााँि के ककशोर, बच्चे कीचड़ में लथपथ होकर गली-गली घम ू कर लोगों से पानी मााँगते थे। प्रश्ि2-इन्र्दरसेिा को लेखक मेढक-मंिली क्यों कहता है , जीजी के बार–बार कहिे पर भी वह इन्र्दरसेिा पर पािी िेंकिे को राजी क्यों िहीं होता ? उत्तर- इन्द्दरसेना का कायय आययसमाजी विचारधारा िाले लेखक को अंधविश्िास लगता है , उसका मानना है कक यहद इंदरसेना दे िता से पानी हदलिा सकती है तो स्ियं अपने सलए पानी क्यों नहीं मााँग लेती? पानी की कमी होने पर भी लोग घर में एकत्र ककये हुए पानी को इंदरसेना पर िेंकते हैं। लेखक इसे पानी की ननमयम बरबादी मानता है । प्रश्ि3- रूिे हुए लेखक को जीजी िे ककस प्रकार समझाया? उत्तर- जीजी ने लेखक को प्यार से लड्डू-मठरी णखलाते हुए ननम्न तकय हदए1- त्याग का महत्त्व- कुछ पाने के सलए कुछ दे ना पड़ता है । 2- र्दाि की महत्ता- ॠवर्-मुननयों ने दान को सबसे ऊाँचा स्थान हदया है । जो चीज अपने पास भी कम हो और अपनी आिश्यकता को भूलकर िह चीज दस ू रों को दान कर दे ना ही त्याग है | 3- इंिर्दे व को जल का अध्यट चिािा- इंदरसेना पर पानी िेंकना पानी की बरबादी नहीं बन्द्ल्क इंद्रदे ि को जल का अध्यय चढ़ाना है । 4- पािी की बव ु ाई करिा- न्द्जस प्रकार ककसान िसल उगाने के सलए जमीन पर बीज डालकर बि ु ाई करता है िैसे ही पानी िाले बादलों की िसल पाने के सलए इन्द्दर सेना पर पानी डाल कर पानी की बि ु ाई की जाती है । प्रश्ि4-िठर्दयों का भारतीय सामाजजक और सांस्कृनतक पररवेश में क्या महत्व है ? उत्तर- गंगा भारतीय समाज में सबसे पूज्य सदानीरा नदी है । न्द्जसका भारतीय इनतहास में धासमयक, पौराणणक और सांस्कृनतक महत्ि है | िह भारतीयों के सलए केिल एक नदी नहीं अवपतु मााँ है , स्िगय की सीढ़ी है , मोक्षदानयनी है । उसमें पानी नहीं अवपतु अमत ृ तुल्य जल बहता है । भारतीय संस्कृनत में नहदयों के ककनारे मानि सभ्यताएाँ फली-फूली हैं| बड़े-बड़े नगर, तीथयस्थान नहदयों के ककनारे ही न्द्स्थत हैं ऐसे पररिेश में भारतिासी सबसे पहले गंगा मैया की जय ही 87 बोलेंगे। नहदयााँ हमारे जीिन का आधार हैं, हमारा दे श कृवर् प्रधान है । नहदयों के जल से ही भारत भूसम हरी-भरी है । नहदयों के बबना जीिन की कल्पना नहीं कर सकते, यही कारण है कक हम भारतीय नहदयों की पूजा करते हैं | प्रश्ि4-आजार्दी के पचास वषों के बार्द भी लेखक क्यों र्दख ु ी है , उसके मि में कौि से प्रश्ि उि रहे हैं? उत्तर- आजादी के पचास िर्ों बाद भी भारतीयों की सोच में सकारात्मक बदलाि न दे खकर लेखक दख ु ी है । उसके मन में कई प्रश्न उठ रहे हैं1. क्या हम सच्चे अथों में स्ितन्द्त्र हैं? 2. क्या हम अपने दे श की संस्कृनत और सभ्यता को समझ पाए हैं? 3. रार्ष्र ननमायण में हम पीछे क्यों हैं, हम दे श के सलए क्या कर रहे हैं? 4. हम स्िाथय और भ्र्ष्टाचार में सलप्त रहते हैं , त्याग में विश्िास क्यों नहीं करते ? 5. सरकार द्िारा चलाई जा रही सुधारिादी योजनाएाँ गरीबों तक क्यों नहीं पहुाँचती है ? गद्यांश पर आधाररत अथटग्रहण-संबंधधत प्रश्िोत्तर सचमुच ऐसे हदन होते जब गली-मुहल्ला, गााँि-शहर हर जगह लोग गरमी में भुन-भुन कर त्राहहमाम कर रहे होते, जेठ के दसतपा बीतकर आर्ाढ का पहला पखिाड़ा बीत चक ु ा होता पर क्षक्षनतज पर कहीं बादलों की रे ख भी नहीं दीखती होती, कुएाँ सूखने लगते, नलों में एक तो बहुत कम पानी आता और आता भी तो आधी रात को, िो भी खौलता हुआ पानी हो | शहरों की तल ु ना में गााँि में और भी हालत खराब थी| जहााँ जुताई होनी चाहहए थी िहााँ खेतों की समट्टी सूखकर पत्थर हो जाती कफर उसमें पपड़ी पड़कर जमीन फटने लगती, लू ऐसी कक चलते-चलते आदमी धगर पड़े | ढोर-डंगर प्यास के मारे मरने लगते लेककन बाररश का कहीं नाम ननशान नहीं, ऐसे में पूजा-पाठ कथा-विधान सब करके अंनतम उपाय के रूप में ननकलती यह इन्द्दर सेना | 88 लोग जब हार जाते तब प्रश्ि१- वषाट ि होिे पर लोगों की क्या जस्थनत हो गयी थी ? उत्तर - िर्ाय न होने पर गरमी के कारण लोग लू लगने से बेहोश होने लगे | गााँि-शहर सभी जगह पानी का अभाि हो गया| कुएाँ सूख गए, खेतों की समट्टी सूखकर पत्थर के समान कठोर होकर फट गयी| घरों में नलों में पानी बहुत कम आता था | पशु प्यास के मारे मरने लगे थे | प्रश्ि२- वषाट के र्दे वता कौि हैं उिको प्रसन्ि करिे के ललए क्या उपाय ककए जाते थे ? उत्तर -िर्ाय के दे िता भगिान इन्द्द्र हैं| उनको प्रसन्द्न करने के सलए पज ू ा–पाठ, कथा-विधान कराए जाते थे | ताकक इन्द्द्र दे ि प्रसन्द्न होकर बादलों की सेना भेजकर झमाझम बाररश कराएाँ और लोगों के कर्ष्ट दरू हों | प्रश्ि३- वषाट करािे के अंनतम उपाय के रूप में क्या ककया जाता था? उत्तर –जब पूजा-पाठ कथा-विधान सब करके लोग हार जाते थे तब अंनतम उपाय के रूप में इन्द्दर सेना आती थी | नंग-धडंग, कीचड़ में लथपथ, ‘काले मेघा पािी र्दे लगाकर प्यास से सूखते गलों और सूखते खेतों के सलए मेघों को ननकल पड़ती थी| पािी र्दे गुड़धािी र्दे ’ की टे र पुकारती हुई टोली बनाकर प्रश्ि४-आशय स्पष्ट करें – जेठ के दसतपा बीतकर आर्ाढ़ का पहला पखिाड़ा बीत चक ु ा होता पर क्षक्षनतज में कहीं बादलों की रे ख भी नजर नहीं आती | आशय- जेठ का महीना है , भीर्ण तपते हुए दस हदन बीत कर आर्ाढ का महीना भी आधा बीत गया, पर पानी के सलए तड़पते, िर्ाय की आशा में आसमान की ओर ताकते लोगों को कहीं बादल नजर गरमी है | नहीं आ रहे | 14 पहलवाि की ढोलक फ़णीश्वरिाथ रे णु पाि का सारांश –आंचसलक कथाकार िणीश्िरनाथ रे णु की कहानी पहलिान की ढोलक में कहानी के मुख्य पात्र लुट्टन के माता-वपता का दे हांत उसके बचपन में ही लट् ु टन को उसकी विधिा सास हो गया था | अनाथ ने पाल-पोसकर बड़ा ककया | उसकी सास को गााँि िाले सताते 89 थे | लोगों से बदला लेने के सलए कुश्ती के दााँिपें च गया | सीखकर कसरत करके लुट्टन पहलिान बन एक बार लुट्टन श्यामनगर मेला दे खने गया जहााँ ढोल की आिाज और कुश्ती के दााँिपें च दे खकर उसने जोश में आकर नामी पहलिान चााँदससंह को चन ु ौती दे दी | ढोल की आिाज से प्रेरणा पाकर लुट्टन ने दााँि लगाकर चााँद ससंह को पटककर हरा हदया और राज पहलिान बन गया | उसकी ख्यानत दरू -दरू तक िैल गयी| १५ िर्ों तक पहलिान अजेय बना रहा| उसके दो पुत्र थे| लुट्टन ने दोनों बेटों को भी पहलिानी के गुर ससखाए| राजा की मत्ृ यु के बाद नए राजकुमार ने गद्दी संभाली। राजकुमार को घोड़ों की रे स का शौक था । मैनेजर ने नये राजा को भड़काया, पहलिान और उसके दोनों बेटों के भोजनखचय को भयानक और किजूलखचय बताया, िलस्िरूप नए राजा ने कुश्ती को बंद करिा हदया और पहलिान लुट्टनससंह को उसके दोनों बेटों के साथ महल से ननकाल हदया। राजदरबार से ननकाल हदए जाने के बाद लट् ु टन ससंह अपने दोनों बेटों के साथ गााँि में झोपड़ी बनाकर रहने लगा और गााँि के लड़कों को कुश्ती ससखाने लगा| लट् ु टन का स्कूल ज्यादा हदन गााँि नहीं चला और जीविकोपाजयन के सलए उसके दोनों बेटों को मजदरू ी करनी पड़ी| इसी दौरान में अकाल और महामारी के कारण प्रनतहदन लाशें उठने लगी| पहलिान महामारी से डरे हुए लोगों को ढोलक बजाकर बीमारी से लड़ने की संजीिनी ताकत दे ता था| एक हदन पहलिान के दोनों बेटे भी महामारी की चपेट में आकर मर गए पर उस रात भी पहलिान ढोलक बजाकर लोगों को हहम्मत बंधा रहा था | इस घटना के चार-पााँच हदन बाद पहलिान की भी मौत हो जाती है | पहलिान की ढोलक, वयिस्था के बदलने के साथ लोक कलाकार के अप्रासंधगक हो जाने की कहानी है । इस कहानी में लट् ु टन नाम के पहलिान की हहम्मत और न्द्जजीविर्ा का िणयन ककया गया है । भख ू और महामारी, अजेय लट् ु टन की पहलिानी को िटे ढोल में बदल दे ते हैं। इस करुण त्रासदी में पहलिान लट् ु टन कई सिाल छोड़ जाता है कक कला का कोई स्ितंत्र अन्द्स्तत्ि है या कला केिल वयिस्था की मोहताज है ? प्रश्ि1- लुट्टि को पहलवाि बििे की प्रेरणा कैसे लमली ? उत्तर- लुट्टन जब नौ साल का था तो उसके माता-वपता का दे हांत उसकी शादी हो चक ु ी थी| अनाथ लुट्टन को उसकी विधिा सास हो गया था | सौभाग्य से ने पाल-पोसकर बड़ा ककया | उसकी सास को गााँि िाले परे शान करते थे| लोगों से बदला लेने के सलए उसने पहलिान बनने की ठानी| धारोर्ष्ण दध ू पीकर, कसरत कर उसने अपना बदन गठीला और ताकतिर बना सलया | कुश्ती के दााँिपें च सीखकर लुट्टन पहलिान बन गया | प्रश्ि2- रात के भयािक सन्िाटे में लट् ु टि की ढोलक क्या कररश्मा करती थी? 90 उत्तर- रात के भयानक सन्द्नाटे में लुट्टन की ढोलक महामारी से जूझते लोगों को हहम्मत बाँधाती थी | ढोलक की आिाज से रात की विभीवर्का और सन्द्नाटा कम होता था| महामारी से पीडड़त लोगों की नसों में बबजली सी दौड़ जाती थी, उनकी आाँखों के सामने दं गल का दृश्य साकार हो जाता था और िे अपनी पीड़ा भूल खश ु ी-खश ु ी मौत को गले लगा लेते थे। इस प्रकार ढोल की आिाज, बीमार-मत ृ प्राय गााँििालों की नसों में संजीिनी शन्द्क्त को भर बीमारी से लड़ने की प्रेरणा दे ती थी। प्रश्ि3- लुट्टि िे सवाटधधक ठहम्मत कब ठर्दखाई ? उत्तर- लट् ु टन ससंह ने सिायधधक हहम्मत तब हदखाई जब दोनों बेटों की मत्ृ यु पर िह रोया नहीं बन्द्ल्क हहम्मत से काम लेकर अकेले उनका अंनतम संस्कार ककया| यही नहीं, न्द्जस हदन पहलिान के दोनों बेटे महामारी की चपेट में आकर मर गए पर उस रात को भी पहलिान ढोलक बजाकर लोगों को हहम्मत बाँधा रहा था| श्यामनगर के दं गल में परू ा जनसमद ु ाय चााँद ससंह के पक्ष में था चााँद ससंह को हराते समय लट् ु टन ने ससंह को धचत कर हदया | हहम्मत हदखाई और बबना हताश हुए दं गल में चााँद प्रश्ि4- लुट्टि लसंह राज पहलवाि कैसे बिा? उत्तर- श्यामनगर के राजा कुश्ती के शौकीन थे। उन्द्होंने दं गल का आयोजन ककया। पहलिान लुट्टन ससंह भी दं गल दे खने पहुाँचा । चांदससंह नामक पहलिान जो शेर के बच्चे के नाम से प्रससद्ध था, कोई भी पहलिान उससे सभड़ने की हहम्मत नहीं करता था। चााँदससंह अखाड़े में अकेला गरज रहा था। लुट्टन ससंह ने चााँदससंह को चन ु ौती दे दी और चााँदससंह से सभड़ गया।ढ़ोल की आिाज सुनकर लुट्टन की नस-नस में जोश भर गया।उसने चााँदससंह को चारों खाने धचत कर हदया। राजासाहब ने लुट्टन की िीरता से प्रभावित होकर उसे राजपहलिान बना हदया। प्रश्ि5- पहलवाि की अंनतम इच्छा क्या थी ? उत्तर- पहलिान की अंनतम इच्छा थी कक उसे धचता पर पेट के बल सलटाया जाए क्योंकक िह न्द्जंदगी में कभी धचत नहीं हुआ था| उसकी दस ू री इच्छा थी कक उसकी धचता को आग दे ते समय ढोल अिश्य बजाया जाए | प्रश्ि6- ढोल की आवाज उत्तर- ढोल की आिाज और लुट्टि के में दााँिपें च संबंध बताइए- और लुट्टन के दााँिपें च में चट धा, धगड़ धा→ आजा सभड़ जा | चटाक चट धा→ उठाकर पटक दे | 91 संबंध - चट धगड़ धा→मत डरना | धाक धधना नतरकट नतना→ दााँि काटो , बाहर हो जाओ | धधना धधना, धधक धधना→ धचत करो गद्यांश-आधाररत अथटग्रहण-संबंधधत प्रश्िोत्तर अाँधेरी रात चप ु चाप आाँसू बहा रही थी | ननस्तब्धता करुण सससककयों और आहों को अपने हृदय में ही बल पूिक य दबाने की चेर्ष्टा कर रही थी | आकाश में तारे चमक रहे थे | पथ् ृ िी पर कहीं प्रकाश का नाम नहीं| आकाश से टूट कर यहद कोई भािुक तारा पथ् ृ िी पर आना भी चाहता तो उसकी ज्योनत और शन्द्क्त रास्ते में ही शेर् हो जाती थी | अन्द्य तारे उसकी भािुकता अथिा असफलता पर णखलणखलाकर हाँ स पड़ते थे | ससयारों का क्रंदन और पेचक की डरािनी आिाज रात की ननस्तब्धता को भंग करती थी | गााँि की झोपडडयों से कराहने और कै करने की आिाज, हरे राम हे भगिान की टे र सुनाई पड़ती थी| बच्चे भी ननबयल कंठों से मााँ –मााँ पुकारकर रो पड़ते थे | (क) अाँधेरी रात को आाँसू बहाते हुए क्यों ठर्दखाया गया है ? उत्तर– गााँि में है जा और मलेररया फैला हुआ था | महामारी की चपेट में आकार लोग मर रहे थे |चारों ओर मौत का सनाटा छाया था इससलए अाँधेरी रात भी चप ु चाप आाँसू बहाती सी प्रतीत हो रही थी| (ख) तारे के माध्यम से लेखक क्या कहिा चाहता है ? उत्तर– तारे के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कक अकाल और महामारी से त्रस्त गााँि िालों की पीड़ा को दरू करने िाला कोई नहीं था | प्रकृनत भी गााँि िालों के दुःु ख से दख ु ी थी| आकाश से टूट कर यहद कोई भािुक तारा पथ् ृ िी पर आना भी चाहता तो उसकी ज्योनत और शन्द्क्त रास्ते में ही शेर् हो जाती थी | (ग) रात की निस्तब्धता को कौि भंग करता था ? उत्तर– ससयारों की चीख-पुकार, पेचक की डरािनी आिाजें और कुत्तों का सामूहहक रुदन समलकर रात के सन्द्नाटे को भंग करते थे | (घ) झोपड़ड़यों से कैसी आवाजें आ रही हैं और क्यों? उत्तर– झोपडड़यों से रोधगयों के कराहने, कै करने और रोने की आिाजें आ रही हैं क्योंकक गााँि के लोग मलेररया और है जे से पीडड़त थे | अकाल के कारण अन्द्न की कमी हो गयी थी| और्धध और पथ्य न समलने के कारण लोगों की हालत इतनी बुरी थी कक कोई लगाता था तो कोई दब य कंठ से मााँ–मााँ पुकारता था | ु ल 92 भगिान को पुकार 15 चाली चैजतलि यािी हम सब लेखक-प्वष्णु खरे पाि का सारांश –चालक चैन्द्प्लन ने हास्य कलाकार के रूप में पूरी दनु नया के बहुत बड़े दशयक िगय को हाँसाया है | उनकी कफल्मों ने कफल्म कला को लोकतांबत्रक बनाने के साथ-साथ दशकों की िगय और िणय-वयिस्था को भी तोड़ा | चालक ने कला में बुद्धध की अपेक्षा भािना को महत्त्ि हदया है | बचपन के संघर्ों ने चालक के भािी कफल्मों की भूसम तैयार कर दी थी| भारतीय कला और सौंदययशास्त्र में करुणा का हास्य में पररितयन भारतीय परम्परा में नहीं समलता लेककन चालक एक ऐसा जादईु वयन्द्क्तत्ि है जो हर दे श, संस्कृनत और सभ्यता को अपना सा लगता हैं| भारतीय जनता ने भी उन्द्हें सहज भाि से स्िीकार ककया है | स्ियं पर हाँ सना चालक ने ही ससखाया| भारतीय ससनेमा जगत के सप्र ु ससद्ध कलाकार राजकपरू को चालक का भारतीयकरण कहा गया है | चालक की अधधकांश किल्में मक ू हैं इससलए उन्द्हें अधधक मानिीय होना पड़ा | पाठ में हास्य कफल्मों के महान असभनेता ‘चालक चैन्द्प्लन’ की जादईु विशेर्ताओं का उल्लेख ककया गया है न्द्जसमें उसने करुणा और हास्य में सामंजस्य स्थावपत कर किल्मों को साियभौसमक रूप प्रदान ककया। प्रश्ि१ -चाली के जीवि पर प्रभाव िालिे वाली मुख्य घटिाएाँ कौि सी थी ? उत्तर- चालक के जीिन में दो ऐसी घटनाएाँ घटीं न्द्जन्द्होंने उनके भािी जीिन पर बहुत प्रभाि डाला | पहली घटना - जब चालक बीमार थे उनकी मााँ उन्द्हें ईसा मसीह की जीिनी पढ़कर सुना रही थी | ईसा के सूली पर चढ़ने के प्रसंग तक आते-आते मााँ-बेटा दोनों ही रोने लगे| इस घटना ने चालक को स्नेह, करुणा और मानिता जैसे उच्च जीिन मल् ू य हदए | दस ू री घटना है – बालक चालक कसाईखाने के पास रहता था| िहााँ सैकड़ों जानिरों को रोज मारा जाता था| एक हदन एक भेड़ िहााँ से भाग ननकली| भेड़ को पकड़ने की कोसशश में कसाई कई बार कफसला| न्द्जसे दे खकर लोग हं सने लगे, ठहाके लगाने लगे| जब भेड़ को कसाई ने पकड़ सलया तो बालक चालक रोने लगा| इस घटना ने उसके भािी कफल्मों में त्रासदी और हास्योत्पादक तत्िों की भूसमका तय कर दी | प्रश्ि२ – आशय स्पष्ट कीजजए– चैजतलि िे लसिट किल्मकला को ही लोकतांबत्रक िही बिाया बजल्क र्दशटकों की वगट तथा वणटव्यवस्था को भी तोड़ा| 93 उत्तर- लोकतांबत्रक बनाने का अथय है कक कफल्म कला को सभी के सलए लोकवप्रय बनाना और िगय और िणय-वयिस्था को तोड़ने का आशय है - समाज में प्रचसलत अमीर-गरीब, िणय, जानतधमय के भेदभाि को समाप्त करना |चैन्द्प्लन का चमत्कार यह है कक उन्द्होंने कफल्मकला को बबना ककसी भेदभाि के सभी लोगों तक पहुाँचाया| उनकी कफल्मों ने समय भूगोल और संस्कृनतयों की सीमाओं को लााँघ कर साियभौसमक लोकवप्रयता हाससल की | चालक ने यह ससद्ध कर हदया कक कला स्ितन्द्त्र होती है , अपने ससद्धांत स्ियं बनाती है | प्रश्ि३– चाली चैजतलि की किल्मों में निठहत त्रासर्दी/करुणा/हास्य का सामंजस्य भारतीय कला और सौंर्दयटशास्त्र की पररधध में क्यों िहीं आता? उत्तर- चालक चैन्द्प्लन की कफल्मों में ननहहत त्रासदी/करुणा/हास्य का सामंजस्य भारतीय कला और सौंदययशास्त्र की पररधध में नहीं आताक्योंकक भारतीय रस-ससद्धांत में करुणा और हास्य का मेल नहीं हदखाया जाता क्योंकक भारतीय सौंदययशास्त्र में करुणरस और हास्य रस को परस्पर विरोधी माना गया है अथायत जहां करुणा है िहााँ हास्य नहीं हो सकता। भारत में स्ियं पर हाँ सने की परं परा नहीं है परं तु चालक के पात्र अपने पर हाँ सते–हाँ साते हैं। चालक की किल्मों के दृश्य हाँ सातेहाँसाते रुला दे ते हैं तो कभी करुण दृश्य के बाद अचानक ही हाँ सने पर मजबूर कर दे ते हैं। प्रश्ि४– चाली के किल्मों की प्वशेषताएाँ बताइए | उत्तर- चालक की किल्मों में हास्य और करुणा का अद्भुत सामंजस्य है । उनकी किल्मों में भार्ा का प्रयोग बहुत कम है । चालक की किल्मों में बुद्धध की अपेक्षा भािना का महत्त्ि अधधक है । उनकी किल्मों में साियभौसमकता है । चालक ककसी भी संस्कृनत को विदे शी नही लगते। चालक सबको अपने लगते है । चालक ने किल्मों को लोकतांबत्रक बनाया और किल्मों में िगय तथािणय-वयिस्था को तोड़ा। अपनी कफल्मों में चालक सदै ि धचर युिा हदखता है । गद्यांश-आधाररत अथटग्रहण-संबंधी प्रश्िोत्तर गद्यांश संकेत –चालक चैन्द्प्लन यानी हम सब (पर्ष्ृ ठ १२० ) यहद यह िर्य चैन्द्प्लन की ..........................................काफी कुछ कहा जाएगा | प्रश्ि (क)-प्वकासशील र्दे शों में चैजतलि क्यों मशहूर हो रहे हैं? उत्तर - विकासशील दे शों में जैसे-जैसे टे लीविजन और िीडडयो का प्रसार हो रहा है , लोगों को उनकी कफल्मों को दे खने का अिसर समल रहा है |एक बहुत बड़ा िगय नए ससरे से चालक को घड़ी सुधारते और जूते खाने की कोसशश करते दे ख रहा है , इसीसलए चालक विकासशील दे शों में लोकवप्रय हो रहे हैं | (ख)- पजश्चम में चाली का पि ु जीवि कैसे होता रहता है ? 94 उत्तर - पन्द्श्चम में चालक की कफल्मों का प्रदशयन होता रहता है | उनकी कला से प्रेरणा पाकर हास्य किल्में बनती रहती हैं | उनके द्िारा ननभाए ककरदारों की नकल, अन्द्य कलाकार करते हैं | पन्द्श्चम में चालक का पुनजीिन होता रहता है | (ग)- चाली को लोग बुिापे तक क्यों यार्द रखें गे ? उत्तर –हास्य कलाकार के रूप में लोग चालक को बढ़ ु ापे तक याद रखें गे क्योंकक उनकी कला समय, भग ू ोल और संस्कृनतयों की सीमाओं को लााँघकर लाखों लोगों को हाँ सा रही है | (घ)- चाली की किल्मों के बारे में कािी कुछ कहा जािा क्यों बाक़ी है ? उत्तर –चैन्द्प्लन की ऐसी कुछ किल्में या इस्तेमाल न की गयी रीलें समली हैं न्द्जनके बारे में कोई नहीं जानता था | चालक की भािनाप्रधान हास्य कफल्मों ने कला के नए प्रनतमान स्थावपत ककए हैं अत: चालक की कफल्मों के बारे में अभी काफी कुछ कहा जाना बाक़ी है | 16 िमक लेखखका - रजजया सज्जार्द जहीर सारांश -‘नमक’भारत-पाक विभाजन पर सलणखत मासमयक कहानी है | विस्थावपत हुए लोगों में अपने–अपने जन्द्म स्थानों के प्रनत आज भी लगाि है | धासमयक आधार पर बनी रार्ष्र-राज्यों की सीमा-रे खाएाँ उनके अंतमयन को अलग नहीं कर पाई हैं | भारत में रहने िाली ससख बीिी लाहौर को अपना ितन मानती है और भारतीय कस्टम अधधकारी, ढाका के नाररयल पानी को यादकर उसे सियश्रेर्ष्ठ बताता है । दोनो दे शों के नागररकों के बीच मुहब्बत का नमकीन स्िाद आज भी कायम है इसीसलए सकिया भारत में रहने िाली अपनी माँह ु बोली मााँ, ससख बीिी के सलए लाहौरी नमक लाने के सलए कस्टम और कानन ू की परिाह नहीं करती। प्रश्ि1- ‘िमक’ पाि के आधार पर बताइए कक सकिया और उसके भाई के प्वचारों में क्या अंतर था? उत्तर- १-सकफया भािनाओं को बहुतमहत्त्ि दे ती है पर उसका भाई बौद्धधक प्रिवृ त्त का है , उसकी दृन्द्र्ष्ट में कानून भािनाओं से ऊपर है | २-सकफया मानिीय संबंधों को बहुत महत्त्ि दे ती है जबकक उसका भाई अलगाििादी विचारधारा का है , हहस्से-बखरे की बात करता है | 95 ३-सकफया का भाई कहता है कक अदीबों(साहहत्यकार) का हदमाग घूमा हुआ होता है जबकक सकफया जो स्ियं अदीब है उसका मानना है कक अगर सभी लोगों का हदमाग अदीबों की तरह घूमा हुआ होता तो दनु नया कुछ बेहतर हो जाती | प्रश्ि२- िमक ले जाते समय सकफ़या के मि में क्या र्दप्ु वधा थी ? उत्तर-सकफया सैयद मुसलमान थी जो हर हाल में अपना िायदा ननभाते हैं| पाककस्तान से लाहौरी नमक ले जाकर िह अपना िायदा पूरा करना चाहती थी परन्द्तु जब उसे पता चला कक कस्टम के ननयमों के अनस य है तो िह दवु िधा में पड़ गई | सकिया का ु ार सीमापार नमक ले जाना िन्द्जत द्िंद्ि यह था कक िह अपनी ससख मााँ के सलए नमक, कस्टम अधधकाररयों को बताकरले जाए या नछपाकर| प्रश्ि३- पाि के आधार पर सकिया की चाररबत्रक प्वशेषताएाँ बताइए | उत्तर संकेत – १- भािुक २- ईमानदार ३- दृढ़ननश्चयी ४- ननडर ५- िायदे को ननभाने िाली ६- मानिीय मूल्यों को सिोपरर मानने िाली साहहत्यकार प्रश्न ४- ‘िमक’ पाि में आए ककरर्दारों के माध्यम से स्पष्ट कीजजए कक आज भी भारत और पाककस्ताि की जिता के बीच मह ु ब्बत का िमकीि स्वार्द घल ु ा हुआ है | उत्तर – भले ही राजनीनतक और धासमयक आधार पर भारत और पाककस्तान को भौगोसलक रूप से विभान्द्जत कर हदया गया है लेककन दोनों दे शों के लोगों के हृदय में आज भी पारस्पररक भाईचारा, सौहाद्रय , स्नेह और सहानुभूनत विद्यमान है | राजनीनतक तौर पर भले ही संबंध तनािपूणय हों पर सामान्द्जक तौर पर आज भी जनता के बीच मुहब्बत का नमकीन स्िाद घुला हुआ है | अमत ृ सर में रहने िाली ससख बीबी लाहौर को अपना ितन कहती है और लाहौरी नमक का स्िाद नहीं भुला पाती | पाककस्तान का कस्टम अधधकारी नमक की पुडड़या सकफया को िापस दे ते हुए कहता है ”जामा मन्द्स्जद की सीहढ़यों को मेरा सलाम कहना |” भारतीय सीमा पर तैनात कस्टम अधधकारी ढाका की जमीन को और िहााँ के पानी के स्िाद को नहीं भल ू पाता | 96 गद्यांश-आधाररत अथटग्रहण संबंधधत प्रश्िोत्तर गद्यांश संकेत- पाठ– नमक (पर्ष्ृ ठ १३४) सकफया कस्टम के जंगले से ...........................दोनों के हाथों में थी | (क) सकिया कस्टम के जाँगले से निकलकर र्दस ू रे तलेटिामट पर आ गयी वे वहीं खड़े रहे – इस वाक्य में ‘वे’ शब्र्द का प्रयोग ककसके ललए ककया गया है ? उत्तर- यहााँ ‘िे’ शब्द का प्रयोग पाककस्तानी कस्टम अधधकारी के सलए ककया गया है जो विभाजन से पूिय हदल्ली में रहते थे और आज भी हदल्ली को ही अपना ितन मानते हैं | (ख) तलेटिामट पर सकिया को प्वर्दा करिे कौि-कौि आए थे, उन्होंिे सकिया को कैसे प्वर्दाई र्दी ? उत्तर- प्लेटफामय पर सकफया को विदा करने उसके बहुत सारे समत्र, सगे संबंधी और भाई आए थे| उन्द्होंने ठं डी सााँस भरते हुए, सभंचे हुए होंठों के साथ, आाँसू बहाते हुए सकफया को विदाई दी | (ग) अटारी में रे लगाड़ी में क्या पररवतटि हुए ? उत्तर- अटारी में रे लगाड़ी से पाककस्तानी पुसलस उतरी और हहन्द्दस् ु तानी पुसलस सिार हो गई| (घ) कौि सी बात सकिया की समझ में िहीं आ रही थी ? उत्तर- दोनों ओर एक सी जमीन, एक जैसा आसमान, एक सी भार्ा, एक सा पहनािा और एक सी सूरत के लोग कफर भी दोनों के हाथों में भरी हुई बंदक ू ें हैं | 17 लशरीष के िूल आचायट हजारी प्रसार्द द्प्ववेर्दी सारांश –‘आचायय हजारी प्रसाद द्वििेदी’ सशरीर् को अद्भत ु अिधत ू मानते हैं, क्योंकक संन्द्यासी की भााँनत िह सख ु -दख ु की धचंता नहीं करता। गमी, ल,ू िर्ाय और आाँधी में भी अविचल खड़ा रहता है । सशरीर् के िूल के माध्यम से मनर्ष्ु य की अजेय न्द्जजीविर्ा, धैयश य ीलता और कतयवयननर्ष्ठ बने रहने के मानिीय मल् ू यों को स्थावपत ककया गया है ।लेखक ने सशरीर् के कोमल फूलों और कठोर फलों के द्िारा स्पर्ष्ट ककया है कक हृदय की कोमलता बचाने के सलए कभी-कभी वयिहार की कठोरता भी आिश्यक हो जाती है | महान कवि कासलदास और कबीर भी सशरीर् की तरह बेपरिाह, अनासक्त और सरस थे तभी उन्द्होंने इतनी सुन्द्दर रचनाएाँ संसार को दीं| गााँधीजी के वयन्द्क्तत्ि में भी कोमलता और कठोरता का अद्भुत संगम था | लेखक सोचता है कक हमारे दे श में जो मार-काट, अन्द्ग्नदाह, लूट-पाट, खन ू -खच्चर का बिंडर है , क्या िह दे श को न्द्स्थर नहीं रहने दे गा? गुलामी, अशांनत और विरोधी िातािरण के बीच अपने ससद्धांतों की रक्षा करते हुए गााँधीजी जी न्द्स्थर रह सके थे तो दे श भी रह सकता है । जीने की प्रबल असभलार्ा के कारण 97 विर्म पररन्द्स्थतयों मे भी यहद सशरीर् णखल सकता है तो हमारा दे श भी विर्म पररन्द्स्थनतयों में न्द्स्थर रह कर विकास कर सकता है । प्रश्ि1-लसद्ध कीजजए कक लशरीष कालजयी अवधूत की भााँनत जीवि की अजेयता के मंत्र का प्रचार करता है ? उत्तर- सशरीर् कालजयी अिधत ू की भााँनत जीिन की अजेयता के मंत्र का प्रचार करता है | जब पथ् ृ िी अन्द्ग्न के समान तप रही होती है िह तब भी कोमल फूलों से लदा लहलहाता रहता है |बाहरी गरमी, धप ू , िर्ाय आाँधी, लू उसे प्रभावित नहीं करती। इतना ही नहीं िह लंबे समय तक णखला रहता है | सशरीर् विपरीत पररन्द्स्थनतयों में भी धैयश य ील न्द्जजीविर्ा के साथ ननस्पह ृ भाि से रहने तथा अपनी अजेय प्रचंड गरमी में भी अविचल खड़ा रहता है । प्रश्ि२-आरग्वध (अमलतास) की तुलिा लशरीष से क्यों िहीं की जा सकती ? उत्तर- सशरीर् के फूल भयंकर गरमी में णखलते हैं और आर्ाढ़ तक णखलते रहते हैं जबकक अमलतास का फूल केिल पन्द्द्रह-बीस हदनों के सलए णखलता है | उसके बाद अमलतास के फूल झड़ जाते हैं और पेड़ कफर से ठूाँठ का ठूाँठ हो जाता है | अमलतास अल्पजीिी है | विपरीत पररन्द्स्थनतयों को झेलता हुआ ऊर्ष्ण िातािरण को हाँ सकर झेलता हुआ सशरीर् दीघयजीिी रहता | यही कारण है कक सशरीर् की तुलना अमलतास से नहीं की जा सकती | प्रश्ि३-लशरीष के िलों को है राजिेताओं का रूपक क्यों ठर्दया गया है ? उत्तर- सशरीर् के फल उन बूढ़े, ढीठ और पुराने राजनेताओं के प्रतीक हैं जो अपनी कुसी नहीं छोड़ना चाहते | अपनी अधधकार-सलप्सा के सलए नए युिा नेताओं को आगे नहीं आने दे ते | सशरीर् के नए फलों को जबरदस्ती पुराने फलों को धककयाना पड़ता है | राजनीनत में भी नई युिा पीढ़ी, पुरानी पीढ़ी को हराकर स्ियं सत्ता साँभाल लेती है | प्रश्ि४- काल र्दे वता की मार से बचिे का क्या उपाय बताया गया है? उत्तर- काल दे िता कक मार से बचने का अथय है – मत्ृ यु से बचना | इसका एकमात्र उपाय यह है कक मनुर्ष्य न्द्स्थर न हो| गनतशील, पररितयनशील रहे | लेखक के अनुसार न्द्जनकी चेतना सदा ऊध्ियमुखी (आध्यात्म की ओर) रहती है , िे हटक जाते हैं | प्रश्ि५- गााँधीजी और लशरीष की समािता प्रकट कीजजए | उत्तर- न्द्जस प्रकार सशरीर् धचलधचलाती धप ू , लू, िर्ाय और आाँधी में भी अविचल खड़ा रहता है , अनासक्त रहकर अपने िातािरण से रस खींचकर सरस, कोमल बना रहता है , उसी प्रकार गााँधी जी ने भी अपनी आाँखों के सामने आजादी के संग्राम में अन्द्याय, भेदभाि और हहंसा को झेला | 98 उनके कोमल मन में एक ओर ननरीह जनता के प्रनत असीम करुणा जागी िहीं िे अन्द्यायी शासन के विरोध में डटकर खड़े हो गए | गद्यांश-आधाररत अथटग्रहण संबंधधत प्रश्िोत्तर गद्यांश संकेत- पाठ – सशरीर् के फूल (पर्ष्ृ ठ १४७) कासलदास सौंदयय के ..............................................................................................................िह इशारा है | (क) काललर्दास की सौंर्दयट–दृजष्ट की क्या प्वशेषता थी ? उत्तर-कासलदास की सौंदयय–दृन्द्र्ष्ट बहुत सक्ष् ू म, अंतभेदी और संपण ू य थी| िे केिल बाहरी रूप-रं ग और आकार को ही नहीं दे खते थे बन्द्ल्क अंतमयन की संद ु रता के भी पारखी थे| कासलदास की सौंदयय शारीररक और मानससक दोनों विशेर्ताओं से युक्त था | (ख) अिासजक्त का क्या आशय है ? उत्तर- अनासन्द्क्त का आशय है - वयन्द्क्तगत सख ु -दुःु ख और राग-द्िेर् से परे रहकर सौंदयय के िास्तविक ममय को जानना | (ग) काललर्दास, पंत और रवींििाथ टै गोर में कौि सा गुण समाि था? महाकवि कासलदास, सुसमत्रानंदन पंत और गुरुदे ि रिींद्रनाथ टै गोर तीनों न्द्स्थरप्रज्ञ और अनासक्त कवि थे | िे सशरीर् के समान सरस और मस्त अिधत ू थे | (घ) रवींििाथ राजोद्याि के लसंहद्वार के बारे में क्या संर्देश र्दे ते हैं ? राजोद्यान के बारे में रिींद्रनाथ कहते हैं राजोद्यान का ससंहद्िार ककतना ही सुंदर और गगनचम् ु बी क्यों ना हो, िह अंनतम पड़ाि नहीं है | उसका सौंदयय ककसी और उच्चतम सौंदयय की ओर ककया गया संकेत मात्र है कक असली सौंदयय इसे पार करने के बाद है अत: राजोद्यान का ससंहद्िार हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा दे ता है | 18श्रम-प्वभाजि और जानत-प्रथा िॉ० भीमराव अंबेिकर सारांश – इस पाठ में लेखक ने जानतिाद के आधार पर ककए जाने िाले भेदभाि को सभ्य समाज के सलए हाननकारक बताया है | जानत आधाररत श्रम विभाजन को अस्िाभाविक और मानिता विरोधी बताया गया है । यह सामान्द्जक भेदभाि को बढ़ाता है । जानतप्रथा आधाररत श्रम विभाजन में वयन्द्क्त की रुधच को महत्त्ि नहीं हदया जाता फलस्िरूप वििशता के साथ अपनाए 99 गए पेशे में कायय-कुशलता नहीं आ पाती | लापरिाही से ककए गए कायय में गुणित्ता नहीं आ पाती और आधथयक विकास बुरी तरह प्रभावित होता है | आदशय समाज की नींि समता, स्ितंत्रता और बंधत्ु ि पर हटकी होती है । समाज के सभी सदस्यों से अधधकतम उपयोधगता प्राप्त करने के सलए सबको अपनी क्षमता को विकससत करने स्ितंत्रता होनी चाहहए| तथा रुधच के अनुरूप वयिसाय चन ु ने की राजनीनतज्ञ को अपने वयिहार में एक वयिहायय ससद्धांत की आिश्यकता रहती है और यह वयिहायय ससद्धांत यही होता है कक सब मनुर्ष्यों के साथ समान वयिहार ककया जाए। प्रश्ि1-िॉ० भीमराव अंबेिकर जानतप्रथा को श्रम-प्वभाजि का ही रूप क्यों िहीं मािते हैं ? उत्तर – १- क्योंकक यह विभाजन अस्िाभाविक है | २- यह मनर्ष्ु य की रुधच पर आधाररत नहीं है | ३- वयन्द्क्त की क्षमताओं की उपेक्षा की जाती है | ४- वयन्द्क्त के जन्द्म से पहले ही उसका पेशा ननधायररत कर हदया जाता है | ५- वयन्द्क्त को अपना वयिसाय बदलने की अनुमनत नहीं दे ती | प्रश्ि२- र्दासता की व्यापक पररभाषा र्दीजजए | उत्तर – दासता केिल कानूनी पराधीनता नहीं है | सामान्द्जक दासता की न्द्स्थनत में कुछ वयन्द्क्तयों को दस ू रे लोगों के द्िारा तय ककए गए वयिहार और कतयवयों का पालन करने को वििश होना पड़ता है | अपनी इच्छा के विरुद्ध पैतक ृ पेशे अपनाने पड़ते हैं | प्रश्ि३- मिुष्य की क्षमता ककि बातों पर निभटर रहती है ? उत्तर –मनर्ष्ु य की क्षमता मख् ु यत: तीन बातों पर ननभयर रहती है १- शारीररक िंश परं परा २- सामान्द्जक उत्तराधधकार ३- मनुर्ष्य के अपने प्रयत्न लेखक का मत है कक शारीररक िंश परं परा तथा सामान्द्जक उत्तराधधकार ककसी के िश में नहीं है परन्द्तु मनुर्ष्य के अपने प्रयत्न उसके अपने िश में है | अत: मनुर्ष्य की मुख्य क्षमता- उसके अपने प्रयत्नों को बढ़ािा समलना चाहहए | प्रश्ि४- समता का आशय स्पष्ट करते हुए बताइए कक राजिीनतज्ञ पुरूष के संर्दभट में समता को कैसे स्पष्ट ककया गया है ? 100 जानत, धमय, संप्रदाय से ऊपर उठकर मानिता अथायत ् मानि मात्र के प्रनत समान वयिहार ही समता है । राजनेता के पास असंख्य लोग आते हैं, उसके पास पयायप्त जानकारी नहीं होती सबकी सामान्द्जक पर्ष्ृ ठभूसम क्षमताएाँ, आिश्यकताएाँ जान पाना उसके सलए संभि नहीं होता अतुः उसे समता और मानिता के आधार पर वयिहार के प्रयास करने चाहहए । गद्यांश-आधाररत अथटग्रहण संबंधधत प्रश्िोत्तर गद्यांश संकेत-पाठ श्रम विभाजन और जानत प्रथा (पर्ष्ृ ठ १५३) यह विडम्बना.......................................................................................................................ब ना दे ती है | प्रश्ि १-श्रम बबभाजि ककसे कहते हैं ? उत्तर: श्रम विभाजन का अथय है – मानिोपयोगी कायों का िगीकरण करना| प्रत्येक कायय को कुशलता से करने के सलए योग्यता के अनुसार विसभन्द्न कामों को आपस में बााँट लेना | कमय और मानि-क्षमता पर आधाररत यह विभाजन सभ्य समाज के सलए आिश्यक है | प्रश्ि २ - श्रम प्वभाजि और श्रलमक-प्वभाजि का अंतर स्पष्ट कीजजए | उत्तर- श्रम विभाजन में क्षमता और कायय-कुशलता के आधार पर काम का बाँटिारा होता है , जबकक श्रसमक विभाजन में लोगों को जन्द्म के आधार पर बााँटकर पैतक ृ पेशे को अपनाने के सलए बाध्य ककया जाता है | श्रम-विभाजन में वयन्द्क्त अपनी रुधच के अनुरूप वयिसाय का चयन करता है | श्रसमक-विभाजन में वयिसाय का चयन और वयिसाय-पररितयन की भी अनुमनत नहीं होती, न्द्जससे समाज में ऊाँच नीच का भेदभाि पैदा करता है , यह अस्िाभाविक विभाजन है | प्रश्ि ३ –लेखक िे ककस बात को प्विम्बिा कहा है ? उत्तर : लेखक कहते हैं कक आज के िैज्ञाननक युग में भी कुछ लोग ऐसे हैं जो जानतिाद का समथयन करते हैं और उसको सभ्य समाज के सलए उधचत मानकर उसका पोर्ण करते हैं| यह बात आधनु नक सभ्य और लोकतान्द्न्द्त्रक समाज के सलए विडम्बना है | प्रश्ि ४ : भारत में ऎसी कौि-सी व्यवस्था है जो पूरे प्वश्व में और कहीं िहीं है ? उत्तर: लेखक के अनुसार जन्द्म के आधार पर ककसी का पेशा तय कर दे ना, जीिनभर एक ही पेशे से बाँधे रहना, जानत के आधार पर ऊाँच-नीच का भेदभाि करना तथा बेरोजगारी तथा भुखमरी की न्द्स्थनत में भी पेशा बदलने की अनुमनत न होना नहीं है | 101 ऐसी वयिस्था है जो विश्ि में कहीं अध्ययि सामग्री कक्षा बारहवीं - प्वताि भाग-2 प्वताि भाग -२ पुस्तक में से प्रश्िपत्र में तीि प्रकार के प्रश्ि पूछे जाएाँगे प्रश्ि १२. अनत लघत्त ू रात्मक तीि प्रश्िों में से र्दो के उत्तर र्दे िे हैं| निधाटररत अंक - २ * २ = ४ प्रश्ि १३. र्दो निबंधात्मक प्रश्िों में से एक प्रश्ि का उत्तर| निधाटररत अंक – ५ प्रश्ि १४. तीि लघूत्तरात्मक प्रश्िों में से र्दो प्रश्िों के उत्तर| निधाटररत अंक – ३ * २ = ६ अधधक अंक प्राजतत हे तु ध्याि र्दे िे योग्य बातें – १. पूरा पाठ पढ़ें तथा पाठ की विर्यिस्तु, प्रमुख पात्र तथा संदेश की ओर अिश्य ध्यान दें | २. प्रश्नों के उत्तर दे ते समय अनािश्यक न सलखें | प्रश्न को ध्यानपूिक य पढ़कर, उसका सटीक उत्तर दें | ३. शब्दसीमा का ध्यान रखें | ४. अंकों के अनुसार उत्तर सलखें | ५. पांच अंक िाले उत्तरों में विसभन्द्न बबंदओ ु ं को उदाहरण सहहत प्रस्तुत करें | पाि 1लसल्वर वैड़िंग – मिोहर श्याम जोशी पाि का सार-ससल्िर िेडडंग’ कहानी की रचना मिोहर श्याम जोशी ने की है | इस पाठ के माध्यम से पीिी के अंतराल का मालमटक धचत्रण ककया गया है | आधनु नकता के दौर में , यशोधर बाबूपरं परागत मूल्यों को हर हाल में जीवित रखना चाहते हैं| उनका उसूलपसंर्द होना दफ्तर एिम घर के लोगों के सलए सरददय बन गया था | यशोधर बाबू को हदल्ली में अपने पााँि जमाने में ककशिर्दा ने मदद की थी, अतुः िे उनके आदशय बन गए| दफ्तर में वििाह की पच्चीसिीं सालधगरह के हदन ,दफ्तर के कमयचारी, मेनन और चड्ढा उनसे जलपान के सलए पैसे मााँगते हैं | जो िे बड़े अनमने ढं ग से दे ते हैं क्योंकक उन्हें किजूलखची पसंर्द िहीं |यशोधर 102 बाबू के तीन बेटे हैं| बड़ा बेटा भर् ू ण, विज्ञापन कम्पनी में काम करता है | दस ू रा बेटा आई. ए. एस. की तैयारी कर रहा है और तीसरा छात्रिनृ त के साथ अमेररका जा चक ु ा है | बेटी भी डाक्टरी की पढ़ाईं के सलए अमेररका जाना चाहती है , िह वििाह हे तु ककसी भी िर को पसंद नहीं करती| यशोधर बाबब ू च्चों की तरक्की से खश ु हैं ककंतु परं परागत संस्कारों के कारण वे र्दप्ु वधा में हैं| उनकी पत्नी ने स्ियं को बच्चों की सोच के साथ ढाल सलया है | आधुननक न होते हुए भी, बच्चों के ज़ोर दे ने पर िे अधधक माडनय बन गई है | बच्चे घर पर ससल्िर िेडडंग की पाटक रखते हैं, जो यशोधर बाबू के उसूलों के णखलाफ था| उनका बेटा उन्द्हें ड्रेससंग गाउन भें ट करता है तथा सब ु ह दध ू लेने जाते समय उसे ही पहन कर जाने को कहता है , जो उन्द्हें अच्छा नहीं लगता| बेटे का ज़रूरत से ज़्यादा तनख्िाह पाना, तनख्िाह की रकम स्ियं खचय करना, उनसे ककसी भी बात पर सलाह न मााँगना और दध ू लाने का न्द्जम्मा स्ियं न लेकर उन्द्हें ड्रेससंग गाउन पहनकर दध ू लेने जाने की बात कहना जैसी बातें , यशोधर बाबू को बुरी लगती है | जीिन के इस मोड़ पर वे स्वयं को अपिे उसूलों के साथ अकेले पाते हैं | प्रश्िोत्तर प्रश्न १. अपने घर और विद्यालय के आस-पास हो रहे उन बदलािों के बारे में सलखें जो सुविधाजनक और आधनु नक होते हुए भी बुजुगों को अच्छे नहीं लगते। अच्छा न लगने के क्या कारण हो सकते हैं ? उत्तरुः आधनु िक युग पररवतटिशील एवं अधधक सुप्वधाजिक है । आज के युिा,आधनु िकता और पररवतटिशीलता को महत्त्व दे ते हैं इसीसलए िे नई तकनीक और फैशन की ओर आकवर्यत होते हैं। िे तत्काल नयी जानकाररयााँ चाहते हैं , न्द्जसके सलए उनके पास कम्प्यूटर, इन्द्टरनेट एिं मोबाइल जैसे आधनु नक तकनीकी साधन हैं। इनके माध्यम से िे कम समय में ज्यादा जानकारी एकत्र कर लेते हैं। घर से विद्यालय जाने के सलए अब उनके पास बहढ़या साईककलें एिं मोटर साईककलें हैं। आज युिा लड़के और लड़ककयों के बीच का अन्द्तराल काफी कम हो गया है । पुराने जमाने में लड़ककयााँ-लड़कों के साथ पढ़ना और समलना-जुलना ठीक नहीं माना जाता था जैसे आज के पररिेश में है । युिा लड़कों और लड़ककयों द्िारा अंग प्रदशयन आज आम बात हो गई है । िे एक साथ दे र रात तक पाहटय यााँ करते हैं। इन्द्टरनेट के माध्यम से करते हैं। ये सारी बातें उन्द्हें आधनु नक एिं सवु िधाजनक लगती हैं। 103 असभ्य जानकाररयााँ प्राप्त दस ू री ओर इस तरह की आधनु नकताबुज़गों को रास नहीं आतीक्योंकक जब िे युिा थे,उस समय संचार के साधनों की कमी थी। पाररिाररक पर्ष्ृ ठभूसम के कारण िे युिािस्थामें अपनी भािनाओं को काबू में रखते थे और अधधक न्द्जम्मेदार होते थे। अपने से बड़ों का आदर करते थे और परं पराओं के अिुसार चलते थे। आधनु नक पररिेश के युिा बड़े-बूढ़ों के साथ बहुत कम समय वयतीत करते हैं इससलए सोच एिं दृन्द्र्ष्टकोण में अधधक अन्द्तर आ गया है । इसी अन्द्तर को ‘पीढ़ी का अन्द्तर’ कहते हैं। यि ु ा पीढ़ी की यही नई सोच बज ु ग ु ों को अच्छी नहीं लगती। २. यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है ,लेककन यशोधर बाबू असफल रहते हैं,ऐसा क्यों ? उत्तरुः यशोधर बाबू अपिे आर्दशट ककशिर्दा से अधधक प्रभावित हैं और आधनु नक पररिेश में बदलते हुए जीिन-मूल्यों और संस्कारों के विरूद्ध हैं। जबकक उनकी पत्नीअपने बच्चों के साथ खड़ी हदखाई दे ती हैं। िह अपने बच्चों के आधनु नक दृन्द्र्ष्टकोण से प्रभावित हैं। इससलए यशोधर बाबू की पत्िी समय के साथ पररवनतटत होती है , लेककि यशोधर बाबू अभी भी ककशिर्दा के संस्कारों और परं पराओं से धचपके हुए हैं। ३.’ससल्िर िैडडंग’कहानी के आधार पर पीढ़ी के अंतराल से होने िाले पाररिाररक अलगाि पर अपने विचार प्रकट कीन्द्जए। उत्तरुः सांस्कृनतक संरक्षण के सलए स्वस्थ परं पराओं की सरु क्षा आवश्यक है , ककंतु बर्दलते समय और पररवेश से सामंजस्य की भी उपेक्षा िहीं की जानी चाहहए, अन्द्यथा ससल्िर िैडडंग के पात्रों की तरह बबखराि होने लगता है । ४.’ससल्िर िैंडडग’कहानी को ध्यान में रखते हुए परं पराओं और सांस्कृनतक संरक्षकों की ितयमान में उपादे यता पर अपने विचार प्रकट कीन्द्जए। उत्तरुःपरं पराओं और संस्कृनत से ही ककसी र्दे श की पहचाि कायम रहती है । सादगी से जीकर गह ृ स्थी को बचाया जा सकता है । यहद ऐसा न होता तो शायद यशोधर बाबू की संतानें पढ़-सलखकर योग्य न बनतीं । ५.“लसल्वर वैड़िंगके कथानायक यशोधर बाबू एक आदशय वयन्द्क्त हैं और नई पीढ़ी द्िारा उनके विचारों को अपनाना ही उधचत है |”इस कथन के पक्ष-विपक्ष में तकय दीन्द्जए। 104 उत्तरुः- पक्षुः को लेकर नयी पीढ़ी के युिा उिकी सार्दगी और व्यजक्तत्व के कुछे क प्रेरक पहलुओं सफल ि संस्कारी नागररक बन सकते हैं अन्द्यथा िे अपनी पहचान खो बैठेंगे। प्वपक्षुःपुरािी रूठियों को छोड़कर ही नए समाज ि नई पीढ़ी के साथ सामंजस्य बबठाया जा सकता है अन्द्यथा विलगाि सुननन्द्श्चत है । ६ . ससल्िर िैडडंग कहानी की मूल संिेदना स्पर्ष्ट कीन्द्जए। उत्तरुः - संकेत-बबंद-ु पीढ़ी के अन्द्तराल से पैदा हुई बबखराि की पीड़ा। ७ . ककशनदा की कौन-सी छवि यशोधर बाबू के मन में बसी हुई थी? संकेत बबन्द्द-ु 1.उनकी दफ्तर में विसभन्द्न रूपों की छवि, 2.सैर पर ननकलने िाली छवि, ३. एक आदशयिादी वयन्द्क्त के रूप में , ४. परोपकारी वयन्द्क्त | ८ .‘ससल्िर िैडडंग’कहानी का प्रमख ु पात्र बार-बार ककशनदा को क्यों याद करता है ?इसे आप क्या मानते हैं उसकी सामथ्यय या कमजोरी?औरक्यों ? उत्तरुः सामथ्यय मानते हैं, िे उिके प्रेरक थे, उनसे अलग अपने को सोचना भी यशोधर बाबू के सलए मुन्द्श्कल था। जीिन का प्रेरणा-स्रोत तो सदा शजक्त एवं सामथ्यटका सजयक होता है । ९ . पाठ में ‘जो हुआ होगा’ िाक्य की ककतनी अथय छवियााँ आप खोज सकते हैं? उत्तरुः यशोधर बाबू यही विचार करते हैं कक न्द्जनके बाल-बच्चे ही नहीं होते,िे वयन्द्क्त अकेलेपि के कारण स्वस्थ ठर्दखिे के बार्द भी बीमार-से हो जाते हैं और उनकी मत्ृ यु हो जाती है | न्द्जसप्रकार यशोधर बाबू अपने आपको पररिार से कटा और अकेला पाते हैं उसीप्रकार अकेलेपि से ग्रस्त होकर उनकी मत्ृ यु हुई होगी। यह भी कारण हो सकता है कक उनकी बबरार्दरी से घोर उपेक्षा लमली, इस कारण िे सख ू -सख ू कर मर गए | ककशनदा की मत्ृ यु के सही कारणों का पता नहीं चल सका। बस यशोधर बाबू यही सोचते रह गए कक ककशनदा की मत्ृ यु कैसे हुई?न्द्जसका उत्तर ककसी के पास नहीं था। 105 १० .ितयमान समय में पररिार की संरचना,स्िरूप से जुड़े आपके अनुभि इस कहानी से कहााँ तक सामंजस्य बबठा पाते हैं ? उत्तरुः यशोधर बाबू और उिके बच्चों की सोच में पीिीजन्य अंतराल आ गया है । यशोधर संस्कारों से जुड़िा चाहते हैं और संयक् ु त पररिार की संिेदनाओं को अनुभि करते हैं जबकक उिके बच्चे अपिे आप में जीिा चाहते हैं। अतुः जरूरत इस बात की है कक यशोधर बाबू को अपिे बच्चों की सकारात्मक िई सोच का स्वागत करना चाहहए,परन्द्तु यह भी अननिायय है कक आधनु नक पीढ़ी के यव ु ा भी वतटमाि बेतक ु े संस्कार और जीवि मल् ू यों के प्रनत आकप्षटत ि हों तथा पुरानी पीढी ा़ की अच्छाइयों को ग्रहण करें । यह शुरूआत दोनों तरफ से होनी चाहहए ताकक एक नए एिं ११ . संस्कारी समाज की स्थापना की जा सके। यशोधर बाबू के चररत्र की विशेर्ताएाँ सलणखए। उत्तरुः1. कमटि एवं पररश्रमी –सेक्शि ऑकिसर होने के बािजूद दफ्तर में दे र तक काम करते थे | िे अन्द्य कमयचाररयों से अधधक कायय करते थे | 2. संवेर्दिशील- यशोधर बाबू अत्यधधक संिेदनशील थे | िे यह बात स्िीकार नहीं कर पाते कक उिका बेटा उिकी इजाजत ललए बबिा ही घर का सोफा सेट आहद खरीद लाता है , उनका साईककल से दफ्तर जाने पर ऐतराज करता है , उन्द्हें दध ू लेने जाने में असुविधा न हो इससलए ड्रेससंग गाउन भें ट करता है | पत्िी उिकी बात ि मािकर बच्चों के कहे अिुसार चलती है | बेटी प्ववाह के बंधि में बंधिे से इंकार करती है और उसके िस्त्रों में शालीनता नहीं झलकती | पररिारिालों से तालमेल न बैठने के कारण िे अपना अधधकतर समय घर से बाहर मंहदर में तथा सब्जीमंडी में सब्ज़ी खरीदते बबताते हैं | 3. परं परावार्दीकरने को तैयार िे परं परािादी थे |आधनु नक समाज में बदलते समीकरणों को स्िीकार नहीं थे इससलए पररिार के अन्द्य सदस्यों से उनका तालमेल नहीं बैठ पा रहा था | ४. धालमटक व्यजक्त-यशोधर बाबू एक धासमयक वयन्द्क्त थे| िे अपना अधधकतर समय पूजा- पाठ और मंहदर में बबताते थे | १२ . यशोधर बाबू जैसे लोग समय के साथ ढ़लने में असफल क्यों होते हैं? 106 उत्तरुः ऐसे लोग साधारणतया ककसी न ककसी से प्रभावित होते हैं, जैसे यशोधर बाबू ककशि र्दा से। ये परं परागत ढरे पर चलना पसन्द्द करते हैं तथा बदलाि पसन्द्द नहीं करते। अतुः समय के साथ ढ़लने में असफल होते हैं। १३ . भरे -पूरे पररिार में यशोधर बाबू स्ियं को अधरू ा-सा क्यों अनुभि करते हैं? उत्तरुःसंकेत बबन्द्द ु - अपने प्राचीन दायरे से बाहर न ननकल सकने के कारण िे स्ियं को अधरू ा अनुभि करते हैं। १४.‘‘अभी तम् ु हारे अब्बा की इतनी साख है कक सौ रुपए उधार ले सकें।’’ ककन पररन्द्स्थनतयों में यशोधर बाबू को यह कहना पड़ा? उत्तरुःसंकेत बबन्द्द-ु पत्र ु द्िारा उनके ननकट संबंधी की आधथयक सहायता के सलए मनाही से आहत होकर ऐसा कहना पड़ा। १५. ‘ससल्िर िैडडंग’ कहानी के तथ्य का विश्लेर्ण कीन्द्जए। उत्तरुः संकेत बबन्द्द ु - पीढ़ी के अंतराल को उजागर कर, ितयमान समाज की इस प्रकार की सच्चाई से पदाय उठाया गया है । १६.अपने बच्चों की तरक्की से खश ु होने के बाद भी यशोधर बाबू क्यामहसूस करते हैं? उत्तरुः उनके बच्चे गरीब ररश्तेदारों के प्रनत उपेक्षा का भाि रखते हैं। उनकी यह खश ु हाली अपनों के बीच परायापन पैदा कर रही है , जो उन्द्हें अच्छा नहीं लगता। १७.आजकल ककशनदा जैसी जीिन-शैली अपनाने िाले बहुत कम लोग समलते हैं, क्यों ? उत्तर: ककशन दा जैसे लोग मस्ती से जीते हैं, ननुःस्िाथय दस ू रों की सहायता करते हैं, जबकक आजकल सभी सहायता के बदले कुछ न कुछ पाने की आशा रखते हैं, बबना कुछ पाने की आशा रखे सहायता करने िाले बबरले ही होते हैं । १८ . यशोधर बाबू के बच्चों की कौन-सी बातें प्रशंसनीय हैं और कौन-सा पक्ष आपवत्तजनक है ? उत्तर- प्रशंसिीय बातें - १) महत्िाकांक्षी और प्रगनतशील होना | २)जीिन में उन्द्ननत करना | ३)समय और सामथ्यय के अनुसार घर में आधनु नक सुविधाएाँ जुटाना | 107 आपप्त्तजिक बातें - १) वयिहार, २) वपता, ररश्तेदारों, धमय और समाज के प्रनत नकारात्मक भाि ३) मानिीय सम्बन्द्धों की गररमा और संस्कारों में रूधच न लेना | १९.आपकी दृन्द्र्ष्ट में (पाठ से अलग) ससल्िर िैडडंग मनाने के और कौन से तरीके हो सकते हैं जो यशोधर बाबू को अच्छे लगते? उत्तरुः मंहदर जाकर,पररिार के साथ कहीं घूमने जाकर,पुत्र-पुबत्रयों द्िारा माता-वपता को उपहार दे कर आहद। २०. ससल्िर िैडडंग में चटाई का लहाँ गा ककसे कहा गया है ? उत्तरुः यह एक प्रतीकात्मक प्रयोग है न्द्जसे यशोधर बाबू अपनी पत्नी के सलए प्रयोग करते हैं। उनकी पत्नी पुरानी परं पराओं को छोड़ आधनु नकता में ढ़ल गई है , स्ियं को मॉडनय समझती है , इससलए यशोधर बाबू ने उन्द्हें यह नाम हदया है । िे उन्द्हें ‘शानयल बुहढ़या’ तथा ‘बूढ़ी माँह ु मह ु ााँसे, लोग करें तमासे’ कह कर भी धचढ़ाते हैं। २१. यशोधर बाबू पररिार के बािजूद स्ियं को अधरू ा क्यों मानते हैं? उत्तर - यशोधर बाबू पुरानी परं पराओं को माननेिाले हैं, जबकक उनका सारा पररिार आधनु नक विचारधारा का है । पीिीगत अंतराल के कारण पररवार के साथ ताल-मेल ि बबिा पािे के कारण िे स्ियं को अधरू ा समझते हैं। अन्य महत्त्वपूणट अभ्यास-प्रश्ि: 1. दफ्तर में यशोधर बाबू से कमयचारी क्यों परे शान रहते थे? 2. यशोधर बाबू का अपने बच्चों के साथ कैसा वयिहार था? 3. दफ्तर के बाद पंत जी क्या-क्या काम करते थे? 4. ऑकफस के साधथयों ने यशोधर बाबू को ककस बात की बधाइ्य दी? 5. यशोधर बाबू तककया कलाम के रूप में ककस िाक्य का प्रयोग करते थे?इस तककया कलाम का उनके वयन्द्क्तत्ि तथा कहानी के कथ्य से क्या संबंध है ? 108 6. पीढ़ी के अंतराल से वयन्द्क्त अकेला हो जाता है ’- स्पर्ष्ट करें । ७. अपने बेटे की बड़ी नौकरी पर यशोधर बाबू को क्या आपवत्त थी ? पाि 2 जूझ: आिंर्द यार्दव पाि का सार –‘जूझ’ पाठ आनंद यादि द्िारा रधचत स्ियं के जीिन–संघर्य की कहानी है | पढ़ाई पूरी न कर पाने के कारण, उसका मन उसे कचोटता रहता था |दादा ने अपने स्िाथों के कारण उसकी पढ़ाई छुड़िा दी थी |िह जानता था कक दादा उसे पाठशाला नहीं भेजेंगे | आनंद जीिन में आगे बढ़ना चाहता था | िह जनता था कक खेती से कुछ समलने िाला नहीं |िह पढ़े गा-सलखेगा तो बहढ़या-सी नौकरी समल जाएगी | आनंद ने एक योजना बनाई कक िह मााँ को लेकर गााँि के प्रनतन्द्र्ष्ठत वयन्द्क्त दत्ता जी राि के पास जाएगा| दत्ता जी राि ने उनकी पूरी बात सुनी और दादा को उनके पास भेजने को कहा | दत्ता जी ने उसे खब ू फटकारा, आनंद को भी बुलाया | दादा ने भी कुछ बातें रखीं कक आनंद को खेती के कायय में मदद करनी होगी| आनंद ने उनकी सभी बातें सहर्य मान लीं| आनंद की पढ़ाई शुरू हो गई| शुरु में कुछ शरारती बच्चों ने उसे तंग ककया ककन्द्तु धीरे -धीरे उसका मन लगने लगा| उसने कक्षा के मानीटर िसंत पाहटल से दोस्ती कर ली न्द्जससे उसे ठीक प्रकार से पढ़ाई करने की प्रेरणा समली| कई परे शाननयों से जूझते हुए आनंद ने सशक्षा का दामन नहीं छोड़ा| मराठी पढ़ाने के सलए श्री सौंदलगेकर आए| उन्द्होंने आनंद के हृदय में एक गहरी छाप छोड़ी| उसने भी कविताओं में रूधच लेनी प्रारम्भ की| उसने खेतों में काम करते –करते कविताएाँ कंठस्थ की| मास्टर ने उसकी कविता बड़े ध्यान से सन ु ी| बालक का आत्मविश्िास बढ़ने लगा और उसकी कावय-प्रनतभा में ननखार आने लगा | प्रश्िोत्तर१. जूझ कहानी के आधार पर दत्ता जी राि दे साई का चररत्र-धचत्रण कीन्द्जए । उत्तर 1. कफर समझर्दार व्यजक्त– दत्ता जी राि ने छोटे से बालक आनंद की बातों को सन ु ा| आनंद के दादा को बुलाया और आनंद को विद्यालय भेजने पर जोर हदया| उन्द्होंने दादा से इस प्रकार बातें की कक उन्द्हें शक ही नहीं हुआ कक ये सब उन्द्हें आनंद ने बताया है | 109 2. ग्रामीणों के मर्दर्दगार – दत्ता जी गााँि के प्रनतन्द्र्ष्ठत एिम प्रभािशाली वयन्द्क्त थे ककंतु उन्द्होंने अपनी प्रनतर्ष्ठा का दरु ु पयोग नहीं ककया| ग्रामीण उनके पास अपनी समस्याएाँ लेकर आते थे| दत्ता जी उनकी समस्याओं को हल करने का प्रयास करते थे| 3.प्रभावशाली व्यजक्तत्व– दत्ता जी गााँि के प्रनतन्द्र्ष्ठत वयन्द्क्त थे| सभी उन्द्हें बहुत मान दे ते थे| उनका वयन्द्क्तत्ि रोबीला था और ग्रामीण उनकी बात मान जाते थे| २ . जूझ कहानी का उद्दे श्य क्या है ? अथिा ‘विर्म पररन्द्स्थनतयों में भी विकास संभि है ।’‘जूझ’ कहानी के आधार पर स्पर्ष्ट कीन्द्जए| उत्तरुः में इस कहानी का मुख्य उद्दे श्य है कक मिुष्य को संघषट करते रहिा चाठहए| कहानी लेखक के जीिन के संघर्य को, उसके पररिेश के साथ हदखलाया गया है । लेखक का सशक्षा- प्रान्द्प्त हे तु प्पता से संघषट,कक्षा में संघषट,खेती में संघषट और अंत में उसकी सिलता कहानी के उद्दे श्य को स्पर्ष्ट करते हैं। अतुः समस्याओं से भागना नहीं चाहहए| पूरे आत्मविश्िास से उनका मुकाबला करना चाहहए| संघर्य करने िाले को सफलता अिश्य समलती है | ३ . ‘जूझ’ कहानी के शीर्यक की साथयकता पर हटप्पणी कीन्द्जए। उत्तरुः जझ ू का अथय है –संघषट| यह कथा ,कथानायक के जीिन भर के संघर्य को दशायती है | बचपन से अभािों में पला बालक, विपरीत पररन्द्स्थनतयों पर विजय हाससल कर सका|अतुः यहद मन में लगन हो, भरपूर आत्मविश्िास हो तो सफलता कदम चम ू ती है | ४ . ‘जझ ू ’ कहानी के आधार पर आंनदा के चररत्र की विशेर्ताएाँ बताइए। अथिा ‘जूझ’शीर्यक के औधचत्य पर विचार करते हुए यह स्पर्ष्ट करें कक क्या यह शीर्यक कथानायक की ककसी केन्द्द्रीय चाररबत्रक विशेर्ता को उजागर करता है ? उत्तरुः 1. पििे की लालसा- आनंदा वपता के साथ खेती का काम साँभालता था| लेककन पढ़ने की तीव्र इच्छा ने उसे जीिन का एक उद्दे श्य दे हदया और िह अपने भविर्ष्य को एक सही हदशा दे ने में सफल होता है | 2. वचिबद्धता- आनंदा ने विद्यालय जाने के सलए वपता की जो शतें मानी थी उनका पालन हमेशा ककया| िह विद्यालय जाने से पहले बस्ता लेकर खेतों में पानी दे ता| िह ढोर चराने भी जाता| वपता की बातों का अनुपालन करता| 110 3. आत्मप्वश्वासी एवं कमटि बालक–आनंदा के जीिन में अभाि ही थे| उसके वपता ने ही उसका पाठशाला जाना बंद करिा हदया था| ककंतु उसने हहम्मत नहीं हारी, परू े आत्मविश्िास के साथ योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ा और सफल हुआ| ४ . कप्वता के प्रनत झुकाव- आनंदा ने मास्टर सौंदलगेकर से प्रभावित होकर कावय में रुधच लेनी प्रारम्भ की| िह खेतों में पानी दे ता, भैंस चराते समय भी कविताओं में खोया रहता था| धीरे -धीरे िह स्ियं तुकबंदी करने लगा| कविताएाँ सलखने से उसमें आत्मविश्िास बढ़ा| ५ . आनन्द्दा के वपता की भााँनत आज भी अनेक गरीब ि कामगार वपता अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहतेथे, क्यों? आपकी दृन्द्र्ष्ट में उन्द्हें ककस प्रकार प्रेररत ककया जा सकता है ? उत्तरुः अधधकतर लोग अलशक्षक्षत होिे के कारण सशक्षा के महत्त्ि को नहीं समझते| अधधक बच्चे , कम आमर्दिी, र्दो अनतररक्त हाथों से कमाई की लालसा आहद इसके प्रमुख कारण हैं। उन्द्हें प्रेररत करने हे तु उन्द्हें जागरूक करना, सशक्षा का महत्त्ि बताना,सशक्षक्षत होकर जीिन स्तर में सध ु ार के सलए प्रोत्साहहत ककया जा सकता है । ६ . सकारात्मक सज ू कहानी के आधार पर ृ नात्मकता से आत्मविश्िास को दृढ़ता समलती है । जझ समझाइए। उत्तरुः लेखक ने पढ़ाई में स्ियं को वपछड़ता हुआ पाया| ककंतु सशक्षक सौदं लगेकर से प्रेररत होकर लेखक कुछ तक ु बंदी करने लगा| धीरे –धीरे उसमें आत्मविश्िास बढ़ने लगा| सज ृ नात्मकता ने उसके जीिन को नया मोड़ हदया| अतुः लेखक के द्वारा कप्वता रच लेिे से उसमें आत्मप्वश्वास का सज ृ ि हुआ। ७. ‘जझ ू ’कहानी के आधार पर बताइए कक एक प्रभािशाली सशक्षक ककस तरह अपने विद्याथी का भविर्ष्य साँिार सकता है ? अथिा आनन्द्दा से कवि डॉ. आनन्द्द यादि बनने की यात्रा में मास्टर सौंन्द्दलगेकर की भसू मका स्पर्ष्ट कीन्द्जए। उत्तरुःमास्टर सौंर्दलगेकर कुशल अध्यापक, मरािी के ज्ञाता व कप्व,सुरीले ढं ग से स्वयं कीव र्दस ू रों की कप्वताएाँ गाते थे। आनन्द्दा को कविता या तक ु बन्द्दी सलखने के प्रारन्द्म्भक काल में उन्द्होंने उसका मागयदशयन ि सुधार ककया,उसका आत्मविश्िास बढ़ाया न्द्जससे िह धीरे -धीरे कविताएाँ सलखने में कुशल हो कर प्रनतन्द्र्ष्ठत कवि बन गया। 111 ८. आनन्द्दा कोपुनुः स्कूल जाने पर क्या-क्या झेलना पड़ा ? उत्तरुः स्ियं से कम आयु के छात्रों के साथ बैठना पड़ा,िह अन्द्य छात्रों की हाँ सी का पात्र बना तथा उसे वपता की इच्छा के कारण घर ि स्कूल दोनों में ननरं तर काम करना पड़ा। ९ . स्कूल में मानीटर ने आनंदा को सिायधधक प्रभावित ककया और कैसे? उत्तरुः मानीटर बसंत पाठटल ने उसे सिायधधक प्रभावित ककया|िह शांत व अध्ययिशील छात्र था। आनंदा उसकी नकल कर हर काम करने लगा,धीरे -धीरे एकाग्रधचत ि अध्ययनशील बनकर आनन्द्दा भी कक्षा में सम्मान का पात्र बन गया। १० . आपके दृन्द्र्ष्ट से पढ़ाई-सलखाई के सम्बन्द्ध में लेखक और दत्ता जी राि का रिैया सही था या लेखक के वपता का?तकय सहहत उतर दीन्द्जए। उत्तरुः लेखक का मत है कक जीवि भर खेतों में काम करके कुछ भी हाथ आिे वाला िहीं है । पीढ़ी दर पीढ़ी खेतों में काम करके कुछ प्राप्त नहीं हो सका। िे मानते हैं कक यह खेती हमें गढ्ढे में धकेल रही है । अगर मैं पि-ललख गया तो कहीं मेरी िौकरी लग जाएगी या कोई वयापार करके अपने जीिन को सफल बनाया जा सकता है । मााँ-बेटा जब दत्ता जी राि के घर जाकर पूरी बात बताते हैं तो दत्ता जी राि वपता जी को बुलाकर खब ू डााँटते हैं और कहते हैं कक तू सारा हदन क्या करता है । बेटे और पत्नी को खेतों में जोत कर तू सारा हदन सााँड की तरह घम ू ता रहता है । कल से बेटे को स्कूल भेज, अगर पैसे नहीं हैं तो फीस मैं दाँ ग ू ा। परन्द्तु वपता जी को यह सब कुछ बरु ा लगा। दत्ता जी राि के सामने ‘हााँ’ करने के बािजद ू भी िे आनन्द्द को स्कूल भेजने के पक्ष में नहीं थे। इस प्रकार लेखक और उनके वपताजी की सोच में एक बड़ा अन्द्तर है । हमारे खयाल से पिाई-ललखाई के सम्बन्ध में लेखक और र्दत्ता जी राव का रवैया लेखक के प्पता की सोच से ज्यार्दा िीक है क्योंकक पढ़ने-सलखने से वयन्द्क्त का सिायगींण विकास होता है । अन्य महत्त्वपूणट अभ्यास-प्रश्ि: १. जूझ पाठ के आधार पर बताइए कक कौन, ककससे, कहााँ जूझ रहा है तथा अपनी जूझ में कौन सफल होता है ? २. आनंदा का वपता कोल्हू जल्दी क्यों चलिाता था? 112 ३. पाठशाला में आनंदा का पहला अनुभि कैसा रहा? ४. दत्ता राि के सामने रतनप्पा ने आनंदा को स्कूल न भेजने का क्या कारण बताया ? ५. आनंदा के वपता ने उसे पाठशाला भेजने की सहमनत ककस शतय पर दी? पाि 3 अतीत में र्दबे पााँव: ओम थािवी पाि का सार–यहओम थािवी के यात्रा-ित्त ृ ांत और ररपोटय का समला-जुला रूप है |उन्द्होंने इस पाठ में प्वश्व के सबसे परु ािे और नियोजजत शहरों-मअ ु िजो-र्दड़ो तथा हड़तपा का िणयन ककया है | पाककस्तान के ससंध प्रांत में मअ ु नजो-दड़ो ओर पंजाब प्रांत में हड़प्पा नाम के दो नगरों को पुरातत्िविदों ने खद ु ाई के दौरान खोज ननकाला था|मुअिजो-र्दड़ो ताम्रकाल का सबसे बड़ा शहर था |मुअनजो-दड़ो अथायत मुर्दों का टीला| यह नगर मानि ननसमयत छोटे –छोटे टीलों पर बना था |मुअनजो-दड़ो में प्राचीन और बड़ा बौद्ध स्तूप है | इसकी नगर योजना अद्वितीय है | लेखक ने खंडहर हो चक ु े टीलों, स्नानागार, मद ृ -भांडों, कुओं–तालाबों, मकानों ि मागों का उल्लेख ककया है न्द्जनसे शहर की संद ु र ननयोजन वयिस्था का पता चलता है | बस्ती में घरों के र्दरवाजे मख् ु य सड़क की ओर िहीं खल ु ते, हर घर में जल ननकासी की वयिस्था है , सभी नासलयााँ की ढकी हुई हैं, पक्की ईंटों का प्रयोग ककया गया है | नगर में चालीस फुट लम्बा ओर पच्चीस फुट चौड़ा एक महाकंु ि भी है |इसकी दीिारें ओर तल पक्की ईंटों से बने हैं | कंु ड के पास आि स्िािागार हैं | कंु ड में बाहर के अशुद्ध पानी को न आने दे ने का ध्यान रखा गया | कंु ड में पानी की वयिस्था के सलए कंु आ है | एक प्वशाल कोिार भी है न्द्जसमें अनाज रखा जाता था |उन्द्नत खेती के भी ननशान हदखते हैं -कपास, गेहूं, जौ, सरसों, बाजरा आहद के प्रमाण समले हैं| ससंधु घाटी सभ्यता में ि तो भव्य राजमहल लमलें हैं ओर ही भव्य मंठर्दर| नरे श के सर पर रखा मक ु ु ट भी छोटा है | मअ ु नजो-दड़ो ससंधु घाटी का सबसे बड़ा नगर है कफर भी इसमें भवयता ि आडम्बर का अभाि रहा है | उस समय के लोगों ने कला ओर सुरुधच को महत्त्ि हदया| नगर-ननयोजन, धातु एिं पत्थर की मूनतययााँ, मद ृ -भांड ,उन पर धचबत्रत मानि ओर अन्द्य आकृनतयााँ ,मुहरें , उन पर बारीकी से की गई धचत्रकारी| एक पुरातत्त्ििेत्ता के मुताबबक ससंधु सभ्यता की खब ू ी उसका सौंदयय-बोध है जो ”राजपोवर्त या था|” 113 धमयपोवर्त न होकर समाजपोवर्त प्रश्िोत्तर– १. ‘ससन्द्धु सभ्यता साधन सम्पन्द्न थी, पर उसमें भवयता का आडंबर नहीं था |’ प्रस्तत ु कथन से आप कहााँ तक सहमत हैं? उत्तरुः दस ू री सभ्यताएाँ राजतंत्र और धमयतंत्र द्िारा संचासलत थी । िहााँ बड़े-बड़े सन्द् ु दर महल, पूजा स्थल, भवय मूनतययााँ, वपरासमड और मन्द्न्द्दर समले हैं। राजाओं, धमायचायों की समाधधयााँ भी मौजूद हैं। ककंतु ससन्द्धु सभ्यता, एक साधि-सम्पन्ि सभ्यता थी परन्तु उसमें राजसत्ता या धमटसत्ताके धचह्ि िहीं लमलते। िहााँ की नगर योजना,िास्तुकला,मुहरों,ठप्पों,जल-वयिस्था,साफ-सफाई और सामान्द्जक वयिस्था आहद की एकरूपताद्िारा उनमें अनश ु ासन दे खा जा सकता है |सांस्कृनतक धरातलपर यह तथ्य सामने आता है कक ससन्द्धु घाटी की सभ्यता, र्दस ू रीसभ्यताओं से अलग एवं स्वाभाप्वक, ककसी प्रकार की कृबत्रमता एवं आिंबररठहतथी जबकक अन्द्य सभ्यताओं में राजतंत्र और धमयतंत्र की ताकत को हदखाते हुए भवय महल , मंहदर ओर मूनतययााँ बनाई गईं ककंतु ससन्द्धु घाटी सभ्यता की खर्द ु ाई में छोटी-छोटी मूनतटयााँ, खखलौिे, मर्द ृ -भांि, िावें लमली हैं। इस प्रकार यह स्पर्ष्ट है कक ससन्द्धु सभ्यता सम्पन्द्न थी परन्द्तु उसमें भवयता का आडंबर नहीं था। २. ‘ससन्द्धु सभ्यता की खब ू ी उसका सौन्द्दयय बोध है जो राजपोवर्त न होकर समाज-पोवर्त था।‘ ऐसा क्यों कहा गया है ? उत्तरुः ससन्द्धु सभ्यता में औजार तो बहुत लमलेहैं,परं तु हधथयारों का भी प्रयोग होता रहा होगा , इसका कोई प्रमाण िहींहै। िे लोग अनश ु ासनवप्रय थे परन्द्तु यह अनश ु ासन ककसी ताकत के बल के द्िारा कायम नहीं ककया गया,बन्द्ल्क लोग अपिे मि और कमट से ही अिुशासि प्प्रय थे। मुअनजो-दड़ो की खद ु ाई में एक दाढ़ी िाले नरे श की छोटी मूनतय समली है परन्द्तु यह मूनतय ककसी राजतंत्र या धमयतंत्र का प्रमाण नहीं कही जा सकती। विश्ि की अन्द्य सभ्यताओं के साथ तुलनात्मक अध्ययन से भी यही अनुमान लगाया जा सकता है कक ससन्द्धु सभ्यता की खब ू ी उसका सौन्द्दययबोध है जो कक समाज पोवर्त है , राजपोवर्त या धमयपोवर्त नहीं है । ३. ‘यह सच है कक यहााँ ककसी आाँगन की टूटी-फूटी सीहढ़यााँ अब आप को कहीं नहीं ले जातीं,िे आकाश की तरफ अधरू ी रह जाती हैं। लेककन उन अधरू े पायदानों पर खड़े होकर 114 अनुभि ककया जा सकता है कक आप दनु नया की छत पर हैं, िहााँ से आप इनतहास को नहीं उस के पार झााँक रहे हैं।’ इसके पीछे लेखक का क्या आशय है ? उत्तरुः होकर आप इस कथन से लेखक का आशय है कक इन टूटे -फूटे घरों की सीहढ़यों पर खड़े प्वश्व की सभ्यता के र्दशटिकर सकते हैं क्योंकक ससन्द्धु सभ्यता विश्ि की महान सभ्यताओ में से एक है । ससन्द्धु सभ्यता आिंबररठहत एवं अिुशासिप्प्रय है । खंडहरों से समले अिशेर्ों और इन टूटे -फूटे घरों से केिल ससन्द्धु सभ्यता का इनतहास ही नहीं दे खा जा सकता है बन्द्ल्क उससे कहीं आगे मािवता के धचह्ि ओर मािवजानत के क्रलमक प्वकास को भी दे खा जा सकता है । कई प्रश्न - ऐसे कौन से कारण रहे होंगे कक ये महानगर आज केिल खंडहर बन कर रह गए हैं?, िे बड़े महानगर क्यों उजड़ गए?, उस जमाने के लोगों की िास्तुकला, कला ओर ज्ञान में रुधच, समाज के सलए आिश्यक मूल्य - अनुशासन, सादगी, स्िच्छता, सहभाधगता आहदहमें मानिजानत के क्रसमक विकास पर पुनुः धचंतन करने पर मजबूर कर दे ते हैं । इस प्रकार हम इन सीहढ़यों पर चढ़कर ककसी इनतहास की ही खोज नहीं करना चाहते बन्द्ल्क ससन्द्धु सभ्यता के सभ्य मानिीय समाज को दे खना चाहते हैं। ४. हम ससन्द्धु सभ्यता को जल-संस्कृनत कैसे कह सकते हैं ? उत्तरुःससन्द्धु सभ्यता एक जल-संस्कृनत थी | प्रत्येक घर में एक स्िािघरथा । घर के भीतर से पानी या मैला पािी िाललयों के माध्यम से बाहर हौदी में आता है और कफर बड़ी नासलयों में चला जाता है । कहीं-कहीं नासलयााँ ऊपर से खल ु ी हैं परन्द्तु अधधकतर िाललयााँ ऊपर सेबंर्दहैं। इनकी जलनिकासी व्यवस्था बहुत ही ऊाँचे दजे की था | नगर में कुओं का प्रबंध था । ये कुएाँ पक्की ईटों के बने थे। ससन्द्धु सभ्यता से जुड़े इनतहासकारों का मानना है कक यह सभ्यता विश्ि में पहली ज्ञात संस्कृनत है जो कुएाँ खोदकर भू-जल तक पहुाँची। अकेले मअ ु नजो-दड़ों नगर में सात सौ कुएाँ हैं।यहााँ का महाकंु ि लगभग चालीस फुट लम्बा ओर पच्चीस फुट चौड़ा है |इस प्रकार मअ ु नजो-दड़ों में पानी की वयिस्था सभ्य समाज की पहचान है । ५. मअ ु नजो-दड़ो की गह ृ -ननमायण योजना पर संक्षेप में प्रकाश डासलए| उत्तर- मुअनजो-दड़ो नगर की मुख्य सड़क के र्दोिों ओर घर हैं परं तु ककसी भी घर का र्दरवाजामुख्य सड़क पर िहीं खल ु ता। घर जाने के सलए मुख्य सड़क से गसलयों में जाना पड़ता है ,सभी घरों के ललए उधचत जल निकासी वयिस्था है । घर पक्की ईंटों के बिे हैं|छोटे घरों में 115 णखड़ककयााँ नहीं थीं ककंतु बड़े घरों में आंगन के भीतर चारों तरफ बने कमरों में णखड़ककयााँ हैं| घर छोटे भी हैं ओर बड़े भी ककंतु सभी घर कतार में बने हैं| ६. ‘ससन्द्धु सभ्यता ताकत से शाससत होने की अपेक्षा समझ से अनश ु ाससत सभ्यता थी’स्पर्ष्ट कीन्द्जए। उत्तरुःसंकेत बबंर्द ु - खद ु ाई से प्राप्त अिशेर्ों में औजार तो समले हैं ककंतु हधथयार नहीं| कोई खड्ग ,भाला, धनर् ु -बाण नहीं समला| तथा भवय महलों ि समाधधयों के न होने से कह सकते हैं कक ससन्द्धु सभ्यता ताकत से नहीं समझ से अनश ु ाससत थी। ७. संसार की मुख्य प्राचीन सभ्यताएाँ कौन-कौन सी हैं?प्राचीनतम सभ्यता कौन-सी है उसकी प्रमाणणकता का आधार क्या है ? उत्तरुः समस्र की नील घाटी की सभ्यता, मेसोपोटासमया की सभ्यता, बेबीलोन की सभ्यता, ससन्द्धु घाटी की सभ्यता। सबसे प्राचीन है ससन्द्धु घाटी की सभ्यता। प्रमाण है 1922में समले हड़प्पा ि मुअनजो-दड़ोनगरों के अिशेर्। ये नगर ईसा पूिय के हैं। ८.ससन्द्धु घाटी की सभ्यता की विसशर्ष्ट पहचान क्या है ? उत्तरुः1. एक जैसे आकार की पक्की ईटों का प्रयोग, 2. जल ननकासी की उत्कृर्ष्ट वयिस्था, 3. तत्कालीन िास्तुकला, 4. नगर का श्रेर्ष्ठ ननयोजन। ९ .मुअनजो-दड़ोमें पययटक क्या-क्या दे ख सकते हैं? उत्तरुः 1.बौद्ध स्तूप2. महाकंु ड 3.अजायबघर आहद १० . ससन्द्धु सभ्यता ि आजकल की नगर ननमायण योजनाओं में साम्य ि अन्द्तर बताइए। उत्तरुः साम्य-1. अच्छी जल ननकास योजना,ढकी हुई नासलयााँ, 2. नौकरों के सलए अलग आिास वयिस्था, 3. पक्की ईंटों का प्रयोग। 116 अन्तर- नगर योजना, आधनु नक तकनीक का प्रयोग, अत्याधनु नक भिन–ननमायण सामग्री का प्रयोग| ११.कुलधरा कहााँ है ?मुअनजो-दड़ोके खण्डहरों को दे ख कुलधरा की याद क्योंआती है ? उत्तरुः कुलधरा जैसलमेर के मह ु ािे पर पीले पत्थरों से बिे घरों वाला सन् ु र्दर गााँव है । कुलधरा के ननिासी 150 िर्य पूिय राजा से तकरार होिे पर गााँव खाली करके चले गए। उिके घर अब खण्िहर बि चक ु े हैं, परं तु ढ़हे नहीं |घरों की दीिारें और णखड़ककयााँ ऐसी हैं मानो सुबह लोग काम पर गए हैं और सााँझ होते ही लौट आएंगें |मुअनजो-दड़ोके खण्डहरों को दे खकर कुछ ऐसा ही आभास होता है िहााँ घरों के खण्डहरों में घूमते समय ककसी अजनबी घर में अनधधकार चहलकदमी का अपराधबोध होता है | परु ातान्द्त्िक खद ु ाई असभयान की यह खब ू ी रही है कक सभी िस्तुओं को बड़े सहे ज कर रखा गया | अतुः कुलधरा की बस्ती और मुअनजो-दड़ोके खण्डहर अपने काल के इनतहास का दशयन कराते हैं। अन्य महत्त्वपण ू ट अभ्यास-प्रश्ि: १. ससन्द्धु घाटी के ननिासी खेती करते थे- इस कथन को ससद्ध कीन्द्जए। २. ’टूटे -फूटे खण्डहर सभ्यता और संस्कृनत के इनतहास के साथ-साथ धड़कती न्द्जन्द्दधगयों के अनछुए समयों का दस्तािेज होते हैं।’ इस कथन का भाि स्पर्ष्ट कीन्द्जए। ३.आज जल संकट एक बड़ी समस्या है | ऐसे में ससन्द्धु सभ्यता के महानगर मुअनजो-दड़ो की जल वयिस्था से क्या प्रेरणा लीजा सकती है ? भािी जल संकट से ननपटने के सलए आप क्या सुझाि दें गे ? ४.मुअनजो-दड़ोके अजायबघर में कौन-कोन सी िस्तुएाँ प्रदसशयत थीं ? ५.ससंधु सभ्यता अन्द्य सभ्यताओं से ककस प्रकार सभन्द्न है ? ६.मअ ु नजो-दड़ोकी प्रमख ु विशेर्ताएाँ सलणखए । ७. ससंधघ ु ाटी की सभ्यता लो-प्रोफाइल है -स्पर्ष्ट कीन्द्जए ? ८. लेखक ने प्राचीन लैंडस्केप ककसे कहा है ?उसकी क्या विशेर्ता है ? ९. ताम्रकाल के दो सबसे बड़े ननयोन्द्जत शहर ककन्द्हें माना गया है और क्यों ? 117 -------------------------------------------------------------------------------------------------- पाि 4 : िायरी के पन्िे: ऐि फ्रैंक पाि का सार – ‘डायरी के पन्द्ने’ पाठ में ‘र्द िायरी ऑि ए यंग गलट’ नामक ऐि फ्रैंक की डायरी के कुछ अंश हदए गए हैं | ‘द डायरी ऑफ ए यंग गलय’ ऐि फ्रैंक द्िारा दो साल अज्ञातिास के दरम्यान सलखी गई थी| १९३३ में फ्रैंकफटय के नगरननगम चन ु ाि में ठहटलर की िाजी पाटी जीत गई| तत्पश्चात यहूर्दी-प्वरोधी प्रर्दशटि बढ़ने लगे | ऐि फ्रैंक का पररवार असरु क्षक्षत महसस ू करते हुए िीर्दरलैंि के एम्सटिटम शहर में जा बसा |द्वितीय विश्ियुद्ध की शुरुआत तक(१९३९) तो सब ठीक था| परं तु १९४० में नीदरलैंड पर जमयनी का कब्ज़ा हो गया ओर यहूहदयों के उत्पीड़न का दौर शुरु हो गया| इन पररन्द्स्थनतयों के कारण १९४२ के जुलाई मास में फ्रैंक पररवारन्द्जसमें मातावपता,तेरह िर्य की ऐन ,उसकी बड़ी बहन मागोट तथा दस ू रा पररिार –वािर्दाि पररवार ओर उनका बेटा पीटरतथा इनके साथ एक अन्द्य वयन्द्क्त लमस्टर िसेल दो साल तक गप्ु त आिास में रहे | गुप्त आिास में इनकी सहायता उन कमयचाररयों ने की जो कभी समस्टर फ्रैंक के दफ्तर में काम करते थे||‘द डायरी ऑफ ए यंग गलय’ ऐि फ्रैंक द्िारा उस दो साल अज्ञातिास के दरम्यान सलखी गई थी|अज्ञातिास उनके वपता लमस्टर ऑटो फ्रैंक का र्दफ्तर ही था| ऐन फ्रैंक को तेरहिें जन्द्महदन पर एक डायरी उपहार में समली थी ओर उसमें उसने अपनी एक गडु ड़या-ककट्टी को सम्बोधधत ककया है | ऐनअज्ञातवास में पूरा ठर्दि– पहे सलयााँ बुझाती, अंग्रेज़ी ि फ्रेंच बोलती, ककताबों की समीक्षा करती, राजसी पररिारों की िंशािली दे खती, ससनेमा ओर धथएटर की पबत्रका पढ़ती और उनमें से नायकनानयकाओं के धचत्र काटतेबबताती थी| िह समसेज िानदान की हर कहानी को बार-बार सुनकर बोर हो जाती थी ओर सम. डसेल भी पुरानी बातें – घोड़ों की दौड़, लीक करती नािें, चार बरस की उम्र में तैर सकने िाले बच्चे आहद सुनाते रहते| उसने युद्ध संबंधी जानकारी भी दी है - कैबबनेट मंत्री लम. बोल्के स्टीि ने लंदन से डच प्रसारण में यह घोषणा की थी कक युद्ध के बार्द युद्ध के र्दौराि ललखी गईं िायररयों का संग्रह ककया जाएगा, िायुयानों से तेज़ गोलाबारी, हज़ार धगल्िर के िोट अवैध घोवर्त ककए गए | हहटलर के घायल सैनिकों में ठहटलर से हाथ लमलािे का जोश , अराजकता का माहौल- कार, साईककल की 118 चोरी, घरों की णखड़की तोड़ कर चोरी, गसलयों में लगी बबजली से चलने िाली घडड़यााँ, साियजननक टे लीफोन चोरी कर सलए गए| ऐन फ्रैंक ने िारी स्वतंत्रता को महत्त्ि हदया,उसने नारी को एक ससपाही के बराबर सम्मान दे ने की बात कही| एक तेरह वषीय ककशोरी के मि की बेचि ै ी को भी वयक्त ककया- जैसे सम. डसेल की ड़ााँट-फटकार ओर उबाऊ भार्ण, दस ू रों की बातें सुनकर समसेज फ्रैंक का उसेडााँटना ओर उस पर अविश्िास करना, बड़ों के द्िारा उसके काम ओर केशसज्जा पर टीका-हटप्पणी करना, ससनेमा की पबत्रका खरीदने पर कफज़ल ू खची का आरोप लगाना, पीटर द्िारा उसके प्रेम को उजागर न करना आहद| ऐन फ्रैंक की डायरी के द्िारा द्प्वतीय प्वश्वयुद्ध की प्वभीप्षका, ठहटलर एवं िाजजयों द्वारा यहूठर्दयों का उत्पीड़ि, िर, भख ु मरी, गरीबी, आतंक, मािवीय संवेर्दिाएाँ, प्रेम, घण ृ ा, तेरह साल की उम्र के सपिे, कल्पिाएाँ, बाहरी र्दनु िया से अलग-थलग पड़ जािे की पीड़ा, मािलसक ओर शारीररक जरूरतें , हाँसी-मज़ाक, अकेलापि आहद का जीिंत रूप दे खने को समलता है | प्रश्िोत्तर – १. ‘‘ऐन की डायरी अगर एक ऐनतहाससक दौर का जीिंत दस्तािेज है , तो साथ ही उसके ननजी सुख-दुःु ख और भािनात्मक उथल-पुथल का भी। इन पर्ष्ृ ठों में दोनों का फकय समट गया है । ’’ इस कथन पर विचार करते हुए अपनी सहमनत या असहमनत तकयपि य वयक्त करें । ू क उत्तरुःऐन की डायरी अगर एक ऐनतहाससक दौर का जीिंत दस्तािेज है , तो साथ ही उसके ननजी सुख-दुःु ख और भािनात्मक उथल-पुथल का भी क्योंकक इसमें ऐन ने द्वितीय विश्ियुद्ध के समय हॉलैंड के यहूदी पररिारों की अकल्पनीय यंत्रणाओं का िणयन करने के साथ-साथ, िहााँ की राजनैनतक न्द्स्थनत एिं युद्ध की विभीवर्का का जीिंत िणयन ककया है ।िायुयानों से तेज़ गोलाबारी, हज़ार धगल्िर के िोट अवैध घोवर्त ककए गए , हहटलर के घायल सैनिकों में ठहटलर से हाथ लमलािे का जोश , अराजकता का माहौलआहद| साथ हीयह डायरी, ऐन के पाररिाररक सुख-दुःु ख और भािनात्मक न्द्स्थनत को प्रकट करती है - गरीबी, भुखमरी,अज्ञातिास में जीिन वयतीत करना, दनु नया से बबलकुल कट जाना ,पकड़े जाने का डर, आतंक। यह डायरी एक ओर िहााँ के राजिैनतक वातावरण में सैनिकों की जस्थनत, आचरण व जिता पर होिे वाले अत्याचार हदखाती हैं तो दस ू री ओरएक तेरह वषट की ककशोरी की मािलसकता, कल्पिा का संसार ओर 119 उलझि को भीहदखाती है जो ऐन की आपबीती है । इस तरह यह डायरी ऐनतहाससक दस्तािेज होने के साथ-साथ ऐन के जीिन के सुख-दख ु का धचत्रण भी है । २. ‘‘यह साठ लाख लोगों की तरफ से बोलने िाली एक आिाज है । एक ऐसी आिाज जो ककसी सन्द्त या कवि की नहीं, बन्द्ल्क एक साधारण-सी लड़की की है ।’’ इल्या इहरनबुगय की इस हटप्पणी के संदभय में ऐन फ्रैंक की डायरी के पहठत अंशों पर विचार करें । उत्तरुः उस समय यूरोप में लगभग साठ लाख यहूदीथे।द्प्वतीय प्वश्वयुद्ध में िीर्दरलैंि पर जमटिी का कब्ज़ा हो गया और ठहटलर की िाजी िौज िे यहूहदयों को विसभन्द्न प्रकार से यंत्रणाएं दे ने लगे | उन्द्हें तरह-तरह के भेर्दभाव पूणट ओर अपमािजिक नियम-कायर्दों को माििे के ललए बाध्य ककया जाने लगा |गेस्टापो (हहटलर की खकु फया पसु लस) छापे मारकर यहूहदयों को अज्ञातिास से ढूाँढ़ ननकालती ओर यातिागह ृ में भेज दे ती| अतुः चारों तरफ अराजकता फैली हुई थी। यहूर्दी अज्ञातवास में निरं तर अंधेरे कमरों में जीिे को मजबूरथे।उन्द्हें एक अमानिीय जीिन जीने को बाध्य होना पड़ा|ठहटलर की िाजी िौजका खौफ उन्द्हें हरिक्त आतंककत करता रहता था | ऐन ने डायरी के माध्यम से न केिलननजी सख ु -दुःु ख और भािनाओं को वयक्त ककया,बन्द्ल्क लगभग साठ लाख यहूदी समद ु ाय की दख ु भरी न्द्जन्द्दगी को सलवपबद्ध ककया है । इससलए इल्या इहरनबुगय की यह हटप्पणी कक ‘‘यह साठ लाख लोगों की तरफ से बोलने िाली एक आिाज है । एक ऐसी आिाज जो ककसी संत या कवि की नहीं, बन्द्ल्क एक साधारण-सी लड़की की है ।’सियमान्द्य एिं सत्य है । ३. ऐन फ्रैंक कौन थी?उसने अपनी डायरी में ककस काल की घटनाओं का धचत्रण ककया है ?यह क्यों महत्िपूणय है? उत्तर:. ऐन फ्रैंक एक यहूदी लड़की थी। उसने अपनी डायरी में द्वितीय विश्ियुद्ध (1939-1945) के दौरान ठहटलर की िाजी िौज िे यहूहदयों को विसभन्द्न प्रकार से यंत्रणाएं दीं| यह डायरी युद्ध के दौरान फैली अराजकता और राजनेनतक पररदृश्य को दशायती है | यह नान्द्जयों द्िारा यहूहदयों पर ककए गए जुल्मों का एक प्रामाणणक दस्तािेज है और साथ ही साथ एक तेरह िर्ीय ककशोरी की भािनाएाँ और मानससकता को समझाने में सहायक है । ४. डायरी के पन्द्ने पाठ में सम. डसेल एिं पीटर का नाम कई बार आया है । इन दोनों का वििरणात्मक पररचय दें । 120 उत्तरुः सम.डसेल- ऐन के वपता के साथ काम करते थे। िे ऐन ि पररिार के साथ अज्ञातिास में रहे थे। डसेल उबाऊ लंबे-लंबे भाषण दे ते थे और अपने जमाने के ककस्से सुनाते रहते थे। ऐन को अक्सर डााँटते थे । िे चग ु लखोर थे और ऐन की मम्मी से ऐि की सच्ची-झूिी लशकायतें करते थे । पीटर- लमस्टर और लमसेज वािर्दाि का बेटा था |िह ऐि का हमउम्र था। ऐन का उसके प्रनत आकर्यण बढ़ने लगा था और िह यह मानने लगी थी कक िह उससे प्रेम करती है ।ऐन के जन्द्महदन पर पीटर ने उसे फूलों का गल ु दस्ता भें ट ककया था| ककंतु पीटर सबके सामने प्रेम उजागर करने से डरता था| िह साधारणतया शांनतवप्रय, सहज ि आत्मीय वयिहार करने िाला था। ५. . ककट्टी कौन थी?ऐनफ्रैंक ने ककट्टी को संबोधधत कर डायरी क्यों सलखी? उत्तरुः ‘ककट्टी’ऐि फ्रैंक की गुड़ड़या थी। गुडड़या को समत्र की भााँनत संबोधधत करने से गोपिीयता भंग होिे का िर ि था।अन्द्यथा नान्द्जयों द्िारा अत्याचार बढ़ने का डर ि उन्द्हें अज्ञातिास का पता लग सकता था।| ऐन ने स्ियं (एक तेरह वषीय ककशोरी) के मि की बेचि ै ी को भी वयक्त करने का ज़ररया ककट्टी को बनाया |िह हृदय में उठ रही कई भािनाओं को दस ू रों के साथ बााँटना चाहती थी ककंतु अज्ञातिास में उसके सलए ककसी के पास समय नहीं था| सम. डसेल की ड़ााँट-फटकार ओर उबाऊ भार्ण ,दस ू रों के द्िारा उसके बारे में सन ु कर मम्मी (समसेज फ्रैंक) का उसेड़ााँटना ओर उस पर अविश्िास करना, बड़ों का उसे लापरवाह और ति ु कलमजाज मानना और उसे छोटी समझकर उसके विचारों को महत्त्ि न दे ना , उसके ह्रदय को कचोटता था |अतुः उसने ककट्टी को अपना हमराज़ बनाकर डायरी में उसे ही संबोधधत ककया| ६ ‘ऐन फ्रैंक की डायरी यहूहदयों पर हुए जुल्मों का जीिंत दस्तािेज है ’पाठ के आधार पर यहूहदयों पर हुए अत्याचारों का वििरण दें । उत्तरुः हहटलर की नाजी सेना ने यहूहदयों को कैद कर यातिा लशप्वरों में डालकर यातनाएाँ दी। उन्द्हें गैस चैंबर में डालकर मौत के घाट उतार हदया जाता था। कई यहूर्दी भयग्रस्तहोकर अज्ञातवास में चले गए जहााँ उन्द्हें अमानिीय पररन्द्स्थनतयों में जीना पड़ा| अज्ञातिास में उन्द्हें सेन्द्धमारों से भी ननबटना पड़ा।। उनकी यहूर्दी संस्कृनत को भी कुचल डाला गया। 121 ७. ‘डायरी के पन्द्ने’पाठ ककस पुस्तक से सलया गया है ?िह कब प्रकासशत हुई?ककसने प्रकासशत कराई? उत्तरुः यह पाठ ऐनफ्रैंक द्िारा डच भार्ा में सलखी गई ‘र्द िायरी ऑि ए यंग गलट’ नामक पुस्तक से सलया गया है । यह १९४७ में ऐन फ्रैंक की मत्ृ यु के बाद उसके प्पता लमस्टर ऑटो फ्रैंक ने प्रकासशत कराई। अन्य महत्त्वपूणट अभ्यास-प्रश्ि: १.“काश, कोई तो होता जो मेरी भािनाओं को गंभीरता से समझ पाता| अफसोस, ऐसा वयन्द्क्त मुझे अब तक नहीं समला.... ”| क्या आपको लगता है ककऐन के इस कथन में उसके डायरी लेखन का कारण छुपा हुआ है ? २. अज्ञातिास में उबाऊपन दरू करने के सलए ऐन फ्रैंक ि िान पररिार क्या करते थे ? ३. डच मंत्री कक ककस घोर्णा से ऐन रोमांधचत हो उठी? ४. ऐन के अनुसार युद्ध में घायल सैननक गिय का अनुभि क्यों कर रहे थे ? ५. ‘हर कोई जानता था कक बुलािे का क्या मतलब होता है ’| ऐन की डायरी के आधार पर सलणखए | ६. ‘प्रकृनत ही तो एक ऐसा िरदान है , न्द्जसका कोई सानी नहीं है ।’ऐसा क्यों कहा गया है ? 122 प्रनतदशय प्रश्न-पत्र कक्षा : १२ विर्य:हहन्द्दी (केंहद्रक) ननधायररत समय: ३ घंटे अधधकतम अंक: १०० खण्ड क . १ ननम्नसलणखत : गद्यांश को ध्यान पूिक य पहढ़ए तथा पूछे गए प्रश्नों के संक्षक्षप्त उत्तर सलणखए लेखक का काम काफी हद तक मधम ु न्द्क्खयों के काम से समलता-जुलता है | मधम ु न्द्क्खयााँ मकरं द- संग्रह करने के सलए कोसों दरू तक चक्कर लगाती हैं| िे सुंदर और अच्छे फूलों का रसपान करती हैं |तभी तो उनके मधु में संसार का सियश्रेर्ष्ठ माधय ु य रहता है | यहद आप अच्छा लेखक बनना चाहते हैं तो आपको भी यही िवृ त्त अपनानी होगी | अच्छे ग्रंथों का खब ू अध्ययन करना होगा और उनके विचारों का मनन करना होगा | कफर आपकी रचनाओं में मधु का-सा माधय ु य आने लगेगा | कोई अच्छी उन्द्क्त, कोई अच्छा विचार भले ही दस ू रों से ग्रहण ककया गया हो, लेककन उस पर यथेर्ष्ट मनन कर आप उसे अपनी रचना में स्थान दें गे, तो िह आपका ही हो जाएगा | मननपूिक य सलखी हुई िस्तु के संबंध में ककसी को यह कहने का साहस नहीं होगा कक िह अमक ु स्थान से ली गई है या उन्द्च्छर्ष्ट है | जो बात आप अच्छी तरह आत्मसात कर लेंगे, िह मौसलक हो जाएगी | (क) अच्छा लेखक बनने के सलए क्या करना चाहहए ? ३ (ख) मधम ु क्खी एिं अच्छे लेखक में क्या समानताएाँ होती हैं ? (ग) लेखक अपनी रचनाओं में माधय ु य कैसे ला सकता है ? (घ) कोई भी बात मौसलक कैसे बनती है ? (ङ) मधम ु न्द्क्खयों के मधु में संसार की सिय श्रेर्ष्ठ मधरु ता कैसे आती है ? (च) यथेर्ष्ट तथा उन्द्च्छर्ष्ट शब्दों के अथय सलणखए | . (छ) उपयक् ुय त गद्यांश का उपयुक्त शीर्यक सलणखए | २ ननम्नसलणखत कावयांश को ध्यान पि य पढ़कर पछ ू क ू े गए प्रश्नों के उत्तर सलणखए: १*५=५ साक्षी है इनतहास हमीं पहले जागे हैं, जाग्रत सब हो रहे हमारे ही आगे हैं, 123 ३ ३ २ २ १ १ शत्रु हमारे कहााँ नहीं भय से भागे? कायरता से कहााँ प्राण हमने त्यागे हैं ? हैं हमीं प्रकन्द्म्पत कर चुके, सुरपनत तक का भी हृदय कफर एक बार हे विश्ि गाओ तुम भारत की विजय ! कहााँ प्रकासशत नहीं रहा है तेज हमारा, दसलत कर चक ु े शत्रु सदा हम पैरों द्िारा, बतलाओ तम ु , कौन नहीं जो हम से हारा, पर शरणागत हुआ कहााँ, कब हमें न प्यारा बस यद् ु ध मात्र को छोड़कर, कहााँ नहीं हैं हम सदय ! कफर एक बार हे विश्ि! तम ु गाओ भारत की विजय ! (क) ‘हमीं पहले जागे हैं’ से क्या असभप्राय है ? (ख) ‘हैं हमीं प्रकन्द्म्पत कर चुके, सुरपनत तक का भी भी हृदय’ से भारतिाससयों की ककस विशेर्ता का पता लगता है ? (ग) हमारी दयालत ु ा का िणयन कविता की ककन पंन्द्क्तयों में ककया गया है ? (घ) ककसके जयघोर् करने के सलए कहा गया है ? (ङ) सुरपनत तथा शरणागत शब्दों के अथय सलणखए | खण्ड ख . ३ ननम्नसलणखत विर्यों में से ककसी एक पर ननबंध सलणखए : ५ (क) संचार-क्रांनत और भारत (ख) पररश्रम : सफलता की कंु जी (ग) महाँगाई की समस्या . (घ) पराधीन सपनेहुाँ सुख नाहीं ४ स्िित्त ु करते हुए केन्द्द्रीय विद्यालय विकासपरु ी नई हदल्ली के प्राचायय को ृ (बायोडाटा) प्रस्तत पुस्तकालय सहायक के पद हे तु आिेदन-पत्र सलणखए | ५ अथिा . दरू दशयन के केन्द्द्र ननदे शक को ककसी विशेर् काययक्रम की सराहना करते हुए पत्र सलणखए । ५ (क) ननम्न प्रश्नों के संक्षक्षप्त उत्तर सलणखए५ (i) िीडबैक क्या है ? (ii) जनसंचार के प्रमख ु माध्यम कौन –कौन से हैं? 124 (iii) पत्रकारीय लेखन से आप क्या समझते है ? (iv) समाचार के प्रमुख तत्त्ि सलणखए | (v) पीत पत्रकाररता से क्या असभप्राय है ? (ख) ”एक हदिसीय हररद्िार यात्रा’ सलणखए अथिा ”बेकार पदाथों से उपयोगी िस्तुएाँ’ विर्य पर प्रनतिेदन । . ६ ’बस्ते का बढ़ता बोझ’ अथिा ’जातीयता का विर्’ विर्य पर िीचर सलणखए । ५ . खण्ड ग ७ ननम्नसलणखत में से ककसी कावयांश को पढ़कर पछ ू े गए प्रश्नों के उत्तर सलणखए=८ मैं ननज उर के उद्गार सलये किरता हूाँ, मैं ननज उर के उपहार सलये किरता हूाँ, यह अपूणय संसार न मुझको भाता , मैं स्िप्नों का संसार सलये किरता हूाँ। मैं जला हृदय में अन्द्ग्न, दहा करता हूाँ, सुख-दख ु दोनों में मग्न रहा करता हूाँ, जग भि सागर तरने को नाि बनाए, मैं भि मौजों पर मस्त बहा करता हूाँ। (क) ’ननज उर के उद्गार ि उपहार’- से कवि का क्या तात्पयय है ? (ख) कवि ने संसार को अपूणय क्यों कहा? (ग) कवि को संसार अच्छा क्यों नहीं लगता? (घ) संसार में कर्ष्टों को सह कर भी खश ु ी का माहौल अथिा ककसबी ककसान-कुल, बननक, सभखारर, भाट चाकर, चपल नट,चोर, चार, चेटकी । पेट को पढत,गुन गढत ,चढत धगरर अटत गहन िन , अहन अखेटकी । ऊाँचे-नीचे करम,धरम अधरम करर पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी । 125 कैसे बनाया जा सकता है ? २*४ ‘तुलसी’ बुझाइ एक राम घनश्याम ही तें , आधग बडिाधगतें बड़ी हैं आधग पेटकी || (क) पेट भरने के सलए क्या – क्या करते हैं ? (ख) कवि ने ककन – ककन लोगों का िणयन ककया हैं ? (ग) कवि के अनुसार पेट की आग कौन बुझा सकता है ? (घ) पेट की आग को बडिान्द्ग्न से भी बड़ा क्यों बताया गया है ? . ८ ननम्नसलणखत कावयांश पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर सलणखए – २*३=६ आणखरकार िही हुआ न्द्जसका मुझे डर था जोर जबरदस्ती से बात की चड़ ू ी मर गई और िह भार्ा में बेकार घूमने लगी ! हार कर मैंने उसे कील की तरह उसी जगह ठोंक हदया | (क) बात की चड़ ू ी मर जाने ि बेकार घूमने से कवि का क्या आशय (ख) है ? कावयांश में प्रयुक्त दोनों उपमाओं के प्रयोग सौंदयय पर हटप्पणी कीन्द्जए (ग) | रचनाकार के सामने कथ्य और माध्यम की क्या समस्या थी? अथिा आंगन में ठुनक रहा है न्द्जदयाया है बालक तो हई चााँद पे ललचाया है , दपयण उसे दे के कह रही है मााँ दे ख आइने में चााँद उतर आया है । . (क) कावयांश की भार्ा की दो विशेर्ताओं का उल्लेख कीन्द्जए। (ख) यह कावयांश ककस छं द (ग) ’दे ख आइने में चााँद उतर आया है ’-कथन के सौंदयय को स्पर्ष्ट कीन्द्जए । में सलखा गया है तथा उसकी क्या विशेर्ता है ? ९ ककन्द्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीन्द्जए –३*२=६ (क) क्रान्द्न्द्त की गरजना का शोर्क-िगय पर क्या प्रभाि पड़ता है ? उनका मुख ढााँपना ककस मानससकता का द्योतक है ? (ख) (ग) . १० किराक की रुबाइयों में उभरे घरे लू जीिन के बबंबों का सौंदयय स्पर्ष्ट कीन्द्जए । कैमरे में बंद कविता में ननहहत वयंग्य को उजागर कीन्द्जए । गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीन्द्जए – २*४=८ पर उस जाद ू की जकड़ से बचने का सीधा – सा उपाय है | िह यह कक बाजार जाओ तो खाली मन न हो | मन खाली हो, तब बाजार न जाओ | कहते हैं लू में जाना हो तो पानी 126 पीकर जाना चाहहए | पानी भीतर हो, लू का लू-पन वयथय हो जाता है | मन लक्ष्य में भरा हो तो बाजार भी फैला –का- फैला ही रह जाएगा | तब िह घाि बबल्कुल नहीं दे सकेगा , बन्द्ल्क कुछ आनंद ही दे गा | तब बाजार तुमसे कृताथय होगा , क्योंकक तम ु कुछ-न-कुछ सच्चा लाभ उसे दोगे | बाजार की असली कृताथयता है आिश्यकता के साथ काम आना | (क) (ख) बाजार के जाद ू की पकड़ से बचने का सीधा – सा उपाय क्या है ? बाजार कब नहीं जाना चाहहए और क्यों ? (ग) बाजार की साथयकता ककसमें है ? (घ) बाजार से कब आनंद समलता है ? अथिा एक बार मझ ु े मालम ू होता है कक यह सशरीर् एक अदभत ु अिधत ू है | दुःु ख हो या सख ु ,िह हार नहीं मानता | न ऊधो का लेना, न माधो का दे ना | जब धरती और आसमान जलते रहते हैं, तब भी यह हजरत न जाने कहााँ से अपना रस खींचते रहते हैं | मौज में आठों याम मस्त रहते हैं | एक िनस्पनतशास्त्री ने मुझे बताया है कक यह उस श्रेणी का पेड़ है जो िायुमंडल से अपना रस खींचता है | जरुर खींचता होगा | नहीं तो भयंकर लू के समय इतने कोमल तंतुजाल और ऐसे सुकुमार केसर को कैसे उगा सकता था? अिधत ू ों के माँह ु से ही संसार की सबसे सरस रचनाएाँ ननकली हैं | कबीर बहुत कुछ इस सशरीर् के समान थे, मस्त और बेपरिा, पर सरस और मादक | कासलदास भी अनासक्त योगी रहे होंगे | सशरीर् के फूल फक्कड़ाना मस्ती से ही उपज सकते हैं और ‘मेघदत ू ‘ का कावय उसी प्रकार के अनासक्त, अनाविल, उन्द्मुक्त हृदय में उमड़ सकता है | जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जोफक्कड़ नहीं बन सका, जो ककए – ककराए का लेखा- जोखा समलाने में उलझ गया, िह क्या कवि है ? (क) लेखक ने सशरीर् को क्या संज्ञा दी है तथा क्यों ? (ख) िनस्पनतशास्त्री के अनुसार सशरीर् कैसे जीवित रहता है ? (ग) ‘अिधत ू ों के मुहाँ से ही संसार की सबसे सरस रचनाएाँ ननकली हैं’- आशय स्पर्ष्ट करें | (घ) . ११ लेखक ने सच्चे कवि के बारे में क्या बताया है ? ककन्द्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीन्द्जए –३*४=१२ (क) चालक चैन्द्प्लन कौन था ? उसके भारतीयकरण से लेखक का क्या आशय है ? (ख) भन्द्क्तन द्िारा शास्त्र के प्रश्न को सुविधा से सल ु झा लेने का क्या उदाहरण लेणखका ने हदया है ? (ग) ‘गगरी फूटी बैल वपयासा’ इन्द्दर सेना के इस खेलगीत में बैलों को प्यासा रहने की बात क्यों मुखररत हुई है ? 127 (घ) लुट्टन के राजपहलिान लुट्टन ससंह बन जाने के बाद की हदनचयाय पर प्रकश डासलए । (ङ) आदशय समाज के तीन तत्त्िों में समाज म्रें न्द्स्त्रयों . १२ से एक भ्ातत ृ ा को रखकर लेखक ने अपने आदशय को भी सन्द्म्मसलत ककया है अथिा नहीं ? आप इस भ्ातत ृ ा शब्द से कहााँ तक सहमत हैं ? ककन्द्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीन्द्जए – ३*२=६ (क) ”डायरी के पन्द्ने’ के आधार पर महहलाओं के बारे में ऐन के विचारों पर हटप्पणी कीन्द्जए। (ख) अपने घर में अपनी ’ससल्िर िैडडंग’ के आयोजन में भी यशोधर बाबू की अनेक बातें ’सम हाउ इंप्रोपर’ लग रही थीं , ऐसा क्यों ? (ग) ‘जूझ’ शीर्यक को उपयुक्त ठहराने . १३ के सलए तीन तकय दीन्द्जए । ककन्द्हीं दो प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीन्द्जए-२*२=४ (क) ससन्द्ध-ु सभ्यता के सबसे बड़े शहर मअ ु न-जोदड़ो की नगर-योजना दशयकों को असभभत ू क्यों करती है ? स्पर्ष्ट कीन्द्जए । (ख) ’जझ ू ’ कहानी में दे साई सरकार की भसू मका पर प्रकश डासलए । (ग) ऐसी दो विशेर्ताओं का उल्लेख कीन्द्जए जो सेक्सन ऑकफसर िाई.डी. पंत को अपने रोल . १४ मॉडल ककसन दा से उत्तराधधकार में समली थी । ‘मुअनजोदड़ो’ के खनन से प्राप्त जानकाररयों के आधार पर ससन्द्धु-सभ्यता की विशेर्ताओं पर एक लेख सलणखए । ५ अथिा ’ससल्िर िैडडंग’ कहानी के आधार पर यशोधर बाबू के वयन्द्क्तत्ि की चार विशेर्ताओं पर सोदाहरण प्रकश डासलए । 128 प्रनतर्दशट प्रश्ि-पत्र-२ कक्षा: बारहवीं प्वषय- ठहन्र्दी(केजन्िक) ननधायररत समय:3घण्टे अधधकतम अंक-100 ननदे श: विद्याथी जााँच कर लें कक– प्रश्नपत्र में कुल १४ प्रश्न हैं | सभी प्रश्न ठीक से छपे हैं। प्रश्न का उत्तर सलखने से पूिय प्रश्न का क्रमांक अिश्य सलखें । इस प्रश्न पत्र को पढ़ने के सलए 15 समनट का समय हदया गया है । खण्ड-क प्रश्ि-1. निम्िललखखत काव्यांश को पिकर पूछे गए प्रश्िों के उत्तर र्दीजजए:- (1*5=5) तूफानों की ओर घुमा दो नाविक ! ननज पतिार। आज ससंधु ने विर् उगला है लहरों का यौिन मचला है आज हृदय में और ससंधु में साथ उठा है ज्िार । तफ ू ानों की ओर घम ु ा दो नाविक ! ननज पतिार । लहरों के स्िर में कुछ बोलो इस अंधड में साहस तोलो कभी-कभी समलता जीिन में तूफानों को प्यार । 129 तूफानों की ओर घुमा दो नाविक ! ननज पतिार यह असीम,ननज सीमा जाने सागर भी तो यह पहचाने समट्टी के पुतले मानि ने कभी न मानी हार । प्रश्ि-2. (क) उपयक् ुय तकावयांशकाउपयुक्तशीर्यकदीन्द्जए। (1) (ख) कविकेहृदयऔरससंधम ु ें क्यासमानताहै ? (1) (ग) जबजीिनमें तूफानोंकाप्यारसमलेतोक्याकरनाचाहहएऔरक्यों? (1) (घ) कविसागरकोक्यासमझानाचाहताहै ? (ड) प्रस्तुतकावयांशकामूलभािक्याहै ? (1) (1) निम्िललखखत गद्यांश को पढकर पूछे गए प्रश्िों के उत्तर र्दीजजए : (15) सच ु ाररत्र्य के दो सशक्त स्तंभ हैं-प्रथम सस ु ंस्कार और द्वितीयसत्संगनत। सस ु ंस्कार भी पि ू य जीिन की सत्संगनत ि सत्कमों की अन्द्जत य संपवत्त है और सत्संगनत ितयमान जीिन की दल य ु भ विभूनत है ।न्द्जस प्रकार कुधातु की कठोरता और कासलख, पारस के स्पशय मात्र से कोमलता और कमनीयता में बदल जाती है ,ठीक उसी प्रकार कुमागी का कालुस्य सत्संगनत से स्िणणयम आभा में पररिनतयत हो जाता है ।सतत सत्संगनत से विचारों को नई हदशा समलती है और अच्छे विचार मनुर्ष्य को अच्छे कायों में प्रेररत करते हैं।पररणामत: सुचररत्र का ननमायण होता है । आचायय हजारी प्रसाद द्वििेदी ने सलखा है -“ महाकवि टै गोर के पास बैठने मात्र से ऐसा प्रतीत होता था मानो भीतर का दे िता जाग गया हो।“ िस्तुत: चररत्र से ही जीिन की साथयकता है ।चररत्रिान वयन्द्क्तसमाज की शोभा है , शन्द्क्त है ।सुचाररत्र्य से वयन्द्क्त ही नहीं,समाज भी सुिाससत होता है और इस सुिास से रार्ष्र यशस्िी बनता है । विदरु जी की उन्द्क्त अक्षरश: सत्य है कक सच ु ररत्र के बीज हमें भले ही िंश-परं परा से प्राप्त हो सकते हैं पर चररत्र-ननमायण वयन्द्क्त के अपने बलबूते पर ननभयर है । आनुिंसशक 130 परं परा,पररिेश और पररन्द्स्थनत उसे केिल प्रेरणा दे सकते हैं पर उसका अजयन नहीं कर सकते; िह वयन्द्क्त को उत्तराधधकार में प्राप्त नहीं होता। वयन्द्क्त-विशेर् के सशधथल चररत्र होने से पूरे रार्ष्र पर चररत्र-संकट उपन्द्स्थत हो जाता है क्योंकक वयन्द्क्त पूरे रार्ष्र का एक घटक है ।अनेक वयन्द्क्तयों से समलकर एक पररिार,अनेक पररिारों से एक कुल, अनेक कुलों से एक जानत या समाज और अनेकानेक जानतयों और समाजसमद ु ायों से समलकर ही एक रार्ष्र बनता है । आज जब लोग रार्ष्रीय चररत्र-ननमायण की बात करते हैं, तब िे स्ियं उस रार्ष्र के एक आचरक घटक हैं- इस बात को विस्मत ृ कर दे ते हैं। 1. सत्संगनतकुमागीकोकैसेसध ु ारतीहै ?सोदाहरणस्पर्ष्टकीन्द्जए। 2. चररत्रकेबारे मेंविदरु केक्याविचारहैं? (2) (2) 3. वयन्द्क्त-विशेर्काचररत्रसमूचरे ार्ष्रकोकैसेप्रभावितकरताहै ? 4. वयन्द्क्तकेचाररत्र-ननमायणमें ककस-ककसकायोगदानहोताहै ? (2) (2) 5. संगनतकेसंदभयमेंपारसकेउल्लेखसेलेखकक्याप्रनतपाहदतकरनाचाहताहै ?(2) 6. वयन्द्क्तसुसंस्कृतकैसेबनताहै ?स्पर्ष्टकीन्द्जए। (1) 7. आचरणउच्चबनानेकेसलएवयन्द्क्तकोक्याप्रयासकरनाचाहहए? (1) 8. गद्यांशकाउपयुक्तशीर्यकदीन्द्जए। (1) 9. ’स’ु और’कु’उपसगोंसेएक-एकशब्दबनाइए। 10. ’चररत्रिान’और‘पररिेश’में प्रयुक्तउपसगयऔरप्रत्ययअलगकीन्द्जए। (1) (1) खण्ड- ख प्रश्न-3. निम्िललखखत में से ककसी एक प्वषय पर निबंध ललखखए(क) भ्र्ष्टाचार: कारण और ननिारण (ख) इक्कीसिीं सदी का भारत (ग) बदलते समाज में महहलाओं की न्द्स्थनत (घ) बढता प्रदर् ू ण और जन-स्िास्थ्य 131 (5) प्रश्न-4. ककसी दै ननक समाचार-पत्र के सम्पादक को जान्द्ह्िी की ओर से एक पत्र सलणखए,न्द्जसमें ननरं तर माँहगी होती सशक्षा को लेकर धचंता प्रकट की गई हो । (5) अथिा रे ल यात्रा के दौरान साधारण श्रेणी के याबत्रयों को स्टे शनों एिं चलती गाडडयों में समलने िाली खान-पान की सामग्री संतोर्जनक नहीं होती। इस समस्या की ओर अधधकाररयों का ध्यान आकृर्ष्ट करने के सलए अधीक्षक,खान-पान विभाग,रे ल भिन,नई हदल्ली के नाम पत्र सलणखए। प्रश्ि-5. (अ)निम्िललखखत प्रश्िों के संक्षक्षतत उत्तर र्दीजजए (क) ’उल्टावपरासमड’शैलीसेआपक्यासमझतेहैं? (1) (ख) ‘िॉचडॉग’पत्रकाररतासेक्याआशयहै? (1) (ग) लाइिककसेकहतेहैं? (1) (घ) हहंदीकेककन्द्हींदोरार्ष्रीयसमाचारपत्रोंकेनामसलणखए। (1) (ड.) जनसंचारकेककन्द्हींतीनकायोंकाउल्लेखकीन्द्जए। (आ) निम्िललखखत में से ककसी एक प्वषय पर आलेख ललखखए। (1) (5) (क) खेतीकी जमीन पर फैक्टरी लगाने को लेकर चलने िाली बहस में भाग लेते हुए आलेख सलणखए । (ख) आजादी के साठ सालों में गणतांबत्रक मूल्यों का ह्रास हुआ है । भ्र्ष्टाचार ने हर क्षेत्र को ग्रस्त कर रखा है ।–इस विर्य पर एक आलेख तैयार कीन्द्जए। प्रश्न-6. ‘ओलन्द्म्पक खेल’अथिा ‘महानगरों में बढ़ते अपराध की समस्या’ पर लगभग 150 शब्दों में एक फीचर तैयार कीन्द्जए। 132 (5) खण्ि-ग प्रश्न-7. ननम्नसलणखत में से ककसी एक कावयांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीन्द्जए(२*4=8) मैं यौिन का उन्द्माद सलए कफरता हूाँ, उन्द्मादों में अिसाद सलए कफरता हूाँ, जो मझ ु को बाहर हाँ सा, रुलाती भीतर, मैं, हाय, ककसी की याद सलए कफरता हूाँ, कर यत्न समटे सब,सत्य ककसी ने जाना ? नादान िहीं है , हाय, जहााँ पर दाना ! कफर मढ ू न क्या जग, जो इस पर भी सीखे मैं सीख रहा हूाँ, सीखा ज्ञान भुलाना ! (क)कवि जीिन में क्या सलए घूमता है ? (2) (ख)कवि को बाहर-भीतर क्या हाँ साता-रुलाता है ? (2) (ग)‘नादान िही हैं, हाय,जहााँ पर दाना!’–कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा ? (2) (घ) कवि ने यह क्यों कहा कक सत्य ककसी ने नहीं जाना ? (2) अथिा खेती न ककसान को,सभखारी न भीख,बसल, बननक को बननज,न चाकर को चाकरी । जीविका बबहीन लोग सीद्यमान सोच बस, कहें एक एकन सों ‘कहााँ जाई, का करी ?’ बेदहूाँ पुरान कही, लोकहूाँ बबलोककअत, सााँकरें सबैं पै, राम! रािरें कृपा करी। 133 दाररद-दसानन दबाई दन ु ी, दीनबंधु ! दरु रत-दहन दे णख तल ु सी हहा करी ॥ (क) येपंन्द्क्तयााँककसकवितासेलीगईहैंऔरइसकेकविकौनहैं ? (ख) (२) तल ु सीकेसमयकीआधथयकदशाकैसीथी? (ग) िेदोंमें क्याकहागयाहै ? (2) (2) (घ)तुलसीनेरािणकीतुलनाककससेकीहै औरक्यों? प्रश्न-8. निम्िललखखत काव्यांश पर पूछे गए प्रश्िों के उत्तर र्दीजजए: प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे भोर का नभ राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है ) बहुत काली ससल जरा से लाल केसर से कक जैसे धल ु गई हो स्लेट पर या लाल खडड़या चाक मल दी हो ककसी ने । (क)प्रस्तत ु कावयांश का भाि-सौंदयय स्पर्ष्ट कीन्द्जए । (ख)कवयांश में प्रयुक्त उपमा अलंकार का उदाहरण चन ु कर सलणखए । (ग)उपयक् ुय त कावयांश की भार्ा की दो विशेर्ताएं बताइए। अथिा नहला के छलके-छलके ननमयल जल से 134 (2) (२*3=6) उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके ककस प्यार से दे खता है बच्चा माँह ु को जब घुटननयों में ले के है वपन्द्हाती कपड़े । (क) प्रस्तुत कावयांश का भाि-सौंदयय स्पर्ष्ट कीन्द्जए । (ख) प्रस्तुत कावयांश की भार्ा संबंधी विशेर्ताएं बताइए। (ग)पन ु रुन्द्क्त प्रकाश ि अनप्र ु ास अलंकार छााँहटए। प्रश्न-9. निम्िललखखत में से ककन्हीं र्दो प्रश्िों के उत्तर र्दीजजए- (3+3) (क) ‘भार्ा को सहूसलयत’ से बरतने से क्या असभप्राय है ? (ख) कवि के पास जो कुछ अच्छा-बुरा है , िह विसशर्ष्ट और मौसलक कैसे है ?‘सहर्य स्िीकारा है ’ कविता के आधार पर उत्तर दीन्द्जए । (ग) ‘कैमरे में बंद अपाहहज’ करुणा के मुखौटे में नछपी क्रूरता की कविता है – विचार कीन्द्जए। प्रश्न-10. निम्िललखखत में से ककसी एक गद्यांश को पढकर पूछे गए प्रश्िों के उत्तर र्दीजजए -(२*4=8) बाजार में एक जाद ू है ।िह जाद ू आाँख की राह काम करता है िह रुप का जाद ू है पर जैसे चब ुं क का जाद ू लोहे पर ही चलता है ,िैसे ही इस जाद ू की भी मयायदा है ।जेब भरी हो, और मन खाली हो, ऐसी हालात में जाद ू का असर खब ू होता है ।जेब खाली पर मन भरा न हो तो भी जाद ू चल जायेगा। मन खाली है तो बाजार की अनेकानेक चीजों का ननमंत्रण उस तक पहुाँच जाएगा।कहीं उस िक्त जेब भरी हो तब तो कफर िह मन ककसकी मानने िाला है ! मालूम होता है यह भी लाँ ू, िह भी लाँ ।ू सभी सामान जरुरी और आराम को बढाने िाला मालम ू होता है । पर यह सब जाद ू का असर है ।जाद ू की सिारी उतरी कक फैंसी चीजों की बहुतायत आराम में मदद नहीं दे ती, बन्द्ल्क खलल ही डालती है । (क)बाजार के जाद ू को ‘रुप का जाद’ू क्यों कहा गया है ? (ख)बाजार के जाद ू की मयायदा स्पर्ष्ट कीन्द्जए। 135 (ग)बाजार का जाद ू ककस प्रकार के लोगों को लुभाता है ? (घ)इस जाद ू के बंधन से बचने का क्या उपाय हो सकता है ? अथिा चालक की अधधकांश कफल्में भार्ा का इस्तेमाल नहीं करती इससलए उन्द्हें ज्यादा से ज्यादा मानिीय होना पडा।सिाक् धचत्रपट पर कई बडे-बडे कॉमेडडयन हुए हैं, लेककन िे चैन्द्प्लन की साियभौसमकता तक क्यों नहीं पहुाँच पाए इसकी पड़ताल अभी होने को है । चालक का धचर-यि ु ा होना या बच्चों जैसा हदखना एक विशेर्ता तो है ही,सबसे बड़ी विशेर्ता शायद यह है कक िे ककसी भी संस्कृनत को विदे शी नहीं लगते। यानी उनके आसपास जो भी चीजें,अड़ंगें, खलनायक, दर्ष्ु ट औरतें आहद रहते हैं िे एक सतत ‘विदे श’ या ‘परदे श’ बन जाते हैं और चैन्द्प्लन ‘हम’ बन जाते हैं। चालक के सारे संकटों में हमें यह भी लगता है कक यह ‘मै’ भी हो सकता हूाँ, लेककन ‘मै’ से ज्यादा चालक हमें ‘हम’ लगतेहैं। यह संभि है कक कुछ अथों में ‘बस्टर कीटन’ चालक चैन्द्प्लन से बड़ी हास्य-प्रनतभा हो लेककन कीटन हास्य का काफ्का है जबकक चैन्द्प्लन प्रेमचंद के ज्यादा नजदीक हैं। (क)चालक की कफल्मों को मानिीय क्यों होना पड़ा? (ख)चालक चैन्द्प्लन की साियभौसमकता का क्या कारण है ? (ग) चालक की कफल्मों की विशेर्ता क्या है ? (घ) चालक के कारनामें हमें ‘मैं’ न लगकर ‘हम’ क्यों लगते हैं ? प्रश्न-11. निम्िललखखत में से ककन्हीं चार प्रश्िों के उत्तर र्दीजजए- (४*3=12) (क)भन्द्क्तन और लेणखका के बीच कैसा संबंध था ?‘भन्द्क्तन’ पाठ के आधार पर बताइए । (ख)हदनों-हदन गहराते पानी के संकट से ननपटने के सलए क्या आज का यि ु ािगय ‘काले मेघापानी दे ’ की इंदर सेना की तजय पर कोई सामूहहक आंदोलन प्रारम्भ कर सकता है ? अपने विचार सलणखए । (ग)लुट्टन पहलिान ने ऐसा क्यों कहा होगा कक मेरा गुरु कोई पहलिान नहीं, यही ढ़ोल है ? 136 (घ) ‘मानधचत्र पर एक लकीर खींच दे ने भर से जमीन और जनता बाँट नहीं जातीहै ’उधचत तकों ि उदाहरणों के जररए इसकी पुन्द्र्ष्ट कीन्द्जए । (ड.)द्वििेदी जी ने सशरीर् को कालजयी अिधत ू (संन्द्यासी) की तरह क्यों कहा है ? प्रश्न-12. निम्िललखखत में से ककन्हीं र्दो प्रश्िों के उत्तर र्दीजजए(3+3=6) (क) ‘ससल्िरिैडडंग’ में यशोधर बाबू एक ओर जहााँ बच्चोंकी तरक्की से खश ु होते हैं,िहीं कुछ ‘समहाउइंप्रॉपर’ भी अनुभिकरते हैं , ऐसा क्यों ? (ख) मोहं जोदडो की गह ृ -ननमायण योजना पर संक्षेप में प्रकाश डासलए । (ग) ऐन फ्रेंक कौन थी, उसकी डायरी क्यों प्रससद्ध है ? प्रश्न-13 निम्िललखखत में से ककन्हीं र्दो प्रश्िों के उत्तर र्दीजजए- (2+2=4) (क)सौंदलगेकर कौन थे तथा उनकी क्या विशेर्ता थी ? (ख)यशोधर बाबू ककससे प्रभावित थे ? (ग़)ऐन ने 13जून, 1944 के हदन सलखी अपनी डायरी में क्या बताया है ? प्रश्न-14 निम्िललखखत में से ककसी एक प्रश्ि का उत्तर र्दीजजए- (5) ‘ससंधु सभ्यता की खब ू ी उसका सौंदयय-बोध है जो राज-पोवर्त या धमय-पोवर्त न होकर समाजपोवर्त था।‘ ऐसा क्यों कहा गया ? अथिा ‘ससल्िर िैडडंग’ कहानी के आधार पर यशोधर बाबू के चररत्र की विशेर्ताओं पर प्रकाश डासलए । 137 प्रनतर्दशट प्रश्ि-पत्र-३ ठहन्र्दी (केजन्िक) कक्षा-बारह ननधायररत समय- 3 घण्टे अधधकतम अंक-100 ननदे शुः-इस प्रश्न पत्र में तीन खंड हैं - क ख और ग। सभी खंडों के उत्तर सलखना अननिायय है । कृपया प्रश्न का उत्तर सलखना शुरू करने से पहले, प्रश्न का क्रमांक अिश्य सलखें। खण्ि-क प्र0-1 ननम्नसलणखत कावयांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीन्द्जएपर न्द्जन्द्होंने स्िाथयिश जीिन विर्ाक्त बना हदया है कोहट-कोहट बुभुक्षक्षतों का कौर तलक छीन सलया है लाभ-शुभ सलखकर जमाने का हृदय चस ू ा न्द्जन्द्होंने और कल बंगालिाली लाश पर थक ू ा न्द्जन्द्होंने। बबलखते सशशु की वयथा पर दृन्द्र्ष्ट तक न्द्जनने न फेरी यहद क्षमा कर दाँ ू इन्द्हें धधक्कार मााँ की कोख मेरी, चाहता हूाँ ध्िंस कर दे ना विर्मता की कहानी हो सुलभ सबको जगत में िस्त्र,भोजन,अन्द्न, पानी नि-भिन ननमायण हहत में जजयररत प्राचीनता का गढ़ ढहाता जा रहा हूाँ पर तुम्हें भूला नहीं हूाँ। विश्िास बढ़ता ही गया क) प्रथम चार पंन्द्क्तयों में भारत की ककन राजनीनतक और सामान्द्जक न्द्स्थनत का िणयन है 1 138 ख) कवि ककन लोगों को क्षमा नहीं करना चाहता? ग) कवि जगत के हहत के सलए क्या करना चाहता है? 1 घ) पर तुम्हें भूला नहीं हूाँ ककसके सलए संबोधन ङ) कावयांश का उपयक् ु त शीर्यक दीन्द्जए। 1 है ? 1 1 प्र0-2 ननम्नसलणखत गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीन्द्जए। आज गांधी धचंतन की शाश्ितता महत्ता एिं प्रासंधगकता उनके अहहंसा दशयन के कारण ही है । महात्मा गांधी के दशयन की नींि अहहंसा की वयापकता को िै यन्द्क्तक आचरण तक सीसमत न करके जीिन के प्रत्येक क्षेत्र-धासमयक, नैनतक, सामान्द्जक, आधथयक और राजनैनतक क्षेत्रों में सफलतापूिक य प्रयुक्त ककया। भारत में ही नहीं िरन ् संसार के अन्द्य धमों में भी अहहंसा के ससद्धान्द्त को महत्त्ि प्रदान ककया गया है । इस्लाम धमय के प्रितयक हजरत मुहम्मद साहब के उपदे शों में अहहंसा के पालन का आग्रह है । यहूहदयों के धमयग्रन्द्थों का महत्त्िपूणय स्थान रहा है । ईसा मसीह का संपूणय जीिन अहहंसा का असभवयक्तीकरण है । सक ु रात के अहहंसा पालन का उदाहरण अविस्मरणीय है । अतुः स्पर्ष्ट है कक अहहंसा का ससद्धांत अवपतु इनतहास में उसके संदभय की कहानी बहुत प्राचीन और विस्तत ृ है । यद्यवप अहहंसा भारतीय दशयन ि धमय के सलए अनत प्राचीन है परन्द्तु गांधी की विशेर्ता इस तथ्य में है कक उन्द्होंने अहहंसा के परम्परागत ससद्धांत को आत्मसात ् कर अपने अनुभि से उसकी स्मनृ तयों को नया आयाम हदया। उन्द्होंने अहहंसा को वयन्द्क्तगत जीिन का ही नहीं िरन ् सामान्द्जक जीिन का ननयम बनाकर उसका वयािहाररक प्रयोग ककया। क) ‘आज’से यहााँ क्या तात्पयय है ?गांधी धचंतन ’से आप क्या समझते हैं? 2 ख) अहहंसा का ससद्धांत विश्ि के अन्द्य ककन धमयशास्त्रों में भी िणणयत है ? 2 घ) गद्यांश के दस ू रे अनच् ु छे द को पढ़कर अहहंसा के ससद्धांत के बारे में आपकी क्या धारणा बनती है ? 2 ङ) गांधी जी के अहहंसा ससद्धान्द्त की क्या विशेर्ता है ?जो परं परागत तरीकों से हटकर है । 2 च) अहहंसा के वयािहाररक प्रयोग से आप क्या समझते हैं?2 139 छ) गद्यांश के सलए उपयुक्त शीर्यक दीन्द्जए। ज) उपसगय और प्रत्यय अलग कीन्द्जए। 1 अहहंसा,सामान्द्जक झ) 1 रचना के अनुसार िाक्य भेद बताइए। ईसा मसीह का सम्पूणय जीिन अहहंसा का असभवयक्तीकरण है । ङ) 1 विशेर्ण बनाइएशाश्ितता, प्रासंधगकता 1 खण्ि-ख प्र0-3 विद्यालय में खेल सामधग्रयों की कमी की सशकायत करते हुए प्राचायय को पत्र सलणखए। अथिा विद्यालय के चौराहे पर अराजक तत्िों की भीड़ की सशकायत करते हुए पुसलस अधीक्षक को पत्र सलणखए। 5 प्र0-4 ककसी एक विर्य पर ननबंध सलणखएक) भारत की िैज्ञाननक उपलन्द्ब्धयााँ ख) सियसशक्षा असभयान ग) साम्प्रादानयकता: एक असभशाप घ) कम्प्यट ू र का महत्ि प्र0-5(अ) 5 गंगा प्रदर् ू ण के प्रनत जागरूकता पैदा करने के सलए ककसी दै ननक समाचार पत्र के सलए संपादकीय तैयार कीन्द्जए। अथिा ‘महहला आरक्षण: समाज की आिश्यकता’ शीर्यक पर आलेख प्रस्तुत कीन्द्जए। 140 5 ब) ननम्नसलणखत प्रश्नों के संक्षक्षप्त उत्तर सलणखए- 1 क) एडिोकेसी पत्रकाररता ककसे कहते हैं? ख) छापाखाना का आविर्ष्कार कब हुआ? (ग) इंटरनेट पर प्रकासशत होने िाला पहला समाचार-पत्र कौन था? (घ) पत्रकाररता का छुः ककार क्या है ? (ङ) संपादक ककसे कहते हैं? प्र0-6 िररर्ष्ठ नागररकों के प्रनत न्द्जम्मेदारी विर्य पर फीचर आलेख तैयार कीन्द्जए। अथिा पोसलयो बथ ू के दृश्य की ररपोटय तैयार कीन्द्जए। 5 खण्ड-ग प्र0-7 ननम्नसलणखत कावयांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर सलणखए। बात सीधी थी पर एक बार भार्ा के चक्कर में जरा टे ढ़ी फाँस गई। उसे पाने की कोसशश में भार्ा को उलटा पलटा तोड़ा मरोड़ा, घुमाया कफराया कक बात या तो बने, या कफर भार्ा से बाहर आएलेककन इससे भार्ा के साथ-साथ 141 बात और भी पेचीदा होती चली गई।। (क) बात ककस प्रकार भार्ा के चक्कर में फाँस जाती है ? (ख) भार्ा को तोड़ने मरोड़ने के पीछे कवि का क्या प्रयोजन था? (ग) उपयक् ुय त पंन्द्क्त में ननहहत वयंग्य को स्पर्ष्ट करें । (घ) कवि ने बात को बन जाने के सलए क्या सुझाि हदया है ? अथिा जन्द्म से ही िे अपने साथ लाते हैं कपास पथ् ै पैरों के पास ृ िी घूमती हुई आती है उनके बेचन जब िे दौड़ते हैं बेसध ु छतों को भी नरम बनाते हुए हदशाओं को मद ृ ं ग की तरह बजाते हुए जब िे पें ग भरते हुए चले आते हैं डाल की तरह लचीले िेग से अकसर।। प्र0-8 हो जाए न पथ में रात कहीं मंन्द्जल भी है तो दरू नहीं यह सोच थका हदन का पंथी भी जल्दी-जल्दी क्यों चलता है ? 2 (क) कावयांश की भार्ा की विशेर्ताओं का उल्लेख करें । (ख) पथ शब्द एिं मंन्द्जल शब्द का प्रयोग ककस रूप में ककया गया है ? (ग) हदन का पंथी जल्दी-जल्दी क्यों चलता है ? अथिा आाँगन में ढुनक रहा है न्द्ज़दयाया है 142 बालक तो हई चााँद पै ललचाया है दपयण उसे दे दे के कह रही है मााँ दे ख आइने में चााँद उतर आया है (क) ये पन्द्क्तयााँ ककस छं द में सलखी गई हैं? पद की विशेर्ता को स्पर्ष्ट करें । (ख) भार्ागत सौदयय की ककन्द्हीं दो विशेर्ताओं का उल्लेख करें । (ग) उपयक् ुय त पंन्द्क्तयों का भाि सौंदयय स्पर्ष्ट करें । प्र0-9 ननम्नसलणखत में से ककन्द्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीन्द्जए- 3 (क) भोर के नभ को राख से लीपा हुआ चौका क्यों कहा गया है ? (ख) कवि को बहलाती, सहलाती आत्मीयता बरदास्त क्यों नहीं होती है ? (ग) कवि नें ककसे सहर्य स्िीकारा है ? प्र0-10 नीचे हदए गए गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें - 2 भोजन के समय जब मैंने अपनी ननन्द्श्चत सीमा के भीतर ननहदय र्ष्ट स्थान ग्रहण कर सलया, तब भन्द्क्तन ने प्रसन्द्नता से लबालब दृन्द्र्ष्ट और आत्मतुन्द्र्ष्ट से आप्लावित मुस्कराहट के साथ मेरी फूल की थाली में एक अंगुल मोटी और गहरी काली धचत्तीदार चार रोहटयााँ रखकर उसे टे ढ़ी कर गाढ़ी दाल परोस दी। पर जब उसके उत्साह पर तुर्ारापात करते हुए मैंने रुआाँसे भाि से कहा- यह क्या बनाया है?तब हो िह हतबद् ु धध हो रही। (क) लेणखका की थाली में कैसी रोहटयााँ थीं? रोहटयों के धचत्तीदार होने के क्या कारण हो सकते हैं? (ख) भन्द्क्तन की प्रसन्द्नता से लबालब दृन्द्र्ष्ट एिं आत्मतुन्द्र्ष्ट के क्या कारण हो सकते हैं? (ग) खाने के आसन पर लेणखका क्यों रुआाँसी हो गई? (घ) भन्द्क्तन क्यों हतबद् ु धध हो गई? अथिा 143 अब तक सकफया का गुस्सा उतर चक ु ा था। भािना के स्थान पर बुद्धध धीरे -धीरे उस स्थान पर हािी हो रही थीं नमक की पुडड़या तो ले जानी है , पर कैसे? अच्छा, अगर इसे हाथ में ले लें और कस्टम िालों के सामने सबसे पहले इसी को रख दें ?लेककन अगर कस्टमिालों ने न जाने हदया! तो मजबरू ी है , छोड़ दें गें। लेककन कफर उस िायदे का क्या होगा जो हमने अपनी मााँ से ककया था?हम अपने को सैयद कहते हैं। कफर िायदा करके झठ ु लाने के क्या मायने? जान दे कर भी िायदा पूरा करना होगा। मगर कैसे?अच्छा! अगर इसे कीनुओं की टोकरी में सबसे नीचे रख सलया जाए तो इतने कीनुओं के ढे र में भला कौन इसे दे खेगा? और अगर दे ख सलया? नहीं जी,फलों की टोकररयााँ तो आते िक्त भी ककसी की नहीं दे खी जा रही थीं। इधर से केले, इधर से कीनू सब ही ला रहे थे, ले जा रहे थे। यही ठीक है ,कफर दे खा जाएगा। (क) सकफया का गुस्सा क्यों उतर गया था? (ख) सकफया की क्या भािना थी और िह उसकी बुद्धध के सामने ककस प्रकार परास्त हो गई? (ग) सकफया की उधेड़बन ु का क्या कारण है ? (घ) सकफया ने ककस िायदे को पूरा करने की बात की है ?उसे उसने ककस प्रकार पूरा ककया। प्र0-11 ननम्नसलणखत प्रश्नों में से ककन्द्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीन्द्जए (क) 3 लेखक ने ककस उद्दे श्य से भगत जी का उल्लेख ककया है ?उनका कौन-सा वयन्द्क्तत्ि उभरकर हमारे सामने आया है ? (ख) इन्द्दर सेना सबसे पहले गंगा भैया की जय क्यों बोलती है?नहदयों का भारतीय सामान्द्जक,सांस्कृनतक,पररिेश में क्या महत्ि है ? (ग) लट् ु टन पहलिान ढोलक को ही अपना गरू ु क्यों मानता है ? (घ) लेखक ने सशरीर् के पेड़ को कालजयी अिधत ू की तरह क्यों माना है ? (ङ) लेखक ककन तकों के आधार पर जानत प्रथा को अमानिीय एिं अलोकतांबत्रक बताया है ? प्र0-12 ननम्नसलणखत में से ककन्द्हीं दो प्रश्नों के उत्तर सलणखए। (क) 3 ‘डायरी के पन्द्ने’पाठ के आधार पर महहलाओं के प्रनत ऐन फ्रैंक के दृन्द्र्ष्टकोण को स्पर्ष्ट कीन्द्जए। 144 (ख) जूझ’कहानी का प्रनतपाद्य संक्षेप में स्पर्ष्ट कीन्द्जए। (ग) ‘ससल्िर िैडडंग’ कहानी के आधार पर ससद्ध कीन्द्जए कक ककशन दा की परं परा ननभाते हुए यशोधर पंत ितयमान के साथ नहीं चल पाए। प्र0-13 श्री सौंदलगेकर के वयन्द्क्तत्ि की उन विशेर्ताओं पर प्रकाश डासलए, न्द्जनके कारण जझ ू ’के लेखक के मन में कविता के प्रनत लगाि उत्पन्द्न हुआ। अथिा ‘ससल्िर िैडडंग’में एक ओर न्द्स्थनत को ज्यों-का-त्यों स्िीकार लेने का भाि है तो दस ू री ओर अननणयय की न्द्स्थनत भी। कहानी के इस द्िन्द्द्ि को स्पर्ष्ट कीन्द्जए। 5 प्र0-14 ननम्नसलणखत में से ककन्द्हीं दो प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीन्द्जए। 2 (क) ‘ससल्िर िेडडंग’के आधार पर यशोधर बाबू के सामने आई ककन्द्हीं दो ‘समहाि इंप्रॉपर’न्द्स्थनतयों का उल्लेख कीन्द्जए। (ख) ‘ऐन की डायरी’उसकी ननजी भािनात्मक उथल-पथ ु ल का दस्तािेज भी है । इस कथन की वििेचना कीन्द्जए। ग) क्या ससंधु घाटी की सभ्यता को जल संस्कृनत कह सकते हैं? स्पर्ष्ट कीन्द्जए। 145 उपयोगी साठहजत्यक बेबसाईट 1. www.download.com 2. www.google.com 3. www.foldermarker.com 4. www.webdunia.com 5. www.holy-statues.com 6. www.hindinest.com 7. www.anubhuti-hindi.org 8. www.abhivyakti-hindi.org 9. http://wwwsamvedan.blogspot.com 10. http://www.indianrail.gov.in/index.html 11. www.rachanakar.blogspot.com 12. www.computechpub.com 13. www.desktopvidep.about.com 14. www.technorati.com 15. www.sahityakunj.net 16. www.teachersdomain.org 17. www.thisismyindia.com 18. www.mathforum.org 19. www.nirantar.org 20. www.blogger.com 21. www.hindiwriter.org 22. www.bbc.co.uk/hindi 23. www.sakshat.ac.in 24. www.sakshat.ignou.ac.in 25. www.incometaxindia.gov.in 26. www.pitra.com 27. www.education-world.com 28. www.guru.net.edu 29. www.kidsites.org 30. www.bartleyby.com(Eng lit.2 lac passages +22thousand quotations) 31. www.newdelhi.usembassy.gov 32. [email protected] 146 33. www.dilkedarmiyan.blogspot.com 34. www.south-asia.com/embassy-India 35. www.careerlauncher.com 36. www.rajbhasha.nic.in 37. www.hunkinsexperiments.com 38. www.presidentofindia.nic.in 39. www.freetranslation.com 40. http://www.kavitakosh.org/ 41. http://www.udanti.com/ 42. www.lekhni.net 43. http://hindihaiku.wordpress.com/ 44. http://trivenni.blogspot.com/ 45. www.kathakram.in 46. http://www.garbhanal.com/ 47. http://yugchetna.blogspot.com/ 48. http://lamhon-ka-safar.blogspot.com/ 49. http://aviramsahitya.blogspot.com/ 50. http://www.hindisamay.com/ 147